शनिवार, 26 जुलाई 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: अफसरों को सरकार की वार्निंग

 तरकश, 27 जुलाई 2025

संजय के. दीक्षित

अफसरों को सरकार की वार्निंग

34 हजार में स्टील का जग, एक हजार का चप्पल और एक लाख की टीवी...सरकारी खरीदी के इस एपिसोड ने आम आदमी को चौंकाया ही, सरकार को भी हिला कर रख दिया। हालांकि, इसके बाद सरकार हरकत में आई...ताजा अपडेट यह है कि सीएम सचिवालय ने सभी सचिवों और डायरेक्टर्स-कमिश्नरों को व्हाट्सएप मैसेज भेज कड़ी चेतावनी दी है। सचिवों और विभागाध्यक्षों से दो टूक कहा गया है कि फलां साहब ने बोला...फलां जी ने ऐसा करने कहा...नहीं चलेगा। आप खरीदी प्रक्रिया से लेकर उसके नियमों पर कड़ी नजर रखेंगे। और आगे से कोई भी गड़बड़ी होगी तो उसके लिए सीधे सचिव और एचओडी जिम्मेदार होंगे। जिला स्तर पर अगर कोई खरीदी हो रही तो निगरानी का दायित्व कलेक्टरों का होगा। अब देखना है कि इस चेतावनी से आएं-बाएं होने वाली सरकारी खरीदी पर कितना अंकुश लगता है?

वसूली का निज सचिव

सीएम सचिवालय ने सचिवों और एचओडी को चेतावनी जारी कर दिया मगर जब तक मंत्रियों के निज सचिवों को टाईट नहीं किया जाएगा, तब तक इसका कोई खास असर नहीं होगा। दरअसल, छत्तीसगढ़ में सरकारी खरीदी का नया ट्रेंड शुरू हो गया है। सचिवों का जो हिस्सा बनता था, वह मिल जा रहा मगर उसकी पूरी मॉनिटरिंग मंत्रियों के बंगले से हो रही है। 10 में से कम-से-कम आठ मंत्रियों के निज सचिव बंगले से पूरा खेल कर रहे हैं। बंगले से ही सप्लायरों से डील होती है। दो-एक मंत्री तो अपने निज सचिवों के जाल में फंसकर अपनी बरसों से बनी-बनाई छबि को तार-तार कर लिया है। खटराल निज सचिवों ने ऐसा चस्का लगा दिया कि पूछिए मत! आखिर, आई हुई लक्ष्मीजी को ठुकराने का साहस सबमें होता नहीं। ऐसे में, मंत्रियों के स्टॉफ की मनमानी बढ़ेगी ही। बात मिलियन की है...निज सचिवों पर सरकार ने अगर लगाम नहीं लगाया तो सरकार के साथ कई मंत्रियों की छबि धूल-धूसरित होगी। अब भला बताइये, अटलजी जैसे बीजेपी के प्रातः स्मरणीय नेता की प्रतिमा में कमीशन मांगा जाए तो फिर तो फिर इसके बाद कुछ बचता है क्या?

खरीदी का खेल

1000 का चप्पल और एक लाख की टीवी पर सोशल मीडिया में खूब ट्रेंड हुआ...मगर यह कुछ भी नहीं है। 2020 से लेकर 2022 तक आत्मानंद अंग्रेजी स्कूलों में डीएमएफ से खरीदी में सूबे के कलेक्टरों ने जो खेल किया, उसके सामने ये कुछ भी नहीं है। कई जिलों में सप्लायर लाल हो गए...25 हजार का डिजिटल बोर्ड कलेक्टरों ने डेढ़ से दो लाख में खरीदा था। इसी तरह फर्नीचर से लेकर यूनिफार्म, स्कूलों का रिनोवेशन के काम में कलेक्टरों ने करोड़ों पिट डाला। ये अलग बात है कि जो पकड़ा गया वह चोर, जो बच गया ईमानदार। सरकार आत्मानंद अंग्रेजी स्कूल की सिर्फ खरीदी की जांच करा दें तो कई आईएएस अधिकारियों की मुश्किलें बढ़ जाएंगी।

कमिश्नर सिस्टम में रोड़ा?

छत्तीसगढ़ में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू करने गृह विभाग ने पुलिस महकमे से रिपोर्ट मंगाई थी। फर्स्ट फेज में रायपुर और भिलाई-दुर्ग को मिलाकर पुलिस कमिश्नरेट बनाने का प्लान था। रायपुर और दुर्ग पुलिस ने इसके लिए सरकार को विस्तृत रिपोर्ट भेज दी थी। मगर चार महीने से ज्यादा हो गया, रायपुर में पुलिस कमिश्नर बिठाने कोई सुगबुगाहट नहीं है। हालांकि, पहले भी कई बार रायपुर और बिलासपुर में पुलिस कमिश्नर बिठाने की बातें हुई मगर उसका क्रियान्वयन नहीं हो पाया। अलबत्ता, पिछली सरकार ने कमिश्नर सिस्टम लागू-लागू करते-करते रायपुर रेंज को दो हिस्सों में बांट दिया था। दिसंबर 2024 में सरकार बदली तो दोनों को एक किया गया। बहरहाल, एमपी गवर्नमेंट ने भोपाल, इंदौर और जबलपुर में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू कर दिया है। छत्तीसगढ़, बिहार जैसे बहुत कम राज्य बच गए हैं, जहां अभी तक पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू नहीं हो पाया है। बहरहाल, रायपुर अगर पुलिस कमिश्नरेट बन गया तो आईजी स्तर का कमिश्नर होगा, वहीं एसपी स्तर के कम-से-कम चार डिप्टी पुलिस कमिश्नर होंगे। राजधानी बनने के बाद रायपुर में 25 साल में जिस तरह किसिम-किसिम के क्राइम बढ़े हैं, उसमें कमिश्नर सिस्टम अब जरूरत बन गया है। जाहिर है, पुलिस में रिफार्म की दिशा में भी यह बड़ा प्रयास होगा।

अस्पताल की मौत!

ये शीर्षक आपको अटपटा लग सकता है...अस्पताल में मरीजों की मौत होती है...अस्पताल भला कैसे मर सकता है। मगर रायपुर के डीकेएस सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल के संदर्भ में यह शीर्षक मौजूं है। बीजेपी की तीसरी सरकार के दौरान इस खाली पड़े मंत्रालय भवन को सुपरस्पेशलिटी अस्पताल बनाने का मसविदा तैयार किया गया था, उसे पढ़कर कोई भी चकित हो जाएगा। एम्स की तरह इसे डेवलप किया जाना था। इसके सिविल वर्क के लिए पीडब्लूडी ने 19 करोड़ का बजट दिया था। मगर सीजीएमएससी ने उसे नौ करोड़ में कंप्लीट कर दिया। तब सीजीएमएससी में 40 परसेंट वाला हिसाब-किताब शुरू नहीं हुआ था। बहरहाल, डीकेएस का मसविदा में स्पष्ट तौर पर लिखा था कि दिल्ली एम्स की तरह आईएएस को इस अस्पताल का प्रशासक बनाया जाएगा। देश के नामी डॉक्टरों का पैकेज की बात आई तो सिस्टम में बैठे लोगों ने कहा कि सात-आठ लाख रुपए से कम में कोई सुपरस्पेशिलिटी वाला डॉक्टर रायपुर नहीं आएगा और चूकि चीफ सिकरेट्री का वेतन ढाई लाख है, इसलिए इससे अधिक डॉक्टरों को वेतन दिया नहीं जा सकता। इस पर तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री अजय चंद्राकर भड़क गए थे। बोले, चीफ सिकरेट्री का काम अलग है और डॉक्टर का काम अलग। चीफ सिकरेट्री राज्य की योजनाओं को एक्जीक्यूट करता है और डॉक्टर लोगों की जान बचाता है। इसलिए, अच्छे डॉक्टरों को बुलाने जितना लगे उतना देकर लाया जाए। बताते हैं, इसके लिए सीएम रमन सिंह भी तैयार हो गए थे। मगर अस्पताल पूर्ण स्वरूप में आता, तब तक विधानसभा चुनाव आ गया और सरकार चली गई। इसके बाद डीकेएस को सेपरेट संस्था बनाने और आईएएस पोस्ट करने की बजाए सिस्टम ने इसका गला घोंट दिया। डीकेएस को रायपुर मेडिकल कॉलेज के डीन के अधीन कर दिया गया। अब जरा सोचिए, जो लोग आंबेडकर अस्पताल को ठीक से नहीं चला पाए, वे सुपरस्पेशलिटी को कैसे चलाएंगे। और, वही हुआ...पिछले छह साल में डीकेएस अस्पताल तड़प-तड़पकर मरने जैसा हो गया। आज की तारीख में इस सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल का कहीं कोई नाम नहीं सुनने में आता।

प्रायवेट अस्पतालों में हड़कंप

डीकेएस सुपरस्पेशलिटी के बारे में सरकार की प्लानिंग सुन प्रायवेट अस्पताल मालिक सहम गए थे। मंत्रालय से लेकर हर उस चौखट पर विरोध कराया गया, जहां से राहत मिल सकती थी। दरअसल, प्रायवेट अस्पताल की लॉबी नहीं चाहती कि कोई सरकारी अस्पताल सक्षम बने। यही वजह है कि सरकारी अस्पतालों में लाखों, करोड़ों की मशीनें तो खरीद ली जाती है मगर उसकी पेकिंग तक नहीं खोली जाती। और खुली भी तो महीने-दो महीने में कर दिया जाता है खराब घोषित। रायगढ़ निवासी मशहूर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ0 राजीव राठी इस समय दिल्ली के मैक्स अस्पताल में हैं। अपने स्टेट को लेकर वे बड़े संजीदा रहते हैं। रमन सिंह की दूसरी पारी में उनके साथ स्वास्थ्य विभाग ने कंट्रेक्ट किया था कि महीने में दो बार रायपुर आकर वे आंबेडकर में मरीजों को देख जाए। मगर प्रायवेट अस्पताल से कमीशन लेने वाले आंबेडकर हॉस्पिटल के लोग बार-बार कैथलेब को खराब कर देते थे। ऐसे में, कई बार डॉ0 राठी को उल्टे पावं दिल्ली लौटना पड़ा। आंबेडकर अस्पताल वालों का लक्षण देख डॉ0 राठी ने रायपुर आना बंद कर दिया। उधर, डीकेएस सुपरस्पेशलिटी को फेल करने में आखिरकार 2019 में कामयाबी मिल गई। स्वास्थ्य विभाग ने आदेश जारी कर डीकेएस को रायपुर डीन के अधीन कर दिया। इसके साथ ही एम्स जैसे सरकारी संस्थान बनाने की प्लानिंग भी ध्वस्त हो गई।

छोटे नवाब, फॉर्चूनर गाड़ी

एक वो भी समय था, जब सरकारी अफसरों को पोस्ट के अनुसार गाड़ी दी जाती थी। छत्तीसगढ़ बनने के बाद भी करीब 2010 तक कलेक्टर, एसपी के पास एंबेसडर कार होती थी और उनके नीचे के अधिकारियों के पास बोलेरो या स्वीफ्ट, इंडिगो जैसी गाड़ियां। मगर उसके बाद छत्तीसगढ़ की अफसरशाही में रामराज आ गया। अब आलम यह है कि गाड़ियों से आप पहचान नहीं पाएंगे कि किसमें सिकरेट्री, कलेक्टर या एसपी साहब होंगे और किसमें एसडीएम, एसडीओपी या कोई ंक्लास टू का अफसर। इन दिनों मलाईदार विभागों के क्लास टू के अफसर भी इनोवा में चलते हैं और कलेक्टर, एसपी और सिकरेट्री भी। सिस्टम में किसका ओहदा बड़ा है, किसका छोटा...सूबे में यह फर्क मिट गया है। छत्तीसगढ़ के बड़े नौकरशाहों ने अपना दिल इतना बड़ा कर लिया है कि इन छोटी-मोटी बातों से इत्तेफाक नहीं रखते। फिलहाल, शीर्षक के हिसाब से बात छोटे नवाब, फार्चूनर गाड़ी की तो, यह मसला ट्राईबल विभाग से जुड़ा है। जाहिर है, यह विभाग हाल में 32 हजार का जग खरीदने को लेकर परम कुख्याती हासिल कर चुका है। इस विभाग के कुछ असिस्टेंट कमिश्नर 35 लाख की फॉचॅूनर गाड़ियों में चलते हैं। वे बकायदा कलेक्टर की मीटिंगों में भी जाते हैं। इससे समझा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ में क्या चल रहा है।

फायनेंस का ब्रेकर खतम

हालांकि, वित्त विभाग का नियम है कि सरकारी अफसरों के लिए 10 लाख से अधिक की गाड़ियां नहीं खरीदी जा सकती। इससे अधिक की लेनी हो तो फायनेंस से स्वीकृति लेनी होगी। डीएस मिश्रा के फायनेंस सिकरेट्री रहते तक अफसर उनके आगे-पीछे चिरौरी करते रहते थे कि कृपा होने पर वे पंसदीदा गाड़ी खरीद सकें। मगर अब भारत सरकार की इतनी योजनाएं आ गईं कि फायनेंस से पूछने की कोई जरूरत नहीं। जो भी गाड़ी किराये से ले लो, बिल विभाग वहन करेगा। कई जिलों के कलेक्टर, एसपी जैसे अथॉरिटी माने जाने वाले अफसर भी किराये की गाड़ियों में आपको दिख जाएंगे। हालांकि, वित्त सचिव मुकेश बंसल ने कुछ महीने पहले किराये की गाड़िया हायर करने पर बंदिशें लगाई थीं मगर पता नहीं ऐसा क्या हुआ कि उन्होंने अपना आदेश वापिस ले लिया।

आईपीएस की पार्टी

अरसे बाद रायपुर के पुलिस ऑफिसर्स मेस में आईपीएस की फेमिली पार्टी हुई। रायपुर में पोस्टेड सारे आईपीएस के साथ ही राजधानी के आसपास के जिलों के कप्तानों को भी इसमें बुलाया गया। आईएएस की तो अक्सर कोई-न-कोई पार्टी होती रहती हैं। मंत्रालय वाले महीने में एक लंच का आयोजन कर लेते हैं...साल में आईएएस कांक्लेव भी हो जाता है। मगर आईपीएस अधिकारी इस तरह की गैदरिंग न होने से दुखी रहते थे। चलिये आईएएस अधिकारियों की ये शिकायत दूर हुई।

छत्तीसगढ़ से उपराष्ट्रपति?

यूपीए शासनकाल में उप राष्ट्रपति के लिए छत्तीसगढ़ के मोतीलाल वोरा का नाम चर्चा में था। मगर बाद में कांग्रेस ने वोट बैंक की दृष्टि से हमीद अंसारी को उप राष्ट्रपति बनाना मुनासिब समझा। इस समय जगदीप धनखड़ के इस्तीफे से देश की दूसरी सबसे बड़ी कुर्सी खाली है। भारत निर्वाचन आयोग ने उप राष्ट्रपति चुनाव के लिए प्रॉसेज प्रारंभ कर दिया है। रिटर्निंग ऑफिसर की नियुक्ति हो गई है। बहरहाल, छत्तीसगढ़ के पीसीसी अध्यक्ष दीपक बैज ने सात बार के सांसद तथा तीन राज्यों के राज्यपाल रहे रमेश बैस को इस चेयर पर बिठाने का पत्र लिखा है। हालांकि, विशुद्ध रूप से बैज द्वारा छोड़ा गया यह सियासी शगूफा है। मगर यह भी सत्य है कि उप राष्ट्रपति बनने लायक छत्तीसगढ़ में दो बड़े फेस तो हैं। इनमें से एक की किस्मत तो बड़ी तगड़ी है। वैसे भी राजनीति में कब किसके सितारे बुलंद हो जाए और कब बूझ जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता।

'टाटा' को झटका

ग्राम पंचायतों में नेटवर्किंग का काम करने वाली टाटा कंपनी को बड़ा झटका लगा है। भारत नेट परियोजना के तहत उसे पांच हजार से अधिक गांवों में इंटरनेट के लिए फाइबर बिछाना था। मगर 1600 करोड़ पेमेंट हो जाने के बाद भी पता चल रहा कि 50 के करीब गांव में ही इंटरनेट फंक्शन कर रहा है। टाटा कंपनी के खिलाफ 'चिप्स' ने तगड़ा एक्शन लेते हुए न केवल टेंडर निरस्त कर दिया है बल्कि 170 करोड़ की बैंक गारंटी जब्त कर ली है। जाहिर है, टाटा जैसी कंपनी का इतने बड़े स्तर पर कहीं बैंक गारंटी सीज नहीं हुई होगी। असल में, टाटा नेटवर्किंग कंपनी के अधिकारियों ने काम ही ऐसा किया...क्रेडिबल कंपनी का रेपो खुद से खराब कर दिया।

मंत्रिमंडल विस्तार

जिस तरह जगदीप धनखड़ ने उप राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देकर पूरे देश को चौंका दिया, उसी तरह भारतीय जनता पार्टी के नेता विष्णुदेव कैबिनेट का विस्तार की सूचना देकर लोगों को चकित कर दें तो बात अलग है। वरना, मंत्रिपरिषद विस्तार का मामला अब ठंडे बस्ते में ही समझिए। इस समय स्थिति यह है कि मंत्रिमंडल विस्तार पर सरकार से लेकर बीजेपी तक कोई बात करने तैयार नहीं है। मंत्री पद के दावेदारों को अब थोड़ी-बहुत उम्मीद बची है तो बिहार चुनाव से। बिहार में इस साल नवंबर में विधानसभा चुनाव है। यादव वोटरों पर डोरे डालने बीजेपी गजेंद्र यादव को मंत्री बना सकती है। संघ पृष्ठभूमि के गजेंद्र का नाम शुरू से चर्चाओं में है। सियासी पंडितों का कहना है कि गजेंद्र के भरोसे मंत्रिमंडल विस्तार हो गया तो ठीक है, नहीं तो फिर 10 मंत्रियों के भरोसे ही सब कुछ चलता रहेगा...जैसा कि इस समय चल रहा है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सिकरेट्री या प्रिंसिपल सिकरेट्री रैंक के आईएएस को स्टेट कैपिटल रीजन का सीईओ बनाया जाएगा, आप इस लायक तीन अफसरों का नाम बताइये?

2. आगरा यूनिवर्सिटी से छत्तीसगढ़ का क्या कनेक्शन है कि वहां के दो-दो प्रोफेसर यहां कुलपति बन गए?

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