शनिवार, 1 अक्तूबर 2022

नौकरशाहों का गोल्फ प्रेम

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 2 अक्टूबर 2022

सूबे में 6 अक्टूबर से छत्तीसगढ़िया ओलंपिक का आयोजन किया जा रहा है। इसमें कबड्डी और गिल्ली डंडा जैसे 14 परंपरागत खेलों को शामिल किया गया है। वैसे भी, लोकल चीजों को बढ़ावा देने सरकार काफी दिलचस्पी दिखा रही है। अलबत्ता, छत्तीसगढ़ में अभिजात्य वर्ग के गोल्फ जैसे खेल भी अब जोर पकड़ रहा है। खासकर, नौकरशाहों और अधिकारियों के बीच। दरअसल, अफसरों के पास न वर्कलोड है और न कोई बोलने वाला...सो आजकल मौका मिलते ही नया रायपुर के मेफेयर रिर्जाट की ओर गड्डी निकल पड़ती है। शनिवार, रविवार को तो घंटों बीतता है गोल्फ में। वैसे भी नया-नया कोई खेल आदमी सिखता तो है, उसके प्रति दीवानगी कुछ ज्यादा होती है। गोल्फ तो वैसे भी स्टे्टस सिंबल वाला खेल है। बताते हैं, खाने-पीने और घूमने के शौकीन कुछ आईएफएस अधिकारियों ने अफसरों में गोल्फ का शौक जगाया और अब ये अधिकारी बिरादरी में फैलने लगा है।

प्रशासनिक कमजोरी?

यूं तो राज्यों में अफसरशाही हावी होने के आरोप लगते रहते हैं... मगर छत्तीसगढ़ में इससे कुछ अलग हो रहा...नौकरशाही तो नियंत्रण में है मगर कामकाज के मामले में ढाक के तीन पात वाला मामला है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भेंट-मुलाकात में निकले तो रायगढ़ में उन्हें सड़कों की दुर्दशा की जानकारी मिली। उन्होंने दूसरे ही दिन ईएनसी की छुट्टी कर दी। अब सवाल उठता है, हर काम मुख्यमंत्री करेंगे तो फिर सिस्टम का क्या मतलब? ये वाकई चिंता की बात है। सबसे दुर्भाग्यजनक बात ये है कि अधिकारियों में आंखों की हया और खौफ खतम होते जा रहा है...बिना किसी लिहाज एक सूत्रीय काम काम चल रहा है। मध्यप्रदेश के समय देखते थे कि अफसर पैसा भी कमाते थे और काम भी करते थे। छत्तीसगढ़ में भी दो-तीन ऐसे आईएएस रहे हैं, जो खुद स्वीकार करते थे कि हां! हम पैसा कमाते हैं। लेकिन, काम इतना तगड़ा कि पूछिए मत! फिलवक्त दिक्कत यह है कि अफसर एक काम तो बखूबी कर रहे हैं, मगर दूसरा नहीं। 

पोस्ट रिटारमेंट पोस्टिंग

हेड ऑफ फॉरेस्ट के तौर पर तीन साल सात महीने की सबसे लंबी की पारी खेलकर राकेश चतुर्वेदी कल शाम पेवेलियन लौट आए। अब उनके पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग को लेकर लोगों में बड़ी उत्सुकता है। हालांकि, इसके पहले पौल्यूशन बोर्ड के चेयरमैन के लिए उनका नाम चला था। उस समय उनका कार्यकाल करीब छह महीने बाकी था। तब खबर थी....पीसीसीएफ से वीआरएस लेकर वे पौल्यूशन बोर्ड जाएंगे। मगर बाद में ये परवान नहीं चढ़ सका। अब चूकि राकेश रिटायर हो गए हैं, सो पौल्यूशन बोर्ड में पोस्ट रिटायरमेंट की चर्चा एक बार फिर तेज है। अब देखना है, चर्चा सही निकलेगी है या फिर उन्हें कहीं और पोस्टिंग मिलेगी।

बदलाव की बयार

फॉरेस्ट के बाहर वालों को शायद नहीं मालूम होगा कि अधिकांश आईएफएस नहीं चाहते थे कि संजय शुक्ला को हेड ऑफ फारेस्ट की कमान मिले। दरअसल, संजय काम करने में हार्ड हैं तो बोलने और टोकने में भी कोई मरौव्वत नहीं करते। खुद 12 घंटे की सीटिंग करते हैं और रिजल्ट की नियमित मानिटरिंग। जाहिर है, उन्होंने लघु वनोपज को कहां-से-कहां पहुंचा दिया। उनसे पहले राकेश चतुर्वेदी भी फॉरेस्ट में काफी काम किए मगर उनका अंदाज अलग था। साफ्ट स्पोकेन...यायावर मिजाज।

समधी का सवाल

हेड ऑफ फॉरेस्ट संजय शुक्ला नई पोस्टिंग के साथ ही लघु वनोपज संघ के एमडी भी रहेंगे। उनसे पहले और कई पीसीसीएफ के पास ये जिम्मेदारी रही। संजय ने चूकि संघ में काफी काम किया है...72 हजार लोगों के लिए रोजगार क्रियेट हुआ। इसलिए उन्हें वहां कंटीन्यू करना समझा जा सकता है। लेकिन, इसके साथ एक बात और...संजय के समधी जयसिंह महस्के भी आईएफएस अधिकारी हैं। महस्के की बेटी संजय शुक्ला के घर गई है। फिलहाल वे एडिशनल पीसीसीएफ। सरकार ने हाल ही में उन्हें पीसीसीएफ का स्केल दिया है। महस्के का इसी महीने रिटायरमेंट है। अगर पोस्ट नहीं होगा तो महस्के को बिना पीसीसीएफ बने ही रिटायर होना पड़ेगा।

बीजेपी का मंथन और सवाल

भाजपा में चेहरे तो बदल गए मगर विपक्ष में वो आग नजर नहीं आ रहा, जो जोगी सरकार के समय 2003 में दिखा था। लखीराम अग्रवाल, रमन सिंह और दिलीप सिंह जूदेव का चेहरा, रायपुर में बृजमोहन अग्रवाल की आक्रमकता। 2003 की जंगी प्रदर्शन। तब जाकर भाजपा पारफर्म कर पाई थी। अभी की बात करें...पार्टी ने जो चेहरे पेश किए हैं, उसके बारे में टिप्पणी करना जल्दीबाजी होगी। क्योंकि, अभी समय अभी ज्यादा नहीं हुआ है। फिर भी कुछ नाम तो ऐसे हैं, जिनका कोई मतलब नहीं। संभाग प्रभारियों में एकाध को छोड़ दें तो वे पार्षद का चुनाव नहीं निकाल सकते। अब देखना है, विधानसभा चुनाव की तैयारियों के सिलसिले में 6 अक्टूबर को बीजेपी नेता गंगरेल में जुटेंगे। इसमें कोर ग्रुप के अलावा, प्रदेश के तीनों महामंत्रियों और संभाग प्रभारियों को बुलाया गया है। देखते हैं, इसमें क्या निकलता है।

कलेक्टरों का नुकसान

डीएमएफ से स्कूल और स्वास्थ्य सेवाओं में खरीदी पर रोक लगाकर भूपेश सरकार ने कलेक्टरों और सप्लायरों को बड़ा नुकसान कर दिया। डीएमएफ का 70 फीसदी से ज्यादा खेल इन्हीं दो विभागों में हो रहा था। 18 सितंबर के तरकश में इसको लेकर हमने कलेक्टर-सप्लायर भाई- भाई शीर्षक से लिखा था।

अंत में दो सवाल आपसे

1. रजिस्ट्री अधिकारियों को चमका धमकाकर कलेक्टर रात में जमीनों की रजिस्ट्री क्यों करवा रहे हैं?

2. जीएडी के किस बाबू की नाराजगी की वजह से सीके खेतान के रिटायरमेंट के सवा साल बाद भी उनका पेंशन, जीपीएफ क्लियर नहीं हो रहा?


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