विधानसभा का बजट सेशन जैसे-जैसे समापन की ओर बढ़ रहा है, कलेक्टरों की दिल की धड़कनें तेज होती जा रही है। सत्र 31 मार्च को खतम होगा। इसके बाद कलेक्टरों की बहुप्रतीक्षित सूची कभी भी…
जारी हो सकती है। दो दिन के भीतर भी। या फिर अप्रैल फस्र्ट वीक में तो पक्का समझिए। ऐसे में, टेंशन कैसे नहीं होगा। छोटे जिले वाले कलेक्टर अब सीनियर हो गए हैं। उन्हें बड़ा जिला चाहिए। बड़े वाले को और बड़ा। दो जिले वाले को तीसरा चाहिए। तो तीसरा वाले, चैथे की चिंता में दुबले हो रहे हंै। जिन्हें पारी खतम कर राजधानी लौटना है, वे माल-मसालेदार पोस्टिंग के जुगत में लगे हैं। 2009 बैच वाले सरकार से अलग मुंह फुलाए बैठा है। बहुत इंतजार करा दिया। चलिये, अब ज्यादा दिन नहीं बचे हंै। होइहे सोई जो र-अ-मन रचि राखै।
2003 बैच को विराम
कलेक्टरों की आने वाली लिस्ट में 2003 बैच को विराम लग सकता है। इस बैच की एकमात्र आईएएस रीतू सेन अंबिकापुर की कलेक्टर हैं। उनके बैच के सिद्धार्थ कोमल परदेशी और रीना बाबा कंगाले, राजधानी लौट चुके हैं। रीतू के बाद 2004 बैच के तीन कलेक्टर मैदान में बचेंगे। अंबलगन पी, अलरमेल ममगई डी एवं अमित कटारिया। इनमें से एक का विकेट तो गिरना तय माना जा रहा है। बचे दो। इनकी बैटिंग से सरकार संतुष्ट है, सो वे अभी टीम कलेक्टर बनें रहेंगे।
दिनेश की ताजपोशी
महिला बाल विकास विभाग सिकरेट्री दिनेश श्रीवास्तव 31 मार्च को रिटायर हो जाएंगे। प्रमोटी में श्रीवास्तव को हाई प्रोफाइल आईएएस में गिना जाता है। फील्डिंग अच्छी होने के चलते उन्हें पोस्टिंग भी अच्छी मिलती रही हैं। मगर आखिरी साल में इस तेज और चतुर आईएएस का मामला गड़बड़ा गया। सो, पोस्ट रिटायरमेंट उन्हें ठीक-ठाक जगह ताजपोशी मिल जाए, इसकी संभावना धूमिल है। फिर भी मानवाधिकार आयोग में पोस्टिंग की चर्चा तो चल रही है। वहां वे मेम्बर बन सकते हैं। वैसे बन जाएं, तो यह भी बुरा नहीं है। पांच साल का मामला है।
निहारिका लौटेंगी
97 बैच की आईएएस निहारिका बारिक अप्रैल फस्र्ट वीक में छत्तीसगढ़ लौट सकती हैं। पांच साल का उनका डेपुटेशन इसी साल जनवरी में खतम हुआ। इसके बाद वे दो महीने के अवकाश पर चली गई थीं। 31 मार्च को उनकी छुटटी पूरी हो जाएगी। हो सकता है, दिनेश श्रीवास्तव का महिला एवं बाल विकास विभाग निहारिका के हवाले कर दिया जाए। मगर यह तभी संभव हो पाएगा, जब वे यहां आ जाएं। क्योंकि, निहारिका की गिनती, छत्तीसगढ़ के चंद आईएएस में होती हैं, जिन्हें मूल कैडर रास नहीं आता। छत्तीसगढ़ बनने के बाद निहारिका कुछ ही समय यहां रहीं। भारत सरकार में पांच साल डेपुटेशन करके वे 2010 में छत्तीसगढ़ आई थी। वो भी पूछिए क्यों? कलेक्टर बनने के लिए। ताकि, प्रोफाइल में कलेक्टरी दर्ज हो जाए। याद होगा, सरकार ने उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए महासमंुद का कलेक्टर बनाया भी। लेकिन, साल भर कलेक्टरी कर वे फिर पांच साल के प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली चली गई थी। छत्तीसगढ़ में 97 बैच में तीन आईएएस हैं। सुबोध सिंह, एम गीता और निहारिका बारिक। इनमें सुबोध सिंह को छोड़कर दोनों देवियों को छत्तीसगढ़ रास नहीं आया। गीता भी राज्य बनने के बाद दो साल पहले ही छत्तीसगढ़ लौटी हैं।
जैसा विभाग, वैसा कानून
जंगल विभाग ने राज्य वनौषधि बोर्ड और राज्य वन अनुसंधान परिषद के पोस्ट को अपग्रेड करके पीसीसीएफ कर दिया। मगर बोर्ड के सीईओ एके द्विवेदी और परिषद के डायरेक्टर आरके डे को डायलेमा में छोड़ दिया। पहले वे जिस संस्थान के सुप्रीमो थे। पीसीसीएफ के आर्डर में विभाग ने उनकी स्थिति ही स्पष्ट नहीं की है। बेचारे वे बीच में झूल रहे हैं। ऐसा ही, बीके सिनहा के केस में भी हुआ है। सिनहा पीसीसीएफ बन गए हैं। लेकिन, उन्हें भी पीसीसीएफ के अंदर में कैम्पा का इंचार्ज बनाकर रखा गया है। ये अलग बात है कि सिनहा काबिल अफसर हैं मगर उन्हें कैम्पा में ही रखना था, तो चार लाइन का आर्डर निकालकर कैम्पा के पोस्ट को पीसीसीएफ का कर देना था। जैसे, राधाकृष्णन के लिए सरकार ने वेयर हाउस के जूनियर आईएएस के पोस्ट को चीफ सिकरेट्री लेवल का कर दिया। ऐसे में, कम-से-कम पोस्ट का अपमान तो नहीं होता। किंतु विभाग का जैसा नाम, वैसा काम।
होली में दिवाली
पुलिस की होली तो इस बार जबर्दस्त रही। चार महीने में दूसरी दिवाली मन गई। अवसर मुहैया कराया हेलमेट ने। हिंग लगे ना, फिटकिरी वाला मामला था। इसलिए, थानों की सारी पुलिस सड़कों पर उतर आई। शायद ही किसी को बख्शा गया। पांच सौ की रसीद कटवाओ या तीन सौ देकर दो सौ बचा लो। जाहिर है, लोगों को दो सौ बचाने का आइडिया ज्यादा भाया। जाहिर है, पुलिस की लूट से आरटीओ वाले शरमा गए। राजधानी में एक वीवीआईपी हाउस से एकदम सटे चैक पर पुलिस वाले थैले में पैसे भरते रहे। एकदम डंके की चोट पर। विधानसभा में जितना हल्ला करना है, कर लो। वैसे, हेलमेट को लेकर पुलिस की कड़ाई की मंशा पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता। रायपुर आईजी जीपी सिंह ने तो अच्छी पहल करते हुए अपने रेंज के पांचों कलेक्टरों को पत्र लिखकर बिना हेटमेट का पेट्रोल पंप पर तेल ना देने का आग्रह किया। मगर, अपनी पुलिस तो अनाचार का मुकदमा दर्ज करने के लिए पैसे ले लेती है। उसके लिए हेलमेट इश्यू वारदान साबित हो गया।
होली को वाट
भद्रा और पूर्णिमा का हवाला देकर पोथी-पतरा वाले अपने पंडितों ने अबकी होली को वाट लगा दिया। पहली बार दो दिन होली खेली गई। कंफ्यूजन ऐसा रहा कि 23 मार्च की सुबह तक लोग पशोपेश में रहे कि होली आज खेले या कल। दोपहर तक लोग फोन करके एक-दूसरे से पूछते रहे, आपके यहां होली कब हो रही है? रायपुर को छोड़ दें सूबे में दो दिन होली हो गई। ऐसे में, फर्क तो पडना ही था। लगा ही नहीं कि होली कब निकल गई। जाहिर है, होली से चूकि बड़ा व्यापार नहीं जुड़ा है, इसलिए सबके निशाने पर वही है। कोई तिलक होली का अभियान चलाता है, तो कहीं पानी बचाने के नाम पर होली की रंगत को फीकी करने की कोशिश। बहरहाल, नेशन और नेशनलिटी की बड़ी-बड़ी बात करने वाले लोग होली जैसे त्यौहार किस दिन मनाना है, इसे तय नहीं कर सकते, तो बाकी आप समझ सकते हैं।
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