संजय के. दीक्षित
तरकश, 18 सितंबर 2022
वालीवुड की तरह अब अधिकारी बिरादरी में भी लाइफ पार्टनर के लिए शादी-शुदा पुरूषों को प्राथमिकता दी जा रही हैं। छत्तीसगढ़ के प्रशासनिक गलियारों में ऐसी ही एक शादी की बेहद चर्चा है। बताते हैं, होने वाले वर-वधु राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं। एडिशनल कलेक्टर और डिप्टी कलेक्टर। दोनों का लंबे समय से प्रेम प्रसंग चल रहा था। एडिशनल कलेक्टर की पत्नी न्यायिक सेवा क्षेत्र से हैं और हाल ही में उनका तलाक हुआ। आपको याद होगा...दो साल पहले राजधानी के वीआईपी रोड स्थित एक कालोनी में ये प्रेमी जोडा पर्सनल टाईम स्पेंड कर रहा था, तभी एडिशनल कलेक्टर की पत्नी वहां धमक गई थीं, फिर बड़ा तमाशा हुआ...। यह खबर मीडिया मे सुर्खिया बनी थी...क्योंकि, जिस बंगले में प्रेमी जोड़ा रंगे हाथ धरा गया था, वो भारत सरकार के एक उपक्रम का गेस्ट हाउस था। बहरहाल, अब पत्नी से तालाक हो गया है। लिहाजा, एडिशनल कलेक्टर के लिए अब प्रेम के इस रिश्ते को आगे बढ़ाने में कोई बाधा नहीं है। खबर है, अक्टूबर में अधिकारी जोड़ा सात फेरे लेगा।
ऐसे बने डीजीपी
पोस्टिंग के 11 महीने बाद आईपीएस अशोक जुनेजा छत्तीसगढ़ के पूर्णकालिक डीजीपी बन गए हैं। अब सवाल उठता है, प्रभारी डीजी बनने के बाद पूर्णकालिक बनने में इतना वक्त क्यों लगा तो उसकी वजह है सीनियरिटी में वे पांचवे नम्बर पर थे। उनसे उपर न केवल डीएम अवस्थी थे बल्कि स्वागत दास, रवि सिनहा, संजय पिल्ले और मुकेश गुप्ता थे। इनमें स्वागत दास का नवंबर 2024 और रवि सिनहा का जनवरी 2024 में रिटायरमेंट है। ऐसे में जुनेजा की राह मुश्किल थी। सरकार ने उन्हें पुलिस विभाग का मुखिया तो बना दिया था मगर यूपीएस से पेनल को मंजूरी न मिलने के कारण उनकी रेगुलर पोस्टिंग अटकी रही। वैसे, 88 बैच के आईपीएस स्वागत दास और 89 बैच के रवि सिनहा सेंट्रल डेपुटेशन पर हैं। पता चला है, दोनों ने यूपीएससी को लिखकर दिया कि वे छत्तीसगढ़ नहीं लौटना चाहते। इसके बाद चार नाम बचे। डीएम अवस्थी, मुकेश गुप्ता, संजय पिल्ले और अशोक जुनेजा। इनमें से मुकेश गुप्ता चूकि सस्पेंड थे, इसलिए उनका नाम हट गया। इसके बाद तीन नाम बचे। यूपीएससी के नियमानुसार डीजीपी के लिए तीन नामों का पेनल होना चाहिए। सो, यूपीएससी ने हरी झंडी देते हुए तीन नामों का पैनल छत्तीसगढ़ सरकार को भेज दिया और सरकार ने अशोक जुनेजा के नाम पर टिक लगाते हुए पूर्णकालिक डीजीपी का आदेश जारी कर दिया। सबसे अहम यह है कि उन्हें आदेश निकलने के डेट से दो साल का कार्यकाल मिल गया। याने अगस्त 2024 तक वे डीजीपी रहेंगे। सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइंस के मुताबिक डीजीपी का कार्यकाल दो साल रहेगा। जुनेजा के आदेश में भी लिखा है, आदेश निकलने की तिथि से दो साल। याने जो होता है, अच्छे के लिए होता है। अगर पिछले साल अक्टूबर में ही वे फुलटाईम डीजीपी बन गए होते तो अगले साल अक्टूबर में उन्हें रिटायर होना पड़ता। बहरहाल, फुलटाईम डीजीपी बनते ही जुनेजा एक्शन में आ गए हैं। दो दिन पहले उन्होंने दुर्ग जाकर दुर्ग रेंज के आईजी, एसपी की बैठक ली। इस बैठक में कानून-व्यवस्था को लेकर उन्होंने कड़े तेवर दिखाए। सुना है, दुर्ग के बाद वे एक-एक कर सभी रेंज मुख्यालयों में जाने वाले हैं। कह सकते हैं, पद और पोस्टिंग का फर्क तो पड़ता है।
कलेक्टर-कारोबारी, भाई-भाई
राज्य की सत्ता संभालने के बाद भूपेश बघेल सरकार ने डीएमएफ की बंदरबांट पर लगाम लगाने कई अहम फैसले लिए थे। इसमें बिल्डिंगों के निर्माण पर रोक लगा दी गई थी। पैसे का सही सदुपयोग करने के लिए सरकार ने कई नए नियम बनाए, जिसमें आम आदमी से ताल्लुकात रखने वाले विभागों में डीएमएफ को खर्च करना शामिल था। मसलन, स्कूल, स्वास्थ्य, आदिवासी हॉस्टल। मगर कलेक्टरों और कारोबारियों के नापाक गठजोड़ ने सरकार के नए नियमों में भी छेद कर डाले। आलम यह है कि छात्रावासों की बिल्डिंगें जर्जर है मगर उसमें नए कूलर, फ्रीज, पंखे, फर्नीचर जंग खा रहे हैं। इन गैर जरूरी चीजों की सप्लाई के पीछे मकसद सिर्फ और सिर्फ डीएमएफ का बजट किसी तरह खर्च करना है। कोविड के नाम पर कलेक्टरों द्वारा अभी भी अनाप-शनाप खरीदी की जा रही है। स्कूलों का भी यही हाल है। खासकर, आत्मानंद स्कूलों की अगर जांच कर ली जाए तो कई कलेक्टर और डीईओ निबट जाएंगे। असल में, डीएमएफ में सप्लाई करने से बांटने के बाद भी सप्लायरों को 30 से 40 फीसदी बच जाता है। उपर से सरकारी पेमेंट की तरह नोटशीट घूमने का लफड़ा भी नहीं। कलेक्टर चूकि डीएमएफ के हेड होते हैं और पहले से सब सेट होता है लिहाजा, समान सप्लाई होते ही चेक मिल जाता है। जाहिर है, सप्लयार को भुगतान होगा तभी तो वो उसी गति से हिस्सा पहुंचाएगा। यही वजह है कि सराफा व्यापारी से लेकर राईस मिलरों तक इस सप्लाई के काम में कूद पड़े हैं। दरअसल, इसमें बिना किसी मेहनत का पैसा है। बस, दो-से-तीन कलेक्टरों को ग्रीप में लेना है, उसके बाद बिना बोले आर्डर मिलते जाएगा।
दलालों का अड्डा
छत्तीसगढ़ में सरकार किसी भी पार्टी की हो, डीएमएफ को कलेक्टर ही चला रहे हैं। कलेक्टरों के विजिटर रुम में आप चले जाइये, आम आदमी से ज्यादा वहां सप्लायर दिखेंंगे आपको। दिल्ली, चेन्नई, बंगलोर, कोलकाता तक से सप्लायर छत्तीसगढ़ पहुंच रहे हैं। सरकार को डीएमएफ के मामले में कलेक्टरों को कसने की जरूरत है वरना, नुकसान होगा। क्योंकि अगले साल ही विधानसभा चुनाव है। और अधिकांश कलेक्टर कामधाम छोड़ डीएमएफ के खेल में लगे हुए हैं। खेल इस लेवल पर पहुंच गया है कि डीएमएफ को डिस्ट्रिक्ट माईनिंग फंड की जगह अब डीएम फंड कहा जाने लगा है।
बेचारे कलेक्टर!
छत्तीसगढ़ में पांच नए जिले तो बन गए मगर उन जिलों के कई कलेक्टर खुश नहीं हैं। एक तो ओएसडी के रूप में छह महीने उन्हें कलेक्टर इन वेटिंग रहना पड़ा। दूसरा, जिला बना तो उन्हें लगा कि अब डीएमएफ के हिस्सों का बंटवारा हो जाएगा। मगर पुराने जिलों के कलेक्टर इसके लिए तैयार नहीं हैं...अभी तक उन्हें एक पैसा नहीं मिला है। पुराने जिलों के कलेक्टरों का कहना है, उपर से कोई निर्देश नहीं है। नए जिलों के कलेक्टर इसलिए चिंतित हैं कि अगले साल अक्टूबर में कोड आफ कंडक्ट प्रभावशील हो जाएगा। याने मुश्किल से साल भर बचा है। डीएमएफ का फैसला होने में जितना टाईम लगेगा, बेचारे कलेक्टरों को उतना ही नुकसान होगा।
कमाल के आईएएस
आईएएस की सर्विस के दौरान कामों से ज्यादा अपने कारनामों को लेकर चर्चित रहने वाले एक रिटायर आईएएस ने अपनी जमीन तीन लोगों को बेच दी। हाउसिंग बोर्ड ने ऑल इंडिया सर्विस के अधिकारियों को वहां सस्ती दर से जमीन मुहैया कराई थी। आईएएस ने भी 4200 वर्गफुट का प्लाट लिया। इसके लिए उन्होंने बकायदा बैंक से लोन लिया। हैरत की बात यह है कि लोन के बाद भी उन्होंने एक के बाद एक तीन लोगों की जमीन बेच डाली।
कार्रवाई क्यों नहीं?
कर्मचारियों की हड़ताल के दौरान एक जनपद सीईओ ने मंच से राजनेताओं के खिलाफ लक्ष्मण रेखा लांघते हुए अमर्यादित बातें कही थी। इसको लेकर कांकेर कलेक्टर ने तुरंत तीन सदस्यीय जांच कमेटी गठित की। कमेटी की रिपोर्ट बस्तर कमिश्नर तक पहुंच गई है। रिपोर्ट में साफ तौर पर लिखा गया है कि जनपद सीईओ ने सेवा संहिता का घोर उल्लंघन किया है। इसके बाद भी कार्रवाई कुछ नहीं। तो क्या इसे ये समझा जाए...जातीय समीकरणों कार्रवाई में आडे़ आ गया है।
अहम पोस्टिंग
छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस बीवीआर सुब्रमणियम को रिटायरमेंट से 15 दिन पहले ही पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग मिल गई। भारत सरकार ने उन्हें सीएमडी इंडियन ट्र्रेड प्रमोशन आरगेनाइजेशन बनाया है। हालांकि, यह दो साल के लिए कंट्रेक्चुअल पोस्टिंग है। मगर रिटायरमेंट से पहले पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग...वो भी सीमडी की। सुब्रमणियम का भारत सरकार में प्रभाव तो है।
अंत में दो सवाल आपसे
1. किस युवा आईएएस अधिकारी को रिटायर आईएएस राधाकृष्णन का संस्करण कहा जा रहा है?
2. क्या रेंज आईजी लेवल पर कोई पोस्टिंग आदेश निकलने वाला है?
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