रविवार, 30 सितंबर 2012


तरकश

सरकारी गोपिकाएं

रमन सरकार की सेकेंड इनिंग में गोपाल गोयल कांडा और मदरेणा टार्इप्ड नेताओं की बढ़ती संख्या ने सत्ताधारी पार्टी के रणनीतिकारों को चिंता में डाल दिया है। बिलासपुर संभाग के एक राजनेता का महिलाओं के प्रति बढ़ता अनुराग भी पार्टी से छिपा नहीं है। तभी तो, विभिन्न सूत्रों से पता लगाया जा रहा है, नेताजी के इस शौक से अगले चुनाव में पार्टी को क्या नुकसान हो सकता है। असल में, परेशानी की वजह यह है कि नेताजी की जितनी गोपिकाएं हैं, अधिकांश सरकारी मुलाजिम हैं और कइ तो अहम ओहदा संभाल रही हैं। कोर्इ आबकारी विभाग की है, तो कोइ राजस्व महकमे की। गोपिकाओं की सूची में जिला पंचायत, जनपद पंचायत की सदस्या भी हैं। और ऐसे में, कुछ हो गया तो बात का बतंगड़ हो जाएगा। सो, खुफिया एजेंसियों को भी सतर्क किया गया है। खुफिया अफसरों के पास फिलहाल चार महिलाओं के नाम आ गए हंै, जिनसे नेताजी के घनिष्ठ रिश्ते हैं। अंदर की खबरों को मानें, तो खुफिया रिपोर्ट मिलने के बाद नेताजी को सरकारी गोपिकाओं से दूर रहने के लिए कहा जा सकता है।

दांव बेकार

सीएम के सिकरेट्री और सूबे के सबसे ताकतवर अधिकारी अमन सिंह को घेरने का दांव बेकार हो गया। उनके खिलाफ हार्इकोर्ट में लगवार्इ गर्इ बिजली घोटाले की पीआर्इएल न केवल खारिज हो गर्इ बलिक उसे तथ्यहीन होने की वजह से याचिकाकर्ता को डांट भी खानी पड़ गर्इ। चर्चा है, एक राजनीतिज्ञ का प्लान था, अमन पर प्रेशर बनाकर एक बार अपने आब्लीगेशन में ले लो.....उसके बाद कोर्इ काम रुकेगा नहीं। शायद यही वजह है, पीआर्इएल एक्सेप्ट होने के बाद कुछ नेताओं ने अमन से संपर्क करने की कोशिश की.....उम्मीद थी, वे शरणागत हो जाएंगे। मगर ऐसा हुआ नहीं। अमन ने बात करने से दो टूक इंकार कर दिया। राजधानी में यह मानने वालों की कमी नहीं कि इस घटनाक्रम से अमन और मजबूत हुए हैं।  

अब, गुस्से में

अमन सिंह के खिलाफ हार्इकोर्ट में पीआर्इएल लगाकर सुर्खिया बटोरने वाले सहसराम नागवंशी अब उन लोगों से बेहद खफा हैं, जो उन्हें आगे करके हाथ खींच लिया। पता चला है, नागवंशी अब समझौते के मूड में है और इसके लिए कुछ लोगों के जरिये यह प्रस्ताव देने की भी खबर है कि जिन लोगों ने उनका कंधा इस्तेमाल किया, उनसे बातचीत का रिकार्डेड टेप सौंप देंगे। वाकर्इ ऐसा हो गया, तो कर्इ बड़े चेहरे बेनकाब हो जाएंगे। खासकर एक शीर्ष नेताजी। हालांकि, छनकर जो बात सामने आ रही है, उसमें कुछ आरटीआर्इ एकिटवस्टों ने नेताजी को गलत आंकड़ों के जाल में फंसा दिया। बिजली बोर्ड का जितना बजट नहीं, उससे कर्इ गुना अधिक का घोटाला बताया गया। मसलन, 100 करोड़ की एक ही खरीदी आर्डर की कापी एमडी आफिस से लेकर परचेज और स्टोर से ली गर्इ और उसे चार सौ करोड़ की खरीदी बता दिया। यहीं नहीं, अमन सिंह 2009 में उर्जा सचिव बने थे मगर उन पर 2005 से 10 तक की खरीदी के आरोप थोपे गए। अब, लोगों को अचरज हो रहा, तेज और चतुर, सुजान नेताजी, इतना कमजोर दांव कैसे चल दिए।  

मत चूको

सरकार अपनी है, तो भर्इ, मत चूको.....जो मिलता है, अंदर आने दो.....लगता है, सत्ता के नजदीकी कुछ लोगों ने इसे अपना सूत्र वाक्य बना लिए हैं। सत्ता के भीतर खासा रौब रखने वाले एक डाक्टर साब ने तो हद कर दी। राजधानी के कचहरी चौक के पास खालसा स्कूल के सामने चार-पांच साल पहले गरीबों के लिए दुकानें बनार्इ गर्इं थी, डाक्टर साब ने जुगाड़ लगाकर एक दुकान अपने नाम करा लिया। आरटीआर्इ में इसका खुलासा होने के बाद लोग हैरान हैं। पार्टनरशीप में डाक्टर साब को एक कोल ब्लाक आबंटन का हाल ही में पर्दाफाश हुआ है। याने कोल ब्लाक से लेकर गरीब और बेरोजगारों के लिए बनी दुकानें भी डाक्टर साब को। है ना कमाल।

राम-राम

आश्चर्य किन्तु सत्य है, पीडब्लूडी के पूर्व र्इएनसी पीके जनवदे को कापी में राम-राम लिखने के लिए हर महीने 96 हजार रुपए वेतन मिल रहा हैं। इसके सिवा उनके पास कोर्इ काम नहीं है। मंत्रालय में सुबह से शाम तक सिर्फ राम-राम। सरकार ने कुछ महीने पहिले, जनवदे को र्इएनसी से राम-राम कर दिया था। इसके बाद, उन्हें निर्माण कार्यों के क्वालिटी कंट्रोल की कमान सौंपी गर्इ। मगर आलम यह है, महीने में एकाध फाइल भी उनके पास नहीं आती। एक वो दिन भी था, जब जनवदे के पास फुरसत नहीं था। पावर के चकाचौंध में अपना-पराया का मतलब भूलने लगे थे। लेकिन अब...? जनवदे को किसी ने कहा है, रेड इंक से राम-राम लिखो, हो सकता है, रामजी बेड़ा पार करा दें। ठीक है, जनवदेजी लगे रहिये। लाइन ठीक पकड़ी है, आपने। भाजपा की सरकार है। राम का कुछ तो असर पड़ेगा।

विडंबना

कृषि आधारित राज्य में लोगों और किसानों की जागरुकता का जरा हाल देखिए। nai  कृषि नीति बनाने से पहले सरकार ने राय जानने के लिए लोगों से सुझाव मांगे थे। यह जानकर आपको हैरत होगी, 28 जिलों से सिर्फ 11 सुझाव मिले। जबकि, किसानों के नाम पर नेतागिरी करने वाले और एनजीओ चलाने वालों की बात करें तो उनकी संख्या कर्इ गुना अधिक होगी। मगर कृषि नीति से किसे मतलब है। फालतू की चीजों में नाहक क्यों दिमाग खराब करें।  

हफते का एसएमएस

राज ठाकरे को बैंक के अंदर आता देख कैशियर भागकर मैनेजर के पास गया और बोला, सर, वो फिर आ गया है, जो मराठी में छपा हुआ नोट मांगता है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. रिटायर होने के बाद संविदा में काम कर रहे एक पुलिस अधिकारी का नाम बताइये, जो रायपुर से विधानसभा टिकिट के जुगाड़ में लगे हैं?
2. लंबी सेवा के बाद आर्इएएस अवार्ड होने वाले 11 अफसरों में से आप कितने के नाम आप पहले से जानते हैं?

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