सोमवार, 15 अक्टूबर 2018

भाजपाई ब्यूरोक्रेट्स?

23 सितंबर
चुनाव के दौरान नौकरशाहों पर सरकार के लिए काम करने के आरोप लगते रहे हैं। इस बार भी कुछ अफसरों के खिलाफ चुनाव आयोग में शिकायतें की गई हैं। अफसर अब सत्ताधारी पार्टी के लिए किस तरह काम कर रहे, ये जांच का विषय हो सकता है। लेकिन, फैक्ट है…..इंटरेस्टिंग भी कि छत्तीसगढ़ के 95 फीसदी से अधिक ब्यूरोक्रेट्स न कांग्रेस गवर्नमेंट को देखे हैं और न ही उनके कामकाज को। 2002 बैच के आईएएस भी जोगी सरकार के आखिरी दौर में एज ए प्रोबेशनर छत्तीसगढ़ आए थे। 2003 से लेकर 2016 तक के आईएएस अफसरों ने सिर्फ भाजपा सरकार को देखा है। छत्तीसगढ़ में इस समय पोस्टेड अफसरों में सिर्फ अजय सिंह, सुनील कुजूर, सीके खेतान, आरपी मंडल, अमिताभ जैन, रेणु पिल्ले, सुब्रत साहू, रीचा शर्मा, सुबोध सिंह, गौरव द्विवेदी, निहारिका बारिक, एम गीता और शहला निगार को ही कांग्रेस शासन काल में काम करने का मौका मिला है। बाकी ब्यूरोक्रेट्स अपने आईएएस कैरियर की शुरूआत बीजेपी सरकार से की और 15 साल से इसी को कंटीन्यू कर रहे हैं। ऐसे में, परिवेश का फर्क तो पड़ता ही है। फिर भी, अफसरों को दोष नहीं देना चाहिए। जिसका झंडा होता है, उसके अफसर होते हैं। अफसरों को पाला बदलने में कितना वक्त लगता है। 2003 में लोगों ने आखिर देखा ही।

ये संस्कृति नहीं!

बिलासपुर के एसपी आरिफ शेख कम्यूनिटी पोलिसिंग के जरिये पुलिस की इमेज बिल्डअप करने की कोशिश कर रहे थे। मगर लाठी चार्ज करके पुलिस ने उसे धो दिया। न्यायधानी की पुलिस ऐसी अराजक हो जाएगी, लोग हतप्रभ हैं। छत्तीसगढ़ पुलिस की कभी ऐसी संस्कृति रही भी नहीं। वो भी बिना किसी उपर के अफसर के आदेश के लाठी चला दें। ये वास्तव में राज्य के लिए गंभीर है। हालांकि, राजनीतिक पार्टियों को ये भी सोचना चाहिए नेताओं के घरों में कचरा और जूता फेंकना कितना जायज है। मंत्री अमर अग्रवाल का तो निजी घर है। अगर सरकारी भी होता तो भी घर का मतलब पूरा परिवार होता है। हो सकता है, उस समय उनके नाते-रिश्तेदार आए हों। सीडी कांड के समय बीजेपी ने भी हालांकि, कुछ ऐसा ही किया। पीसीसी चीफ भूपेश बघेल के घर के घेराव के दौरान उनके कैंपस में जूता फेंका…दीवारों पर अभद्र बातें लिख डाली, गालियां भी दी। छत्तीसगढ़ की ये संस्कृति नहीं है। राजनीति में यहां के लोगों ने कभी ऐसी कटुता नहीं देखी। कांग्रेस और बीजेपी के नेताओं को लोगों ने सुख-दुख में साथ खड़े होते देखा है। दोनों राजनीतिक पार्टियों को इस पर विचार करना चाहिए कि वे राजनीति़ को किस ओर ले जा रहे हैं।

कांग्रेस की टिकिट

कांग्रेस ने 15 सितंबर तक टिकिट तय करने का ऐलान जरूर किया था लेकिन, अब जैसे हालात दिख रहे हैं, आचार संहिता लगने के बाद ही कांग्र्रेस कुछ कर पाने की स्थिति में होगी। आखिर, सबसे पहिले के फायदे हैं तो खतरे भी हैं। कांग्रेस को सबसे अधिक डर सता रहा है, टिकिट न मिलने से नाराज दावेदार जोगी कांग्रेस की ओर न शिफ्थ कर जाए। दूसरा, जोगी काग्रेस और बसपा में गठबंधन होने के बाद अब नए समीकरण को देखते टिकिट वितरण करना पड़ेगा और तीसरा, चंदा वसूली। पार्टी के एक बड़े नेता ने बताया कि सिंगल नाम वाली सीटों का पार्टी घोषणा कर सकती है। मगर वसूली से घबरा रही है। जितना पहले टिकिट दिया जाएगा, उतना ही जेब भी ढीला करना होगा। चंदा-चकोरी से टिकिट के दावेदार वैसे ही परेशान हैं। टिकिट मिलने पर तो लोग टूट पड़ेंगे।

मोदी का मंच

मंत्री राजेश मूणत के हड़काने और भड़कने का भी जांजगीर के अफसरों पर कोई फर्क नहीं पड़ा। प्रधानमंत्री का मंच ऐसा बना डाला कि पीएम, सीएम, गडगरी समेत मंच पर बैठे सभी गेस्ट पूरे समय पसीना पोंछते रहे। दरअसल, मंच की प्लानिंग के समय किसी का ध्यान इस पर नहीं गया कि तीन बजे सूर्य की तीखी किरणें सीधे मंच पर आएंगी। अफसरों ने सूर्य की दिशा में मंच बनवा डाला। इससे वहां पहुंचते ही प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री को परेशानी होने लगी। सीएम कई बार चेहरे के उपर हाथ से सूर्य की किरणों से बचने की कोशिश करते नजर आए। तो पीएम को आधा दर्जन से अधिक बार रुमाल से चेहरा पोंछना पड़ा।

वक्त बलवान

रिटायर आईएएस डीएस मिश्रा ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि उन्हें बिजली विनियामक आयोग का चेयरमैन बनने का मौका मिल जाएगा। विवेक ढांड के चीफ सिकरेट्री बनने के बाद डीएस को मंत्रालय से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। लोक आयोग में उन्हें उलझाने की कोशिश की गई। 9 साल सीएम के विभाग में काम करने के बाद भी रिटायरमेंट के बाद पोस्टिंग के लिए रिरियाना पड़ा। कुछ नहीं मिला तो आखिरकार उन्हें सहकारिता चुनाव प्रमुख के पद से संतोष करना पड़ा। लेकिन, उपर वाला देता है तो छप्पड़ फाड़ कर। उन्हें ऐसे आयोग की चेयरमैनशिप मिल गई है, जहां बिल्डरों से भी बड़ी-बड़ी बिजली कंपनियां उनके आगे-पीछे चक्कर लगाएंगी।

सीईओ या चना-मुर्रा

गरियाबंद जिला पंचायत सीईओ की नियुक्ति में सरकार कुछ ज्यादा ही प्रयोग कर रही है। चार साल में अब तक आधा दर्जन सीईओ की नियुक्ति हो चुकी है। 2014 में राजकुमार खूंटे को हटाकर रीतेश अग्रवाल को भेजा गया था। इसके बाद जगदीश सोनकर, फिर विनीत नंदनवार और पिछले हफ्ते नंदनवार को हटाकर फिर आरके खूंटे। याद होगा, इस साल लोक सुराज में सीएम गरियाबंद जिले के पुअर पारफरमेंस पर बेहद नाराज हुए थे। अब, सरकार यूं ही चना-मुर्रा की तरह सीईओ बदलते रहेगी तो उस जिले के विकास का तो भगवान ही मालिक हैं।

नो वैकेंसी

बिजली विनियामक आयोग का चेयरमैन की नियुक्ति करके सरकार ने रिटायर होने वाले नौकरशाहों के लिए अब नो वैकेंसी कर दी है। रेरा, सूचना आयोग, बिजली विनियामक आयोग, राज्य निर्वाचन रिटायर नौकरशाहों का पसंदीदा ठौर रहा है। हालांकि, पीएससी में भी रिटायर ब्यूरोक्रेट्स को चेयरमैन बनाया जाता है। लेकिन, दो साल का कार्यकाल होने के कारण अफसरों की इसमें खास दिलचस्पी होती नहीं। लिहाजा, अगले दो-एक साल में सेवानिवृत्त होने वाले अफसरों के लिए ढंग की जगह नहीं मिलेगी। रेरा, मुख्य सूचना आयुक्त और बिजली विनियामक आयोग, तीनों जगहों पर इसी साल पोस्टिंग हुई है।

पहली बार

छत्तीसगढ़ के दो आईएफएस अफसरों को सरकार ने प्रिंसिपल सिकरेट्री बना दिया। देश में ऐसा कभी नहीं हुआ। आईएफएस को सिकरेट्री से उपर प्रमोट नहीं किया गया। लेकिन, मोबाइल योजना में रिजल्ट देने के एवज में संजय शुक्ला को सरकार ने प्रमोशन दे दिया। तो उनके सीनियर पीसी मिश्रा भी प्रमुख सचिव बन गए। अहम यह है कि संजय रिटायर चीफ सिकरेट्री विवेक ढांड के बेहद करीबी माने जाते हैं। लेकिन, ढांड के चार साल सीएस रहने के बाद भी संजय प्रमुख सचिव नहीं बन पाए। चलिये, आवास एवं पर्यावरण विभाग में अमन िंसंह के साथ काम करने का लाभ हुआ।

अंत में दो सवाल आपसे

1. टिकिट के लिए सौदा करते किस नेता की सीडी बाजार में आने की चर्चा है?
2. बीजेपी में जिस तरह अधिकारियों का प्रवेश हो रहा है, उनके लिए पार्टी क्या अधिकारिक प्रकोष्ठ बनाएगी??

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें