5 अप्रैल 2020
कोरोना संकट के दौर में छत्तीसगढ़ के लोगों को ये खबर सुकून दे सकती है कि देश में सेनेटाईजर्स की आपूर्ति निर्बाध जारी रखने में अपने सूबे के एक आईएएस अधिकारी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दरअसल, फरवरी लास्ट में देश में कोरोना ने पांव फैलाने शुरू किए तो देश में सेनेटाईजर्स का शार्टेज होने लगा। सबकी चिंता यही थी कि व्यापक पैमाने पर सप्लाई के लिए सेनेटाईजर्स का प्रोडक्शन कैसे बढ़ाया जाए। भारत सरकार ने इनिशियेटिव लिया….डिस्टीलरी समेत अन्य यूनिटों को सेनेटाईजर्स बनाने का लायसेंस दिया जाए। इसका जिम्मा इसी जनवरी में डेपुटेशन पर भारत सरकार गए सुबोध सिंह को सौंपा गया। सुबोध सिंह ने चार दिन के भीतर न केवल रुल-रेगुलेशन बना दिया बल्कि, सभी राज्यों से कोआर्डिनेट किया कि जितना जल्दी हो सके, अपने राज्यों के डिस्टलरी को लायसेंस प्रदान कर दें। नतीजा हुआ कि 150 डिस्टीलरीज में सेनेटाईजर्स बनाने का काम प्रारंभ हो गया। इसके अलावा देश के 750 अन्य यूनिटों में भी सेनेटाईजर बनने लगे। यही वजह है कि सेनेटाइजर्स का शार्टेज नहीं पड़ा। सामान्यतया देश में प्रति महीने डेढ़ से दो लाख लीटर सेनेटाइजर का प्रोडक्शन होता था। मगर अब हर रोज 10 लाख लीटर सेनेटाईजर बनाने की क्षमता हो गई है। जाहिर है, सुबोध रिजल्ट देने वाले आईएएस माने जाते हैं।
कोरोना संकट के दौर में छत्तीसगढ़ के लोगों को ये खबर सुकून दे सकती है कि देश में सेनेटाईजर्स की आपूर्ति निर्बाध जारी रखने में अपने सूबे के एक आईएएस अधिकारी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दरअसल, फरवरी लास्ट में देश में कोरोना ने पांव फैलाने शुरू किए तो देश में सेनेटाईजर्स का शार्टेज होने लगा। सबकी चिंता यही थी कि व्यापक पैमाने पर सप्लाई के लिए सेनेटाईजर्स का प्रोडक्शन कैसे बढ़ाया जाए। भारत सरकार ने इनिशियेटिव लिया….डिस्टीलरी समेत अन्य यूनिटों को सेनेटाईजर्स बनाने का लायसेंस दिया जाए। इसका जिम्मा इसी जनवरी में डेपुटेशन पर भारत सरकार गए सुबोध सिंह को सौंपा गया। सुबोध सिंह ने चार दिन के भीतर न केवल रुल-रेगुलेशन बना दिया बल्कि, सभी राज्यों से कोआर्डिनेट किया कि जितना जल्दी हो सके, अपने राज्यों के डिस्टलरी को लायसेंस प्रदान कर दें। नतीजा हुआ कि 150 डिस्टीलरीज में सेनेटाईजर्स बनाने का काम प्रारंभ हो गया। इसके अलावा देश के 750 अन्य यूनिटों में भी सेनेटाईजर बनने लगे। यही वजह है कि सेनेटाइजर्स का शार्टेज नहीं पड़ा। सामान्यतया देश में प्रति महीने डेढ़ से दो लाख लीटर सेनेटाइजर का प्रोडक्शन होता था। मगर अब हर रोज 10 लाख लीटर सेनेटाईजर बनाने की क्षमता हो गई है। जाहिर है, सुबोध रिजल्ट देने वाले आईएएस माने जाते हैं।
वीसी पर बैन
अब कोई सिकरेट्री कलेक्टरों से वीडियोकांफ्रेंसिंग नहीं कर सकेगा। सरकार ने इस पर रोक लगा दी है। चीफ सिकरेट्री आफिस ने इस बारे में आदेश निकाल दिया है। आदेश में दो टूक कहा गया है कि मुख्यमंत्री या मुख्य सचिव की अनुमति के बगैर कोई सचिव कमिश्नर्स, कलेक्टर्स की वीसी नहीं लेगा। हालांकि, ये आदेश पहले से था। सीएम, सीएस के अलावे कोई और अधिकारी कलेक्टर, एसपी की वीसी नहीं लेता था। न ही कांफ्रेंस होती थी। साल में एक से दो बार कलेक्टर, एसपी कांफ्रेंस होती थी। सरकार ने अब फिर से इस आदेश को निकाला है कोई बात तो होगी ही।
कलेक्टरों पर लोड!
पहले कलेक्टरांं को अपने हिसाब से काम करने की आजादी थी। मसूरी में इसकी ट्रेनिंग भी मिलती है। यही वजह है कि लगभग हर कलेक्टर कोई-न-कोई एक अलग काम करने का प्रयास करता था। लेकिन, अबके दौर में काम कम, मीटिंग, वीसी ज्यादा होने लगी है। उपर से सिकरेट्री का छोटे-छोटे काम के फोन। पिछली सरकार से ही ये शुरू हुआ है….जिस काम के लिए अपने विभागीय अधिकारियों से बात की जा सकती थी, उसके लिए सिकरेट्री कलेक्टरों को फोन खड़का देते हैं। जबकि, सिस्टम में कलेक्टर्स को सीधे मुख्यमंत्री के अधीन किया गया है, क्योंकि, वह स्वतंत्र होकर काम कर सकें। प्रशासनिक मुखिया होने के नाते सिर्फ चीफ सिकरेट्री को यह सीएम से अधिकार मिला हुआ है कि वे कलेक्टर समेत किसी भी आईएएस से संवाद कर सकते हैं। एक कलेक्टर 15 लाख, 20 लाख लोगों का मुखिया होता है। सरकार की तमाम योजनाओं का क्रियान्वयन कराने के साथ ही उसके पास डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट की जिम्मेदारी भी होती है। समझा जा सकता है, अनावश्यक लोड बढ़ाने में वह काम कैसे कर पाएगा?
जीपीएम बोले तो…
छत्तीसगढ़ का जीपीएम जिला…..अधिकांश लोग यह नाम पढ़कर चौंकेंगे….अभी तक राजस्व जिला, पुलिस जिला होता था, ये जीपीएम जिला कहां से आ गया। दरअसल, जीपीएम छत्तीसगढ़ के नया जिला गौरेला-पेंड्रा-मरवाही का शर्ट नेम है। सरकारी पत्रों में भी लंबे नाम की जगह जीपीएम लिखा जा रहा है। वैसे भी, राजनीतिक कारणों की वजह से सही, नाम कुछ ज्यादा ही बड़ा हो गया। तीन अलग-अलग जगहों के नाम वाला जिला शायद देश में कहीं और नहीं होगा। जीपीएम नाम ठीक भी है। छत्तीसगढ़ में दो शहरों के नामों को मिलाकर जिन जिलों का नामकरण किया गया, उनमें उद्देश्य पूरा नहीं हुआ। वह जांजगीर-चांपा हो या बलौदा बाजार-भाटापारा। चांपा और भाटापारा के लोगों का शिकायत रहती है कि बोलचाल में लोग जांजगीर और बलौदा बाजार ही लोग कहते हैं।
सबसे बड़ा विभाग
कोरोना में छत्तीसगढ़ का हेल्थ विभाग अभी सबसे बड़ा विभाग बन गया है। इसमें पोस्ट होने वाले आईएएस अफसरों की संख्या नौ पहुंच गई है। सिकरेट्री निहारिका बारिक, एमडी मेडिकल कारपोरेशन भूवनेश यादव, एमडी एनआरएचएम डॉ0 प्रियंका शुक्ला और डायरेक्टर नीरज बंसोड़ पहले से थे। इनके अलावा कोरोना के लिए आईएएस राजेश टोप्पो, भास्कर विलास संदीपन, प्रभात मलिक, अभिजीत सिंह और राहुल वेंकट ओएसडी अपाइंट किए गए हैं। जाहिर है, हेल्थ अभी टॉप प्रायरिटी पर है। मंत्रालय अभी क्लोज है। इसलिए, सर्किट हाउस को हेल्थ विभाग का कैम्प आफिस बनाया गया है। यहीं से कोरोना की मानिटरिंग हो रही है।
राजेश की वापसी
2005 बैच के आईएएस राजेश टोप्पो की 15 महीने बाद सिस्टम में वापसी हुई। सरकार ने उन्हें ओएसडी हेल्थ बनाया है। इसके साथ ही उन्हें कोरोना के लिए बनी क्रय समिति के चेयरमैन का दायित्व सौंपा गया है।
टीम 28 और कोरोना
छत्तीसगढ़ में इंकम टैक्स की दबिश के बाद खुफिया पुलिस ने अपने नेटवर्क को मजबूत करने के लिए टीम 28 बनाई। इनमें प्रदेश भर से छांटकर जमीनी पकड़ वाले इंस्पेक्टर, सब इस्पेक्टर, हवलदार, सिपाही को शामिल किया गया। लेकिन, 14 मार्च को टीम 28 का आदेश निकला और इसके जस्ट बाद कोरोना आ गया। ऐसे में, टीम 28 की ड्यूटी कोरोना कंट्रोल रुम में लगा दी गई है। वैसे भी इस समय सारा कुछ ठप है तो वे इंटेलिजेंस इनपुट क्या देंगे।
आईपीएस पिछड़े
सूबे में एसपी से लेकर आईजी, डीजी तक के आईपीएस अधिकारियों का प्रमोशन लटका हुआ है। लेकिन, हवलदार, एसआई बाजी मार ले गए। डीजीपी डीएम अवस्थी ने उनका प्रमोशन आर्डर जारी कर दिया। हालांकि, ये ठीक भी है। कोरोना में दिन-रात ड्यूट बजा रही पुलिस का इससे मनोबल बढ़ेगा।
अंत में दो सवाल आपसे
1. रायपुर मेडिकल कॉलेज की डीन डा0 आभा सिंह का ट्रांसफर आर्डर 24 घंटे में ही कैसे बदल गया?
2. क्या सांसद और विधायक निधि की राशि को पीएम और सीएम रिलीफ फंड में देना वाजिब है?
2. क्या सांसद और विधायक निधि की राशि को पीएम और सीएम रिलीफ फंड में देना वाजिब है?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें