मंगलवार, 7 जुलाई 2015

तरकश, 5 जुलाई


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राहू और केतू की वक्रदृष्टि

लगता है, छत्तीसगढ़ कैैडर के आईएएस के लिए 2015 कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। एक के बाद एक एपीसोड होते जा रहे हैं। प्रोटोकाल के चक्कर में एक युवा आईएएस की न केवल भद पिटी बल्कि इस चक्कर में राज्य सरकार की भी किरकिरी हो गई। नानघोटाला सामने है ही। दो-दो आईएएस इसके लपेटे में आ गए। चीफ मिनिस्टर के साथ 10 साल काम किए डीएस मिश्रा को किस तरह रेवन्यू बोर्ड में भेजा गया। रही-सही कसर आईएफएस अफसर की डीपीसी ने पूरी कर दी। शीर्ष अफसर पर जिस तरह आरोप लगाए गए हैं, उससे ब्यूरोक्रेसी सन्न है। 2015 पहला साल होगा, जिसमें आईएएस अफसर आईपीएस से बुरी तरह सहमे हुए हैं। आलम यह है कि फोन पर बात करने में कतरा रहे हैं। वरना, आईपीएस अफसर ही मानते थे कि छत्तीसगढ़ में आईपीएस तीसरे नम्बर की सर्विस हो गई है। आईएएस, आईएफएस के नीचे। 2015 में अभी छह महीने बाकी है। बिलासपुर के ज्योतिषि विलसन लाल का कहना है, 2015 में राहू और केतू की दृष्टि के चलते छत्तीसगढ़ के प्रशासनिक हलको में काफी विवाद होंगे। खासकर आईएएस में। आईएएस, आईपीएस, आईएफएस के बीच झगड़े भी बढ़ेंगे।

हेलिकाप्टर का चक्कर

नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद उनके मंत्री रेगुलर फ्लाइट से चल रहे हैं। अपन ने देखा ही, कोयला एवं उर्जा मंत्री पीयूष गोयल किस तरह इंडिगो के विमान से रायपुर आए। जबकि, कोल इंडिया और एनटीपीसी के पास खुद के प्लेन हैं। अलबत्ता, रायपुर के एक दिग्गज नेता इसलिए खफा हो गए हैं कि बलौदा बाजार जाने के लिए उन्हें हेलिकाप्टर नहीं मिला। 29 जून को बलौदा बाजार में सीएम का कार्यक्रम था। उनके साथ कुछ मंत्री भी गए थे। नेताजी को यही अखर गया। इसका गुस्सा उन्होंने न्यू रायपुर के सेंट्रल पार्क के लोकार्पण समारोह का बहिष्कार कर निकाला। लोकार्पण के पत्थर में सीएम के बाद दूसरे नम्बर पर नाम होने के बाद भी नेताजी कार्यक्रम में नहीं पहुंचे। उल्टे चीफ सिकरेट्री को फोन लगाकर सुना भी डाला कि एनआरडीए ने उन्हें कार्यक्रम में प्रोपरली निमंत्रित नहीं किया। हालांकि, एनआरडीए के अफसरों का कहना है, इतने सीनियर और लगातार निर्वाचित हो रहे नेता को भला इगनोर कैसे किया जा सकता है। बकायदा, उन्हें सूचित किया गया था। मगर मामला कहीं पर निगाहें, कहीं पर….हो तो क्या किया जा सकता है।

किस्मत अपनी-अपनी

लगातार सातवीं बार लोकसभा में पहुंचे सूबे के सीनियर लीडर रमेश बैस को भले ही लाल बत्ती नहीं मिली। मगर उनके अनुज श्याम बैस को तीसरी बार लाल बत्ती गाड़ी में चलने का मौका मिल गया। पहले, आरडीए का चेयरमैन रहे। दूसरी पारी में बीज विकास निगम और थर्ड टाईम भी इसी विभाग में रिपीट हो गए। हालांकि, सरकार और संगठन ने तय किया था कि दो बार वालों को अबकी चांस नहीं मिलेगा। इस चक्कर में सुभाष राव, अशोक शर्मा का नाम कट गया। लेकिन, बैस अपवाद निकले। किस्मत अपनी-अपनी।

डबल संतोष

टूरिज्म बोर्ड में डबल संतोष हो गए हैं। आईएएस संतोष मिश्रा पहले से एमडी थे, सरकार ने अब संतोष बाफना को चेयरमैन बनाकर भेज दिया है। देखना दिलचस्प होगा कि दोनों सहनाव मिलकर किस तरह बोर्ड को चलाते हैं।

धमाकेदार आगाज

फारेस्ट मिनिस्टर महेश गागड़ा ने पीसीसीएफ नियुक्ति प्रकरण पर बोल्ड बयान देकर यह मैसेज दे दिया है कि वे बाकी आदिवासी मंत्रियों की तरह नहीं रहेंगे। महीेने भर पहिले मंत्री बने गागड़ा ने बेबाकी से कहा, नए पीसीसीएफ के बारे में उन्हें किसी ने नहीं बताया….बताना चाहिए था।

अंदर की बात

लाल बत्ती के लिए सत्ताधारी पार्टी के नेताओं को शायद और प्रतीक्षा करनी पड़ती। मगर सीएम के दिल्ली विजिट के चक्कर में 30 जून की देर रात लिस्ट का ऐलान करना पड़ गया। असल में, 1 जुलाई को सीएम को दिल्ली जाना था। दिल्ली से लौटकर अगर लिस्ट घोषित की जाती तो मैसेज यह जाता कि आलाकमान से रायशुमारी करने के बाद डाक्टर साब ने लाल बत्ती बांटी है। सरकार ऐसा नहीं चाहती थी। सो, आनन-फानन में तय किया गया कि रात में ही लिस्ट जारी कर दी जाए। सीएम हाउस का स्टाफ रात 10 बजे हरकत में आया। और, 10.50 बजे सूची मीडिया को भेज दी गई। कुछ नेता तो सोने चले गए थे। बधाई के लिए फोन आने पर उनके घर वालों ने जगाया।

भल्ला की भूल

सीनियर आईएफएस अनूप भल्ला की एक भूल ने उनका पूरा कैरियर खराब हो गया। पत्नी से तलाक के पेपर में उन्होंने एक अफसर का जिक्र कर दिया था। पत्नी से लंबे समय तक चले विवाद के बाद भल्ला ने तलाक के लिए कोर्ट में जो पेपर समिट किया था, उसमें लिखा था कि एक अफसर के चलते उनकी जिंदगी नर्क हो गई है। इसके बाद उनके बुरे दिन की शुरूआत हो गई। नवंबर 2013 में डीपीसी में उनका प्रमोशन ओके हो गया था। मगर जीएडी ने उनका आर्डर जारी नहीं किया। उल्टे, उन्हें चूल्हा खरीदी कांड में चार्जशीट इश्यू कर दिया। आईएफएस अफसरों का भी मानना है कि भल्ला प्रैक्टिल नहीं हैं। एके बोवाज, बीएन द्विवेदी, सबके कुछ-न-कुछ मामले थे। हिसाब-किताब करके आज वे पीसीसीएफ बन गए और भल्ला….?

रास्ता साफ

2002 के चर्चित फूड पार्क घोटाले में फंसे 82 बैच के आईएएस आरसी सिनहा का प्रमोशन का रास्ता अब साफ हो गया है। भारत सरकार ने उनकी पदोन्नति पर 30 जून तक रोक लगा दी थी। यही वजह है कि पिछले 10 साल से वे सिकरेट्री थे। जबकि, उनके जूनियर अजय सिंह और एनके असवाल एसीएस बन गए हैं। बहरहाल, सिनहा को प्रींसिपल सिकरेट्री बनाने की तैयारी शुरू हो गई है। यह देखना दिलचस्प होगा कि वे एसीएस बन पाते हैं या नहीं। क्योंकि, पीएस बनाना राज्य सरकार के हाथ में है। लेकिन एसीएस की डीपीसी के लिए भारत सरकार के प्रतिनिधि को बुलाना होगा। सिनहा का रिटायरमेंट भी इसी महीने है। इससे पहले, नारायण सिंह के साथ भी कुछ इसी तरह का केस था। मालिक मकबूजा कांड के चलते उनका भी प्रमोशन ड्राप हो गया था। इसके बाद वे हवाई जहाज जिस तरह से उडता है, वे देखते-ही-देखते सिकरेट्री से पीएस फिर एसीएस बन गए थे। मगर तब नारायण के रिटायरमेंट में टाईम था।

तीसरी शक्ति

संजय श्रीवास्तव को रायपुर विकास प्राधिकरण का चेयरमैन बनाने के पीछे सरकार की मंशा भले ही सक्रिय और जुझारू नेता को मौका देना हो मगर इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि संजय के पावरफुल होने से रायपुर में तीसरे शक्ति केंद्र का अभ्युदय होगा। रायपुर में अभी दो मंत्रियों के बीच जोर-आजमाइश चलती रहती है। संजय के विधानसभा और मेयर का टिकिट काटने में दोनों ने ताकत झोंक दी थी। सो, वे इस बात को भूले तो होंगे नहीं। रायपुर इंजीनियरिंग कालेज से एमटेक करने के बाद राजनीति में किस्मत आजमाने आए संजय 2003 में ही टिकिट के प्रबल दावेदार थे। मगर लखीराम अग्रवाल के करीबी होने का लाभ राजेश मूणत को मिल गया। अरसे बाद अब उन्हें मौका मिला है, तो जाहिर है अपनी जमीन मजबूत करेंगे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. पीसीसीएफ एए बोवाज की नियुक्ति के लिए कांग्रेस के एक दिग्गज नेता ने भी जमकर जोर लगाया था क्या?
2. कांग्रेस के नए पदाधिकारियों में अजीत जोगी के लोगों को भी शामिल करके संगठन खेमे ने क्या मैसेज देने की कोशिश की है?

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