29 जनवरी
संजय दीक्षित
इस महीने की 10 तारीख को कलेक्टर, एसपी कांफ्रेंस में सीएम ने इशारे-ही-इशारों में कड़ी नसीहतें दी थी। कहा था, पुलिस वालों की बर्दी की चमक और बूटों की खनक लोगों को महसूस करना चाहिए। डाक्टर साब सीधे-सीधे तो कुछ बोलते नहीं। मगर संकेत साफ थे…..अब, खैर नहीं। लेकिन, जशपुर एसपी गिरिजाशंकर जायसवाल इस संकेत को समझने में चूक गए। जबकि, उन्हें पता था कि मोदी के मेक इन इंडिया के दौर में पत्थलगांव में किसानों ने बाजार में न बिक पाने के कारण गुस्से में टमाटर को रोड पर डंप कर दिया था। यह नेशनल न्यूज बना। अलबत्ता, सरकार के पास सूचना पहुंची कि मामले को हैंडिल करने के लिए कलेक्टर पत्थलगांव पहुंच गई मगर एसपी नहीं गए। दूसरा, कल सीएम की जशपुर विजिट में पुलिस की लापरवाही एक्सपोज हो गई। सीएम को जिस रास्ते से गुजरना था, वहां वाहन की चपेट में आकर एक बच्ची की मौत हो गई। वीवीआईपी विजिट में पुलिस ने सड़क पर स्टॉपर तक नहीं लगाए थे। सीएम जब मंच पर पहुंचे तो वहां जशपुर के नेताओं ने शिकायतों की झड़ी लगा दी। जाहिर है, इससे गुस्सा तो आएगा ही। लिहाजा, सरकार ने आज सनसनाते हुए एक तेज यार्कर फेंका और गिरिजाशंकर समझ नहीं पाए और क्लीन बोल्ड हो गए। वे ऐसे समय में बोल्ड हुए, जब दो साल पूरा करके वे बड़े जिले में अपग्रेड करने की बाट जोह रहे थे। मगर किधर से बॉल आकर अंदर घुस गई, उन्हें पता ही नहीं चला। वैसे भी, यार्कर खेलने में आईपीएस जरा कमजोर पड़ते हैं। इसके गुर उन्हें आईएएस से सीखने चाहिए। कई अक्षम्य लापरवाहियों के बाद भी आखिर कुछ कलेक्टर कैसे क्रीज पर टिके हुए हैं?
संजय दीक्षित
इस महीने की 10 तारीख को कलेक्टर, एसपी कांफ्रेंस में सीएम ने इशारे-ही-इशारों में कड़ी नसीहतें दी थी। कहा था, पुलिस वालों की बर्दी की चमक और बूटों की खनक लोगों को महसूस करना चाहिए। डाक्टर साब सीधे-सीधे तो कुछ बोलते नहीं। मगर संकेत साफ थे…..अब, खैर नहीं। लेकिन, जशपुर एसपी गिरिजाशंकर जायसवाल इस संकेत को समझने में चूक गए। जबकि, उन्हें पता था कि मोदी के मेक इन इंडिया के दौर में पत्थलगांव में किसानों ने बाजार में न बिक पाने के कारण गुस्से में टमाटर को रोड पर डंप कर दिया था। यह नेशनल न्यूज बना। अलबत्ता, सरकार के पास सूचना पहुंची कि मामले को हैंडिल करने के लिए कलेक्टर पत्थलगांव पहुंच गई मगर एसपी नहीं गए। दूसरा, कल सीएम की जशपुर विजिट में पुलिस की लापरवाही एक्सपोज हो गई। सीएम को जिस रास्ते से गुजरना था, वहां वाहन की चपेट में आकर एक बच्ची की मौत हो गई। वीवीआईपी विजिट में पुलिस ने सड़क पर स्टॉपर तक नहीं लगाए थे। सीएम जब मंच पर पहुंचे तो वहां जशपुर के नेताओं ने शिकायतों की झड़ी लगा दी। जाहिर है, इससे गुस्सा तो आएगा ही। लिहाजा, सरकार ने आज सनसनाते हुए एक तेज यार्कर फेंका और गिरिजाशंकर समझ नहीं पाए और क्लीन बोल्ड हो गए। वे ऐसे समय में बोल्ड हुए, जब दो साल पूरा करके वे बड़े जिले में अपग्रेड करने की बाट जोह रहे थे। मगर किधर से बॉल आकर अंदर घुस गई, उन्हें पता ही नहीं चला। वैसे भी, यार्कर खेलने में आईपीएस जरा कमजोर पड़ते हैं। इसके गुर उन्हें आईएएस से सीखने चाहिए। कई अक्षम्य लापरवाहियों के बाद भी आखिर कुछ कलेक्टर कैसे क्रीज पर टिके हुए हैं?
रिकार्ड पारी की ओर
81 बैच के आईएएस विवेक ढांड सुनिल कुमार के रिटायर होने पर 28 फरवरी 2014 की शाम चीफ सिकरेट्री बनाए गए थे। अगले महीना उनका तीन साल पूरा हो जाएगा। इस तरह वे मुख्य सचिव की लंबी पारी खेलने वाले पी जॉय उम्मेन के रिकार्ड के करीब पहुंच गए हैं। उम्मेन तीन साल चार महीने सीएस रहे। बजट सत्र के बाद होने वाले उथल-पुथल में ढांड अगर अप्रभावित रहे तो जुलाई में वे उम्मेन का रिकार्ड तोड़ छत्तीसगढ़ के सर्वाधिक समय तक सीएस के रूप में अपना नाम दर्ज करा लेंगे। सो, ढांड साब के लिए दुआ कीजिए।
उपध्याय भी पीछे नहीं
कप्तानी पारी खेलने में डीजीपी अमरनाथ उपध्याय भी पीछे नहीं हैं। बल्कि, चीफ सिकरेट्री से आगे चल रहे हैं। दो दिन बाद एक फरवरी को उनका तीन साल कंप्लीट हो जाएगा। इसी दिन सरकार ने रामनिवास के रिटायर होने पर उन्हें इंचार्ज डीजी बनाया था। और, 28 फरवरी को सुनिल कुमार ने अपने रिटायरमेंट के दिन डीपीसी कर उपध्याय को फुलफ्लैश डीजी बना दिया था। बहरहाल, डीजीपी के विकेट को फिलहाल कोई खतरा नहीं दिख रहा है। क्योंकि, उनसे एक बैच नीचे 86 बैच के स्पेशल डीजी डीएम अवस्थी डिफेंसिव खेल रहे हैं। 87 बैच के वीके सिंह डीजीपी के लिए चुनौती बन सकते हैं। मगर दिल्ली से लौटे तब। वे आईबी में डेपुटेशन पर हैं।
तो याद आए उम्मेन
चीफ सिकरेटी की बात चले तो रिटायर चीफ सिकरेट्री पी जॉय उम्मेन बरबस याद आ जाते हैं। उम्मेन बेहद स्वाभिमानी नौकरशाह थे। याद होगा, नवंबर 2011 में सरकार ने उम्मेन को हटाकर सुनिल कुमार को चीफ सिकरेट्री बनाया था, तब वे छुट्टी पर थे। साफ-सुथरी छबि और भद्रता को देखते सरकार ने उन्हें बिजली कंपनियों की कमान सौंपी थी…..उन्हें चेयरमैन बनाया गया था। मगर उम्मेन को यह गवारा नहीं हुआ। उन्होंने ससम्मान वीआरएस ले लिया। इसमें दो मत नहीं कि उम्मेन अगर इशारा किए होते तो उन्हें रिटायरमेंट के बाद लाल बत्ती मिल गई होती। क्योंकि, लंबा कार्यकाल होने के कारण सरकार ने उन्हें हटाया जरूर था, उनसे रिश्ते खराब नहीं हुए थे। लेकिन, उन्हांने गाड़ी-घोड़ा, नौकर-चाकर से स्वाभिमान को उपर रखा। छत्तीसगढ़ में ऐसे नौकरशाह भी रहे हैं। वरना, लोग रिटायरमेंट से छह महीना पहले से पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग के लिए सरकार की परिक्रमा शुरू कर देते हैं।
पिछड़ गए आईएएस
छत्तीसगढ़ आईएएस के लिए भले ही अब बढ़ियां कैडर हो गया है। मगर कलेक्टरी में यहां के आईएएस काफी पीछे हो गए हैं। यूपी, बिहार, झारखंड जैसे राज्यों में 2011 बैच को जिला मिल गया है। इस बैच के ए डोडे धनबाद के कलेक्टर हैं। और, यह उनका दूसरा जिला है। और अपने छत्तीसगढ़ में….? 2011 बैच को तो भूल जाइये, 2010 बैच का नम्बर कब लगेगा, किसी को पता नहीं। 2010 में चार आईएएस हैं। कार्तिकेय गोयल, सारांश मित्तर, जेपी मौर्य और रानू साहू। इन चारों के बाद ही 2011 बैच का नम्बर आएगा। याने अगले साल। वो भी सबका नम्बर नहीं लग पाएगा क्योंकि चुनावी वर्ष में दो-एक को ही एडजस्टमेंट हो पाएगा। बाकी को 2019 का इंतजार करना होगा।
ऐसी मुंहदेखी क्यों?
सूबे के चर्चित आरा मिल मामले में आर सी रैगर कमेटी ने 11 आईएफएस समेत 14 अफसरों को दोषी ठहराया था। इनमें से एक-एक करके 11 अफसर बरी हो गए। किसी ने यूपी लॉबी का सहारा लिया तो किसी ने साउथ लॉबी का। लास्ट में पांच आईएफएस बच गए थे। जिन्होंने चेक काटा था। इनमें से श्रीनिवास राव को सरकार ने आश्चर्यजनक तौर पर दोषमुक्त कर दिया तो पिछले हफ्ते अमरनाथ प्रसाद भी बाइज्जत बरी हो गए। बच गए राकेश चतुर्वेदी, हेमंत पाण्डेय और एसएस बड़गैया। तीनों छत्तीसगढ़ियां पंडित। राकेश रायपुरियन, पाण्डेय पंडरिया वाले तो बड़गैया सारंगढ़ के। तीनों के खिलाफ जो चार्ज है, सेम चार्ज श्रीनिवास राव और अमरनाथ प्रसाद के खिलाफ भी थे। फिर, ऐसी मुंहदेखी क्यों?
लंच डिप्लोमसी
पीसीसी चीफ भूपेश बघेल राजधानी के मीडियाकर्मियों को 29 जनवरी को लंच दे रहे हैं। कायदे से पत्रकारों को लंच, डिनर की कोई खबर नहीं बनती। क्योंकि, ऐसा अमूमन होता है…..राजनेता पत्रकारों से मेल-जोल बढ़ाने के लिए इस तरह की डिप्लोमेसी का सहारा लेते रहते हैं। कांग्रेस के लिए चिंता की वजह है मीडिया में उनकी खबरें कम होना। वरना, एक समय था, जब मीडिया में भूपेश को सीएम के बराबर स्पेस मिल रहा था। लेकिन, अब न केवल स्पेस सिमट गया है बल्कि कांग्रेस के विवादों की खबरें ज्यादा हाईलाइट हो जा रही। राजेंद्र तिवारी के साथ हाल में जो हुआ, वह सुर्खियां बनीं। इसमें कांग्रेस के मीडिया मैनेजरों की कमजोरी कह सकते हैं कि वो चीजों को पकड़ नहीं पा रहे हैं। शैलेश नीतिन त्रिवेदी कुछ अधिक सीनियर हो जा रहे थे तो अभी वाले एकदम नये। भूपेश के लिए वही पुरानी दिक्कतें हैं। टीम भूपेश को ठीक करना होगा।
मुदित का छक्का
कुछ अफसर किस्मत लिखवा कर लाते हैं। बात हो रही है एडिशनल पीसीसीएफ मुदित कुमार की। पिछले सात साल से वे लैंड मैनेजमेंट देख रहे हैं। लैंड मैनेजमेंट बोले तो पूरे प्रदेश की माइनिंग से लेकर इंडस्ट्रीज तक में सीधे दखल। माइनिंग और उद्योग लॉबी उनकी परिक्रमा करती है। पता चला है, मुदित कुमार अब फॉरेस्ट के देश के सबसे प्रतिष्ठित संस्थान इंडियन कौंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन देहरादून के डायरेक्ट जनरल बन सकते हैं। पेनल में उनका नाम आ गया है। और, सबसे दमदार कंडिडेट भी वही हैं। मुदित कुमार मध्यप्रदेश के समय तब के सीएम दिग्विजय सिंह के भी काफी क्लोज थे। और, सात साल से लैंड मैनेजमेंट देख रहे हैं तो कुछ तो बात होगी ही।
अंत में दो सवाल आपसे
1. क्या अरबन डेवलपमेंट अथारिटी का फर्स्ट चेयरमैन कोई आईएफएस बनेगा?
2. छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के किस नेता का मन कांग्रेस में लौटने के लिए मचल रहा है?
2. छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के किस नेता का मन कांग्रेस में लौटने के लिए मचल रहा है?
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