संजय के. दीक्षित
तरकश, 11 सितंबर 2022
माथुर का पीएमओ कनेक्शन
भाजपा ने राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के दौरे के दौरान छत्तीसगढ़ की प्रदेश प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी को हटाकर ओम माथुर को बिठा दिया। ओम माथुर का नाम देश के लिए जाना माना है। वे संघ के प्रचारक रहे हैं। राजस्थान के संगठन मंत्री के रूप में वे भाजपा में उनकी इंट्री हुई और बाद में वहां के प्रदेश अध्यक्ष बनें। फिर गुजरात, यूपी और महाराष्ट्र के प्रभारी का दायित्व भी बखूबी निभाया। ओम माथुर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सीधे कनेक्टेड माना जाता है। पीएमओ को भी पता है कि ओम माथुर कौन हैं। इसका मतलब यह समझा जाए कि छत्तीसगढ़ भाजपा में अब सिर्फ और सिर्फ ओम माथुर की चलेगी...दुजा कोई नहीं। असल में, पुरंदेश्वरी जूनियर पड़ जाती थीं। वैसे भी, लगातार 15 साल तक मंत्री रहकर मजबूत हो गए नेताओं पर उनका चाबुक चलाना संभव नहीं था। मगर अब...वही होगा, जिसमें ओम माथुर की सहमति होगी।
पुरंदेश्वरी की ट्रेनिंग?
छत्तीसगढ़ की प्रदेश प्रभारी पुरंदेश्वरी को हटाने को लेकर तरह-तरह की बातें निकलकर आ रही हैं। मगर अंदरखाने की खबर यही है कि उन्हें तेलांगना का सीएम प्रोजेक्ट करने के लिए उनका कार्य क्षेत्र बदला गया है। बताते हैं, आंध्र के पूर्व और लोकप्रिय मुख्यमंत्री रहे एनटी रामाराव की बेटी पुरंदेश्वरी को दो साल पहले ही भाजपा ने तेलांगना में मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करने का फैसला ले लिया था। उन्हें रणनीति के तहत पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया गया। एक चीज और समझने की बात है कि पुरंदेश्वरी कई बार बस्तर गई...वहां पार्टी की चिंतन बैठक भी कीं। बस्तर दौरा इसलिए कि वह तेलांगना से लगा हुआ है। बस्तर के अलावा दूसरे संभागों में पुरंदेश्वरी कभी नहीं गईं। तब तो सीएम भूपेश बघेल ठीक कह रहे हैं....कल जेपी नड्डा के दौरे पर उन्होंने तंज कसते हुए कहा था छत्तीसगढ़ लोग सिखने के लिए आते हैं।
आईएएस राडार पर!
छत्तीसगढ़ में इंकम टैक्स के छापे लगातार चल रहे हैं। कुछ नौकरशाहों को भी नोटिस देने की खबरें कई दिनों से पब्लिक डोमेन में है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी आशंका जता चुके हैं कि छत्तीसगढ़ में आईटी के बाद ईडी भी आएगी। सूबे में जिस तरह की चर्चाएं चल रही हैं, वह मुख्यमंत्री के आरोपों की तस्दीक कर रही हैं। आईटी और ईडी की नोटिसों के बीच एक आईएएस अधिकारी समेत कुछ अफसरों के राडार पर होने के संकेत मिल रहे हैं। केंद्रीय जांच एजेंसियां पुख्ता साक्ष्य जुटाने के बाद किसी आईएएस को गिरफ्त में ले लें, तो अचरज नहीं।
कार्यकारी अध्यक्ष
भाजपा ने साहू वोटरों पर डोरे डालने आदिवासी नेता विष्णुदेव साय को हटाकर अरुण साव को अध्यक्ष बना दिया। लेकिन, कांग्रेस पीसीसी अध्यक्ष पद आदिवासी नेता के लिए रिजर्व रखेगी। वैसे भी, सीएम ओबीसी समाज से हैं तो पीसीसी इसी समाज से होना सियासी दृष्टि से मुफीद नहीं होगा। बहरहाल, पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम आदिवासी हैं और अंदरखाने की खबर यह है कि अगला अध्यक्ष भी इसी समाज से चुना जाएगा। इसके लिए बस्तर के सांसद दीपक बैज का नाम सबसे उपर चल रहा। उधर, कांग्रेस पार्टी जातीय संतुलन बनाने दो कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति पर भी विचार कर रही है। हालांकि, यह पहली बार नहीं होगा। इसके पहले भी कांग्रेस पार्टी दो बार कार्यकारी अध्यक्ष का प्रयोग कर चुकी है। तत्कालीन पीसीसी चीफ भूपेश बघेल के साथ भी शिव डहरिया और रामदयाल उईके को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था। इस बार भाजपा के साहू अध्यक्ष के जवाब में कांग्रेस कार्यकारी अध्यक्ष का पद साहू नेता को दे सकती है। इसके लिए बिलासपुर संभाग से एक साहू नेता का नाम चल रहा, तो दलित कोटे से रायपुर संभाग के किसी नेता को लिया जाएगा। कुल मिलाकर अगले साल होने वाला विधानसभा चुनाव जातीय रंग से सराबोर रहेगा।
वक्त का खेल
पीसीसीएफ से रिटायर होने के बाद भूपेश सरकार ने आईएफएस अधिकारी एसएस बजाज को पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग दे दी है। रिटायरमेंट से पहले वे लघु वनोपज संघ में एडिशनल एमडी थे और वहीं पर उन्हें फिर से पोस्ट किया गया है। हालांकि, बजाज के रिटायरमेंट से पहले इसी तरकश कॉलम में हमने बताया था कि बजाज को पोस्ट रिटायरमेंट देने की तैयारी है और सरकार ने इस पर मुहर लगा दिया। बहरहाल, इसे ही कहा जाता है, वक्त बलवान होता है...। ग्रह-नक्षत्र का शिकार होकर बजाज जब सस्पेंड हो गए थे तो आईएफएस लॉबी सन्न रह गई थी...क्योंकि, बजाज इधर-उधर वाले स्वभाव के अफसर नहीं माने जाते। मगर यही सरकार ने उन्हें पीसीसीएफ बनाने कैबिनेट से विशेष पद सृजित किया और फिर पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग भी। याने दर्द भी और दवा भी। सही है...हम भ्रम में होते हैं, सारा खेल वक्त का होता है।
भूल सुधार-1
अनुशासित पार्टी कही जाने वाली भाजपा 2018 के विधानसभा चुनाव में बगावत कर पार्टी प्रत्याशियों को निबटाने वाले नेताओं को फिर से पार्टी में प्रवेश कराने की तैयारी की गई थी। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के छत्तीसगढ़ दौरे में सराईपाली के संपत अग्रवाल और रायगढ़ के विजय अग्रवाल को पार्टी में शामिल करने पूरा खाका बन गया था। मगर मीडिया में खबर आ जाने के बाद पार्टी ने फिलहाल इसे टाल दिया। बहरहाल, संपत के चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर खड़ा हो जाने से भाजपा तीसरे नम्बर पर आ गई थी तो विजय अग्रवाल की बगावत से रायगढ़ में भी ऐसा ही हुआ। तो क्या ऐसा माना जाए कि भाजपा 2018 की अपनी भूल सुधार की कवायद में है।
भूल सुधार-2
मनेंद्रगढ़ को जिला बनाकर पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की एक भूल सीएम भूपेश बघेल ने भी सुधारी है। जाहिर है, कोरिया पैलेस के प्रेशर में मध्यप्रदेश के समय दिग्विजय सरकार ने मनेंद्रगढ, चिरमिरी की बजाए कोरिया को जिला और बैकुंठपुर को जिला मुख्यालय बना दिया था। जबकि, हाट-बाजार, कारोबार और सुविधाओं की दृष्टि से आज से दो दशक पहले भी मनेंद्रगढ़ और चिरमिरी आज के नए जिलों से कम नहीं था। आधा किलोमीटर के एरिया में एक सड़क पर बसे बैकुंठपुर को देखकर लगता था कांग्रेस सरकार ने हद से ज्यादा मेहरबानी दिखा दी।
अगले साल 36 जिले!
छत्तीसगढ़ में पांच नए जिले के साथ ही जिलों की संख्या बढ़कर अब 33 हो गई है। और संकेत हैं कि अगले साल विधानसभा चुनाव के पहले तीन और जिले अस्तित्व में आ जाएंगे। याने तीन नए जिले और बनेंगे। बताते हैं, नए जिलों के लिए सबसे मजबूत दावेदारी पत्थलगांव की है। जैसे मनेंद्रगढ़ और चिरमिरी के साथ अन्याय हुआ, उसी तरह जशपुर राज परिवार के दवाब में पत्थलगांव की भी उपेक्षा की गई। सराईपाली, सीतापुर और अंतागढ़ भी जिले के दौर में शामिल है। अंतागढ़ में तो एडिशनल कलेक्टर की पोस्टिंग भी हो चुकी है। अंतागढ़ में लंबे समय तक जिले के लिए आंदोलन चला है। सियासी दृष्टि से भी कांग्रेस के लिए खासतौर से पत्थलगांव, अंतागढ़ और सीतापुर को जिला बनाना फायदेमंद दिख रहा है। इस बारे में कुछ पुख्ता संकेत तो कुछ नहीं मिल रहा। मगर अंदर की खबरें हैं मुख्यमंत्री अगले साल 26 जनवरी को इन जिलों का ऐलान कर सकते हैं।
जिलों के अंग्रेजी नाम
छत्तीसगढ़ बनने से पहले सिर्फ जांजगीर जिला बनने के दौरान बवाल हुआ था। चांपा में जबर्दस्त तोड़फोड़ और आगजनी हुई थी। तब की सरकार ने लोगों के गुस्से को ठंडा करने के लिए जांजगीर के साथ चांपा का नाम जोड़ दिया था। इसके बाद रमन सरकार के दौरान बलौदाबाजार जिला बनने पर उग्र विरोध को देखते भाटापारा का नाम जोड़ा गया। हालांकि, सरकारी रिकार्ड में चांपा और भाटापारा का नाम जिले के तौर पर भले ही जुड़ गया मगर बोलचाल में कभी भी इन दोनों का जिक्र नहीं किया जाता। लोग जांजगीर और बलौदाबाजार ही बोलते हैं। इसके बाद भूपेश बघेल सरकार में तीन ब्लॉकों को मिलाकर गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिला बनाया गया। मगर इसका नाम इतना लंबा है कि उसे अंग्रेजी के शार्ट नाम से जाना जाने लगा...जीपीएम। और अभी जो पांच नए जिले बने हैं, उनमें सिर्फ सक्ती में सिंगल नाम है। सारंगढ़ में बिलाईगढ़ जुड़ा है। जाहिर है, आम बोलचाल में वो सारंगढ़ के नाम से जाना जाएगा। खैरागढ़-छुईखदान-गंडई, मोहला-मानपुर-अंबागढ़- चौकी तथा मनेंद्रगंढ़-चिरमिरी-भरतपु र में जरूर तीन-तीन नाम हैं। जाहिर हैं, इन्हें केसीजी, एमएमए और एमसीबी शर्ट नेम से जाना जाएगा। याने छत्तीसगढ़ के चार जिलों के नाम अब अंग्रेजी के शर्ट नेम से जाने जाएंगे।
अंत में दो सवाल आपसे
1. क्या इस बारे में आपने कुछ सुना है कि नया रायपुर स्थित भारत सरकार के किसी प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान में छात्रा के साथ रेप की घटना को प्रबंधन द्वारा दबाया जा रहा है?
2. एमके राउत के रिटायर होने के बाद मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर किसी पत्रकार की ताजपोशी होगी?
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