रविवार, 13 नवंबर 2022

अतिथि हंगामाई भव...!

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 6 नवंबर 2022

अतिथि हंगामाई भव...!

शास्त्रों में अतिथि देवो भव...कहा गया है याने अतिथि देवतुल्य होते हैं। मगर अतिथि अपने आचरण से समारोह के रंग में भंग घोलने लगे तो फिर उसे क्या कहना चाहिए। हम बात कर रहे हैं...राज्योत्सव की। सरकार ने इस आखिरी राज्योत्सव को प्रभावी ढंग से मनाने का निर्देश जारी किए थे। मगर कई जिलों में सत्ताधारी पार्टी के नेताओं ने हंगामा खड़ा कर सरकार के मंसूबों पर पानी फेर दिया। हम ये नहीं मानते कि जिला प्रशासन से प्रोटोकॉल में चूक नहीं हो सकती। मगर ऐसा भी नहीं है कि एक साथ कई जिलों में इस तरह की घटनाएं हो जाए। सत्ता पार्टी के नेताओं को मालूम होना चाहिए कि कलेक्टर जिलों में मुख्यमंत्री के प्रतिनिधि होते हैं। अगर उनसे कोई गिला-शिकवा है तो सीधे मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाना चाहिए, न कि राज्योत्सव जैसे आयोजन को पलीता लगा दिया जाए। बहरहाल, इसके संदेश अच्छे नहीं गए...आम आदमी आवाक था...विपक्ष का काम रुलिंग पार्टी के नेता कर रहे हैं। वहीं नेता जो बीजेपी सरकार में 15 साल तक बढिया अपना धंधा-पानी चलाते रहे।

सबसे बड़ा रुप्पैया

बिलासपुर पुलिस ने सत्ताधारी पार्टी के नेत्री के बेटे को गिरफ्तार कर लिया। वो भी बंद पड़े अस्पताल की फर्जी मेडिकल रिपोर्ट लगाकर। बताते हैं, 9 महीने पहिले दो पक्षों में सामान्य मारपीट हुई थी। पुलिस ने अचानक जानलेवा हमले की फर्जी रिपोर्ट लगाकर कांग्रेस नेत्री के बेटे को 307 में जेल भेज दिया। इससे पहले बिलासपुर के ही कांग्रेस के पूर्व ब्लॉक अध्यक्ष ने सुसाइड कर लिया था। उनके परिजनों ने खुलकर कुछ लोगों पर आरोप लगाए...मगर ढाक के तीन पात। ठीक ही कहा गया है....सबसे बड़ा रुप्पैया। याने रुप्पैया दिख जाए तो पुलिस कुछ भी कर देगी।

चार साल में 5 उपचुनाव

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सरकार की कमान संभालने के बाद छत्तीसगढ़ में विधानसभा के चार उपचुनाव हो चुके हैं और भानुप्रतापपुर उपचुनाव भी आठ दिसंबर को कप्लीट हो जाएगा। जाहिर है, इससे पहिले हुए चारों उपचुनावों के नतीजे कांग्रेस के खाते में गए थे। 2018 में कांग्रेस पार्टी ने जब सरकार बनाई, उसके पास 68 विधायक थे। अब ये संख्या बढ़कर 72 पहुंच गई है। बता दें, पहला उपचुनाव दंतेवाड़ा विधानसभा का हुआ था, जब लोकसभा चुनाव के कैम्पेनिंग के दौरान नक्सलियों द्वारा लगाए गए बारुदी सुरंग विस्फोट में विधायक भीमा मंडावी जान गंवा दिए थे। इसके बाद विधायक दीपक बैज के लोकसभा चुनाव जीतने की वजह से चित्रकोट में बाई-इलेक्शन हुआ। फिर अजीत जोगी और देवव्रत सिंह के निधन के बाद मरवाही और खैरागढ़ में। याने अभी तक चार उपचुनाव हो चुके हैं। इसमें दुखद यह है कि पांच में से चार विधानसभा उपचुनाव विधायकों के निधन की वजह से कराना पड़ा। पिछले महीने भानुप्रतापपुर विधायक और डिप्टी स्पीकर मनोज मंडावी को दिल का दौरा पड़ने से देहावसान हो गया।

जोड़ी कसौटी पर

2018 में विधानसभा चुनाव हारने के बाद बीजेपी इस कदर हिल गई थी कि चार उपचुनावों में से खैरागढ़ को छोड़कर कहीं लगा नहीं कि 15 साल सत्ता में रही पार्टी चुनाव लड़ रही है। खैरागढ़ में भी सत्ताधारी पार्टी डांवाडोल हुई क्योंकि देवव्रत सिंह के जोगी कांग्रेस ज्वाईन करने के बाद वहां कांग्रेस का कुछ बचा नहीं था। और न ही कांग्रेस पार्टी ने वहां संगठन खड़ा करने की कोशिश की। हवा का रुख भांपकर सीएम भूपेश बघेल ने जिले बनाने का मास्टर स्ट्रोक खेला और बीजेपी को पीछे हटने विवश कर दिया। अब जब भानुप्रतापपुर उपचुनाव होने जा रहा है...सूबे में बीजेपी के चेहरे बदल चुके हैं। अब अरुण साव प्रदेश अध्यक्ष हैं और नारायण चंदेल नेता प्रतिपक्ष। ये दोनों नेता लगातार क्षेत्र का दौरा कर रहे हैं। सरगुजा के बाद अरुण-चंदेल की जोड़ी बस्तर का दौरा कर चुकी है। भानुप्रतापपुर में इन दोनों नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर होगी। अब ये भी नहीं कहा जा सकता कि उपचुनाव के नतीजे सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में आता है। सरकार के अब चार साल पूरे होने जा रहे हैं। सियासी प्रेक्षकों का मानना है, भानुप्रतापपुर चुनाव 2023 के चुनाव का सेमीफाइनल होगा। भानुप्रतापुर जो पार्टी फतह करेगी, उसकी फायनल जीतने की दावेदारी बढ़ जाएगी। सियासी पंडितों को भी उत्सुकता रहेगी कि अरुण-चंदेल की जोड़ी इस चुनाव में कोई कमाल दिखा पाएगी या भानुप्रतापपुर सीट भी कांग्रेस की झोली में चली जाएगी।

ईडी का भूत

ईडी का भूत रजिस्ट्री विभाग में भी पहुंच गया है। वहां के अफसरों की रात की नींद उड़ गई है। दरअसल, आईएएस समीर विश्नोई के यहां छापे में कई जमीनों की रजिस्ट्री के पेपर मिले हैं। उन जमीनों की रजिस्ट्री में रजिस्ट्री अधिकारियों ने भारी घालमेल किया है। एक तो आईडी सही नहीं है। समीर की पत्नी के नाम हुए विभिन्न प्लाटों की रजिस्ट्री में सरनेम पिता का है और पति की जगह नाम भी पिता का...सुंदरसिंह गोदारा। ईडी ने सबसे अधिक नोटिस लिया है, वह है महंगी जमीनों को रजिस्ट्री अधिकारियों ने गाइडलाइन रेट कम करके सरकार के खजाने को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। ईडी ने रजिस्ट्री अधिकारियों इस संबंध में जवाब मांगा है।

आईएएस सबसे होशियार?

सबसे कठिन इम्तिहान पास करके देष की सबसे प्रतिष्ठित सर्विस हासिल करने वाले आईएएस अधिकारी सबसे अधिक तेज और होशियार माने जाते हैं। मगर छत्तीसगढ़ में कुछ उल्टा-पुल्टा हो जा रहा है। अब घर में किलो में सोना क्यों रखना भाई! इसी तरह की अक्लमंदी सिकरेट्री लेवल के एक और आईएएस ने दिखाई है। बात 2016 की है। एसीबी ने एक अधिकारी के घर छापा मारा। अधिकारी के पत्नी का बैंक डिटेल चेक किया गया तो पता चला कि 65 लाख रुपए पुणे के एक कालेज को ट्रांसफर किया गया है। कड़ाई से पूछताछ में अधिकारी ने बताया कि सिकरेट्री साब का बच्चा वहां पढ़ाई करता है...वे अपने एकाउंट से पैसा भेज नहीं सकते थे। इसलिए, मेरी पत्नी के एकाउंट में पैसा ट्रांसफर कराया। चूकि ये मनी लॉंड्रिंग का मामला था, इसलिए एसीबी ने उसे ईडी को भेज दिया था। ईडी ने इसमें क्या किया, ये तो पता नहीं। मगर ये जरूर समझ में आता है कि आईएएस कितने होशियार होते हैं।

अजयपाल से शुरू

ईडी की गिरफ्तारी के बाद राज्य सरकार ने आईएएस समीर विश्नोई को सस्पेंड कर दिया है। 2009 बैच के आईएएस समीर के जेल जाने के बाद जीएडी ने यह कार्रवाई की। बता दें, छत्तीसगढ़ बनने के बाद निलंबित होने वाले समीर भारतीय प्रशासनिक सेवा के चौथे अधिकारी होंगे। सबसे पहले रमन सरकार की पहली पारी में अजयपाल सिंह को सस्पेंड किया गया था। अजयपाल ने पर्यटन बोर्ड के एमडी रहते अपने विभागीय मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के खिलाफ मंत्रालय में पत्रकार वार्ता ले लिए थे। अजयपाल 86 बैच के आईएएस अधिकारी थे। उनके बाद सीनियर आईएएस अफसर राधाकृष्णन पर्यटन बोर्ड के घोटाले में निलंबित किए गए। राधाकृष्णन 78 बैच के आईएएस थे। उनके बाद बीएल अग्रवाल निलंबित हुए। और अब समीर विश्नोई। महत्पूर्ण यह है कि रमन सिंह की तीनों पारी में एक-एक आईएएस सस्पेंड हुए थे। इसके बाद भूपेश बघेल सरकार में एक। सिर्फ अजीत जोगी सरकार में कोई आईएएस सस्पेंड नहीं हुआ।

58 दिनों की कलेक्टरी

छत्तीसगढ़ बनने के बाद सबसे कम दिनों की कलेक्टरी गौरव सिंह के नाम दर्ज था। गौरव सूरजपुर में जरूर एक साल रहे मगर इसके बाद मुंगेली कलेक्टर से दो महीने में हटाकर बालोद भेज दिया गया था। लेकिन, सारंगढ़ के निवर्तमान कलेक्टर राहुल वेंकट ने गौरव को पीछे छोड़ दिया है। जिले का नोटिफिकेशन के बाद राहुल 2 सितंबर को कलेक्टर बनाए गए और 31 अक्टूबर को सरकार ने उन्हें हटा दिया। याने कुल 58 दिन में राहुल का विकेट उड़ गया। हालांकि, कम दिनों की कलेक्टरी की लिस्ट में भोस्कर विलास संदीपन और अभिजीत सिंह का नाम भी शामिल है। संदीपन चार महीने कलेक्टर रहे तो अभिजीत नारायणपुर में छह महीने।

और गिरेंगे विकेट

नए जिलों में ओएसडी प्रशासन की नियुक्ति के बाद इसी तरकश कॉलम में हमने एकाधिक बार लिखा था कि पांच नए जिले बनाए गए हैं, उनमें से कुछ कलेक्टर शायद ही क्रीज पर टिक पाए। और सारंगढ़ से इसकी शुरूआत हो गई। पता चला है, नए कलेक्टरों में से दो-एक का विकेट और गिर सकता है। राजनीति दृष्टि से संवेदनशील एक जिले के कलेक्टर अब-तब की स्थिति में हैं। दरअसल, उनकी बदजुबानी तो चर्चा में थी ही, लक्ष्मी-नारायण में उनकी आस्था बढ़ती जा रही है।

महिला कलेक्टर

फरिहा आलम को सारंगढ़ का कलेक्टर बनाए जाने के बाद सूबे में महिला कलेक्टरों की संख्या बढ़कर आधा दर्जन पहुंच गई है। याने 33 में छह। करीब 20 फीसदी। जाहिर है, राज्य निर्माण के बाद यह सबसे बड़ी संख्या होगी। इससे पहिले एक समय में तीन से अधिक महिला कलेक्टर कभी रही नहीं। फिलवक्त, प्रियंका शुक्ला कांकेर, रानू साहू रायगढ़, नुपूर राशि पन्ना सक्ती, इफ्फत आरा सूरजपुर, ऋचा प्रकाश चौधरी जीपीएम और फरिहा आलम सारंगढ़ की कलेक्टर हैं। इनमें से हो सकता है, दो माइनस हो जाए। बहरहाल अभी तो छह हैं हीं।

वर-वधु को बधाई!

राज्य प्रशासनिक सेवा के दो अधिकारी ब्याह रचाने जा रहे हैं। 25 नवंबर को बिलासपुर में दोनों विधिवत सात फेरे लेंगे। इसकी तैयारियां शुरू हो गईं हैं... कार्ड बंटने लगे हैं। वैसे, एडिशनल कलेक्टर और डिप्टी कलेक्टर की शादी की चर्चा काफी दिनों से थी। मगर कुछ कानूनी अड़चनों की वजह से फायनल नहीं हो पा रहा था। बहरहाल, वर-वधु को बधाई।

अंत में दो सवाल आपसे

1. किस जिले के पुरूष कलेक्टर ने ईडी की खौफ से एक मातहत का आईफोन अपने सामने तोड़वा दिया?

2. देवव्रत सिंह की पिछले साल 4 नवंबर को मृत्यु हुई थी और अप्रैल में उपचुनाव हुआ। फिर भानुप्रतापपुर उपचुनाव का ऐलान विधायक के निधन के 15 दिन में क्यों?


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