शनिवार, 25 मई 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: डीजीपी अशोक जुनेजा को एक्सटेंशन?

 तरकश, 26 मई 2024

संजय के. दीक्षित

डीजीपी को एक्सटेंशन?

ठीक ही कहा गया है...वक्त बलवान होता है। वरना, विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी वाले कोई मिश्राजी हर तीसरे दिन डीजीपी अशोक जुनेजा की शिकायत लेकर चुनाव आयोग पहुंच जाते थे। तब यह स्पष्ट था कि बीजेपी की सरकार बनी तो डीजीपी बदल दिए जाएंगे। बीजेपी के आने के बाद माहौल बना भी। मीडिया में रोज ही खबरें...जुनेजा की विदाई का कभी भी आदेश निकल सकता है। नए डीजीपी के लिए राजेश मिश्रा से लेकर स्वागत दास जैसे कई नाम दौड़े। स्वागत दास के रायपुर आने की खबर भी एक रोज सोशल मीडिया में वायरल हो गई थी। मगर वक्त का खेल देखिए...दो महीना में ग्रह-नक्षत्र ऐसा बदला कि अब जुनेजा के एक्सटेंशन देने की अटकलें शुरू हो गई है। चर्चाओं को इस बात से बल मिल रहा कि बस्तर में सिक्यूरिटी फोर्सेज को जिस तरह की कामयाबी मिली है, उसमें राज्य सरकार अगर मिनिस्ट्री ऑफ होम को प्रस्ताव भेजे तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भला क्यों मना करेंगे। बस्तर में दो महीने में 50 से अधिक नक्सली मारे गए हैं। लोकसभा चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर अमित शाह तक इसे इनकैश किया है। हालांकि, जुनेजा को रिटायरमेंट के बाद करीब सवा साल का एक्सटेंशन मिल चुका है। जुनेजा अगर डीजीपी नहीं होते तो पिछले साल जून में रिटायर हो गए होते। वैसे तो वे सितंबर 2022 में प्रभारी डीजीपी बन गए थे। मगर 5 अगस्त 2022 को उन्हें रेगुलर डीजीपी बनाया गया। रेगुलर डीजीपी को दो साल का कार्यकाल दिया जाता है। लिहाजा, आने वाले 4 अगस्त को उनका कार्यकाल समाप्त हो जाएगा। चूकि बस्तर में नक्सलियों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई चल रही है। सरकार में बैठे लोग भी बस्तर में नक्सलियों को उनके मांद में घुसकर मारने में जुनेजा को क्रेडिट दे रहे। दूसरा, सरकार जुनेजा के बाद उनके विकल्पों पर भी अश्वस्त नजर नहीं आ रही। इस स्थिति में, जुनेजा के एक्सटेंशन की चर्चाओं को हवा में नहीं उड़ाया जा सकता।

किधर हैं...8 मिनिस्टर?

लोकसभा चुनाव का ऐलान होने के बाद से विष्णुदेव सरकार के 11 में से आठ मंत्रियों का कहीं कोई पता नहीं चल रहा है। पूरे चुनाव के दौरान तीन ही मंत्री पब्लिक डोमेन में दिखाई पड़े। दोनों डिप्टी सीएम अरुण साव और विजय शर्मा और तीसरे हाई प्रोफाइल मंत्री ओपी चौधरी। दरअसल, लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहिले कुछ मंत्री डिरेल्ड होते-होते बचे। रही-सही कसर पार्टी के प्रदेश प्रभारी नीतिन नबीन ने पूरी कर डाली। नीतीन ने सभी मंत्रियों को चेता दिया था कि लोकसभा चुनाव में मंत्रियों के इलाके में गड्ढा हुआ तो फिर खैर नहीं! अब मंत्री पद का सवाल है तो फिर इसके बाद कहां कुछ सूझता है। आठों मंत्री अपने इलाके में ही सिमटे रहे। हालांकि, छत्तीसगढ़ में वोटिंग हुए पखवाड़ा भर से ज्यादा हो गया है इसके बाद भी इन आठ मंत्रियों का कुछ पता नहीं चल रहा। मन में कहीं डर ज्यादा तो नहीं बैठ गया है।

भूपेश और विजय

छत्तीसगढ़ में ब्राम्हण मंत्रियों के लिए तरक्की के लिए कुछ खास गुंजाइश नहीं है। बावजूद इसके, डिप्टी सीएम विजय शर्मा पीछे नहीं रहते। तेवर तो उनके पास है ही, किस्मत भी उनकी भरपूर साथ दे रही है। नक्सल मोर्चे पर जो पिछले दो दशक में नहीं हुआ, वह दो महीने में हो गया। केंद्र के साथ नक्सल प्रभावित 12 राज्यों की नजरें छत्तीसगढ़ पर है कि किस तरह बस्तर में माओवादियों का खात्मा किया जा रहा है। रही बात सियासी मोर्चे की तो विजय फ्रंटफुट पर आकर खेल रहे हैं। नक्सलियों को बातचीत के ऑफर देने के मामले में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और विजय शर्मा के बीच आमने-सामने की स्थिति है। चलिये ठीक है...मुख्यमंत्री रहते भूपेश बघेल ने पिछले पांच साल तक रमन सिंह के नाम को जीवंत रखा और अब विजय शर्मा से भिड़कर उनका कद बढा़ रहे हैं।

नो शक्ति केंद्र, नो परिक्रमा

अप्रैल तक सरकार को स्लो...पिछली बार से कुछ खास फर्क नहीं...कहने वाले लोग चकित हैं कि सिस्टम अचानक इतना तेजी से एक्शन मोड में कैसे आ गया। पिछले 15 दिन में सरकार में कई ऐसी चीजें हुई हैं...कई ऐसे आदेश जारी हुए हैं, जिससे एक मैसेज गया है। पहली बार स्कूल शिक्षा जैसे सबसे उपेक्षित रहे विभाग में सुधार की बातें हो रही। विभागों में विजिलेंस सेल का गठन किया जा रहा है। शिकायतों की मानिटरिंग के लिए सरकार ने नोडल अफसरों की नियुक्ति के साथ अपीलीय सिस्टम बना दिया है। जाहिर है, सरकार के बदलते तेवर से ब्यूरोक्रेसी हैरान और स्तब्ध है। जीएडी सिकरेट्री मुकेश बंसल रोज एक आदेश टपका दे रहे। कलेक्टरों की एकाउंटबिलिटी तय की जा रही। ऐसे में, नौकरशाहों की पीड़ा समझी जा सकती है। बहरहाल, ब्यूरोक्रेट्स हवा का रुख भांपने में बड़े तेज होते हैं...शक्तिकेंद्र की पहचान कर परिक्रमा चालू करने में विलंब नहीं करते। मगर दिक्कत यह है कि शक्ति वाले अफसरों को न तो शक्तिशाली कहाने में दिलचस्पी है और न ही वे परिक्रमा पसंद कर रहे। एक कप ब्लैक कॉफी पीजिए और काम की बातें कर निकल लीजिए। इससे नौकरशाही की परेशानी समझी जा सकती है। कांग्रेस की सरकार हो या फिर बीजेपी की...अधिकांश अफसरों ने परिक्रमा ही तो किया है।

भूपेश की योजनाएं...

पिछली सरकार की कई योजनाएं भी अच्छी थी। मसलन, नरवा, गड़वा, घुरवा बाड़ी में नरवा और बाड़ी अल्टीमट बोल सकते हैं। नरवा का काम अगर गति पकड़ लेता तो छत्तीसगढ़ के वाटर लेवल और सिंचाई में कुछ और बात होती। वहीं, सुपोषण के लिए हर घर में एक बाड़ी तो होनी ही चाहिए, जिसमें आम आदमी काम लायक सब्जियां उपजा सके। स्कूल शिक्षा में आत्मानंद अंग्रेजी स्कूल का कंसेप्ट भी अच्छा था। मगर सरकार का क्रियान्वयन और मानिटरिंग की कोई व्यवस्था नहीं थी। उपर में न कोई देखने वाला था कि कहां क्या हो रहा और क्या करना है। इस चक्कर में भूपेश बघेल की अच्छी योजनाओं ने दम तोड़ दिया या फिर नेताओं और अफसरों के लूट-खसोट का जरिया बनकर रह गई। पराकाष्ठा तो यहां तक हो गई कि आत्मानंद जैसे पवित्र आत्मा के नाम पर खोले गए स्कूलों की खरीदी में कलेक्टरों ने लूट मचा दिया। विष्णुदेव सरकार में फर्क यह है कि इस समय लगातार मानिटरिंग हो रही या मानिटरिंग का सिस्टम बनाया जा रहा है। और जाहिर सी बात है कि बिना मानिटरिंग कुछ होता नहीं।

डीडी सिंह या संजय अलंग?

लोकसभा चुनाव 2024 के बाद राज्य सरकार को पहली नियुक्ति राज्य निर्वाचन आयोग के कमिश्नर की करनी होगी। छत्तीसगढ़ में यह संवैधानिक आयोग विधानसभा चुनाव के पहले से खाली है। फिर सामने नगरीय निकाय चुनाव है। करीब तीन-चार महीने बाद ही इसकी प्रक्रिया प्रारंभ हो जाएगी। राज्य निर्वाचन आयुक्त रिटायर चीफ सिकरेट्री या उसके समकक्ष किसी अफसर को बनाया जाता है। मगर छत्तीसगढ़ में एक बार ही एक्स सीएस शिवराज सिंह इस पद को संभाल पाए। वरना, उनके अलावा रिटायर सिकरेट्री और प्रिंसिपल सिकरेट्री को इस पद पर बिठाया गया। बहरहाल, रिटायर आईएएस में अभी सिर्फ डीडी सिंह हैं। वे पिछली सरकार में रिटायर हुए थे। उसके बाद उन्हें संविदा में पोस्टिंग मिली और सीएम सचिवालय से लेकर कई अहम विभाग संभालते रहे। इस सरकार में भी उनकी संविदा नियुक्ति कंटीन्यू है। इस समय वे सिकरेट्री जीएडी हैं। जातीय समीकरणां के साथ ही इलेक्शन का तजुर्बा उनके दावे को मजबूत कर रहा है। डीडी निर्वाचन आयोग में ज्वाइंट सीईओ रह चुके हैं, जब 2013 के विधानसभा चुनाव के समय सुनील कुजूर सीईओ थे। इसके अलावे शिवराज सिंह के राज्य निर्वाचन आयुक्त रहने के दौरान उनके साथ भी काम कर चुके हैं। अगर डीडी सिंह पर सहमति नहीं बनी तो दूसरा नाम रायपुर, बिलासपुर के कमिश्नर संजय अलंग का नाम है। अलंग इसी साल 31 जुलाई को रिटायर होने वाले हैं। डीडी सिंह के साथ अलंग भी राज्य निर्वाचन आयुक्त के दावेदार हो सकते हैं। क्योंकि, इनके अलावा दूसरा कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा।

तरकश की खबर, चर्चाओं पर ब्रेक

पिछले तरकश में एसीएस ऋचा शर्मा को पोस्टिंग मिलने में लेट होने की खबर प्रकाशित हुई थी। सरकार ने इस खबर के अगले ही दिन ऋचा को पोस्टिंग दे दी। इसके साथ ही ब्यूरोक्रेसी में चल रही भांति-भांति की चर्चाओं पर भी सरकार ने विराम लगा दिया। ऋचा को लोग चीफ सिकरेट्री बताने लगे थे। दरअसल, चीफ सिकरेट्री भी उसी के आसपास अवकाश पर गए थे। ऐसे में, अटकलों और अफवाहों को पंख लगना ही था। बहरहाल, ऋचा को फॉरेस्ट की बजाए हेल्थ दिया गया होता तो राज्य के हित में बेहतर होता।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सरकार रियल इस्टेट और पंजीयन विभाग में सुधार के कदम उठा रही, उसे छत्तीसगढ़ की नौकरशाही रियल इस्टेट को बैठ जाने का खतरा बताते हुए सिस्टम को भयभीत करने का काम क्यों कर रही है?

2. छत्तीसगढ़ के किन दो मंत्रियों में निकटता कुछ ज्यादा बढ़ रही है?



रविवार, 19 मई 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: मंत्री पद के सपने

 तरकश, 19 मई 2024

संजय के. दीक्षित

मंत्री पद के सपने

जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव 2024 की काउंटिंग के दिन नजदीक आते जा रहे...छत्तीसगढ़ में मंत्री पद के दावेदारों की धड़कनें बढ़ती जा रही हैं। पुराने और अनुभवी मंत्रियों से ज्यादा पहली बार वाले याने नए विधायक उत्साहित नजर आ रहे हैं। कई तो तिरुपति से लेकर बाबा विश्वनाथ और महाकाल के दरबार में मन्न्त मांगकर आ गए हैं। रायपुर के एक नए विधायक की उम्मीदों का मत पूछिए...वे मंत्रालय में बैठने के लिए अपनी जगह भी देख कर आ चुके हैं। दरअसल, राजस्थान में पहली बार के विधायक भजनलाल को सीएम बनाकर मोदीजी ने नए विधायकों की उम्मीदों और महत्वकांक्षाओं में पंख लगा दिया। लिहाजा, सभी को लग रहा कि उनका नंबर लग सकता है। इससे दीगर, मंत्रिमंडल की सर्जरी को लेकर भांति-भांति के परसेप्शन भी निर्मित किए जा रहे हैं। मसलन, पुराने मंत्री ड्रॉप होंगे...लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद फलां मंत्री बदल जाएंगे। दरअसल, छत्तीसगढ़ में खासकर रायपुर अफवाहों की मंडी है। यहां कोई अपना दिमाग नहीं लगाता...कौवा कान ले गया तो फिर ले गया। सीधी सी बात है कि सियासत में बिना किसी ठोस वजह छह महीने, साल भर में मंत्रियों को नहीं हटाया जाता और न ही किसी शीर्ष नेता को बदला जाता। मगर रायपुर का हर तीसरा आदमी लोकसभा चुनाव के बाद किसी-न-किसी को बदल दे रहा।

वेटिंग इन पोस्टिंग-1

दिल्ली डेपुटेशन से होम कैडर लौटी छत्तीसगढ़ की सीनियर आईएएस ऋचा शर्मा 1 मई को मंत्रालय में ज्वाईनिंग दे दी थी। मगर 18 दिन बाद भी उन्हें पोस्टिंग नहीं मिली है। हो सकता है कि लोकसभा चुनाव की वजह से पोस्टिंग लटकी हो। चुनाव प्रचार के सिलसिले में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय इन दिनों बेहद व्यस्त चल रहे हैं। मगर चर्चाओं को कौन रोक सकता है। एसीएस लेवल की सीनियर आईएएस अफसर को पखवाड़े भर से अधिक समय होने के बाद भी पोस्टिंग न मिलने से ब्यूरोक्रेसी में उत्सुकता बढ़ती जा रही है। भांति-भांति की अटकलें चालू है...इतना लेट हो रहा इसका मतलब कोई बड़ी लिस्ट निकलने वाली है...सोनमणि बोरा को 15 दिन में कैसे पोस्टिंग मिल गई! किसी को लग रहा...ऋचा के लिए कुछ बड़ा हो रहा...। वरना, सिंगल नाम पर इतना टाईम नहीं लगता! हालांकि, उच्च स्तर के सूत्रों का कहना है कि लिस्ट सिंगल ही आनी चाहिए। मगर सरकार है...कुछ भी हो सकता है। लिस्ट में नाम जोड़ने-घटाने की संभावनाएं हमेशा बनी रहती है।

वेटिंग इन पोस्टिंग-2

सेंट्रल डेपुटेशन से लौटने वाले अफसरों की पोस्टिंग में विलंब पहली बार नहीं हुआ है। चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन के समय भी ऐसा हो चुका है। बीजेपी सरकार में अमिताभ जब दिल्ली से लौटे थे, तब करीब महीने भर उन्हें पोस्टिंग के लिए वेट करना पड़ा था। उन्हीं के आसपास अमित अग्रवाल भी छत्तीसगढ़ आए थे। अमिताभ तब प्रमुख सचिव थे और अमित सचिव। दोनों को महीने भर बाद ही विभाग मिल पाया। 2016 में गौरव द्विवेदी के साथ भी ऐसा ही हुआ था। गौरव को आफिसर्स मेस में महीने भर से अधिक समय तक पोस्टिंग के लिए इंतजार करना पड़ा था। जाहिर है, चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन खुद वेटिंग इन पोस्टिंग के दर्द से गुजर चुके हैं।

आब्जर्बर की किस्मत

चुनाव में आब्जर्बर बनने से अधिकांश आईएएस, आईपीएस घबराते हैं। उन्हें लगता है खामोख्वाह चुनाव के लफड़े में क्यों पड़े। मगर कुछ किस्मती अफसरों को आब्जर्बर के तौर पर बढ़ियां लोकसभा इलाका मिल जाता है। मसलन, छत्तीसगढ़ से डेढ़ दर्जन से अधिक अफसरों की चुनावी ड्यूटी लगी है, उनमें संजीव झा और विनीत नंदनवार खुशकिस्मत निकले। संजीव को अलीबाग जैसे रमणिक इलाके का आब्जर्बर बनाया गया है तो उनसे और आगे निकल गए विनीत नंदनवार। विनीत को हिमाचल के मंडी लोकसभा क्षेत्र के आब्जर्बर की जिम्मेदारी दी गई है। मंडी में ही कुलु मनाली आता है। और उससे भी बड़ा यह कि फिल्म अभिनेत्री कंगना राणावत वहां से चुनाव लड़ रही है। कंगना ने नामंकन का पर्चा भरने के बाद ट्वीट किया, उसमें विनीत भी कलेक्टर के डायस के बगल में बैठे दिखाई पड़ रहे हैं। विनीत स्मार्ट और हैंडसम तो हैं हीं...कंगना ने खासतौर से उन्हें अपनी फोटो में कवर किया। चलिये, किस्मत अपनी-अपनी।

डिरेल्ड कलेक्टर, बड़ी चुनौती-1

छत्तीसगढ़ में कुछ सालों से कलेक्टरों की भूमिका और पदनाम बदल गया है। खासकर, जब से डीएमएफ आया...कलेक्टरों का औरा और प्रतिष्ठा बुरी तरह डिरेल्ड हुई है। अब वे डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट नहीं, डिस्ट्रिक्ट माईनिंग फंड अफसर हो गए हैं। नई सरकार में भी कलेक्टरों का सूरते-अंदाज नहीं बदला। काम काज एक ढेला का नहीं, न्यौता भोज में खाना परोसों और खुद बैठकर खाते फोटो खिंचवाओ। चुनाव में आयोग ने खूब पैसे दे दिए वोटरों को जागृत करने के लिए। इसका फायदा कलेक्टरों ने अपनी ब्रांडिंग के लिए कर ली। बाकी जितना पैसा खर्चा हुआ, उस हिसाब से पता कर लीजिए...किस जिले में वोटिंग का कितना परसेंटेज बढ़ा?

डिरेल्ड कलेक्टर, बड़ी चुनौती-2

छत्तीसगढ़ में कलेक्टरों का सिस्टम पिछले 10 साल में बुरी तरह ध्वस्त हो गया है। सिर्फ कागजों में काम, सोशल मीडिया में फोटो और उपर से कोई निर्देश आ गया तो उसे पूरा कर दो। उसके अलावा आम आदमी का कोई माई-बाप नहीं। मगर अब विष्णुदेव सरकार नए मोड में है। उपर से नहीं दिख रहा मगर भीतर-ही-भीतर बडे़ काम हो रहे हैं। सचिवों के साथ ही कलेक्टरों को काम पर लगाया जा रहा है। पिछले दसेक दिन में राज्य सरकार ने कई आदेश और सर्कुलर जारी किया है। प्रायवेट स्कूलों के संचालकों की मीटिंग कलेक्टरों को लेनी है और मोटी फीस से लेकर यूनिफार्म में कमीशन तथा आरटीई में एडमिशन की रिपोर्ट सरकार को भेजनी है। कलेक्टर पहले ऐसे कामों को अपनी तौहिनी समझते थे। नीचे के अफसर मीटिंग कर फोटो खिंचवा कोरम पूरा कर लेते थे। मगर अब कलेक्टरों को इस तरह की कई जिम्मेदारियां सौंपी जा रही है, जिसके अब वे आदि नहीं हैं। जाहिर है, उनकी मुश्किलें बढ़ने वाली है।

सिकरेट्री, आईजी सोते रहे...

छत्तीसगढ़ बनने के बाद रजिस्ट्री विभाग रामभरोसे चलता रहा। सिकेरट्री और आईजी सोते रहे और रजिस्ट्री अधिकारी सरकारी खजाने और इनकम टैक्स को चूना लगाते रहे। बताते हैं, पिछले 10 साल में गाइडलाइन रेट में अपने मनमर्जी से रेट कम करके अफसरों ने करीब 200 करोड़ करोड़ का फटका लगा दिया। जबकि, सरकारी रेट को कम करने का उन्हें अधिकार ही नहीं। आखिर, जिस रेट को कई विभागों के आईएस एचओडी की कमेटी तय करती है, उसे नीचे के अधिकारी कैसे बदल सकते हैं? दरअसल, गाइडलाइन रेट कम करने के बिल्डरों और भूमाफियाओं को रजिस्ट्री लागत कम हो जाती है और एक नंबर का पैसा कम लगने पर इंकम टैक्स में बड़ी राहत मिल जाती है। रजिस्ट्री विभागों के दलालों और अधिकारियों के साथ मिलकर छत्तीसगढ़ के बिल्डर और भूमाफिया सालों से रेट कम कराने का खेला कर रहे थे और उपर में किसी को पता नहीं था। शिकायतों के बाद पड़ताल हुई तो इसका खुलासा हुआ। पंजीयन विभाग के मंत्री ओपी चौधरी ने गाइडलाइन रेट कम करने पर रोक लगा दी है। इससे रजिस्ट्री अफसरों में ही नहीं, बल्कि दलालों और बिल्डरों में खलबली मच गई है। रजिस्ट्री अधिकारियों की रात की नींद उड़ गई है। असल में, पेट पर लात से तकलीफ तो होती ही है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ के बड़े लोगों को ये चिंता क्यों खाए जा रही कि सरकार में चल किसकी रही है? काम कहां से होगा?

2. क्या नए मंत्रियों में एक नाम दुर्ग के विधायक गजेंद्र यादव का भी नाम होगा?


शनिवार, 11 मई 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: 15% निकम्मे आईएएस!

 तरकश, 12 मई 2024

संजय के. दीक्षित

15 परसेंट निकम्मे आईएएस!

मंत्रालय में हाजिरी लगाने के लिए जब से बायोमेट्रिक सिस्टम लगाने की कोशिशें शुरू हुई हैं, आईएएस अफसरों के हाथ-पांव फुल गए हैं। अफसरों की एक लॉबी प्रेशर बना रही कि किसी भी सूरत में बायोमेट्रिक वाला मामला पेंडिंग में चला जाए। इसीलिए, भांति-भांति के कुतर्क दिए जा रहे हैं...कोई आरटीआई में उनका अटेंडेंस निकाल लेगा तो हमारी फजीहत हो जाएगी...हमारे पास दो-दो, तीन-तीन प्रभार होते हैं...कभी इस आफिस में, कभी उस ऑफिस में जाना होता है तो हमारी हाजिरी कैसे लगेगी? उधर, चीफ सिकरेट्री ने रिव्यू कर जीएडी और सुशासन विभाग को गो कर दिया है। जाहिर है, चीफ सिकरेट्री जीएडी के हेड होते हैं। अफसरों को यही तकलीफ है कि सुनील कुमार जैसे तेज-तर्रार सीएस ने ऐसा कुछ नहीं किया तो अमिताभ जैन हमलोगों को क्यों फंसा रहे हैं। अलबत्ता, पूरे सिस्टम में 15 परसेंट ही ऐसे आईएएस हैं, जिनके न मंत्रालय आने का टाईम है और न जाने का। इनमें से कई 12 बजे के बाद ही मंत्रालय या इंद्रावती भवन पहुंचते हैं और तीन बजे के पहले घर पहुंचकर खाना खाकर सो जाते हैं। जिस दिन सीएस की कोई मीटिंग या फिर दिल्ली की कोई वीसी हुई तभी वे मंत्रालय में दिखेंगे वरना...। ये वे अफसर हैं, जो विधानसभा सत्र के दौरान न मंत्रालय में होते हैं और न विधानसभा में। पीए का रटारटाया जवाब मिलेगा, साब विधानसभा गए हैं। कोई काम बताइये तो टका-सा जवाब...मालूम नहीं, विधानसभा चल रहा है। जीएडी के एक अफसर ने बताया...इन 15 परसेंट शाही मिजाज वाले ब्यूरोक्रेट्स की देखादेखी 35 परसेंट अफसर और बिगड़ गए। बाकी करीब 50 परसेंट अफसर आज भी टाईम पर ऑफिस आते हैं और ईमानदारी से ड्यूटी निभाते हैं। बायोमेट्रिक उन 15 परसेंट निकम्मे अफसरों के लिए लगाया जा रहा है। वे ठीक हो जाएंगे, तो पूरा सिस्टम दुरूस्त हो जाएगा।

अफसरों से ज्यादती?

ब्यूरोक्रेसी में ही यह मानने वालों की कमी नहीं कि छत्तीसगढ़ के आईएएस सेंट्रल डेपुटेशन पर नहीं जाना चाहते क्योंकि, दिल्ली में काम करना पड़ता है। आप उंगलियों पर गिन कर देख लीजिए, पुराने समयों में पांच आईएएस भी डेपुटेशन पर नहीं होते थे। दरअसल, दिल्ली में सिकरेट्री भी बायोमेट्रिक में अपना थंब लगाते हैं। जबकि, वे राज्यों के चीफ सिकरेट्री के समकक्ष़्ा होते हैं। वहां नौ बजे दफ्तर पहुंचने का टाईम है, लौटने का नहीं। जो अफसर अभी दिल्ली से लौटकर आए हैं, उनसे आप पूछ लीजिए वहां किस तरह काम होता है। कलेक्टर लेवल के अफसरों को गाड़ी शेयर करके ऑफिस आना पड़ता है। ज्वाइंट सिकरेट्री को एक गाड़ी मिलती है। मेम साहबों और बच्चों के लिए कोई व्हीकल नहीं। जबकि, छत्तीसगढ़ में किसी भी आईएएस के पास तीन से कम गाड़ी नहीं होती। अब सुनने में आ रहा कि बायोमेट्रिक सिस्टम लगाने के बाद जीएडी गाड़ियों की पड़ताल कराने वाली है...किसके पास कितनी गाड़ियां हैं। खजाने की स्थिति को लेकर वित्त महकमा भी चिंतित है। असल में, विभागीय पुल से अफसरों को एक ही गाड़ी मिलती है, उनके विभाग में बोर्ड और निगम होते हैं, उनसे 50 हजार से लेकर 75 हजार तक किराये पर वे गाड़ियां मंगवा लेते हैं। इसका बोझ आखिर जनता पर ही पड़ता है। मगर ये जीएडी की ज्यादती होगी...दिल्ली की बात अलग है। दो इंच जमीन से उपर रहने वाले नौकरशाहों से एक तो हाजिरी लगवाई जाएगी, और उपर से गाड़ियों की निगरानी, तो फिर क्या मतलब उनके आईएएस बनने का? आखिर कुछ ही लोग तो जनसेवा या कुछ कर गुजरने के लिए आईएएस बनते हैं, बाकी को आप देख ही रहे हैं...।

मंत्री होने का मतलब?

नेताजी लोग मंत्री आजकल जनसेवा के लिए लोग नहीं बनते। शपथ लेते ही एकमात्र ध्येय बन जाता है लूट-खसोट। 24 घंटे इसी गुनतारे में...कहां से कितना निकाल लें। अब देखिए न, पिछली सरकार के एक मंत्रीजी विभाग में लूटपाट मचाए ही जिस जिले का भी उन्हें प्रभारी मंत्री बनाया गया, उनके बेटे ने वहां डीएमएफ के सप्लाई का पूरा काम ले लिया था। इससे भी मन नहीं भरा तो मंत्रीजी ने अपने जिले में बंगलादेशी रिफ्यूजियों को सरकार से मिली जमीन को भी छल-कपट करके हड़प लिया। दरअसल, 1971 में सरकार ने जब जमीन दिया था, तब वह इलाका निर्जन था। मगर 50 साल में अब वो शहर के प्राइम लोकेशन पर आ गया है। कई बड़े बिल्डरों की नजरें उन जमीनों पर थी। मगर ऐसे काम की जगह पर पहला अधिकार मंत्रीजी का बनता था। सो, उन्होंने...। जबकि, बंगलादेश से आए लोगों को जीवन यापन के लिए इस शर्त पर जमीन दी गई थी कि सिर्फ गंभीर बीमारी के इलाज के केस में ही जमीन बेच सकते हैं। मगर मंत्रीजी के पास पावर था...उनके लोगों ने जोर-जबर्दस्ती कर डॉक्टरों से गंभीर बीमारी का पर्चा बनवाया। फिर आनन-फानन में कलेक्टरों से अनुमति दिलवा अपने रिश्तेदारों के नाम पर रजिस्ट्री करवा ली। चूकि बड़ा लैंड स्कैम था, इसलिए ईडी को शिकायत की गई। ईडी ने पिछले दिनों पूर्व मंत्री के यहां छापा मारा। छापे में काफी कुछ मिल भी गया है। यही वजह है कि कांग्रेस पार्टी ने पूर्व मंत्री को लोकसभा का टिकिट नहीं दिया। और बीजेपी इसी इंतजार में थी कि टिकिट दे कि जमीन घोटाला ओपन कर दिया जाए।

बीजेपी की वाशिंग मशीन

उपर में जिस पूर्व मंत्री के लैंड स्कैम का जिक्र किया गया है, वे जोगीजी के प्रिय रहे ही, पिछली सरकार में भी काफी प्रभावशाली रहे। मगर अब घपले-घोटाले में इस कदर घिर गए हैं कि उन्हें जेल जाने से बचने का एक ही रास्ता दिख रहा है बीजेपी प्रवेश। इसके लिए उनके करीबी लोगों ने कोशिशें भी शुरू कर दी है। बीजेपी के पास भी उस इलाके में कोई ढंग का नेता नहीं है। एक हैं तो उन्हें कोई पसंद नहीं करता। ऐसे में, बीजेपी को भी उस क्षेत्र में एक नेता की जरूरत है, जो जमीन पर रहे...महत्वाकांक्षी न हो। मगर दिक्कत यह है कि पूर्व मंत्री का बीजेपी प्रवेश हुआ तो छत्तीसगढ़ में भी वाशिंग मशीन से दाग धोने वाला आरोप मुखर हो जाएगा।

आईएएस की जांच

आचार संहिता के दौरान ट्रांसफर-पोस्टिंग के फेर में पड़े एक आईएएस की मुश्किलें बढ़ सकती है। सरकार के निर्देश पर स्पेशल सिकरेट्री चंदन कुमार ने जांच शुरू कर दी है। प्रारंभिक विवेचना में कई गंभीर तथ्य उजागर हुए हैं। ट्रांसफर में नियम-कायदों की धज्जियां उड़ा दी गई। देखना है, जांच रिपोर्ट मिलने के बाद सरकार इस मामले में क्या कदम उठाती है।

निर्वाचन आयोग में पोस्टिंग-1

फर्स्ट वीक में आचार संहिता समाप्त होने के बाद सरकार को पहली पोस्टिंग राज्य निर्वाचन आयुक्त की करनी होगी। यह पद पिछले सात महीने से खाली है। कायदे से संवैधानिक पदों को खाली नहीं रखा जा सकता। उपर से तब, जब छत्तीसगढ़ में चार महीने बाद नगरीय निकायों के चुनाव होने हैं। रिटायर आईएएस ठाकुर राम सिंह आखिरी राज्य निर्वाचन आयुक्त थे। वे कार्यकाल का रिकार्ड बनाकर पिछले साल नवंबर में विदा हुए। उन्हें रमन सिंह की सरकार ने इस आयोग में ताजपोशी की थी। मगर आश्चर्यजनक तौर पर भूपेश बघेल सरकार ने छह साल का टेन्योर पूरा होने के बाद छह-छह महीने का तीन एक्सटेंशन दिया। चूकि नवबंर में विधानसभा चुनाव के आचार संहिता के दौरान उनका तीसरा छह महीने का एक्सटेंशन पूरा हुआ, इसलिए सरकार उनका कार्यकाल बढ़ा नहीं सकी। और तब से यह पद खाली है। इस साल नवंबर में सूबे में नगरीय सरकार का चुनाव है। सितंबर से चुनावी प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। इससे पहले मतदाता सूची तैयार किया जाएगा। लोकल चुनाव में सबसे बड़ा टास्क मतदाता सूची को फायनल करना होता है। सबसे अधिक इसी में खेला होता है, सारे नेता चाहते हैं अपने वार्डों में बाहरी लोगों का नाम जुड़वा दें, जिससे उनकी जीत सुनिश्चित हो जाए। चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन को इसके लिए कुछ करना चाहिए, ताकि शीघ्र इस पद पर नियुक्ति हो जाए। वरना, जितनी देरी होगी, मुश्किलें उतनी बढ़ेंगी।

निर्वाचन आयोग में पोस्टिंग-2

राज्य निर्वाचन आयुक्त का पद वैसे तो मुख्य सचिव रैंक का है। अधिकांश राज्यों में रिटायर चीफ सिकरेट्री को इस पद पर बिठाया जाता है। आईएएस अधिकारियों को स्टेट इलेक्शन कमिश्नर बनाने का मतलब यह होता है कि जिलों में कलेक्टर पोस्टिंग के दौरान उन्हें चुनाव कराने का अनुभव होता है। इसलिए, समझा जाता है कि नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव कराने में उन्हें दिक्कत नहीं जाएगी। बहरहाल, छत्तीसगढ़ में सिर्फ एक बार रिटायर चीफ सिकरेट्री शिवराज सिंह राज्य निर्वाचन आयुक्त रहे हैं। वरना, प्रमुख सचिव और सचिव स्तर से रिटायर आईएएस ही इस पद पर बिठाए गए। सबसे पहले डॉ0 सुशील त्रिवेदी, उनके बाद पीसी दलेई और फिर ठाकुर राम सिंह। इस समय सरकार को दिक्कत जाएगी कि इस समय कोई ब्यूरोक्रेट्स रिटायर नहीं है। हालांकि, पीसी दलेई ने रिटायरमेंट से छह महीने पहले वीआरएस लेकर इस पद पर अपनी पोस्टिंग करा ली थी। अब देखना है कि आगे रिटायर होने वाले कोई अफसर वीआरएस लेता है या फिर पहले रिटायर किसी अफसर को यह जिम्मेदारी मिलती है।

जीत का रिकार्ड

छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों में किसको कितनी सीट मिलेगी, इसको लेकर अलग-अलग दावे किए जा रहे हैं। मगर एक दावा दिलचस्प है...वह है छत्तीसगढ़ से जीत का रिकार्ड बनने का। रायपुर लोकसभा से बीजेपी के बृजमोहन अग्रवाल सबसे बड़ी लीड अगर ना भी मिले तो भी टॉप फाइव में रहने की अत्यधिक संभावना है। इस दावे में दम इसलिए प्रतीत हो रहा कि बृजमोहन जीत के लिए चुनाव नहीं लड़े। शुरू से ही उन्होंने लीड पर टारगेट किया। उनके समर्थकों का कहना है कि भैया का जादू कांग्रेसी इलाकों में भी इस बार दिखेगा। क्योंकि, कांग्रेस के भीतर भी मोहन भैया का अच्छा प्रभाव है। फिर टिकिट मिलते ही माउथ पब्लिसिटी चालू हो गई थी, भैया रिकार्ड मतों से जीतेंगे। फिर, सिर्फ रायपुर दक्षिण ही नहीं, पूरे रायपुर में उनका प्रभाव है। जिनको वे मदद किए हैं या शादी-समारोहों, गमी में शरीक हुए हैं, उनके विधानसभा सीट से बाहर भी ऐसे लोगों की तादात काफी है। सो, ऐसे लोग बृजमोहन के लिए कार्यकर्ता से भी बढ़कर काम किए हैं। बृजमोहन के समर्थकों का कहना है, रायपुर संसदीय सीट पर करीब 17 लाख वोटिंग हुई है...मोहन भैया करीब सात लाख लीड से जीतेंगे। चलिए, चार जून को पता चलेगा कि रायपुर से बृजमोहन क्या वाकई जीत का रिकार्ड बनाएंगे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव का रिजल्ट 9/2 रहेगा या 11/0?

2. इन चर्चाओं में कितनी सत्यता है कि लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद चार नए मंत्री शपथ लेंगे?


शुक्रवार, 10 मई 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: वोटर चुप, परसेप्शन हॉवी...

 तरकश, 5 मई 2024

संजय के. दीक्षित

वोटर चुप, परसेप्शन भारी

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव 2023 के दौरान जिस तरह परसेप्शन हॉवी रहा, कुछ इसी तरह की स्थिति लोकसभा चुनाव में भी दिखाई पड़ रही है। विधानसभा चुनाव में कोई भी यह कहने की स्थिति में नहीं था कि बीजेपी सरकार बना लेगी। बीजेपी के पैरोकार भी यही कहते रहे...38 से 40 तक पहुंच जाएगी तो बाकी काम अमित भाई साब कर लेंगे। अलबत्ता, बीजेपी 50 क्रॉस कर जाएगी...पार्टी के बड़े नेताओं को ऐसा कभी सपना भी नहीं आया होगा। सबसे बड़ा परसेप्शन किसानों और छत्तीसगढ़ियावाद को लेकर था। तब ये बोलने वालों की भी कमी नहीं थी कि कांग्रेस को 68 नहीं, पर 50 से 53 सीट मिलने में कोई दिक्कत नहीं होगी। मगर जब नतीजे आए तो बड़े-बड़े सियासी पंडितों के पूर्वानुमान फेल हो गए तो परसेप्शन धरे रह गए। लोकसभा चुनाव में भी परसेप्शन हॉवी है। लोग उंगलियों पर बता दे रहे...इन सीटों पर लड़ाई है, ये-ये सीटें टफ हैं। जबकि, वोटर खामोश है। दरअसल, अब के वोटर मुखर नहीं, मगर किसको वोट देना है, वह पहले से मन बना लेता है। 2018 के ऐन विधानसभा चुनाव के समय कांग्रेस पार्टी के भीतर जिस तरह की ऑडियो, वीडियो की घटनाएं हुई थीं, उससे लगा था कि कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ सकती है। मगर रिजल्ट आया तो 15 साल की सरकार वाली बीजेपी 15 सीट पर सिमट गई। कहने का आशय यह है कि मुठ्ठी भर लोग जैसा परसेप्शन बनाते हैं, छत्तीसगढ़ में वह नतीजों में नहीं उतर पाता। लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी को भी यकीन नहीं था कि उसे 11 में नौ सीटें मिल जाएगी। सो, यह मानकर चलिए के नतीजे परसेप्शन से इतर आएंगे।

कार्यकर्ता नहीं, पब्लिक

बीजेपी भले ही पांच साल तक सत्ता से बाहर रही। मगर लोकसभा चुनाव में जो स्थिति दिखाई पड़ रही है, उस पर बीजेपी के एक सीनियर नेता ने दिलचस्प टिप्पणी की। उन्होंने कहा, जनता ही कार्यकर्ता की भूमिका निभा रहे हैं। दरअसल, 15 साल सत्ता में रही बीजेपी के कार्यकर्ता अभी भी जमीन पर नहीं आए हैं। पार्टी में कार्यकर्ताओं की नई पौध आई नहीं, और पुराने इतने मोटा गए हैं कि उन्हें अपने काम-धंधे से फुरसत नहीं। लिहाजा, बड़े नेता चुनाव में जरूर मेहनत कर रहे हैं, मगर कार्यकर्ताओं में वो बात नहीं, जैसा बीजेपी कैडर में होता है।

अफसरों का दम

गुड गवर्नेंस का काम उपर से प्रारंभ होना चाहिए...तभी वह प्रभावशाली ढंग से नीचे लागू हो पाएगा। इस बात का संदर्भ छत्तीसगढ़ के मंत्रालय में अधिकारियों, कर्मचारियों की हाजिरी दर्ज करने बायोमेट्रिक सिस्टम लगाए जाने से है। सरकार की मंशा अच्छी है। छत्तीसगढ़ को बने 24 बरस हो गए। मगर दुर्भाग्य की बात यह कि उपर से लेकर नीचे तक...सूबे में वर्किंग कल्चर नहीं बन पाया। न मंत्रालय में अफसर सही समय पर आते हैं और न जिलों में कलेक्टर, एसपी। जब बड़े जिले होते थे तो कलेक्टर, एसपी सहज रूप से उपलब्ध होते थे मगर अब एक-एक, दो-दो ब्लॉकों के जिले होने के बाद भी कलेक्टर, एसपी को ढूंढते रह जाइयेगा। वे सिर्फ सप्लायरों और ठेकेदारों के लिए सुलभ होते हैं। खैर बात मंत्रालय और बायोमेट्रिक सिस्टम की। मंत्रालय में पहले भी बायोमेट्रिक लगाने का प्रयास हुआ मगर कर्मचारियों के विरोध की वजह से उसका क्रियान्वयन नहीं हो पाया। सुनील कुमार जैसे अब तक के सबसे तेज-तर्रार चीफ सिकरेट्री के समय अफसर अपने आप समय पर आने लगे थे मगर कर्मचारियों का वे भी कुछ नहीं कर पाए। दरअसल, मंत्रालय के कर्मचारियों का तगड़ा यूनियन हैं। कह सकते हैं...अधिकारी भी उनसे घबराते हैं। क्योंकि, वे सबका कच्चा-चिठ्ठा उनके पास हैं। अब सरकार ने बायोमेट्रिक लगाने का फैसला किया है, तो अफसरों को इसके लिए दम दिखाना होगा। क्योंकि, काम और प्रदेश का विकास तो बाद की बात है। पहले मुलाजिम आफिस में टाईम पर आएं तो। और जब प्रदेश के सबसे बड़े पावर सेंटर में बायोमेट्रिक सिस्टम नहीं लग पाएगा तो फिर नीचे के आफिसों के लिए उसे कैसे जायज ठहराया जा सकता है?

मार्कफेड नहीं, मालफेड

मार्कफेड के एक एमडी होते थे टीएस छतवाल। राज्य निर्माण के दौरान पावरफुल पदों पर रहे। पीडब्लूडी सिकरेट्री भी। मगर 2004 में हमने इस शीर्षक से एक खबर लगाई थी...बोरियों के सरदार। छतवाल के खिलाफ जांच हुई। डीई भी। इंक्रीमेंट वगैरह रोकने का भी कुछ हुआ था। इस पुराने दृष्टांत को लिखने का मकसद यह बताना है कि मार्कफेड में घपले-घोटाले आज से नहीं सालों से चल रहे हैं। अतीत में कई आईएएस अधिकारी मार्कफेड के एमडी रहते जांच के शिकार हुए। उन्हें विभागीय जांच का सामना करना पड़ा। ये जरूर है कि एमडी रहे किसी अफसर की गिरफ्तारी पहली बार हुई है। मनोज सोनी की। मार्कफेड के बारे में अधिकांश लोगों को पता नहीं होगा कि छत्तीसगढ़ का यह सबसे बड़ा और बोरियो में नोट बटोरने वाला बोर्ड है। साल में 50 हजार करोड़ से ज्यादा का कारोबार होता है। इस बोर्ड के दो-एक एमडी को छोड़ दें, तो अधिकांश यहां से 25-50 करोड़ बटोर कर ही निकले। सीधा सा फंडा है... प्रमोटी आईएएस गिरे हालत में 25 खोखा और डायरेक्ट वाले 40 से 50। ट्रांसपोर्ट महकमे की तरह मार्कफेड में बोरियों में पैसा आता है। ईडी की रिपोर्ट को मानें तो राईस मिलरों के प्रोत्साहन राशि की आधी किस्तों में ही 175 करोड़ का खेला हो गया तो धान खरीदी, बारदाना यानी बोरियो की खरीदी, ट्रांसपोर्टिंग समेत मार्कफेड में ऐसे कई बड़े होल हैं, जहां से बोरियों में पैसे निकलते हैं। कायदे से मार्कफेड का नाम बदलकर मालफेड कर देना चाहिए। याने मार्केटिंग फेडरेशन नहीं, माल फेडरेशन इसका सही नाम होगा।

नया रायपुर गुलजार-1

नई सरकार आने के बाद नया रायपुर की बसाहट की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। सुना है, मंत्री, मिनिस्टर अगले छह महीने में नया रायपुर शिफ्थ हो जाएंगे। वहीं, कई अफसर भी अब नया रायपुर जा रहे हैं। एसीएस सुब्रत साहू इसी हफ्ते नवा रायपुर जा रहे हैं। नया रायपुर में सबसे पहले मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी रीना बाबा कंगाले गई थीं। उनके बाद आईपीएस सदानंद। फिर आरपी मंडल गए। मंडल तब चीफ सिकरेट्री थे। उन्होंने काफी प्रयास किया मगर बाकी अफसरों को ले जाने में सफल नहीं हो पाए। नवा रायपुर में आर. संगीता, सुनील जैन, चंदन कुमार, पुष्पेंद्र मीणा, नीलम नामदेव एक्का जैसे कई अफसर शिफ्ट हो चुके हैं। जाहिर है, नया रायपुर के गुलजार होने को लेकर अब उम्मीदें बन रही हैं।

नया रायपुर गुलजार-2

छत्तीसगढ़ में बीजेपी की नई सरकार आने के बाद एनआरडीए ने नया रायपुर को आईटी हब बनाने की कोशिशें शुरू कर दी है। अभी पिछले दिनों दो आईटी कंपनियों के साथ सरकार का एमओयू हुआ, उनके लिए सीबीटी बिल्डिंग में फर्निशिंग का काम प्रारंभ हो चुका है। खबर है, एकाध महीने में इन दोनों आईटी कंपनियों में वर्किंग शुरू हो जाएगी। दोनों में करीब एक हजार इम्प्लाई की भर्ती की जा रही है। यकबयक एक हजार लोगों की आमदरफ्त बढ़ने से निश्चित तौर पर नया रायपुर की रौनक बढ़ेगी।

दूसरे आईपीएस अफसर

राज्य सरकार की सर्विस रिव्यू कमेटी की अनुशंसा पर अभी तक दो आईएएस और तीन आईपीएस अधिकारियों को भारत सरकार द्वारा फोर्सली रिटायर किया गया है। आईएएस में बीएल अग्रवाल और अजयपाल सिंह। आईपीएस में केसी अग्रवाल, एएम जूरी और जीपी सिंह। भारत सरकार के फैसले के खिलाफ केसी अग्रवाल और जीपी सिंह ने कैट से फरियाद की और दोनों के पक्ष में फैसला भी आया। राज्य पुलिस सेवा से आईपीएस प्रमोट हुए केसी अग्रवाल ने कैट के जरिये धमाकेदार वापसी करते हुए सरगुजा के आईजी भी बने। अब नंबर जीपी सिंह का है। वे डायरेक्ट आईपीएस हैं। नौकरी भी करीब पांच साल बची है। जाहिर है, बीजेपी गवर्नेमेंट में उनकी पोस्टिंग भी ठीकठाक ही मिलेगी।

अफसरों की तफरीह

छत्तीसगढ़ सरकार अब उच्छृंखलता बरतने वाले आईएएस, आईपीएस अधिकारियों को लेकर गंभीर हो गई है। दरअसल, अभी कुछ दिनों पहले दो जिलों के कलेक्टर, एसपी रायपुर में एक साथ मॉल में तफरीह करते पाए गए। जीएडी और पुलिस महकमे से पता किया गया तो किसी ने भी इसकी सूचना वरिष्ठ अफसरों को नहीं दी थी। याने बिना बताए मुख्यालय छोड़ा था। इसके बाद सरकार हरकत में आई। जीएडी ने आदेश जारी किया कि बिना अवकाश या सूचना दिए मंत्रालय या विभाग प्रमुख रायपुर नहीं छोड़ेगा। कलेक्टर, एसपी को जिला मुख्यालय छोड़ने से पहले सीनियर अफसरों को सूचित करना होगा। अगर अवकाश पर जा रहे तो चीफ सिकेरट्री से अनुमति लेनी होगी। यही सिस्टम भी है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. लोकसभा चुनाव में 3 ही मंत्रियों की उपस्थिति जान पड़ रही, बाकी मंत्री अपने क्षेत्र में ही क्यों सिमट गए हैं?

2. क्या वजह है कि इस बार पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह छत्तीसगढ़ पर खास फोकस किए हैं?