शनिवार, 25 जून 2016

…..बदनाम हुए, लाल बत्ती के लिए


26 जून
रिटायर आईएएस डीएस मिश्रा की छबि ईमानदार अफसर की रही है। हार्ड वर्कर भी रहे। मगर इमैच्योरिटी उन्हें ले डूबी। पूरी सर्विस में किसी से रिश्ते बनाएं नहीं। अलबत्ता, अपनी अड़ी और नादानियों के चलते शत्रुओं की फौज खड़ी कर ली। उपर से लाल बत्ती भी चाहिए। इस चक्कर में जिंदगी भर की कमाई उन्होंने गंवा डाली। उनके विरोधी भी कुछ देर के लिए स्तब्ध रह गए, डीएस पैसे के लिए किसी इंडस्ट्रीज को ओब्लाइज नहीं कर सकते। उन पर चार्ज है, रेवन्यू बोर्ड चेयरमैन से रिटायरमेंट के दो दिन पहले 28 अप्रैल को उन्होंने इंडस्ट्रीज का 18 करोड़ का पंजीयन शुल्क माफ कर दिया था। ऐसे में सवाल तो उठते ही हैं, आखिर सेवानिवृति के दो रोज पहले कोई ऐसा डिसीजन क्यों लेगा। पता चला है, उपर कहीं से इशारा हुआ था, और डीएस ने कलम फंसा ली।

न राम मिले, न रहीम

डीएस मिश्रा के लिए मुख्य सूचना आयुक्त बनना अब मुश्किल हो गया है। इंडस्ट्रीज के 18 करोड़ पंजीयन शुल्क माफी इश्यू में सरकार ने रेवेन्यू बोर्ड के फैसले को चुनौती दी है। बताते हैं, सीएम से पूछा गया, इसमें क्या करना है। सीएम बोले, अपील की जाए। याने सीएम भी इससे खुश नहीं हैं। यही नहीं, डीएस के खिलाफ वित्त विभाग में बिना कैबिनेट की अनुमति के प्रमोशन देने की फाइल भी खुल गई है। एसीएस फायनेंस रहते डीएस ने 200 से अधिक अधिकारियों और कर्मचारियों को प्रमोशन दे दिया था। डीएस के रिटायर होने के बाद मंत्रालय के अफसरों ने प्रमोशन को दुरूस्त करने के लिए केस को कैबिनेट में रखा। कैबिनेट ने कहा, दोषी अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। इसके बाद सरकार ने मामले का परीक्षण के लिए एडवाइजर टू सीएम शिवराज सिंह को केस सौंप दिया। अब, बहुतों को इंतजार है कि परीक्षण रिपोर्ट कब आती है। कुल मिलाकर आप समझ सकते हैं कि डीएस की तकलीफें अब बढ़ने वाली है। उनका हाल कहीं राम मिले, ना रहीम वाला न हो जाए।

एलेक्स की कीमत

2006 बैच के आईएएस एलेक्स पाल मेनन ने अबकी सीधे न्याय तंत्र पर उंगली उठाते हुए सरकार की किरकिरी करा दी। दिल्ली तक मैसेज गया, छत्तीसगढ़ में इस टाईप के भी अफसर रहते हैं। जो सोशल मीडिया पर लाइक के लिए कुछ भी कर सकते हैं। बहरहाल, सरकार का मानना है, एलेक्स ने अबकी लक्ष्मण रेखा लांघी है। निश्चित तौर पर कार्रवाई होगी। अंबिकापुर में बीजेपी कार्यसमिति की बैठक में भी बात उठी। मगर चार दिन हो गए, अभी तक कुछ हुआ नहीं। अलबत्ता, सूबे के तीन युवा आईएएस अफसरों को एलेक्स के बड़बोलेपन की कीमत चुकानी पड़ गई। यशवंत कुमार, मुकेश बंसल और अवनीश शरण को अब कोर्ट का चक्कर लगाना पड़ सकता है। इनमें से दो तो अच्छे अफसर माने जाते हैं। ट्रेक रिकार्ड भी बढ़ियां रहा है। लेकिन, एलेक्स ने मरवा दिया।

राय बनें मुसीबत

कांग्र्रेस विधायक एवं अजीत जोगी के करीबी आरके राय कांग्रेस पार्टी के लिए मुसीबत बनते जा रहे हैं। राय सीधे पीसीसी चीफ भूपेश बघेल को चुनौती दे रहे हैं। मैं अजीत जोगी के साथ हूं और रहूंगा। आप समझ सकते हैं कि भूपेश जैसा लड़ाकू योद्धा इसे कैसे बर्दाश्त कर रहा होगा। जो जोगी से हेठा नहीं खाया। दरअसल, भूपेश जानते हैं कि राय पर अगर कार्रवाई हुई तो वे और मुखर हो जाएंगे। सामने विधानसभा का मानसून सत्र है। संगठन खेमा चाहेगा कि राय जोगी की पार्टी में चले जाएं, तो दल बदल कानून के तहत उनकी विधायकी चली जाए। मगर राय ऐसा करने वाले नहीं। और, संगठन उन पर कार्रवाई करेगा तो राय को कोई नुकसान नहीं होने वाला। विधायक तो वे बनें ही रहेंगे। वैसे, बहुत कम लोगों को मालूम है कि 6 जून को जोगी के कार्यक्रम में मरवाही न जाने के लिए भूपेश ने राय को समझाने के लिए क्या नहीं किया। संगठन खेमा अश्वस्त भी हो गया था कि राय नहीं जा रहे। मगर देर से ही सही, वे मरवाही पहंुच गए थे।

मेरी पत्नी, मेरे साथ

अजीत जोगी के ठाठापुर कार्यक्रम में स्टैंडिंग एमएलए रेणु जोगी, आरके राय और सियाराम कौशिक शरीक नहीं हुए। जबकि, तीनों मरवाही में थे। वहां रेणु जोगी मंच पर थीं। हालांकि, तीनों रणनीति के तहत वहां नहीं गए। मगर इस पर सवाल तो उठने ही थे। रायपुर लौटने पर मीडिया ने जब जोगी से खासकर रेणु जोगी के बारे में पूछा। जोगी बोले, रेणु मेरी पत्नी है, मेरे साथ ही तो रहेगी। चलिये, पत्नी भी साथ। आरके राय ने तो साफ कर ही दिया है। अब, सियाराम कौशिक को बोलना बचा है।

मानसून सत्र के बाद

सरकार ने तय किया है कि विधानसभा के मानसून सत्र तक कोई ट्रांसफर, पोस्टिंग नहीं होंगी। सो, कलेक्टरों की तीसरी लिस्ट अब सत्र के बाद ही समझिए। हालांकि, कलेक्टरों में दो-एक से ज्यादा चेंज नहीं होंगे। मगर लाल बत्ती के दावेदार रिटायर आईएएस अफसरों को अब कुछ दिन और वेट करना पड़ेगा। अभी दिनेश श्रीवास्तव, डीएस मिश्रा और ठाकुर राम सिंह क्यूं में हैं। जुलाई में सिकरेट्री इरीगेशन बीएल तिवारी भी रिटायर हो जाएंगे। तब दावेदारों की संख्या चार हो जाएगी। हालांकि, दिनेश श्रीवास्तव को वित्त आयोग का सिकरेट्री का आफर दिया गया था। मगर उन्होंने मना कर दिया। शायद इसलिए कि इस पोस्ट पर कभी आईएएस नहीं रहे। याने कम महत्व का पोस्ट है। पता चला है, दिनेश राजनांदगांव के महिला स्वसहायता गु्रप के कार्याे में जुट गए हैं। राजनांदगांव के कलेक्टर रहने के दौरान उन्होंने इसका गठन कराया था।

बाउंसर के घेरे में

छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस बनने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के लिए प्रायवेट सिक्यूरिटी हायर की गई है। अब, उनके साथ लंबे-चैड़े कद का बाउंसर नजर आने लगा है। हालांकि, एक्स सीएम के नाते छत्तीसगढ़ आर्म फोर्स के एक-चार की सुरक्षा उन्हें मिली हुई है। मगर अब बाउंसर भी साये की तरह उनके साथ रहेगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. बदले हालात में कहीं एडिशनल चीफ सिकरेट्री एनके असवाल तो नहीं बन जाएंगे मुख्य सूचना आयुक्त?
2. एक आईएफएस आफिसर का नाम बताइये, जिसने अनुष्ठान करने के लिए जंगल में सेपेरेट गेस्ट हाउस बना लिया है?

शनिवार, 18 जून 2016

डीएस, राम सिंह की ताजपोशी!

19 जून

आईएएस अफसरों की पोस्ट रिटायरमेंट ताजपोशी के लिए सरकार ने अघोषित क्रायटेरिया बनाया है, रिटायरमेंट के दो-एक महीने बाद पोस्टिंग। देखा ही आपने, ठाकुर राम सिंह जैसे वजनी अफसर भी 18 दिन से घर बैठे हैं। बहरहाल, डीएस मिश्रा को रिटायर हुए अब दो महीना पूरा हो जाएगा। इसलिए, अंदर से आ रही खबरों पर यकीन किया जा सकता है कि जुलाई फस्र्ट वीक तक सूचना आयोग में उनकी ताजपोशी हो जाएगी। बशर्ते उनके नाम के साथ कोई नई पेंच न आए। यद्यपि, पहले इस पोस्ट के लिए ज्यूडिशरी से किसी व्यक्ति का नाम चल रहा था। मगर नौकरशाही इसके खिलाफ एकजुट हो गई। मिश्रा के साथ ठाकुर राम सिंह का भी चुनाव आयोग के लिए आदेश निकल सकता है। दरअसल, राज्य निर्वाचन आयुक्त पीसी दलेई भी इस महीने रिटायर होंगे। दलेेेेेेेेेई को सरकार अपनी सुविधा के अनुसार कुछ दिनों के लिए पद पर बनाए रख सकती है। क्योंकि, निर्वाचन आयुक्त पोस्ट के लिए नियम यह है कि छह साल होने के बाद भी सरकार ने अगर नया अपाइंट नहीं किया, तो अटोमेटिक वे छह महीने तक कंटीन्यू कर सकते हैं। एमपी में लोहानी पांच महीने ज्यादा इस पोस्ट पर रहे थे। यहां भी सुशील त्रिवेदी इस पोस्ट पर दो दिन अधिक रहे। शिवराज सिंह का आदेश निकलने के बाद ही त्रिवेदी बिदा हुए। दलेई के मामले में भी कुछ ऐसा ही हो सकता है।

पैसा खुदा नहीं….

छत्तीसगढ़ में सबके सब आफिसर करप्ट नहीं हैं। ना ही गला दबाकर पैसा कमाने वाला। कुछ ऐसे भी हैं, जिनके लिए सूटकेस कोई मायने नहीं। एक डिस्टलरी का मामला आपको बताते हैं। डिस्टलरी के खिलाफ कार्रवाई हुई। अ-सरदार शराब कारोबारी ने नीचे में तो सेट कर लिया। मगर उपर में दाल गली नहीं। 20 पेटी का आफर लेकर कारोबारी का करिंदा रायपुर पहंुचा बट उसे जमकर डांट पड़ गई। इसके अगले दिन मैंने अ-सरदार को अफसर के सामने गिड़गिड़ाते देखा। कारोबारी ने दोनों हाथ से कान पकड़ा, इस मुद्रा में….साब माफ कर दो। याने पैसा सब कुछ है, ऐसा नहीं कह सकते।

इतिहास दोहरा रहा है

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का इतिहास दोहरा रहा है। आपको याद होगा, अजीत जोगी जब सीएम थे, उन्हें कई लोगों ने विद्याचरण शुक्ल को राज्य सभा में भेजकर टंटा खतम करने का सुझाव दिया था। लेकिन, उन्होंने बिलासपुर से रामाधार कश्यप को झाड़-पोंछ कर बाहर निकाला और उन्हें सांसद बना दिया। ठीक, उसी तरह भूपेश बघेल ने अबकी छाया वर्मा को राज्य सभा में भेजा है। 2003 में जब वीसी ने कांग्रेस छोड़ा था तो कांग्रेस भवन में वीसी के नाम पर कांग्रेसियों ने कालिख पोत दी थी। इस बार अजीत जोगी के नाम पर कालिख पोती गई। तब वीसी ने सात फीसदी वोट लेकर कांग्रेस का खेल बिगाड़ दिया था। अब, देखना दिलचस्प होगा कि इतिहास बदलता है, या दोहराता है।

सीजेसी और नारियल

अजीत जोगी की नई पार्टी का नाम और सिम्बाल क्या होगा, अभी इस पर अंतिम रूप से ऐलान नहीं हुआ है। मगर छत्तीसगढ़ जन कांग्रेस और सिम्बाल के लिए नारियल के नाम पर गंभीरता से विचार चल रहा है। जोगी के कोर ग्रुप के लोग नारियल पर सहमत हैं। इंटरनेट पर भी सर्च कर लिया गया है। नारियल किसी पार्टी का सिम्बाल नहीं है। फिर, छत्तीसगढ़ में नारियल काफी शुभ माना जाता है। लोगों को अपील भी करेगा। सस्ता भी है। ट्रक में लेने पर तीन-चार रुपए ही पड़ेगा। मतदाताओं को नारियल बांटने पर चुनाव आयोग से भी आपत्ति नहीं होगी।

वाह नजीब बाबू!

1975 में रायपुर के कलेक्टर रहे नजीब जंग शनिवार को राजधानी पहंुचे। अभी वे दिल्ली के चर्चित उप राज्यपाल हैं। लिहाजा, पूरे प्रोटोकाल से उनकी आगुवानी की गई। 41 साल पहले उनका ड्राईवर रहा अफरोज को बुलाया गया। अफरोज ने ही उनकी गाड़ी चलाई। नजीब बोले, रायपुर काफी बदल गया है। उधर, अगुवानी करने पहुंचे, रायपुर कलेक्टर ओपी चैघरी को मीडिया वालों ने छेड़ा, रायपुर कलेक्टर रहे आईएएस राज्यपाल बनते हैं। ओपी ने हाथ जोड़ लिया, आपलोग मुझे मरवाओगे!

कलेक्टर्स वार

चीफ सिकरेट्री ने कलेक्टरों के लिए व्हाट्सएप ग्रुप बनाया है। इस पर वे कलेक्टरों को निर्देश देते हैं। पिछले हफ्ते एक कलेक्टर ने उन्हंे अपने जिले की उपलब्धि बताई। बताते हैं, सीएस ने उस पर वेरी गुड का रिप्लाई दे दिया। इसके बाद तो कलेक्टरों में एक-दूसरे को कमतर साबित करने की होड़ मच गई। मैंने ये किया तो मैं ये। ऐसा लगा, मानों एक-दूसरे से लड़ जाएंगे।

कोरिया में प्रमोटी?

गरियाबंद कलेक्टर निरंजन दास के हटने के बाद अब मात्र पांच जिले में प्रमोटी आईएएस कलेक्टर बच गए हैं। कभी बारह-बारह जिले के होते थे। ऐसे में, प्रमोटी अफसरों ने सरकार पर प्रेशर बनाना चालू कर दिया है। इसका असर कोरिया में दिख सकता है। कोरिया कलेक्टर एस प्रकाश को दुर्ग शिफ्थ होने की खबर है। उनकी जगह समीर विश्नोई का नाम चल रहा था। मगर ताजा अपडेट यह है कि वहां के लिए समीर के साथ प्रमोटी अफसरों का नाम भी चलने लगा है। हालांकि, प्रमुख दावा तो विश्नोई का है। वे 2009 बैच के आईएएस हैं। दीगर राज्यों में 2010 बैच के आईएएस कब के कलेक्टर बन गए हैं। छत्तीसगढ़ में भी उनके बैच के छह में से पांच कलेक्टर बन गए है। सिर्फ समीर बचे हैं। अब, यह देखना होगा कि अगले लिस्ट में उनका नम्बर लगता है या नहीं।

मुलाजिम से निबट गए साब

लेबर सिकरेट्री एवं आईएफएस अफसर जीतेन कुमार को उनके एक मुलाजिम ने ही निबटा दिया। जीतेन कुमार को लेबर सिकरेट्री से हटाने के लिए जिस वकील ने हाईकोर्ट में लड़ाई लड़ी, वह पहले लेबर इंस्पेक्टर था। जीतेन कुमाए एंड मंडली ने उसे उसे पेंच लगाकर नौकरी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। लेबर इंस्पेक्टर चूकि ला किया था, सो उसने बिलासपुर हाईकोर्ट में वकालत शुरू कर दी। उसने पहला केस जीतेन कुमार के खिलाफ लगाया और उन्हें वन विभाग वापिस भेजवाने में कामयाब हो गया। हालांकि, जीतेन कुमार को बचाने के लिए हाईप्रोफाइल कोशिशें हुई। जीएडी सिकरेट्री दो बार हाईकोर्ट में एपियर हुई। हाईकोर्ट के सख्त आर्डर के बाद भी चतुराई की गई। जितेन कुमार को कमिश्नर से हटाकर सिकरेट्री यथावत रखा गया। इस पर अवमानना याचिका लगाई। इससे हाथ-पांव फुले। और, कोर्ट की छुट्टी खतम होने से पहले सरकार ने जीतेन कुमार की छुट्टी कर दी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक कलेक्टर का नाम बताइये, जिससे पूरा स्टाफ त्राहि माम कर रहा है?
2. चीफ सिकरेट्री विवेक ढांड ने राजनांदगांव जिले के एक काम के लिए किन तीन सिकरेट्री पर जमकर भड़के?

रविवार, 12 जून 2016

लंच डिप्लोमेसी

संजय दीक्षित

नए जमाने के कलेक्टरों के लिए कुर्सी ही सब कुछ है। जैसे भी हो सुरक्षित रहनी चाहिए। इसके लिए प्रोटोकाल और पद की गरिमा को भले ही ताक पर क्यों ना रखना पडे़े। आदिवासी इलाके की एक महिला कलेक्टर की लंच डिप्लोमेसी के बारे में आपको बताते हैं। सत्ताधारी पार्टी के एक बड़े नेता संगठन के काम से दौरे पर निकले थे। महिला कलेक्टर को पता चला तो नजदीकी बढ़ाने के लिए उन्हें खाने पर घर बुला लिया। नेताजी सोचे महिला है, अकेले जाना ठीक नहीं है। सांसद, विधायक और अपने कुछ समर्थकों को लेकर कलेक्टर बंगला पहुंच गए। कुछ देर के लिए लगा कलेक्टर बंगला नहीं, किसी राजनेता का निवास है। जबकि, प्रोटोकाल में मंत्री या किसी सरकारी पद पर बैठे व्यक्ति से ही कलेक्टर सर्किट हाउस मिलने जा सकते हैं। नेता से नहीं। मगर अपने यहां सब चलता है।

160 कलेक्टर जुटेंगे रायपुर में

छत्तीसगढ़ का ओडीएफ याने ओपन डिफेक्शन फ्री देखने 28 राज्यों के 160 कलेक्टरों का एक जुलाई को रायपुर में जमावड़ा लगेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अप्रैल में राजनांदगांव आए थे तो उन्होंने छत्तीसगढ़ के ओडीएफ को देखकर खुश हुए थे। दिल्ली जाकर उन्होंने पीएमओ के अफसरों को निर्देश दिए कि देश के कलेक्टरों को छत्तीसगढ़ भेजा जाए। दरअसल, बाकी राज्यों में आंकड़े और गिनती के लिए शौचालय बनाए जा रहे हैं। जबकि, छत्तीसगढ़ में यह सुनिश्चित करने के बाद गांवों को ओडीएफ घोषित किया जाता है, जब पूरा गांव उसका उपयोग करना शुरू कर दे। चलिये, गणेशशंकर मिश्रा को अब अफसोस हो रहा होगा। वे जब पीएचई सिकरेट्री थे, तभी सरकार को प्रस्ताव गया था कि ओडीएफ को पीएचई से लेकर पंचायत को दे दिया जाए। तब सोचा गया कि कहां शौचालय वगैरह के लफड़े में फंसा जाए। मगर नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद यह गवर्नमेंट का ड्रीम प्रोजेक्ट हो गया। और, एमके राउत को काम दिखाने का मौका मिल गया।

स्टेपनी या….

आईएएस अविनाश चंपावत के साथ भी गजब हो रहा है। जब से वे कोरिया से कलेक्टरी कर रायपुर लौटे हैं, हर लिस्ट में उनके नाम होते हैं। हर लिस्ट याने पिछले दो साल में जितने भी ट्रांसफर आर्डर निकले हैं, अमूमन सभी में चंपावत का नाम रहा है। हाल ही मे उन्हें हेल्थ में भेजा गया था। शुक्रवार को हुए फेरबदल में उन्हें कमिश्नर, लेबर और स्पोट्र्स की कमान सौंप दी गई। ब्यूरोक्रेसी में इस पर खूब चुटकी ली जा रही है…..जब किसी पद के लिए सूटेबल अफसर नहीं मिलते, चंपावत को टोपी पहना दी जाती है। अफसर का जुगाड़ होने पर फिर विभाग वापिस। इसे आखिर क्या कहेंगे, आप ही बताइये…..।

बैक होंगे विवेकानंद

96 बैच के आईपीएस विवेकानंद का डेपुटेशन बे्रक हो गया है। वे एसपीजी में पांच साल की प्रतिनियुक्ति पर 2013 में दिल्ली गए थे। अभी उनका तीन साल हुआ है। खबर आ रही है, वे एकाध हफ्ते में छत्तीसगढ़ लौट आएंगे। वैसे, भारत सरकार ज्वाइंट सिकरेट्री लेवल के 29 आईएएस, आईपीएस को राज्यों को लौटा रहा है। विवेकानंद आईजी लेवल के अफसर हैं। वे यहां आए तो आईजी में कांपीटिशन तेज हो जाएगा। वे जांजगीर, राजनांदगांव, बस्तर और बिलासपुर में एसपी रह चुके हैं। अभी आईजी लेवल पर अफसरों का टोटा है। आलम यह है कि एक महत्वपूर्ण रेंज के आईजी के लिए सीबीआई से लौटने वाले अमित कुमार की प्रतीक्षा की जा रही है। मगर अब विवेकानंद भी क्यूं में हो जाएंगे।

वेतन के लाले

सरकार ने थोक में आईएफएस अफसरों को प्रमोशन देकर थोक में 11 एडिशनल पीसीसीएफ बना डाला मगर अब अफसरों को वेतन के लाले पड़ रहे हैं। कारण कि वन विभाग में उतने पोस्ट नहीं है। फिर वेतन आरहण कैसे हो। अतुल शुक्ला को अभी तक वेतन नहीं मिला है। उनका वेतन निकालने के लिए सरकार ने शुक्रवार को रास्ता निकाला। अतुल को वन विभाग का नया सिकरेट्री बनाया गया है। ताकि, वेतन की अड़चन दूर हो सकें। यह तब है जब कई एडिशनल पीसीसीएफ डेपुटेशन पर सरकार में पोस्टेड हैं। कुल मिलाकर 30 एडिशनल पीसीसीएफ हैं। सभी अगर वन विभाग में वापिस आ गए तो वेतन की बात तो दूर, बैठने की जगह नहीं मिलेगी वन मुख्यालय में।

दो साल का रिकार्ड

बिलासपुर रेंज के आईजी पवनदेव ने अपने 25 साल के कैरियर में पहली बार 10 जून को दो साल का कार्यकाल पूरा कर किया। पवन मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में सात जिलों के एसपी रहे हैं। इसके अलावा, कांकेर और राजनांदगांव में डीआईजी। मगर कहीं भी उनका साल, डेढ़ साल से अधिक टेन्योर नहीं रहा। पहली दफा बिलासपुर में उन्होंने दो साल पूरा किया है। जाहिर है, शुक्रवार उनके लिए यादगार दिन रहा होगा।

नो कमेंटस

हेल्थ मिनिस्टर अजय चंद्राकर की नाराजगी के चलते हेल्थ सिकरेट्री विकासशील को सरकार ने साल भर में ही चलता कर दिया। चर्चा है, विकास शील मंत्री को ज्यादा नोटिस में नहीं लेते थे। उनकी जगह पर अब सुब्रत साहू को लाया गया है। इस उम्मीद से कि सुब्रत हेल्थ में कोई बड़ी क्रांति करेंगे। जैसा कि उन्होंने शिक्षा में किया है। इसी तरह आरपी मंडल को हटाकर स्पेशल सिकरेटे्री रोहित यादव को नगरीय प्रशासन विभाग का दायित्व सौंपा गया है। सरकार के इस फैसले का आप कुछ भी मतलब निकालिए। हमारा तो, नो कमेंट्स।

तीसरी लिस्ट

कलेक्टरों की दूसरी लिस्ट के बाद भी तीसरी की गुंजाइश रह गई। अगली सूूची कभी भी निकल सकती है। इस हफ्ते, अगले हफ्ते या मंथ एंड तक भी। तीसरी सूची में कोरिया कलेक्टर एस प्रकाश का नम्बर लगेगा। प्रकाश 2005 बैच के हैं। जबकि, उनसे तीन साल जूनियर भीम सिंह अंबिकापुर पहंुच गए हैं। इसलिए, समझा जाता है प्रकाश को भी कोई बड़ा जिला मिलेगा। दुर्ग भी हो सकता है। क्योंकि, आर संगीता का भी दुर्ग में दो साल हो गया है। 2009 बैच के समीर विश्नोई को सरकार कोरिया कलेक्टर बना सकती है। वैसे, तीसरी सूची में नारायणपुर कलेक्टर सोनवानी का भी नम्बर लग सकता है।

काम को ईनाम

आईएएस, आईपीएस के ट्रांसफर आर्डर देखकर लगता है, सरकार ने सीनियर, जूनियर की बजाए काम का कोई पैरामीटर बनाया है। तभी तो 2004 बैच के आईपीएस अजय यादव जांजगीर भेज दिए गए और उनके जूनियर कई बड़े जिलों में। कलेक्टरों की लिस्ट में भी कुछ ऐसा ही हुआ है। 2006 बैच की श्रुति सिंह गरियाबंद और सीआर प्रसन्ना धमतरी और 2008 बैच के भीम सिंह को अंबिकापुर जैसा बड़ा जिला। अंबिकापुर में उन्होंने 2003 बैच की रितु सेन को रिप्लेस किया है।

निष्ठा या….

कांग्रेस विधायक आरके राय और सियाराम कौशिक पीसीसी की बैठक में पार्टी के प्रति निष्ठा दिखाने पहुंचे थे या फिर जोगी के दूत बनकर। इस पर संगठन खेमा भी संशय में है। दोनों ने गोलमोल जवाब देकर और उलझा दिया है। कौशिक ने कहा कि 6 जून को अजीत जोगी के कार्यक्रम में इसलिए गये थे कि क्योंकि उस वक्त तक वो सीडब्ल्यूसी के मेम्बर थे। इसके बाद के प्रश्न पर वे चुप हो गए। उधर, राय ने इशारों-इशारों में जाहिर कर दिया कि वे जोगी के साथ खड़े हो सकते हैं। राय का तर्क है, अभी तो पार्टी का ऐलान हुआ है। पार्टी बनने के बाद फैसला लिया जाएगा। ऐसे में, बूझो तो जानो वाला हाल हो गया है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. आरके राय और सियाराम कौशिक कांग्रेस की बैठक में निष्ठा जताने गए थे या जोगी के दूत बनकर? 
2. भूपेश बघेल और चरणदास महंत के बीच उमड़े प्रेम में कितनी गहराई है?

शनिवार, 11 जून 2016

किंगमेकर

संजय दीक्षित

कांग्रेस में हांसिये पर चल रहे अजीत जोगी द्वारा नई पार्टी बनाने की चर्चा तो सालों से चल रही थी। मगर उनके इकलौते बेटे अमित को संगठन खेमे ने जिस दिन पार्टी से निकाला, जोगी…..

खेमा नई पार्टी को लेकर संजीदा हो गया था। उनकी कोर टीम लगातार इस पर काम कर रही थी। नफा-नुकसान का रिव्यू किया जा रहा था। इस बीच बंगाल में कांग्रेस से अलग होकर पार्टी बनाई ममता बनर्जी ने दूसरी बार आतिशी जीत दर्ज की। ममता की जीत ने भी जोगी खेमे की हौसला अफजाई की। पत्रकारों ने शनिवार को जोगी से जब पूछा कि कांग्रेस से अलग होकर कोई सफल नहीं हुआ है, तो उन्होंने तपाक से ममता और शरद पवार का नाम लिया। बहरहाल, जोगी की पार्टी की लांचिंग कहां होगी? यह अभी तय नहीं हुआ है। गिरोदपुरी में भी हो सकती है। मरवाही में इसे तय किया जाएगा। बहरहाल, सियासी प्रेक्षकों की मानें तो 2018 के चुनाव के लिए जोगी की रणनीति यही होगी कि किसी तरह पांच से सात सीटें आ जाएं। उतने में वे किंगमेकर बन जाएंगे। और अमित डिप्टी सीएम। भले ही सरकार किसी की भी बनें।

एक रुपए से 1100 तक

अजीत जोगी की नई पार्टी के नाम का ऐलान भले ही अभी नहीं हो पाया है मगर फंडिंग का खाका पूरा तैयार कर लिया गया है। उनकी पार्टी आम आदमी पार्टी की तरह आम लोगों के सहयोग से धन का इंतजाम करेगी। इसके लिए तय किया गया है के एक रुपए से लेकर 1100 रुपए तक चंदा लिया जाएगा। इससे लोगों का पार्टी से जुड़ाव होगा।

आईजी के लिए 3 नाम

रायपुर आईजी जीपी सिंह का लगभग साढ़े तीन साल पूरा हो गया है। जाहिर है, उनके ट्रांसफर की चर्चा तो होगी ही। मगर उनके बाद रायपुर में किसे आईजी बनाया जाए, इसको लेकर सरकार की गणित गड़बड़ा रही है। असल में, रायपुर के लिए तीन नाम हैं। पवनदेव, प्रदीप गुप्ता और अमित कुमार। अमित कुमार सीबीआई में हैं। सितंबर तक वे वापिस लौटेंगे। मगर उनके पास सुप्रीम कोर्ट के कई केसेज हंै। सो, उनका आना टल भी सकता है। पवनदेव दिसंबर, जनवरी तक एडीजी हो जाएंगे। बचे प्रदीप गुप्ता। ऐसे में, हो सकता है, रायपुर और दुर्ग आईजी में एक्सचेंज हो जाए। याने जीपी दुर्ग और गुप्ता रायपुर। या फिर अमित के लौटने का सरकार अगर इंतजार करती है, तो फिर लिस्ट अभी नहीं निकलेगी। तब तक जीपी यही रहेंगे।

प्रमोटी के साथ भेदभाव?

छत्तीसगढ़ में कभी दस-दस, बारह-बारह प्रमोटी आईएएस कलेक्टर होते थे। बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग, रायगढ़, राजनांदगांव और कोरबा जैसे बड़े जिलों में भी। मगर अब प्रमोटी आईएएस का प्रभुत्व कम होते जा रहा है। अभी 27 में से मात्र छह जिले ही प्रमोटी के पास हैं। महासमुंद, गरियाबंद, बेमेतरा, कवर्धा, सूरजपुर और नारायणपुर। सभी छोटे जिले। इनमें से भी सूरजपुर और नारायणपुर का विकेट कभी भी गिर सकता है। हाल में, रायपुर से ठाकुर राम सिंह और मुंगेली से संजय अलंग को हटाया गया। दोनों प्रमोटी थे। मगर दोनों जिला डायरेक्ट आईएएस के खाते में चला गया। इससे पहले, बंगाल और असम चुनाव में सिर्फ प्रमोटी आईएएस को भेजे जाने से वे गुस्से में हैं ही। चुनाव के लिए सामान्य प्रशासन विभाग ने 22 आईएएस के नाम चुनाव आयोग को भेजे थे। इनमें सिर्फ भूवनेश यादव एक डायरेक्ट आईएएस थें। बाकी 21 प्रमोटी। जाहिर है, भेदभाव की शिकायत तो होगी ही।

किस्मत अपनी-अपनी

2002 बैच के आईएएस ब्रजेश मिश्रा रायपुर और दुर्ग के कमिश्नर बन गए। उन्हीं के बैच के दिलीप वासनीकर बस्तर के कमिश्नर हैं। मगर, इसी बैच के अमृत खलको को देखिए, बिलासपुर में एडिशनल कमिश्नर हैं। किस्मत अपनी-अपनी।

नगर का भतीजा

अपने होम टाउन में अफसरी करने के फायदे कम परेशानी ज्यादा है। बिलासपुर नगर निगम के कमिश्नर सौमिल चैबे इससे गुजर रहे हैं। सौमिल शहीद एसपी विनोद चैबे के बेटे और बिलासपुर के रिनाउंड पर्सन स्व0 डीपी चैबे के पोते हैं। उनके सामने परेशानी यह है कि कोई उन्हें कमिश्नर मानने के लिए तैयार नहीं है। सभी यही कह रहे है कि आपके पिताजी के साथ पढ़ा हूं, वे तो हमारे लंगोटिया…..। हमलोग अरपा नदी में नहाते थे। मैं आपका चाचा हूं। कोई उनका दादा बन जा रहा है। लेकिन, सौमिल ने भी आरपी मंडल के स्कूल में ट्रेनिंग ली है। दो साल रायपुर में उनके साथ रहे। उनसे काम सीखा है तो यह भी कि किनको कितना वेट देना है। किनको कितना चढ़ाना है तो किनको कितना उतारना। सौमिल ने नगर निगम के कुछ खटराल अफसरों को कारण बताओ  नोटिस जारी कर दिया है। ठीक भी है, चार डायरेक्टर आईएएस के बाद सरकार ने अगर सौमिल को बिलासपुर निगम की जिम्मेदारी दी है कि उसके लिए सख्त तो होना ही पड़़ेगा ना।

खुल गई पोल

छत्तीसगढ़ के टाईगर रिजर्व और अभयारण्यों में टाईगर को लेकर तो बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं। अचानकमार में कागजों में 29 शेर की गिनती कर ली गई। मगर वस्तुस्थिति यह है कि वन विभागों के अफसरों को भी पिछले दो-तीन साल से टाईगर नहीं दिखा है। प्रिंसिपल सिकरेट्री फारेस्ट आरपी मंडल को शेर दिखाने के लिए अफसरों ने आखिर क्या नहंी किया। लेकिन, हर बार मायूसी ही हाथ आई। भद तो तब पिटी जब इंटरनेट पर अचानकमार में शेर की जानकारी मिलने पर मंडल के कुछ मित्र रायपुर धमक आए। बोले, यार! जंगल विभाग का तू बास है, शेर तो दिखा ही देगा। मंडल को अब काटो तो खून नहीं। बोेले, दो साल में मैं तो देख नहीं पाया। तुमलोगों को क्या दिखाउंगा। फिर, मित्रों के लिए मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ में शेर दिखाने का इंतजाम कराया।

मंत्रीजी के चोटी वाले

एक मंत्रीजी के चोटी वाले समर्थक इन दिनों भागे-भागे फिर रहे हैं। सुबह-शाम उन्हें एसीबी का भूत सता रहा है। असल में, सिंचाई विभाग के एक मामले मेें एसीबी ने उनको भी विवेचना में लिया है। उनके काल डिटेल निकाले जा रहे हैं। दागी अफसरों ने एसीबी में नामजद बयान दिया है कि चोटी वाले अंबिकापुर आकर किसको टेंडर देना है, यह तय करते थे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक नगर निगम कमिश्नर का नाम बताइये, जिसने ट्रांसफर के बाद ठेकेदारों से एक हाथ से लिफाफा लेकर दूसरे हाथ से 72 चेक काट डाले?
2. एक रिटायर आईएएस दाढ़ी बढ़ाकर वैराग्य क्यों धारण कर रहे है?