शनिवार, 22 अक्टूबर 2022

अंधेर नगरी, खटराल अफसर

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 23 अक्टूबर 2022

छत्तीसगढ़ के मेडिकल एजुकेशन में एक से बढ़कर एक कारनामे हुए हैं...चाहे डीएमई की बेटी के अपात्र होने के बाद भी एमबीबीएस में सलेक्शन का मामला हो या पूर्व स्वास्थ्य मंत्री की 12वीं फेल बेटी का पीएमटी में चुने जाने का। मगर अभी जो हुआ है...गजबे है। वर्ल्ड में ऐसा नहीं हुआ होगा....नीट पीजी के लिए जिस अभ्यर्थी को मेरिट लिस्ट में सौंवे नम्बर पर होना चाहिए था, वह टॉपर बन गया। दरअसल, एमबीबीएस के बाद तीन साल ग्रामीण इलाकों में सेवा देने वाले अभ्यर्थियों को नीट पीजी में 30 फीसदी बोनस अंक मिलते हैं। जिसे टॉपर बनाया गया है, उसे पीजी में कुल 291 अंक मिले। 30 फीसदी के हिसाब से उसे 87 बोनस मार्क्स मिलने थे। याने 291 और 87 मिलाकर 378 अंक। मगर डीएमई के खटराल अफसरों ने 291 में 87 जोड़ने की बजाए 378 जोड़ दिया। इस वजह से उसके 669 अंक हो गए और वह टॉपर बन गया। और डीएमई अधिकारियों की हेकड़ी देखिए, परिजनों को धमका रहे...हाई कोर्ट जाइये। ठीक भी है, उन्हें पता है कि मंत्री, अफसर वही करेंगे, जो वे कहेंगे।

अंधेर नगरी, खटराल अफसर-2

भले ही पीएमटी की जगह नीट परीक्षा हो गई। मगर छत्तीसगढ़ के डीएमई आफिस के रैकेट में शामिल लोग लिस्ट को उपर नीचे करके आज भी दो-तीन केस सेटल कर लेते हैं। पीजी की एक सीट भी मैनेज हो गई, तो समझिए दो से ढाई खोखा का इंतजाम हो गया। इसी तरह एमबीबीएस में भी। अब इससे समझ सकते हैं कि नीट यूजी की काउंसलिंग प्रारंभ हो गई है मगर अभी तक स्टेट मेरिट लिस्ट का अता-पता नहीं है। कोई कितना भी रसूखदार क्यों न हो, डीएमई आफिस के वाचाल अधिकारी बातों में घूमा फिराकर, इतना डिमरालाइज कर देंगे हैं कि आदमी किस्मत को कोसते घर लौट जाता है। उपर कांप्लेन करो तो कोई सुनवाई नहीं। वैसे भी, उपर वालों का अपना कोई विजन होता नहीं और न ही नियम कायदों को पढ़ना चाहते। डीएमई आफिस वाले जो पट्टी पढ़ा दें, वहीं भाषा वो भी बोलने लगते हैं। पिछले साल सरकार से लेकर राजभवन तक शिकायतें हुईं, लेकिन हासिल कुछ नहीं हुआ। अब प्रसन्ना आर सिकरेट्री हेल्थ हैं। सिस्टम को ठीक करने वे लगातार दौरे कर रहे हैं। देखना है कि डीएमई आफिस के धुरंधर खिलाड़ियों को वे ठीक कर पाते हैं या दीगर सिकरेट्री की तरह वे भी आंख मूंद लेंगे?

पहली बार नॉन आईएएस

समीर विश्नोई की गिरफ्तारी के बाद सरकार ने भारतीय दूरसंचार सेवा के अधिकारी मनोज सोनी को मार्कफेड का एमडी अपाइंट किया है। राज्य बनने के बाद यह पहला मौका होगा, जब किसी आईटीएस अधिकारी को मार्कफेड की कमान सौंपी गई हो। इससे पहले हमेशा आईएएस एमडी रहे हैं। इनमें सीके खेतान, सुब्रत साहू से लेकर सुबोध सिंह जैसे आईएएस मार्कफेड में पोस्टेड रहे हैं। चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार मध्यप्रदेश के दौरान मार्कफेड के एडिशनल एमडी रहे। इस तरह देखा जाए तो आईटीएस सर्विस के लिए अहम उपलब्धि है। छत्तीसगढ़ में इस तरह की पोस्टिंग के लिए चर्चित रहे आईएफएस अधिकारियों को भी मार्कफेड में एमडी रहने का अवसर नहीं मिला। बता दें, मार्कफेड का सलाना कारोबार करीब 22 हजार करोड़ का है। धान खरीदी के साथ ही किसानों को फर्टिलाईजर सप्लाई का काम भी मार्कफेड संभालता है। अलबत्ता, मनोज सोनी की पोस्टिंग के पीछे एक वजह यह हो सकती है कि मनोज सोनी फूड में स्पेशल सिकरेट्री हैं। मार्कफेड फूड में तो नहीं आता सहकारिता विभाग में आता है। मगर धान खरीदी की एजेंसी मार्कफेड है। याने धान खरीदी खाद्य विभाग के तहत होती है। सोनी फूड में स्पेशल सिकरेट्री रहेंगे और मार्कफेड एमडी भी। याने वर्मा और सोनी की जोड़ी अबकी धान खरीदेगी। वैसे वर्मा पिछले साल भी धान खरीदी के समय सिकरेट्री थे। इसलिए, सरकार ने फूड डिपार्टमेंट की टीम पर भरोसा किया।

30 सितंबर का मतलब

कैलेंडर की तावारीख भले ही बदल गई...आज 23 अक्टूबर हो गया है। मगर मंत्रालय के विभागों का कैलेंडर 30 सितंबर पर अटक गया है। इस पंक्ति को पढ़कर आप भी सोच में पड़ गए होंगे, तारीख की कैसे ठहर जाएगी। हम आपको इसका मर्म बताते हैं। दरअसल, कैबिनेट ने 30 सितंबर तक के लिए ट्रांसफर पर से बैन हटाया था। याने 30 सितंबर के बाद ट्रांसफर नहीं होंगे। चूकि, सूबे में बैक डेट से ट्रांसफर करने की एक परंपरा की बन गई है। पिछली सरकार में भी ये हुई और अभी बदस्तूर जारी है। सो, भले ही आधा से अधिक अक्टूबर गुजर गया मगर मंत्री से लेकर सचिव, अवर सचिव अभी 30 सितंबर के डेट में अटके हुए हैं। ट्रांसफर के जितने आदेश जारी हो रहे, सभी 30 सितंबर के डेट से। सबसे अधिक दिक्कत मीडिया वालों की हो रही है। एक विभाग में चार-चार, पांच-पांच आदेश निकल रहे और सभी 30 के डेट से। ऐसे में समझ में नहीं आता कि कौन आदेश नया है और कौन पुराना।

दिवाली खराब!

ईडी के छापों ने मंत्रियों और अधिकारियों की दिवाली खराब कर दिया। खासकर नौकरशाहों की वीबियां बड़ी दुखी हैं...दिवाली की बेसब्री से प्रतीक्षा रहती थी। मगर इस बार इस बार ईडी के अधिकारियों ने उम्मीदों पर कई घड़ा पानी उड़ेल दिया। जाहिर है, मुख्य तौर पर ठेकेदार और सप्लायर ही महंगे गिफ्ट देते हैं और वे अबकी ईडी की खौफ से सामान्य डिब्बे से काम चला लिए...क्या पता किसके गेट पर ईडी की रेकी चल रही हो...इसलिए गोल्ड वगैरह का रिस्क नहीं लिया। वैसे, कुछ नौकरषाहों ने ठेकेदारों को पहले से चेता दिया था कि राजधानी में ईडी है, इधर फटकना नहीं।

विदेशी शराब

11 अक्टूबर को छत्तीसगढ़ में एक साथ तीन आईएएस अफसरों के यहां ईडी के छापे की खबर बाहर आते ही ब्यूरोक्रेसी में खलबली मच गई। नौकरशाहों को इस खबर ने और हिला दिया कि राजधानी के देवेंद्र नगर आफिसर्स कालोनी में ईडी घुस गई है। बता दें, राज्य बनने के बाद ये पहला मौका है जहां सबसे सेफ समझे जाने वाले देवेंद्र नगर में किसी जांच एजेंसी की टीम घुसी होगी। इस कालोनी में चीफ सिकरेट्री से लेकर आला आईएएस, आईपीएस रहते हैं। दो-तीन आईएएस अफसर बाहर अपना घर होने के बाद भी इसीलिए देवेंद्र नगर में सरकारी मकान ले लिया था कि वहां सब कुछ ठीक रहेगा। मगर ये मिथक टूट गई। बताते हैं, छापे की खबर वायरल होते ही नौकरशाही में अफरातफरी मच गई। कोई सूटकेस बाहर भेजने लगा तो एक अफसर ने महंगे फर्नीचर को घर से हटवा दिया। खासकर, जिन अधिकारियों के घरों में छापे पड़े, उनके पड़ोसी लोग रात भर सो नहीं पाए...नींद में भी लगता रहा ईडी दरवाजा नॉक कर रही है। सूबे के एक पुलिस कप्तान विदेशी शराब के बड़े शौकीन हैं। बंगले में बीयर बार बनवा रखे हैं। छापे की खबर मिलते ही नजदीकी थानेदार को बुलवाकर पूरा अलमारी खाली कर दिए...थानेदार पूछा, सर इसका क्या करना है...साहब भड़क गए...जल्दी दफा हो जा यहां से, सवाल बाद में करना। अब थानेदार परेशान है...ईडी अभी गई नहीं है...सिपाही जब लपेटे में आ सकता है तो फिर मेरा कुछ हुआ तो कौन देखेगा।

त्राहि माम

आईएफएस संजय शुक्ला जब से हेड ऑफ फॉरेस्ट बने हैं, तब से वन विभाग के कामकाज में चमत्कारिक परिवर्तन आ गया है। संजय खुद दस बजे आफिस में बैठ जाते हैं...शाम को जाने का कोई टाईम नहीं। मॉनिटरिंग इतनी तगड़ी कि डीएफओ से लेकर सीसीएफ तक सकते में हैं। दरअसल, ऐसी वर्किंग कभी रही नहीं। रिजल्ट के बारे में कोई बात नहीं करता था। मगर अब टास्क मिला तो उसका रिजल्ट भी बताना पड़ रहा। उसका भी टाईम बाउंड। उपर से हार्ड स्पोकेन। जाहिर है, अफसरों को इससे परेशानी तो होगी ही।

अच्छी खबर

ईडी छापों के बीच देश के सबसे अधिक नक्सली हिंसा प्रभावित बस्तर से एक अच्छी खबर है...38 बरस बाद वहां ऐसे दुगर्म और धुर नक्सल प्रभावित इलाके में थाना खुल गया है, जिसकी घोषणा मध्यप्रदेश के समय की गई थी। दरअसल, मध्यप्रदेश सरकार ने 1984 में ने बस्तर जिले के कोहकामेटा में थाना खोलने का ऐलान किया था। मगर नक्सलियों का इस कदर वहां खौफ कि अमल नहीं हो पाया। इस दौरान बस्तर से कांकेर जिला अलग हुआ फिर नारायणपुर। कोहकामेटा अब नारायणपुर में आता है। नक्सलियों के बैकफुट पर जाने के बाद पुलिस ने वहां थाना खोल दिया है। यही नहीं, आदर्श थाने का अवार्ड भी मिल गया। एसपी कांफ्रेंस में नक्सली मामलों पर पुलिस महकमे को मुख्यमंत्री से एप्रीसियेशन मिला, उसमें कोहेमकोटा थाना भी शामिल था। जाहिर है, इससे डीजीपी अशोक जुनेजा, एडीजी नक्सल विवेकानंद और नारायणपुर एसपी सदानंद का नम्बर तो बढ़ा होगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1 ईडी के छापे भले ही नहीं पड़ा मगर किस जिले के पुलिस कप्तान दो दिन तक घर में तांत्रिक को बुलाकर अनुष्ठान कराते रहे?

2. किस जिले के कलेक्टर की नजरों के चलते महिला कर्मचारी उनके आफिस में जाने से कतरा रही हैं?



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