तरकश, 7 जून 2020
संजय के. दीक्षित
मध्यप्रदेश के चर्चित हनी ट्रैप कांड की जांच में यह बात सामने आई थी कि छत्तीसगढ़ के कुछ नौकरशाहों और फाॅरेस्ट अफसरों ने भी उन हनियों के एनजीओ को करोड़ों के काम दिए थे। हाल के घटनाक्रम ने इस पर मुहर लगा दिया है कि एनजीओ को काम देने की आड़ में छत्तीसगढ़ में भी घिनौना खेल चल रहा है। मंत्रालय तक अछूता नहीं है। कुछ बड़े अधिकारियों के इन हनियों के इशारे पर नाचने की बात अब मंत्रालय के लिए नई नहीं है। और-तो-और, एक मंत्री के बारे में चर्चा है एनजीओ संचालिका ने उन्हें बुरी तरह अपने प्रभाव में ले लिया है। हालांकि, सरकारी खुफिया एजेंसी को भी इसके लिए कटघरे में खड़ा किया जाना चाहिए। मंत्रालय में बेधड़क विचरती विषकन्याओं की खबर उसे क्यों नहीं होती….जब पूरे जांजगीर शहर को पता था कि वहां कलेक्ट्रेट में क्या चल रहा, तब खुफिया विभाग ने सरकार को फीडबैक क्यों नहीं दिया। ऐसे ही कामों के लिए ही तो सरकार ने खुफिया विभाग के लिए नौ करोड़ रुपए का आनआॅडिट बजट दे रखा है। हनियों से अफसरों के बचाव के बारे में सरकार को कुछ सोचना चाहिए।
संजय के. दीक्षित
मध्यप्रदेश के चर्चित हनी ट्रैप कांड की जांच में यह बात सामने आई थी कि छत्तीसगढ़ के कुछ नौकरशाहों और फाॅरेस्ट अफसरों ने भी उन हनियों के एनजीओ को करोड़ों के काम दिए थे। हाल के घटनाक्रम ने इस पर मुहर लगा दिया है कि एनजीओ को काम देने की आड़ में छत्तीसगढ़ में भी घिनौना खेल चल रहा है। मंत्रालय तक अछूता नहीं है। कुछ बड़े अधिकारियों के इन हनियों के इशारे पर नाचने की बात अब मंत्रालय के लिए नई नहीं है। और-तो-और, एक मंत्री के बारे में चर्चा है एनजीओ संचालिका ने उन्हें बुरी तरह अपने प्रभाव में ले लिया है। हालांकि, सरकारी खुफिया एजेंसी को भी इसके लिए कटघरे में खड़ा किया जाना चाहिए। मंत्रालय में बेधड़क विचरती विषकन्याओं की खबर उसे क्यों नहीं होती….जब पूरे जांजगीर शहर को पता था कि वहां कलेक्ट्रेट में क्या चल रहा, तब खुफिया विभाग ने सरकार को फीडबैक क्यों नहीं दिया। ऐसे ही कामों के लिए ही तो सरकार ने खुफिया विभाग के लिए नौ करोड़ रुपए का आनआॅडिट बजट दे रखा है। हनियों से अफसरों के बचाव के बारे में सरकार को कुछ सोचना चाहिए।
एंटी चेम्बर बंद?
एनआरडीए सीईओ एसएस बजाज ने मंत्रालय में सिकरेट्री के कमरे के पीछे इस उद्देश्य से एंटी चेम्बर बनवाए थे कि व्यस्त कामकाज के बीच अधिकारी कुछ पल वहां आराम कर सकेंगे। लेकिन, जांजगीर कलेक्टर के एंटी चेम्बर में जो कुछ हुआ, उसके बाद मंत्रालय के एंटी चेम्बरों को बंद करने पर विमर्श शुरू हो गया है। हालांकि, ये जानकारी पुष्ट नहीं है मगर सुनने में आ रहा उपर लेवल पर इस पर चर्चा शुरू हो गई है। दरअसल, लंगोट के ढिले कुछ आईएएस अफसरों से सरकार को बदनामी का बड़ा खतरा है। याद होगा, पुराने मंत्रालय में एक महिला दूसरे मंजिल से कूदकर सुसाइड कर ली थी। सोशल मीडिया का वो युग नहंी था, इसलिए रफा-दफा करने में दिक्कत नहीं आई। नया मंत्रालय तो बना भी है बियाबान में। शाम पांच बजे के बाद कर्मचारी भी निकल लेते हैं। जांजगीर जैसी घटना की पुनरावृत्ति से बचने मंत्रालय के सिकरेट्री के एंटी चेम्बर अगर बंद कर दिया जाए, तो आश्चर्य नहीं।
दूसरे डीआईजी
राज्य सरकार ने एडीजी जीपी सिंह को ईओडब्लू, एसीबी चीफ को बदल दिया। उनकी जगह पर रायपुर के एसएसपी आरिफ शेख को इन जांच एजेंसियों का एडिशनल चार्ज दिया गया है। खबर है, वे अब ईओडब्लू और एसीबी में ही कंटीन्यू करेंगे। डीआईजी रहते दोनों जांच एजेंसियों की कमान संभालने वाले आरिफ दूसरे डीआईजी होंगे। राज्य बनने के बाद ईओडब्लू, एसीबी में पहली पोस्टिंग डीआईजी सुभाष अत्रे की हुई थी। वे प्रमोटी आईपीएस थे। अत्रे के बाद हमेशा आईजी या उससे उपर रैंक के अफसरों को ही दोनों जांच एजेंसियों का प्रमुख बनाया गया। डीएम अवस्थी, संजय पिल्ले और मुकेश गुप्ता आईजी में पोस्ट हुए थे और वहीं पर प्रमोट होकर एडीजी बनें। मुकेश गुप्ता तो डीजी भी। मुकेश के बाद ईओडब्लू चीफ बीके सिंह भी डीजी रहे। इस तरह देखें तो आरिफ को बहुत कम समय में बड़ी जांच एजेंसी की कमान मिल गई। आरिफ धमतरी, जांजगीर, बालोद, बलौदा बाजार, बस्तर, बिलासपुर और रायपुर के एसपी रह चुके हैं। याने सात जिलों की कप्तानी।
एसपी के ट्रांसफर
ईओडब्लू और एसीबी में काम ज्यादा होने के कारण आरिफ शेख के लिए अब रायपुर जिले का कप्तान बने रहना संभव नहीं हो पाएगा। लिहाजा, रायपुर में नए कप्तान की पोस्टिंग की जाएगी। रायपुुर के लिए तीन आईपीएस के नाम चल रहे हैं। दुर्ग के एसएसपी अजय यादव, बिलासपुर एसपी प्रशांत अग्रवाल और तीसरा जगदलपुर एसपी दीपक झा। तीनों में अजय यादव का पलड़ा भारी लग रहा है। वे सबसे सीनियर हैं। 2004 बैच के। डीआईजी भी हैं। भाजपा के फायर ब्रांड नेता स्व0 दिलीप सिंह जूदेव ने अजय को टारगेट करते हुए प्रशासनिक आतंकवाद चलाने का जो तीर छोड़ा था, रमन सरकार उसे झेल नहीं पाई। और, आनन-फानन में बिलासपुर एसपी से हटा दिया था। अजय यादव अब फिर से मेन ट्रेक पर हैं। बहरहाल, इन तीनों में से जिन्हें रायपुर लाया जाएगा, वहां दूसरा एसपी भेजना पड़ेगा। कुल मिलाकर एसपी ट्रांसफर का एक छोटा चेन बनेगा। इनमें तीन-चार और जिले का नम्बर लग सकते हैं।
अभिशप्त बैच?
आईपीएस के 94 बैच में तीन अफसर हैं। जीपी सिंह, एसआरपी कल्लूरी और हिमांशु गुप्ता। इस बैच का ग्रह-नक्षत्र ऐसा खराब चल रहा है कि बीजेपी सरकार ने लाख प्रयास के बाद भी टाईम से पहिले प्रमोशन नहीं दिया। कांग्रेस सरकार ने तीनों को प्रमोट करके न केवल एडीजी बनाया बल्कि अहम जिम्मेदारी भी सौंपी। लेकिन, तीनों सस्ते में विकेट गवांकर पेवेलियन लौट गए। कल्लूरी को जब सरकार ने ईओडब्लू का हेड बनाया तो राज्य के लोग आवाक रह गए थे। कुछ दिनों बाद कल्लूरी एडिशनल ट्रांसपोर्ट कमिश्नर बन गए। लेकिन, उसके बाद ग्रह-नक्षत्र ऐसा बिगड़ा कि वे पीएचक्यू में बिना विभाग के बैठे हैं। हिमांशु गुप्ता को सरकार ने एडीजी होने के बाद भी रेंज आईजी की पोस्टिंग दी थी। इसके बाद खुफिया चीफ। डीजीपी के बाद यह सबसे इम्पाॅर्टेंट पोस्टिंग मानी जाती है। लेकिन, बाउंड्री मारने के चक्कर में वे आसान कैच हो गए। 94 बैच के तीसरे बैट्समैन थे जीपी सिंह। जीपी बाॅल को समझ नहीं पाए। और, स्पिन होती बाॅल ने उनका विकेट उडा दिया। अब तीनों आईपीएस बिना विभाग के हो गए हैं। सुना है, तीनों को एक साथ विभाग देने पर सरकार विचार कर रही है। हो सकता है कि एसपी की पोस्टिंग के साथ ही तीनों एडीजी को भी जिम्मेदारी मिल जाए।
पांचवे आईएएस
जांजगीर के पूर्व कलेक्टर रेप के आरोप में सस्पेंड हो गए। उनको मिलाकर राज्य में सस्पेंड होने वाले आईएएस अफसरों की संख्या पांच पहुंच गई है। छत्तीसगढ़ बनने के बाद सस्पेंड होने वाले पहले आईएएस थे अजयपाल सिंह। तत्कालीन पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के खिलाफ 2005 में प्रेस कांफ्रेंस करने के आरोप में उन्हें निलंबित किया गया था। अजयपाल के बाद पी राघवन सस्पेंड हुए। राघवन के बाद एसीएस राधाकृष्णन करप्शन के आरोप में नपे। फिर बीएल अग्रवाल। और, अब जनकराम पाठक। पांच में से चार रेगुलर रिक्रूट्ड आईएएस हैं और एक पदोन्नत आईएएस।
लंबी लिस्ट
राज्य प्रशासनिक सेवाओं की पोस्टिंग लिस्ट किसी भी समय निकल सकती है। खबर है, सूची लगभग तैयार हो चुकी है। इनमें बड़ी संख्या में डिप्टी कलेक्टर, ज्वाइंट कलेक्टर और एडिशनल कलेक्टर शामिल हैं। ये संख्या करीब सौ से उपर जा सकती है। इनमें तीन केटेगरी बनाए गए हैं। पहला जो लंबे समय से जमे हैं, दूसरा जिनका पारफारमेंस ठीक नहीं और तीसरा जनप्रतिनिधियों के कंप्लेन।
मीडिया और मर्यादा
करिश्माई नेता अजीत जोगी के अंत्येष्टि के कुछ घंटे बाद ही सोशल मीडिया में जोगी कांग्रेस का कांग्रेस में विलय की खबरें वायरल होने लगी थी। यह वाकई विस्मयकारी था। आखिर, जोगी कांग्रेस के लीडर धर्मजीत सिंह को कहना पड़ा, यह दुख का समय है…प्लीज। सोशल मीडिया को अपनी मर्यादा की लकीर खुद तय करनी चाहिए। पार्टी का विलय या किसी नेता का पार्टी में प्रवेश जश्न का विषय होता है, दुख में ये कार्य कतई नहीं होते। सोशल मीडिया को उतावलेपन से बचना चाहिए।
अंत में दो सवाल आपसे
1. एजुकेशन लीव से लौटीं एम गीता को टामन सिंह सोनवानी के डायरेक्टर एग्रीकल्चर, शक्कर आयुक्त, एवियेशन का चार्ज दिया जाएगा या कोई और विभाग?
2. किसी विभाग के अधिकारियों को मंत्री के समधी और समधी के बेटे से मिलने के लिए कहा जा रहा है?
2. किसी विभाग के अधिकारियों को मंत्री के समधी और समधी के बेटे से मिलने के लिए कहा जा रहा है?
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