शुक्रवार, 12 मई 2017

डाक्टर ने गरमी खराब कर दी!


7 मई
संजय दीक्षित
सरकार को पहले शराब ना पीने वालों का गुस्सा झेलना पड़ा। अब, पीने वाले लोग नाराज हैं…..डॉक्टर ने गरमी खराब कर दी। चिल्ड बीयर का आनंद लेने के लिए लोग गरमी का इंतजार करते थे। लेकिन, पूरा वॉट लगा दिया। सरकारी दुकानों में एक तो पसंदीदा ब्रांड की बीयर मिल नहीं रही, और जो मिल रही, वह भी गरम। पीना है, तो घर के फ्रीज में ले जाकर ठंडा करो और बोनस में पत्नी की दो-चार ताने भी सुनो। वैसे, वहीस्की पीने वाले लोग भी कम परेशां नहीं हैं। उनका मनपसंद ब्रांड सरकारी दुकानों में एवेलेवल नहीं है। मंत्रियों, नेताओं और अफसरों के लिए सप्लायर, ठेकेदार गोंदिया से कैरेट मंगवा दे रहे हैं। मगर सबको ऐसी गॉड गिफ्टेड फैसिलिटी कहां? बेचारों को अनाप-शनाप दाम पर बाहर से मंगवाना पड़ रहा है। जाहिर है, लोग सरकार को कोसेंगे ही।

बैड मई

रमन सरकार के शराब बेचने के फैसले से सिर्फ पीने वाले ही दुखी नहीं हैं, जिनके संरक्षण में शराब ठेकेदारों का काम फल-फूल रहा था, उनके घरों में भी अवसाद पसरा है। आबकारी विभाग से लेकर आईजी, एसपी, एसडीएम, तहसीलदार, थानेदार और सिपाही। सबका बंधा था। एक से पांच तारीख तक सबके लिफाफे घर, आफिस या थानों में पहुंच जाते थे। इस बार पांच तारीख निकल गई। अब, घरवालियां पूछ रही….क्या हुआ। दरअसल, रेट सबका तय था। शराब दुकान वाले थाने के प्रत्येक सिपाही को कम-से-कम पांच हजार। थानेदार को 50 हजार। और अगर सिपाही, थानेदार सरकार से ज्यादा शराब ठेकेदार की ड्यूटी बजाते दिए, तो यह एमाउंट बढ़ भी जाता था। बड़े जिलों के एसपी को 2 से पांच लाख। कलेक्टर्स को महीना नहीं एकमुश्त मिल जाता था। ठेके के समय चाहे ऑनलाइन हो या मैन्यूल कलेक्टरों को बंधा था। ए केटेगरी के जिलों के कलेक्टरों को 75 लाख से एक करोड़ और छोटे जिलों के कलेक्टर्स को 25 से 50 लाख। ये राशि ठेका होते ही मिल जाती थी। वह भी बिना मांगे। अब, सभी कलेक्टर्स एवं एसपी शराब ठेकेदारो की सेवा को ग्रहण करते होंगे, ये मैं नही कह रहा। बट, रेट यही था। दिक्कत राजनेताओं को भी कम नहीं हो रही। पहले कार्यक्रमों में भीड़ जुटाने के लिए 100 रुपए के साथ एक पौवा दे दो तो लोग दौड़े चले आते थे। आखिर, एक फोन पर ठेकेदार कार्टून-के-कार्टून पहुंचवा देता था। अब ये अतीत की बात हो गई। दुखी मीडिया वाले भी कम नहीं हैं। खासकर, मीडिया का लेवल लगाए पत्रकारों को पर्ची मिल जाती थी….फलां दुकान में चले जाइये। सरकार ने सबकी मई बैड कर दी।

दावा प्रबल

एसीएस टू सीएम एन बैजेंद्र कुमार भारत सरकार में सिकरेट्री के समकक्ष पोस्ट के लिए इम्पैनल हो गए हैं। याने प्रदेश के चीफ सिकरेट्री के बराबर। ऐसे में, बैजेंंद्र का सीएस का दावा जाहिर है, अब और मजबूत हो जाएगा। बैजेंद्र 85 बैच के आईएएस हैं। सीएस के लिए उनका तगड़ा कांपीटिशन अजय सिंह से हैं। अजय सिंह 83 बैच के आईएएस हैं। बैजेंद्र से दो बैच सीनियर। मगर सीएस के सलेक्शन में सीएम का वीटो चलता है। आखिर, शिवराज सिंह के बीके कपूर, बीकेएस रे और पी राघवन को पार करते हुए सीएस बनने का दृष्टांत है ही। बैजेंद्र को तो अब भारत सरकार ने भी चीफ सिकरेट्री के समकक्ष मान लिया है।

10 में से चार पीएस

छत्तीसगढ़ में सिकरेट्री, प्रिंसिपल सिकरेट्री लेवल पर अफसरों का टोटा हो गया है। खासकर, पीएस लेवल पर तो स्थिति और खराब हो गई है। स्टेट कैडर में कहने के लिए वैसे 10 पीएस हैं। इसमें से तीन डिरेल्ड हो गए हैं। अजयपाल सिंह, डॉ0 आलोक शुक्ला और बीएल अग्रवाल। बीएल कल तिहाड़ जेल से छूटे हैं। अजयपाल और आलोक को सरकार ने कोई काम नहीं दिया है। बचे सात। इनमें सीके खेतान दिल्ली डेपुटेशन पर हैं। केडीपी राव राजस्व बोर्ड में हैं। बीबीआर सुब्रमण्यिम तीन महीने की छुटटी पर कल ही निकले हैं। इस तरह 10 में से चार बचे। आरपी मंडल, रेणु पिल्ले, अमिताभ जैन और सुब्रत साहू। इनके उपर ही सरकार के मीडिल क्रम का पूरा दारोमदार रहेगा।

घर बिठा कर तनखा क्यों?

डॉ0 आलोक शुक्ला, अजयपाल सिंह और अनिल टुटेजा को सरकार घर बिठाकर पैसा दे रही है। तीनों के पास कोई काम नहीं है। आलोक और अनिल को नॉन घोटाले की वजह से सरकार ने कोई विभाग नहीं दिया है। अजयपाल को जनशिकायत जैसा एक ऐसा विभाग है, जिसके होने न होने का कोई मतलब नहीं। अलबत्ता, बड़े सम्मान के साथ हर महीने करीब दो लाख रुपए उनके खाते में ट्रांसफर कर दिया जाता है। आलोक और अनिल को नॉन घोटाले की वजह से सरकार ने कोई काम नहीं दिया है। भारत सरकार ने दोनों के खिलाफ चालान पेश करने की मंजूरी दे दी है। लेकिन, सरकार ने कोई कार्रवाई कर रही और ना ही उन्हें कोई काम दिया जा रहा। आलोक को हर महीने दो लाख और अनिल को लगभग इसका आधा उनके एकाउंट में ट्रांसफर कर देती है सरकार। ऐसे में, दो साल का हिसाब लगा लीजिए। कायदे से दोनों को वेतन दिया जा रहा है तो काम भी लेना चाहिए। राज्य में अफसरों की वैसे भी कमी है। दोनों की काबिलियत पर कोई संशय भी नहीं। फिर, मुफ्त का वेतन क्यों?

नारी की जगह नारी

चीफ इलेक्शन आफिसर एवं सिकरेट्री जीएडी निधि छिब्बर डेपुटेशन पर दिल्ली जा रही हैं। वहां उनको डिफेंस में पोस्टिंग मिली है….एज ए ज्वाइंट सिकरेट्री। लिहाजा, ब्यूरोक्रेसी में चर्चा खूब है, निर्वाचन में निधि की जगह कौन लेगा। निर्वाचन में सबसे ज्यादा समय गुजारने वाले सुनील कुजूर अब एसीएस हो गए हैं। उन्हें सरकार भेजेगी नहीं। पीएस में अफसर वैसे भी कम हैं। सिकरेट्री में भी कमोवेश वही स्थिति है। लेकिन, किसी को तो अपाइंट करना ही होगा। वो भी रेगुलर रिक्रूट्ड आईएएस होना चाहिए। ऐसे में, किसी महिला सिकरेट्री को सरकार निर्वाचन की जिम्मेदारी सौंप दें, तो आश्चर्य नहीं। क्योंकि।

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ का अगला मुख्य निर्वाचन अधिकारी कौन होगा?
2. छत्तीसगढ़ में किस आईपीएस को बाहुबलि और किसे कटप्पा बताया जा रहा है?

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