19 जुलाई
कहीं पे निगाहें…..
जीएडी सिकरेट्री निधि छिब्बर को भारत सरकार ने पांच साल के लिए डिबार कर दिया है। अब वे पांच साल तक भारत सरकार में डेपुटेशन के लिए पात्र नहीं होंगी। छिब्बर का मार्च 2014 में ज्वाइंट सिकरेट्री की पोस्टिंग का आर्डर हुआ था। मगर राज्य सरकार ने उन्हें रिलीव नहीं किया। केंद्र में अपाइंटमेंट का आर्डर निकलने के बाद ज्वाईन नहीं करने पर पहले भी दो आईपीएस के खिलाफ कार्रवाई हो चुकी है। सो, निधि को बख्शने का सवाल ही नहीं था। बहरहाल, सूबे में किसी आईएएस के डिबार होने का संभवतः पहला मौका है। इसके खिलाफ निधि ने कैट की शरण ली हैं। मजे की बात यह है कि उन्होंने जीएडी याने सामान्य प्रशासन विभाग को भी पार्टी बनाया है, जिसमें वे और उनके पति विकासशील खुद सिकरेट्री हैं। हालांकि, इसमें कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना वाला मामला ज्यादा लगता है। जीएडी का आईएएस सेल कंप्लीटली चीफ सिकरेट्री के अधीन होता है। जाहिर है, निधि को दिल्ली न भेजने का फैसला सीएस का था। निधि ने जीएडी को पार्टी बनाया है, तो आप समझ सकते हैं…..ब्यूरोक्रेसी के दिन ठीक नहीं चल रहे हैं।
जय हो
कुछ दिनों से हावी हो रहे आईपीएस लाबी को आईएएस लाबी ने आखिरकार, झटका दे दिया। तमाम कोशिशों के बाद भी आईपीएस ध्रुव गुप्ता की मंत्रालय में पोस्टिंग नहीं हो सकी। जबकि, फायनेंस में उन्हें डिप्टी सिकरेट्री बनाने के लिए नोटशीट चल चुकी थी। मगर आईएएस के प्रेशर में कोशिशें परवान नहीं चढ़ सकीं। सरकार ने डा0 कमलप्रीत सिंह को स्पेशल सिकरेट्री फायनेंस बनाकर घ्रुव का एपीसोड क्लोज कर दिया। ऐसे में, आईएएस लाबी का खुश होना लाजमी है।
ब्यूरोक्रेट्स और लेखन
ब्यूरोक्रेट्स और लेखन में गहरा नाता रहा है। देश के कई नौकरशाह लिखते रहे हैं या फिर रिटायर होने के बाद लेखन के क्षेत्र में आए। छत्तीसगढ़ में 12 साल से सीएम डा0 रमन सिंह के अहम रणनीतिकार की भूमिका संभाल रहे प्रिंसिपल सिकरेट्री टू अमन सिंह अब लेखन के फील्ड में भी उतर गए हैं। 16 जुलाई को महीने में दूसरी बार इकोनोमिस टाईम्स जैसे रिनाउन्ड अंग्रेजी डेली ने एडिट पेज पर, अट्रेक्टीव इंवेस्टमेंट-हार्ड सेल, इंडियाज स्टेट्स, शीर्षक से उनका आर्टिकल छापा तो के्रंद्र सरकार के कई नामचीन हस्तियों ने उन्हें मैसेज कर कंग्रेेट किया। बहरहाल, अमन सिंह के लेखन के क्षेत्र में आने से अधिक महत्वपूर्ण है, इसके लिए टाईम निकालना। वे जिस रोल में है, सांस लेना मुश्किल होता है। ऐसे में, व्यस्तता को कोसने की बजाए टाईम मैनेजमेंट उनसे सीखना चाहिए।
सियासी इफ्तार
आखिर, इसे सियासी चतुराई ही तो कहनी चाहिए…..अजीत जोगी की इफ्तार पार्टी में भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव पहुंचे मगर देर रात। तब तक पार्टी की रौनक खतम हो गई थी। मीडियाकर्मी चले गए थे। किसी भी अखबार में एक फोटो तक नहीं आई। याने पार्टी में हाजिरी भी लग जाए। और, कोई देखे भी नहीं। विशुद्ध खानापूर्ति। बघेल के साथ जितने विधायक पहुंचे, उससे कम विधायक तब सागौन बंगले में थे। याने जोगी की पार्टी में बघेल ने अपनी शक्ति भी दिखा दी। जबकि, बघेल की इफ्तार पार्टी में अजीत जोगी ने खूब रंग जमाया था। पर सियासी इफ्तार में जोगी ठगे रह गए।
तिकड़ी
विधानसभा के पावस सत्र के लिए कांग्रेस ने अबकी पूरी ताकत झोंक दी है। कई दौर की बैठकें हो चुकी है। लेकिन, सत्ताधारी पार्टी भी पीछे नहीं है। कांग्रेसियों पर जवाबी गोला दागने की कमान तीन मंत्रियों पर रहेगी। प्रेमप्रकाश पाण्डेय, अजय चंद्राकर और राजेश मूणत। बाकी मंत्री पीछे से इनकी सपोर्ट करेंगे। उधर, कांग्रेस के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि उसके पास हमलावर दस्ता नहीं है। उनके अधिकांश बड़े नेता चुनाव हार गए। इसके चलते पिछले सत्रांे में, कई गंभीर इश्यू होने के बाद भी कांग्रेस सरकार को ढंग से घेर नहीं पाई। और, ना ही कोई बड़ी जांच का ऐलान हो पाया। दूसरी पारी में रविंद्र चैबे, नंदकुमार पटेल, मोहम्मद अकबर, धर्मजीत सिंह जैसे धुरंधर थे। इसलिए, सत्ताधारी पार्टी हावी नहीं हो पाती थी। अब वो बात नहीं रही। नेता प्रतिपक्ष शालीनता से बात रखते हैं। सत्यनारायण शर्मा और भूपेश बघेल जैसे एक-दो को छोड़कर अधिकांश में वाकपटुता की कमी है। हालांकि, अबकी कांग्रेस ने खासी तैयारी की है। हारे हुए पुराने नेताओं की अगुआई में विधायकों को ट्रेनिंग दी जा रही है। सो, इस बार सबकी निगाहंे कांग्रेस पर टिकी है।
बस, पांच दिन?
विधानसभा का पावस सत्र वैसे तो 20 से लेकर 31 जुलाई तक याने 10 दिन का है। मगर पांच दिन से अधिक चलने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। 20 और 21 जुलाई, तो नान और भल्ला के नाम समर्पित होगा। 22 को अनुपूरक बजट पेश किया जाएगा। 23 को सरकार इसे पास कराएगी। और, संभवतः 24 को शाम सत्रावसान हो जाए। दरअसल, इस सत्र में काम भी ज्यादा नहीं है। अनुपूरक बजट के साथ सिर्फ तीन विधेयक हैं। एकाध बढ़ सकता है। फिर, सरकार रोज, इस्तीफा दो, इस्तीफा दो, क्यों सुनना चाहेगी।
भड़के मंत्री
राजधानी के आयल फैक्ट्री ब्लास्ट में तीन मजदूरों की मौत के बाद घटना स्थल का जायजा लेने पहुंचे लेबर मिनिस्टर भैयालाल राजवाड़े को इंडस्ट्री हेल्थ विभाग के अफसरों ने आंखों में धूल झोंकने की कम कोशिशें नहीं की। राजवाड़े ने बिना लायसेंस के फैक्ट्री चलने पर सवाल किया तो डिप्टी डायरेक्टर ने कहा, सर! ये अपने विभाग के अंतर्गत नहीं आता। इस पर मंत्री इस कदर भड़के कि लेबर विभाग के अफसरों को माफी मांगनी पड़ी।
अंत में दो सवाल आपसे
1. नान मामले को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने में किस लाबी का हाथ माना जा रहा है?
2. देवजी भाई के सरकार से खफा होने की वजह पाठ्य पुस्तक निगम जैसे छोटे कारपोरेशन का चेयरमैन बनाना है या कोई और बात है?
2. देवजी भाई के सरकार से खफा होने की वजह पाठ्य पुस्तक निगम जैसे छोटे कारपोरेशन का चेयरमैन बनाना है या कोई और बात है?
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