शनिवार, 24 सितंबर 2022

20-20 का समय

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 25 सितंबर 2022

2018 में 6 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव का ऐलान हुआ था। इस बार भी लगभग यही टाईम रहेगा। याने विस चुनाव में अब मुश्किल से एक साल का वक्त बच गया है। इसी में नवरात्रि, दशहरा, नया साल, होली और अगला बरसात भी है। सही मायनों में कहा जाए तो जमीन पर काम दिखाने के लिए नौ महीने का समय बचा है। मतलब ट्वेंटी-20 मैच जैसी स्थिति। अब अधिकारियों को अंशुमन गायकवाड़ और रवि शास्त्री जैसे पिच पर ठुक-ठुककर खेलने का नहीं, श्रीकांत और सहवाग जैसे ठोकने का समय है। वैसे भी चार साल का समय गुजर गया है। अब कौन किससे जुड़ा है यह महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण है कि हर बॉल को बाउंड्री तक पहुंचाने वाले बैट्समैन हो। सरकार में भी इसी पर विचार किया जा रहा। हो सकता है, जल्द ही फील्ड में और तेज गति से रिजल्ट देने वाले अधिकारियों को उतारा जाए।

एसपी का ट्रासंफर

छत्तीसगढ़ में आईजी के ट्रांसफर की चर्चा हो रही थी। मगर अब खबर है सरकार एसपी लेवल पर भी एक लिस्ट निकाल सकती है। इसमें दो-तीन बड़े जिले भी प्रभावित हो सकते हैं। दरअसल, सरकार के पास कुछ पुलिस अधीक्षकों के बारे में फीडबैक सही नहीं हैं। बताते हैं, उन कप्तानों से जिला संभल नहीं रहा...कानून-व्यवस्था की स्थिति लड़खड़ा रही है। सो, जिन जिलों में एसपी के परफारमेंस सही नहीं है, उन्हें बदलने पर विचार किया जा रहा है। छोटे जिलों में कुछ एसपी अच्छे रिजल्ट दे रहे हैं, उन्हें बड़े जिलों में शिफ्थ किया जा सकता है।

सड़क, बिजली और...

किसी भी सरकार के रिपीट होने के लिए तीन काम महत्वपूर्ण होते हैं। सड़क, बिजली और लॉ एंड आर्डर। ये काम लोगों को दिखते भी हैं और पब्लिक को प्रभावित भी करते हैं। याद होगा, मध्यप्रदेश में सिर्फ और सिर्फ खराब सड़क और बिजली की आंखमिचौली के कारण दिग्विजय सिंह चुनाव हार गए थे। वरना, इन दो चीजों को छोड़ दें तो दिग्गी राजा का 10 साल का टेन्योर उतना खराब नहीं था। इसके बाद कानून-व्यवस्था का नंबर आता है। कानून-व्यवस्था के नाम पर चुनाव जीतने का ताजा उदाहरण है उत्तर प्रदेश। पोलिसिंग को टाईट करके यूपी में योगी आदित्य नाथ दूसरी बार सरकार बनाने में कामयाब हुए। अब छत्तीसगढ़ की बात करें। छत्तीसगढ़़ में बिजली की स्थिति बाकी राज्यों जैसी नहीं है। सड़कों को लेकर सरकार ने अधिकारियों को टाईट करना शुरू किया है। ईएनसी की छुट्टी के बाद सीएम के करीबी अफसर अब खुद पीडब्लूडी के कामकाज को वॉच कर रहे हैं। कानून-व्यवस्था को लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने डीजीपी को कई निर्देश जारी किए हैं। डीजीपी अशोक जुनेजा भी हेलिकाप्टर लेकर सूबे के दौरे पर निकल गए हैं। दो दिन पहले उनका चौपर सरगुजा में उतरा। फिर भी लॉ एंड आर्डर को सरकार को और संजीदगी से लेना होगा। इसके लिए एसपी को दो टूक फरमान जारी करना होगा, चार साल बहुत हुआ, मगर अब खैर नहीं!

पोलिसिंग मजबूरी नहीं

यह विमर्श का विषय हो सकता है कि राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ में पोलिसिंग टाइप्ड होते गई। जितना धक्का दो, उतनी ही चलेगी। सरकार बोलेगी हुक्का बार पर अंकुश लगाओ तो चार दिन पुलिस इसी एक सूत्रीय अभियान में जुट जाएगी। वाहनों की चेकिंग...तो सारे एसपी सड़क पर उतर जाएंगे। सही मायनो में कहा जाए तो पुलिस का अपना इकबाल होना चाहिए। पुलिस का काम बाकी विभागों से अलग होता है। इसमें इकबाल सबसे उपर होता है और उसके बाद अनुशासन। ये थोड़ी है कि कोई आंदोलन होने वाला है, तो सिपाहियों से लाठी रखवा लो। अफसरों को अपने पर इतना भरोसा तो होना ही चाहिए कि एक लाईन का मैसेज दिया जाए, लाठी चार्ज नहीं करना है तो नहीं होगा। सूबे में चार दिन हुक्का बारों पर ताबड़तोड़ कार्रवाई चली और फिर...। छत्तीसगढ़ के एक बीयर बार में आधी रात को छत्तीसगढ़ी फिल्म एक्ट्रेस पर हमला हो जाता है। रात को 11 बजे के बाद बार एलाउ नहीं है। मगर किसी जिले में ऐसा नही होगा कि बारह बजे से पहले बंद होता होगा। कुछ महीने पहले की बात है... उड़ीसा से लौटते समय सराईपाली जैसे क्रॉस हुए, लेफ्ट साइड का एक ढाबा ओपन बार बना हुआ था। ढाबे वाले को कोई डर नहीं। क्योंकि, थाने में हर महीने लिफाफे में गांधीजी की फोटो पहुंच जाती है। कहने का मतलब ये है कि पुलिसिंग मजबूरी नहीं...आदत में होनी चाहिए।

थानेदारों से महीना

एसपी पहले थानेदारों से छोटे मोटे बेगारी करा लेते थे। ट्रेन या फ्लाइट का टिकिट हुआ या फिर बाजार से कोई मोबाइल जैसे चीजें मंगवा ली। अब ये एक्स्ट्रा हो गया है। अब तो ये सिस्टम बन गया है... हर महीने कप्तान साब को नजराना पहुंचाना पड़ेगा। एसपी थानेदारों से महीना लेने लगें तो उस राज्य की पुलिसिंग का फिर तो भगवान मालिक हैं। सीधी सी बात है, एसपी एक थाने से पचास लेगा, तो थानेदार उसकी आड़ में पांच लाख वसूलेगा। इसके लिए इलाके में अवैध शराब बिकवाएगा, बिना लाइसेंस होटलों में शराब परोसवाएगा। मसाज पार्लरों में देह व्यापार हो रहा, थानों का बकायदा रेट बंधा हुआ है। हालांकि, इसके लिए रमन सरकार भी जिम्मेदार है। पिछली सरकार ने परिवहन बैरियर समाप्त कर दिया और शराब का ठेका भी। पुलिस को अच्छी खासी रकम इन दोनों जगहों से मिल जाती थी। ऐसे में, कप्तान साहब लोग क्या करें। थानेदारों से महीना वाला सिस्टम उसी समय से चालू हुआ।

नया सीआईसी कौन?

मुख्य सूचना आयुक्त एमके राउत नवंबर में रिटायर हो जाएंगे। नवंबर में ही सूचना आयुक्त अशोक अग्रवाल की भी विदाई होगी। इन पदों पर नई नियुक्तियों के लिए विज्ञापन निकल गया है। आवेदन भी आने शुरू हो गए हैं। खबर है, अगले महीने से नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। लोगों में सबसे अधिक उत्सुकता मुख्य सूचना आयुक्त को लेकर है। वो इसलिए कि कोई सीनियर आईएएस फिलहाल रिटायर नहीं हो रहा। गोवा को छोड़कर सभी राज्यों में सीनियर लेवल से रिटायर हुए आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अधिकारियों को बिठाया गया है। कुछ राज्यों में हाईकोर्ट के रिटायर जस्टिस भी पोस्ट किए गए हैं। देश में गोवा एकमात्र राज्य है, जिसमें सत्ताधारी पार्टी के विधायक को सीआईसी बनाया गया है। ऐसे में, सवाल घूम-फिरकर वहीं पर आ रहा...राउत के बाद नया सीआईसी कौन? दरअसल, सीआईसी क लिए कोई निश्चित मापदंड नहीं है...सिर्फ सोशल सेक्टर में काम होना चाहिए। यही वजह है नामों को लेकर कई तरह की अटकलें चल रही हैं। कोई किसी पत्रकार को सीआईसी बनाने की बात कर रहा तो कोई किसी दूसरे राज्य के रिटायर नौकरषाह की। देखना है, अब सरकार किसको इस पद पर बिठाती है।

जय-बीरु

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव और नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल एक साथ दौरे में निकल रहे हैं। दोनों फिलहाल बस्तर में हैं। भाजपा में इन्हें जय-बीरु की जोड़ी कही जा रही है। हालांकि, पिछले विधानसभा चुनाव में भी तब के पीसीसी चीफ भूपेश बघेल और नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव एक साथ खूब दौरे किए। दोनों को भी जय-बीरु का नाम दिया गया था। अब सवाल उठता है...नए जय-बीरु की जोड़ी क्या भूपेश और सिंहदेव जैसा प्रभावशाली बन पाएगी...क्या उनमें वो दमखम है। पुराने जय-बीरु ने भाजपा की पारी को 15 रन पर समेट दिया था।

आ बैल मुझे मार...

तिमाही परीक्षा के पर्चा लीक कांड ने विभाग की बिना पुख्ता तैयारी के योजना लाने की पोल तो खोलकर रख ही दी। साथ ही साथ प्रमुख सचिव के बयान से यह भी तय हो गया की विभाग में आपसी तालमेल का अभाव है। केंद्रीकृत तिमाही परीक्षा के लिए आपसी सहमति भी नहीं थी। डीपीआई, माशिमं सचिव और प्रमुख सचिव के अलग अलग बयान इसकी तस्दीक करते है की विभाग प्रयोगशाला बनते जा रहा है। आलोक शुक्ला के बयान से स्पष्ट है कि वे तिमाही परीक्षा के केंद्रीकृत सिस्टम से सहमत नहीं थे। मगर नीचे के अधिकारियों ने आ बैल मुझे मार करने बोर्ड से पेपर तैयार करवा दिया। और वही हुआ, स्कूल शिक्षा विभाग की फजीहत हो गई।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सीएम हाउस का घेराव और अमित शाह के कार्यक्रम से नदारत रहने वाले बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष विश्णुदेव साय जगतप्रकाश नड्डा के कार्यक्रम में हाजिर हुए, तो क्या मान लेना चाहिए कि उनकी नाराजगी दूर हो गई है?

2. एक एसपी का नाम बताइये, जो खुद कुछ नहीं लेते...दो मोबाइल दुकान वालों को एजेंट बनाए हैं?



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