शनिवार, 15 जून 2019

दमदार लोग, दमदार फैसला

16 जून 2019
85 बैच के आईएएस एन बैजेंंद्र कुमार की गिनती एक धाकड़ और बेबाक नौकरशाह के रूप में होती है। छत्तीसगढ़ में वे करीब नौ साल रहे और इस दौरान उन्होंने अपनी कार्यशैली से एक अलग पहचान बनाई। 2017 में भारत सरकार ने उन्हें एनएमडीसी का सीएमडी अपाइंट किया। एनएमडीसी में चल रहे आंदोलन के सिलसिले में वे 12 जून को रायपुर में थे। शाम को सीएम हाउस में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से उनकी मुलाकात हुई। दो दमदार लोग आमने-सामने होंगे तो जाहिर है, दमदारी भरे फैसले होंगे ही। सीएम ने बैजेंद्र से कहा…..लोहा छत्तीसगढ़ में निकलता है और भरती परीक्ष़्ा हैदराबाद में होती है। नगरनार में लोहा बनेगा और उसका मुख्यालय राज्य से बाहर होगा। बैजेंद्र बोले, साब बताइये करना क्या है। सीएम बोले, बस्तर में एनएमडीसी काम कर रहा तो परीक्षा और मुख्यालय बस्तर में ही होना चाहिए। बैजेंद्र बोले, सर कर दिया। बैजेंद्र ने रात में ही हैदराबाद फोन करके आदेश निकलवा दिया….ग्रुप सी और ग्रुप डी की नौकरी की परीक्षा दंतेवाड़ा में होगी….नगरनार का हेडक्वार्टर नगरनार में होगा। भारत सरकार से पूछे बिना इतना बड़ा फैसला किसी दूसरे सीएमडी के लिए संभव नहीं था। उधर, बैजेंद्र ने बस्तर को इतनी बड़ी सौगात दे दी कि सीएम का खुश होना स्वाभाविक था। उन्होंने तुरंत दंतेवाड़ा कलेक्टर टीपी वर्मा से बात की। और, रात नौ बजे एसडीएम दंतेवाड़ा ने आदेश निकाल दिया कि ठीक तीन घंटे बाद रात बारह बजे तक आंदोलनकारी धरना स्थल खाली कर दें, वरना शक्तिपूर्वक उन्हें हटा दिया जाएगा। इसका असर हुआ। अगले दिन दोपहर में एनएमडीसी प्लांट का काम प्रारंभ हो गया। इसमें सबसे अहम यह कि बस्तर को एक बड़ा हक मिल गया।

खेतान का ओहरा बढ़ा?

गृह विभाग की जिम्मेदारी सौंपने के बाद सरकार ने एसीएस सीके खेतान को प्रभारी चीफ सिकरेट्री का दायित्व भी सौंपा है। हालांकि, चीफ सिकरेट्री सुनील कुजूर के कनाडा जाने की स्थिति में बैचवाइज सबसे सीनियर खेतान हैं, इसलिए प्रभारी सीएस की उनकी स्वभाविक दावेदारी बनती है। लेकिन, इसमें महत्वपूर्ण यह है कि जिस समय कुजूर कनाडा रवाना हो रहे थे, उस समय खेतान क्लाइमेट चेंज पर वर्कशाप में हिस्सा लेने ऑस्ट्रेलिया में थे। इंडिया की धरती पर कदम रखने से पहले ही प्रभारी सीएस का उनका आदेश निकल गया। फिर प्रभारी सीएस के रूप में उन्होंने कैबिनेट भी कर ली। पिछले 15 साल में याद नहीं आता कि कोई प्रभारी सीएस कैबिनेट किया हो। कई साल से तो प्रभारी का आदेश निकालना ही बंद हो गया था। बिना प्रभार दिए ही सीएस विदेश जा रहे थे। बहरहाल, चीफ सिकरेट्री सुनील कुजूर अक्टूबर में रिटायर हो जाएंगे। याने करीब ढाई महीने बाद सितंबर से उनकी उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी। कुजूर 86 बैच के आईएएस हैं। उनके बाद 87 बैच में तीन आईएएस हैं। सीके खेतान, आरपी मंडल और वीबीआर सुब्रमण्यिम। सुब्रमण्यिम फिलहाल जम्मू-कश्मीर के चीफ सिकरेट्री हैं। चूकि केंद्र सरकर ने वहां राष्ट्रपति शासन छह महीने और बढ़ा दिया है। लिहाजा, उनका उससे पहले लौटना मुमकिन नहीं लगता। जाहिर है, नौकरशाही के इस शीर्ष पद के लिए अब दो ही नाम बचते हैं। खेतान और मंडल। दोनों न केवल एक ही बैच के हैं बल्कि एक ही प्रदेश के बिलांग करते हैं। बिहार से। इन दोनों में से किसी के सिर पर सीएस का सेहरा बंधेगा।

कमिश्नर होंगे चेंज

राज्य सरकार जल्द ही सरगुजा में नया कमिश्नर अपाइंट कर सकती है। सरगुजा कमिश्नर ए टोप्पो ने स्वास्थ्यगत कारणों से सरकार से आग्रह किया है कि काम करने में वे असमर्थता महसूस कर रहे हैं, लिहाजा उन्हें वहां से हटा दिया जाए। लोकसभा चुनाव के पहले फरवरी में टोप्पो को कमिश्नर बनाकर सरगुजा भेजा गया था। वहीं, अंबिकापुर जिला पंचायत की आईएएस सीईओ नम्रता गांधी मैटरनिटी लीव पर जा रही हैं। सरकार ने उनकी छुट्टी मंजूर कर ली है। उनकी जगह किसी आईएस को पोस्ट किया जाएगा। याने जल्द ही आईएएस में एक छोटी लिस्ट निकलेगी। सरगुजा कमिश्नर टोप्पो प्रमोटी आईएएस हैं। पता चला है, उनकी जगह पर किसी प्रमोटी को ही कमिश्नर बनाकर अंबिकापुर भेजा जाएगा।

कलेक्टरी में दबदबा

बात प्रमोटी आईएएस की निकली तो बता दें, सूबे में प्रमोटी आईएएस का रुतबा बढ़ने लगा है। अभी प्रदेश के 27 में से 11 जिलों में प्रमोटी कलेक्टर हो गए हैं। पिछली लिस्ट में भी दो जिले में प्रमोटी आईएएस को कलेक्टर बनाकर भेजा गया। पिछली सरकार चुनाव के समय प्रमोटी आईएएस को कलेक्टर बनाने में प्रायरिटी देती थी। बाकी समय तो उनकी संख्या नगण्य ही होती थी। याद होगा, 2013 के विधानसभा चुनाव के समय प्रमोटी कलेक्टरों की संख्या 12 पहुंच गई थी। लेकिन, चुनाव होते ही पांच पर सिमट गए। भूपेश सरकार ने बिलासपुर, जांजगीर और दंतेवाड़ा जैसे जिलों में प्रमोटी को मौका दिया है। दंतेवाड़ा में केएम पिस्दा के बाद किसी प्रमोटी को चांस नहीं मिला। प्रमोटी कलेक्टर वाले 11 जिलों में दंतेवाड़ा टीपी वर्मा, कोंडागांव नीलकंठ नेताम, बीजापुर केडी कुंजाम, कांकेर केएल चौहान, नारायणपुर पदम सिंह एल्मा, बेमेतरा महादेव कांवड़े, महासमुंद सुनील जैन, गरियाबंद श्याम धावड़े, बिलासपुर डा0 संजय अलंग, जांजगीर जनकराम पाठक, कोरिया डोमन सिंह शामिल हैं।

एलेक्स अमेरिका निकले और….

आईएएस एलेक्स पाल मेनन पारिवारिक कार्य से पिछले महीने अमेरिका रवाना हुए। और, इधर उनका विभाग खिसक गया। एलेक्स के पास डायरेक्टर ट्राईबल के साथ अंत्यव्यवसायी निगम जैसे ट्राईबल से रिलेटेड चार्ज थे। सरकार ने उन्हें मंत्रालय में ज्वाइंट सिकरेट्री पोस्ट किया है। लेकिन, बिना विभाग के। याने बिना विभाग वाले आईएएस की सूची में एलेक्स भी अब शामिल हो गए हैं। एलेक्स 2006 बैच के आईएएस हैं। बरबस अब प्रश्न उठेगा कि उन्हें बेविभाग क्यों गया? तो चिप्स में पोस्टिंग के दौरान किसी मामले से सरकार उनसे नाराज बताई जा रही है।

अब नो चेंज

सामने बरसात को देखते सरकार ने अब कलेक्टरों के ट्रांसफर को ड्रॉप कर दिया है। पिछली लिस्ट में रायपुर, कोरिया और जांजगीर जिले के कलेक्टर बदले गए थे। इसके बाद एक और लिस्ट निकलने की चर्चा थी। लेकिन, अब सरकार ने ना कर दिया है। कोई अपने से हिट विकेट हो जाए तो अलग बात है। वरना, अक्टूबर से पहिले किसी को बदला नहीं जाएगा। अक्टूबर में चीफ सिकरेट्री के रिटायर होने के बाद एक बडी लिस्ट निकलेगी, उसमें कलेक्टरों का नम्बर लगेगा।

पनिशमेंट पोस्टिंग?

सरकार ने इस साल फरवरी में 2011 बैच के आईएएस संदीपन को कोरिया का कलेक्टर बनाया था। मगर हिट विकेट कहें या कुछ और, चार महीने में ही वे मंत्रालय लौट आए। उन्हें डिप्टी सिकरेट्री फॉरेस्ट बनाया गया है। वन विभाग के आईएएस कभी डिप्टी सिकरेट्री नहीं रहा। सिकरेट्री तक आईएफएस होता है। हालांकि, प्रिंसिपल सिकरेट्री या एडिशनल चीफ सिकरेट्री इस विभाग के हेड होते हैं। अभी आरपी मंडल के पास फॉरेस्ट है। संदीपन, एमके राउत और आरपी मंडल के साथ पंचायत में काम कर चुके हैं। पता नहीं कैसे, दोनों से गुरू ज्ञान लेने में संदीपन ने चूक कैसे कर दी? सरकार बदलने के बाद कैसे काम किया जाता है, दोनों का अपना अनुभव है।

लाखों की पगार फ्री में

राज्य में खजाने की स्थिति ठीक नहीं है और सरकार हर महीने नौकरशाहों को दस लाख रुपए से अधिक तनख्वाह बिना काम के बांट रही है। इनमें आईएएस डा0 आलोक शुक्ला, अनिल टुटेजा, आईएफएस में रामाराव, नरसिम्हाराव जैसे कई अफसर शामिल हैं। इन अफसरों के खिलाफ निलंबन जैसी कोई कार्रवाई भी नहीं हुई है, जिस वजह से उनसे काम लेने में दिक्कत हो। सीधी सी बात है, पैसा ले रहे तो उसके एवज में काम तो करना होगा। खासकर आलोक शुक्ला और अनिल टुटेजा जैसे काबिल और रिजल्ट देने वाले अफसर तो वक्त के शिकार हो गए। वरना, सरकारी खजाने को लूटने के बाद भी कई नौकरशाह मजे में अपने पद पर बने हुए हैं। डीएमएफ में तो कई कलेक्टरों ने डकैती कर डाली, फिर भी उनका बाला बांका नहीं हुआ। और, शुक्ला एवं टुटेजा पिछले पांच साल से घर बैठे हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. आईजी से एडीजी का प्रमोशन लिस्ट फिर क्यों अटक गई?
2. चरणदास महंत और टीएस सिंहदेव में नजदीकियां कुछ ज्यादा बढ़ रही हैं क्या?

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