रविवार, 14 सितंबर 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: तरकश: 17 बरस की अविराम यात्रा

 Chhattisgarh Tarkash 2025: 15 सितंबर, 2025

संजय के. दीक्षित

तरकश: 17 बरस की अविराम यात्रा

2008 में हरिभूमि समाचार पत्र से प्रारंभ हुआ साप्ताहिक स्तंभ ’तरकश’ ने 17 बरस पूरे कर लिए हैं...वो भी अविराम। जाहिर है, किसी भी स्तंभ के लिए सबसे जरूरी निरंतरता होती है। 2018 के लास्ट में महीने भर के भीतर दो निकटतम परिजनों को खोने की वजह से सिर्फ तीन हफ्ते का ब्रेक आया। वरना, रायपुर में रहे या रायपुर से बाहर, प्रयास हमेशा रहा कि तरकश अनवरत जारी रहे। इसका श्रेय छत्तीसगढ़ के सुधि पाठकों के भरोसा और जुड़ाव को जाता है। 2018 के पहले विरले कभी ब्रेक आया भी तो पाठकों के घनघनाते फोन और मैसेज ने प्रेरित किया कि कठिन हालातों में भी ’तरकश’ कभी रुकना नहीं चाहिए। और वैसा ही हुआ। 2008 में तरकश प्रारंभ हुआ, उसके बाद चार विधानसभा चुनाव हुए। सरकारें बदली, सिस्टम बदला। मगर स्तंभ न रुका, न तेवर बदला...और न राग-द्वेष को कभी स्थान मिला। बहरहाल, किसी एक अखबार में किसी कॉलम की 17 बरस की यात्रा बहुत अधिक नहीं, तो कम भी नहीं कही जा सकती। इसके लिए हरिभूमि पत्र और उसके प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी को आभार, जिन्होंने विश्वासपूर्वक अपना प्लेटफार्म उपलब्ध कराया...आभार छत्तीसगढ़ के लाखों पाठकों का भी...जिनकी बदौलत तरकश का सफर अविराम जारी है।

आखिरी कप्तान, आखिरी आईजी

रायपुर जिला अंग्रेजी शासन काल के पहले अस्तित्व में आ गया था। कलेक्ट्रेट से लगा रायपुर का टाउन हॉल का निर्माण 1860 में हुआ। उससे पहले रायपुर में एसपी बैठने लगे थे। इसके बाद पिछले तीन-चार दशक की बात करें तो मध्यप्रदेश के दौर में रायपुर में विजय रमण से लेकर सीपीजी उन्नी, रुस्तम सिंह, सरबजीत सिंह जैसे एसपी रहे तो छत्तीसगढ़ बनने के बाद डीएम अवस्थी, अशोक जुनेजा कप्तान बने, जो बाद में डीजीपी तक पहुंचे। इस समय रायपुर जिला पुलिस के लिए खुशी का पल है तो इमोशनल होने का भी। रायपुर जिला पुलिस अब कमिश्नरेट में तब्दील होने जा रहा है। शायद एक नवंबर से रायपुर में पुलिस कमिश्नर बैठने लगेंगे। खुशी इसलिए कि रायपुर पुलिस का रुतबा बढ़ने वाला है और इमोशनल उन यादों को लेकर कि जिला पुलिस और एसपी अब अतीत की बात हो जाएगी। जाहिर है, डॉ0 लाल उमेद सिंह रायपुर जिले के आखिरी पुलिस कप्तान होंगे। अगले महीने 31 अक्टूबर के बाद यह पद समाप्त हो जाएगा। हालांकि, रायपुर आईजी अमरेश मिश्रा भी आखिरी आईजी होंगे। रायपुर पुलिस रेंज भी अब खतम हो जाएगा। उसकी जगह रायपुर ग्रामीण या फिर महासमुंद रेंज हो सकता है।

चीफ सिकरेट्री और संयोग-1

चीफ सिकरेट्री के रिटायर होने की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। यह स्तंभ प्रकाशित होने के बाद अमिताभ जैन के एक्सटेंशन समाप्त होने में सिर्फ 14 दिन बच जाएंगे। अगला चीफ सिकरेट्री कौन बनेगा? इस यक्ष प्रश्न का जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है। हैं तो सिर्फ अटकलें और संभावनाएं। ये अवश्य है कि 94 बैच की एडिशनल चीफ सिकरेट्री ऋचा शर्मा अब मजबूत दावेदार के तौर पर उभर रही हैं। ऋचा का नाम पहले नहीं था। मगर मंत्रालय के गलियारों में उनकी चर्चाएं शुरू हो गई हैं। हालांकि, होना सब कुछ दिल्ली से है मगर ऋचा के नाम पर अगर मुहर लगी तो वे छत्तीसगढ़ की चौथी लोकल चीफ सिकरेट्री होंगी। सबसे पहले फरवरी 2014 में विवेक ढांड को मुख्य सचिव बनने का मौका मिला था। उनके बाद जनवरी 2018 में अजय सिंह आए, वे बिलासपुर के थे। और नवंबर 2020 में अमिताभ जैन सीएस बने, वे भी लोकल हैं। अब अगर ऋचा को मौका मिला, तो यह संख्या चार हो जाएंगी। बता दें, ऋचा छत्तीसगढ़ के जांजगीर जिले की रहने वाली हैं, उनके पिता रायपुर में जेलर रहे।

चीफ सिकरेट्री और संयोग-2

चीफ सिकरेर्ट्री की दौड़ में 94 बैच के मनोज पिंगुआ का नाम भी शामिल हैं। दावा है कि 30 जून को पावर हाउस से अगर फोन नहीं आया होता तो मनोज मुख्य सचिव बन गए होते। मनोज अगर चीफ सिकरेट्री बनेंगे तो तीसरे मेरिटोरियस स्टूडेंट होंगे, जो सूबे की सबसे बड़ी प्रशासनिक कुर्सी तक पहुंचेंगे। पड़ोसी राज्य झारखंड के रहने वाले मनोज बोर्ड परीक्षा में मेरिट में आ चुके हैं। रांची के नामी आवासीय विद्यालय नेतरहाट से उन्होंने अपनी स्कूलिंग की है। उनसे पहले अजय सिंह और अमिताभ जैन भी मेरिटोरियस स्टूडेंट रहे हैं। खैर, संयोग तो सुब्रत साहू के साथ भी बनेगा। दूसरे नंबर के सबसे सीनियर आईएएस अधिकारी सुब्रत के पिता ओडिसा के चीफ सिकरेट्री रहे हैं। अगर सुब्रत को अवसर मिलेगा तो फिर चीफ सिकरेट्री का बेटा चीफ सिकरेट्री बनेगा। यहां अमिताभ जैन के बाद सबसे सीनियर आईएएस रेणु पिल्ले की चर्चा भी लाजिमी है। रेणु पिल्ले के पिता आंध्रप्रदेश के बड़े तेज तर्रार आईएएस थे। अगर रेणु का नंबर लगा तो आईएएस की बेटी बनेंगी मुख्य सचिव। अमिताभ जैन के बाद रेणु पिल्ले छत्तीसगढ़ की सबसे सीनियर आईएएस अधिकारी होंगी।

रेखाओं का खेल

चीफ सिकरेट्री के लिए वैसे तो नाम आधा दर्जन आईएएस अधिकारियों के चल रहे हैं। मगर एडीबी में मनीला में पोस्टेड विकास शील और भारत सरकार में कार्यरत अमित अग्रवाल का नाम अटकलों में इस समय उपर चल रहे हैं। दोनों छत्तीसगढ़ कैडर के अधिकारी हैं। विकास शील 94 बैच के आईएएस हैं। सीएस बनाने से पहले उन्हें मनीला से वापिस बुलाना होगा। वैसे 93 बैच के आईएएस अमित अग्रवाल अगर छत्तीसगढ़ आएं तो 94 बैच डिस्टर्ब नहीं होगा। फिर एसीएस लेवल पर चेंज की जरूरत नहीं पड़ेगी। मगर मिलियन डॉलर का सवाल है, डीएस मिश्रा, एमके राउत, सीके खेतान सीएस नहीं बन पाए और अशोक विजयवर्गीय, सुनील कुजूर को मौका मिल गया। जाहिर है, सीएस और डीजीपी बनने के लिए रेखाओं का खेल बड़ा होता है। जिसके हाथ में किस्मत की लकीरें चकमदार और गुरू प्रबल होगा, उसको कोई रोक नहीं पाएगा।

मंत्री कमजोर क्यों?

राजकाज के मामले में छत्तीसगढ़ के मंत्रियों का पारफर्मेंस कैसा है, इसकी रिपोर्ट सरकार के पास होगी। मगर राजनीतिक तौर पर मंत्रियों की बैकफुट वाली स्थिति सियासी पंडितों को हैरान कर रही है। एक तो विष्णुदेव कैबिनेट नए मंत्रियों से भरा हुआ है। बोलने-बालने में दो-एक फायर ब्रांड मंत्री थे या आगे बढ़कर खेलने वाले...वे आश्चर्यजनक तौर पर खुद को समेट लिए हैं। बाकी को कहां क्या हो रहा, इससे कोई वास्ता नहीं। विपक्ष के हमलों का बीजेपी को सत्ताधारी पार्टी की तरह जवाब देना चाहिए, वो सिरे से नदारत है। उल्टे डेढ़ साल पहले 72 सीट से आधे पर आ गई कांग्रेस पार्टी का इतना जल्द उठ खड़े होना बीजेपी के रणनीतिकारों के माथे पर बल डाल रहा है। कुल मिलाकर आशय यह है कि सत्ताधारी पार्टी में वो औरा और कांफिडेंस नहीं दिखाई पड़ रहा, जिसकी आम आदमी उम्मीद कर रहा है। काम होना, न होना अलग बात है। सत्ता खेमे का इकबाल तो दिखना चाहिए। इसके लिए मंत्रियों और नेताओं को एक्स्ट्रा बुस्टप देने की जरूरत है।

नए पुलिस रेंज का नाम?

रायपुर में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू करने के बाद महासमुंद, धमतरी, बलौदाबाजार और गरियाबंद जिले के लिए एक अन्य पुलिस रेंज का गठन किया जाएगा। पिछली सरकार के समय रायपुर ग्रामीण रेंज बनाया गया था। डॉ0 आनंद छाबड़ा और अजय यादव खुफिया चीफ के साथ सिर्फ रायपुर जिले वाले रेंज के आईजी थे। उससे पहले रमन सरकार के दौरान मुकेश गुप्ता रायपुर के सिंगल जिले वाले रेंज के आईजी रहे। पिछली सरकार में धमतरी, गरियाबंद, महासमुंद और बलौदाबाजार जिले के लिए शेख आरिफ को आईजी बनाया गया था। इसी तरह अब पुलिस कमिश्नर सिस्टम प्रभावशील होने के बाद रायपुर पुलिस रेंज का अस्तित्व हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा। चार जिलों का पुलिस रेंज सरकार किस नाम से बनाएगी, इसका अभी संकेत नहीं मिला है। मगर सबसे उपयुक्त महासमुंद होगा। महासमुंद में अगर रेंज बनेगा तो फिर वहां से धमतरी, गरियाबंद और बलौदा बाजार को कंट्रोल करना आसान होगा। रायपुर से लगा होने की वजह से आईपीएस अधिकारियों में महासमुंद को लेकर क्रेज भी रहेगा।

पुलिस कमिश्नर कमेटी और विरोधाभास

छत्तीसगढ़ के वीवीआईपी जिला जशपुर के साथ टॉप के तीनों जिलों रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग में स्टेट कैडर से प्रमोटेड आईपीएस एसएसपी हैं। बड़े जिलों की बात करें तो बस्तर, सरगुजा, रायगढ़ और कोरबा में ही डायरेक्ट आईपीएस को एसपी बनाया गया है। मगर ए केटेगरी के तीन जिलों में से एक में भी डायरेक्ट आईपीएस नहीं हैं। पुलिस मुख्यालय के वरिष्ठ अधिकारी भी मानते हैं कि स्टेट में आरआर वाले आईपीएस ने अपने आप को बुरी कदर डिरेल्ड कर लिया है...इम्पॉर्टेंट जिलों में पोलिसिंग के लिए स्टेट वाले इन तीन-चार अफसरों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। मगर पुलिस कमिश्नर सिस्टम के लिए कमेटी बनी तो उसमें स्टेट पुलिस वाले एक को भी शामिल नहीं किया गया। सातों के सातों डायरेक्ट आईपीएस। जबकि, बेसिक पोलिसिंग की बातें आती हैं, उसमें स्टेट वालों का तजुर्बा आरआर वाले भी मानते हैं। तो क्या स्टेट वाले आईपीएस की पोलिसिंग पर भरोसा है मगर उनके ज्ञान पर नहीं? यह सवाल तो उठता ही है।

बीजेपी-कांग्रेस भाई-भाई

बिलासपुर की पॉलीटिक्स गजबे की है। पार्टी भले ही अलग-अलग, मगर काम और चाल दोनों लगभग बराबर। वहां कांग्रेस की सरकार आती है तो बीजेपी वालों को कोई दिक्कत नहीं होती और बीजेपी की सरकार आती है तो कांग्रेस वाले मस्त रहते हैं। पिछली कांग्रेस सरकार में एक विधायकजी के नेतृत्व में थाने में अपनी ही सरकार के मुखिया का मुर्दाबाद का नारे लगवा दिए गए तो बीजेपी सरकार में बीजेपी से जुड़े लोग झंडा लेकर इस हफ्ते एसएसपी के ऑफिस में हंगामा मचा आए। सत्ताधारी पार्टी को इतना तो पता होना ही चाहिए कि जिले का कलेक्टर, एसपी मुख्यमंत्री का प्रतिनिधि होता है। बड़े नेताओं और मंत्रियों को कैडर के लिए रिफ्रेशर कोर्स चलाते रहना चाहिए।

अंत में दो सवाल आपसे?

1. बलौदा बाजार कांड में कलेक्टर को क्लीन चिट देकर डीई खतम कर दी गई तो फिर सीएस अमिताभ जैन के लिखने के बाद भी एसपी को क्यों नहीं?

2. क्या ये सही है कि छत्तीसगढ़ का सीएस बनाने के लिए आईएएस विकास शील को मनीला से वापिस बुलाने भारत सरकार ने पत्र मेल कर दिया है?

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