Chhattisgarh Tarkash 4 February 2024
संजय के. दीक्षित
मंत्रियों के खटराल पीए
दिल्ली में केंद्रीय मंत्रियों का पीए बनाने में बड़ी कड़ाई बरती जा रही है। 360 डिग्री से टेस्टिंग के बाद ही मंत्रियों के पीए की नियुक्ति हो पा रही। मगर छत्तीसगढ़ में जीएडी ऐसे खटराल डिप्टी कलेक्टरों को पीए अपाइंट कर रहा है कि पूछिए मत! छत्तीसगढ़ में एक ज्वाइंट कलेक्टर का मंत्री का विशेष सहायक बनाया गया है, जिसने एसडीएम रहते एनटीपीसी को 500 करोड़ रुपए की चपत लगाई थी। वाकया 2014 का है...रायगढ़ के पास लारा में एनटीपीसी के प्लांट निर्माण को देखते तत्कालीन एसडीएम ने जमीनों की खरीदी-बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया था। मगर उनके ट्रांसफर के बाद आए इस एसडीएम ने चुपके से प्रतिबंध हटाकर बड़ा खेला कर डाला। भूअर्जन में जमीन के टुकड़ों का खेल खेलते हुए 300 प्लाट के 1300 टुकड़े कर दिए गए। दरअसल, छोटे टुकड़ों का मुआवजा चार गुना अधिक मिलता है। एनटीपीसी के अफसरों ने कलेक्टर से इसकी शिकायत की...छोटे टुकड़ों के खेल की वजह से उन्हें 500 करोड़ अधिक मुआवजा देना पड़ा है। मुकेश बंसल उस समय कलेक्टर रायगढ़ थे। उन्होंने पुलिस में न केवल नामजद रिपोर्ट दर्ज कराई थी बल्कि 1300 पेज की जांच रिपोर्ट भेज सरकार से कार्रवाई करने का आग्रह किया था। उस समय की बीजेपी सरकार ने एसडीएम को न केवल सस्पेंड किया बल्कि विभागीय जांच भी बिठा दी थी। एसडीएम के खिलाफ कोर्ट ने गिरफ्तारी वारंट जारी किया। मगर बाद में हाई कोर्ट से अग्रिम जमानत मिल गई। बहरहाल, डीई अभी चल रही है। इस वजह से अफसर का प्रमोशन नहीं हो पाया। दाग इतना बड़ा है कि आईएएस अवार्ड भी नहीं हो पाएगा। अब ऐसे अफसरों को मंत्रियों का विशेष सहायक बनाया जाएगा तो आप समझ सकते हैं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की मुहिम का क्या होगा। वैसे ये तो एक बानगी है...अधिकांश मंत्रियों के पीए किसी-न-किसी मामले में चर्चित रहे हैं। अधिकांश मंत्री अपने-अपने हिसाब से पीए की नियुक्ति कराए जा रहे हैं।
एक करोड़ की माशूका
ऑल इंडिया सर्विस के डायरेक्टर लेवल के एक अफसर की इन दिनों राजधानी रायपुर में बड़ी चर्चाएं हैं। वे जब जिले में पोस्टेड रहे तो पहली के होते दूसरी शादी रचा लिए थे। और अब राजधानी में डायरेक्टर बने तो तीसरी के चक्कर में फंस गए। दरअसल, विभागीय कामकाज के सिलसिले में उन्हें एक जिले में दो चार बार जाना हुआ। वहां अपने ही विभाग की एक मुलाजिम से दिल लगा बैठे। दोनों पहले खूब मिले-जुले, घूमे-फिरे। किन्तु कुछ दिन बाद डायरेक्टर साहब लगे हाथ खींचने। फिर माशूका ने अपना रंग दिखाया...मय सबूत अंतरंग क्षणों के वीडियो के साथ पुलिस में कंप्लेन करने की धमकी दे डाली। डायरेक्टर लगे हाथ-पैर जोड़ने। युवती भी निचले क्रम की अफसर थीं, उसे पता था कि साहब का क्या लेवल है, उसने उसी के अनुरूप डील पक्का किया। चार किश्तों में एक करोड़। समझौता इस बात पर हुआ कि पेमेंट कंप्लीट होने के बाद ओरिजनल वीडियो सुपुर्द कर देगी। मगर पैसा मिलने के बाद उसने गच्चा दे दिया। माशूका का कहना है, विश्वास रखो, मैं अब कुछ नहीं करूंगी। लेकिन डायरेक्टर साब को डर सता रहा, कहीं मैं एटीएम न बन जाऊं। लंगोट के ढीले अफसरों के साथ ऐसा ही होता है। वरना, मालूम है उस जिले में एक कलेक्टर साब इसी तरह के शौक में निबट गए...बावजूद डायरेक्टर ने लंगोट टाईट करके नहीं रखा।
फायदे में डिप्टी सीएम
सरकार ने जिलों के प्रभारी मंत्रियों का ऐलान कर दिया है। चूकि जिलों की संख्या अब 33 हो गई है सो अधिकांश मंत्रियों के हिस्से में तीन-तीन जिले आए हैं। जिलों के बंटवारे में प्रमुख पैरामीटर यह था कि गृह जिला नहीं होना चाहिए। वैसे यह पहली बार नहीं हुआ है...आमतौर पर ऐसा ही होता आया है। मगर डिप्टी सीएम अरुण साव को इसमें अपवाद बोल सकते हैं। उन्हें तीन जिलों की जिम्मेदारी दी गई है, उनमें एक बिलासपुर भी है। हालांकि, अरुण का गृह जिला मुंगेली है। उनका विधानसभा इलाका लोरमी इसी मुंगेली में आता है। मगर अब गृह जिला नाम का रह गया है। प्रारंभ से उनका कार्य और निवास क्षेत्र बिलासपुर रहा है। बिलासपुर में वे जनता दरबार भी लगाते हैं। ऐसे में, बिलासपुर के प्रभारी मंत्री बनने का मतलब समझा जा सकता है। कुल मिलाकर मंत्रियों में अरुण साव नफे में रहे।
बेशर्म सिस्टम
छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार कितनी गहरी जड़े जमा चुका है कि सत्ताधारी पार्टी का नेता हो या पूर्व विधायक इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। बात रायपुर की विधायक रह चुकी रजनी ताई उपासने की। रजनी ताई का पूरा परिवार जनसंघ के समय से पार्टी के लिए समर्पित रहा है। उनके दो बेटे इमरजेंसी के दौरान रायपुर जेल में बंद रहे। बड़ा बेटा जगदीश उपासने देश की प्रतिष्ठित न्यूज मैगजीन के सालों तक संपादक रहे हैं। बावजूद इसके उनका परिवार को भी दो-चार होना पड़ रहा है। असल में, रजनी ताई राजधानी की एक सोसाइटी का मकान बेचना चाहती हैं। सोसाइटी चूकि भंग है इसलिए वहां से एनओसी का कोई तुक नहीं। मगर सहकारिता विभाग की एक महिला अफसर को एनओसी देने के लिए चाहिए 35 हजार। महिला अफसर को बताया गया...रजनी ताई सत्ताधारी पार्टी की पूर्व विधायक हैं। महिला अफसर ने कहा, कोई नहीं, पैसा देना पड़ेगा। जगदीश उपासने इस स्तंभकार से बात करते हुए हतप्रभ थे। बोले, छत्तीसगढ़ में करप्शन का लेवल ये हो गया है।
अगला मुख्य सचिव?
चीफ सेक्रेटरी अमिताभ जैन के रिटायरमेंट में वैसे तो अभी एक साल से ज्यादा वक्त बचा है। अगले साल मई तक उनकी सर्विस है। लेकिन ब्यूरोकेसी में उनके बाद यानी भावी प्रशासनिक मुखिया की चर्चाएं शुरू हो गई है। अमिताभ के बाद सीनियरटी में 91 बैच की रेणु पिल्ले और 92 बैच के सुब्रत साहू हैं। रेणु के बारे में कहा जाता है वे अपनी भी नहीं सुनती। ऐसे में सीएस जैसा अहम दायित्व देना किसी सरकार के लिए संभव नहीं। बचे सुब्रत तो एसीएस टू सीएम होने की वजह से उन पर पिछली सरकार का लेवल लग चुका है। अब भगवान जगन्नाथ का कोई चमत्कार हो गया तो बात अलग है। सुब्रत के बाद 93 बैच के अमित अग्रवाल सेंट्रल डेपुटेशन पर हैं। अमित लंबे समय से दिल्ली में हैं। वैसे भी, अमित की सवारी कर पाना संभव नहीं। ऐसे में पूरी संभावनाएं 1994 बैच के दो अफसरों पर आकर ठहर जाती है। खासकर मनोज पिंगुआ और ऋचा शर्मा। इस बैच के विकास शील एडीबीआई के डायरेक्टर बनकर मनीला चले गए हैं और उनकी बैचमेट पत्नी बदली परिस्थिति में दिल्ली डेपुटेशन में ही रहना बेहतर समझेंगी। ऐसे में यह निश्चित है कि मनोज और ऋचा में से ही कोई छत्तीसगढ़ का अगला चीफ सेक्रेटरी बनेगा। यह कब होगा? लोकसभा चुनाव के बाद या अगले साल मई में? यह सीएम विष्णुदेव साय बता पाएंगे।
मुझे ओपी कहिये
जूनियर जब बॉस बन जाए तो उस दर्द और पीड़ा को समझा जा सकता है। ब्यूरोक्रेसी में 2005 बैच से उपर के लगभग सभी अफसरों को इसी स्थिति से साबका पड़ रहा है। दरअसल, 2005 बैच के आईएएस रहे ओपी चौधरी अब फायनेंस मिनिस्टर बन गए हैं। अक्टूबर 2018 में ओपी जब रायपुर जैसे बड़े जिले की कलेक्टरी छोड़ चुनाव में उतरे और पहली बॉल पर अपना विकेट गंवा बैठे तो ब्यूरोक्रेसी में यह राय व्यक्त करने वालों की कमी नहीं थी कि ओपी ने खामोख्वाह कुल्हाड़ी पर पैर मार बैठा...सरकार बदल गई तो क्या हुआ, धीरे से ठीकठाक पोस्टिंग भी मिल जाती। मगर अब बड़े-बड़े नौकरशाहों को ओपी सर कहना पड़ रहा है, सम्मान में खड़ा होने की मजबूरी भी। जाहिर है, उन्हें पीड़ा तो होती होगी। हालांकि, भारी भरकम विभागों के मंत्री बनने के बाद भी ओपी सीनियर अफसरों को ऐसा अहसास नहीं होने दे रहे। हाल में एक महिला सिकरेटी को उन्होंने फोन लगावाया, उधर से आवाज आई...नमस्कार सर मैं फलां...। ओपी ने विनम्रता से कहा, मैडम! आप मुझे ओपी ही कहिये।
फास्ट पोस्टिंग
आईपीएस राजेश मिश्रा डीजीपी नहीं बन पाए मगर संविदा पोस्टिंग में उन्हें ज्यादा वेट नहीं करना पड़ा। 31 जनवरी को रिटायर हुए और दो फरवरी को उन्हें संविदा नियुक्ति मिल गई। याने 48 घंटे के भीतर। और इसके घंटे भर के भीतर जेल डीजी का दायित्व भी। उनसे पहले संजय पिल्ले को रिटायरमेंट के बाद करीब महीने भर तक वेट करना पड़ा था, तब जाकर फिर डीजी जेल बन पाए थे। हालांकि, 15 साल वाली बीजेपी सरकार भी पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग के लिए वेट कराती थी। करीब महीने भर तक। उस सरकार में सबसे अच्छी पोस्टिंग होल्ड करने वाले ठाकुर राम सिंह को भी रिटायरमेंट के बाद राज्य निर्वाचन आयुक्त बनने के लिए एक महीना प्रतीक्षा करना पड़ा था। विवेक ढांड और एमके राउत अवश्य अपवाद रहे। ढांड का वीआरएस एक्सेप्ट के आदेश के साथ ही रेरा चेयरमेन की पोस्टिंग मिल गई थी। एमके राउत को भी करीब 10 दिन लगा था। सबसे फास्ट पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग का रिकार्ड आरपी मंडल के नाम दर्ज है। चीफ सिकरेट्री से रिटायर होने के 15 मिनट के भीतर उनका एनआरडीए चेयरमेन का आदेश जारी हो गया था। ढांड और राउत का रिकार्ड इसलिए नहीं माना जा सकता क्योंकि उन दोनों पदों के लिए सलेक्शन का अपना प्रॉसेज है। दोनों का प्रॉसेज पहले ही पूरा कर लिया गया था। पोस्टिंग के लिए उचित समय का इंतजार किया जा रहा था। इसलिए, सबसे फास्ट पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग का रिकार्ड मंडल के नाम रहेगा।
अंत में दो सवाल आपसे
1. क्या ये सही है कि एसीएस मनोज पिंगुआ और ऋचा शर्मा में से कोई एक मुख्यमंत्री विष्णुदेव का एसीएस बनेगा और दूसरा अगला चीफ सिकरेट्री?
2. छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री स्तर की घोषणाएं मंत्री कैसे कर रहे हैं?
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