बुधवार, 16 अगस्त 2017

समरथ को नहीं दोष गोसाई

23 जुलाई

संजय दीक्षित
राज्य प्रशासनिक सेवा के सुधाकर खलको और भरतलाल बंजारे का आईएएस अवार्ड लटक गया। इनका मामला कोई बहुत गंभीर भी नहीं था। सीआर में गुड और वेरी गुड का चक्कर था। अलबत्ता, एक ऐसे राप्रसे अफसर के आईएएस अवार्ड को हरी झंडी मिल गई, जिन पर करोड़ों के जमीन घोटाले की तोहमत है। जनाब ने एसडीएम रहने के दौरान सरकारी जमीन बिल्डर को सौंप दी….प्रति प्लाट दो पेटी लेकर ले आउट एप्रुव कर दिया। अब 50 से अधिक लोग अपनी जमीन के लिए दर-दर की ठोकर खा रहे हैं। बिल्डर की हर्ट अटैक से असामयिक मौत हो गई। आईएएस अलेक्स पाल मेनन की जांच रिपोर्ट में राप्रसे अफसर के खिलाफ गंभीर टिप्पणी की गई है। सीएम भी बोल चुके हैं…. अब जीरो टॉलरेंस। इसके बाद भी दिल्ली में हुई डीपीसी में दागी अफसर को आईएएस अवार्ड के लिए हरी झंडी मिल गई। ऐसे में, खलको और बंजारे को तुलसीदासजी की चौपाई को याद करके संतोष कर लेना चाहिए…..समरथ को नहीं दोष गोसाई…..।

अंतरात्मा की आवाज

राष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी को दो वोट अधिक मिल गए। जाहिर है, क्रॉस वोटिंग को लेकर कांग्रेस और जोगी कांग्रेस में मुश्कें कसनी ही थी…..दोनों ही पार्टियां एक-दूसरे पर क्रॉस वोटिंग का आरोप लगा रही हैं। मगर अंदर की बात यह है कि एक वोट तो कांग्रेस के ही एक विधायक ने खराब कर डाला। बेचारे ज्यादा पढ़े-लिखे हैं….वोट डालने का सिस्टम समझ ही नहीं पाए। कांग्रेस का दूसरा वोट जानबूझकर इनवैलिड किया गया। कांग्रेस नेताओं को शक है कि दीगर दलों के प्रति वफादारी के चक्कर में बिलासपुर जिले के विधायक ने गड़बड़ कर डाला। रही बात कांग्रेस के निलंबित विधायक अमित जोगी और आरके राय की, दोनों ने अपनी अंतरात्मा की आवाज पर वोट दिया होगा। इसके बाद अब मत पूछिएगा, कोविंद को दो वोट अधिक कैसे मिल गए।

ये है कांग्रेस का हाल!

अजीत जोगी के कांग्रेस से अलग होने के बाद समझा गया था कि अब कांग्रेस के सारे प्राब्लम छू-मंतर हो गए। अब, सत्ता में आने से कोई रोक नहीं सकता। लेकिन, विचित्र पार्टी है….कभी एक हो नहीं सकते। राष्ट्रपति चुनाव में क्रॉस वोटिंग को ही बानगी लें। पीसीसी चीफ भूपेश बघेल गोलमोल बोले, जोगी परिवार पर विश्वास नहीं किया जा सकता। लेकिन, शिव डहरिया तीन कदम आगे बढ़कर रेणु जोगी को पार्टी से निकालने की ही मांग कर डाली। दूसरे दिन नेता प्रतिपक्ष का बयान आया, रेणु जोगी जिम्मदार और भरोसेमंद नेत्री हैं….वे क्रॉस वोटिंग कर ही नहीं सकती। याने तीन नेता, तीन बयान…..ये है कांग्रेस का हाल।

 नजर लागे राजा…

.प्रायवेट सेक्टर के यंग प्रोफेशनल्स को सरकारी विभागों से जोड़ने के लिए रमन सरकार ने एक नायाब फेलोशिप शुरू की है। सीजी सीएम गुड गवर्नेंस फेलोशिप प्रोग्राम। यह प्रोग्राम शुरू करने वाला छत्तीसगढ़ देश का दूसरा राज्य है। इससे पहिले, सिर्फ हरियाणा में चल रहा है। दो-दो साल के फेलोशिप में 42 प्रोफेशनल्स को चुना जाना है। इसमें पगार भी जोरदार है। एक लाख से लेकर ढाई लाख तक। ऐसे में, नौकरशाहों के नाते-रिश्तेदारों का मन भला कैसे नहीं ललचेगा। कुछ अफसरों की पत्नियां दो नम्बर में लुके-छिपे कुछ-कुछ करते ही रहती हैं। प्रोग्राम के लांच होते ही एक कलेक्टर ने सरकार से एप्रोच कर डाला। लेकिन, उपर से दो टूक जवाब मिल गया। फेलोशिप में किसी के नाते-रिश्तेदारों के लिए कोई जगह नहीं होगी…..सीएम साब चाहते हैं….ऐसे लोग चुने जाएं, जिनके अपाइंटमेंट से विभागों का परफारमेंस सुधरे। संदेश साफ है, दीगर कलेक्टर या ब्यूरोक्रेट्स अपनों के लिए ट्राई नहीं करें।

खबरों में अफसर

वीवीआईपी जिले के आला आफिसर्स अपनी पत्नियों के साथ मंगलवार को दाल-भात केंद्र में लंच क्या किया, सोशल मीडिया में उन्हें सैल्यूट करने वालों की बाढ़ आ गई। कोई उन्हें गरीबों का मसीहा बता रहा था तो किसी ने लिखा, दाल-भात केंद्र में खाना खाने वाला कलेक्टर इस राज्य में कभी हुआ ही नहीं। उसी जिले में सिद्धार्थ कोमल परदेशी से लेकर मुकेश बंसल, पी दयानंद, धनंजय देवांगन जैसे कलेक्टर रहे हैं। लेकिन, आपको याद नहीं होगा, इस अंदाज में इनकी फोटो कहीं दिखी होगी। बुद्धिमान अफसर इस तरह के कृत्य कभी करते भी नहीं….फिर जिला वीवीआईपी का हो तब तो और संजीदा रहना चाहिए। दाल-भात केंद्र के खाने का अगर टेस्ट ही करना था, तो बिना फोटोबाजी के भी इसे किया जा सकता था। दरअसल, दोष अफसरों का नहीं है। आफिसर्स तो अच्छे हैं, पर छत्तीसगढ़ में ढंग से उनकी ट्रेनिंग हो नहीं पाई। उन्हें यह नहीं बताया गया कि अच्छे अफसर खुद खबर नहीं बनता….राजनेताओं को आगे रखता है। बाकी वह दिल से काम किया होगा, तो अल्टीमेटली क्रेेडिट उसे मिलेगा ही।

बहादुर आईपीएस

इस हफ्ते राज्य पुलिस सेवा के तीन अफसरों को आईपीएस अवार्ड करने के लिए डीपीसी हुई। खबर है, तीनों के नाम को कमेटी ने एप्रुवल दे दिया है। अगले महीने तक नोटिफिकेशन भी हो जाएगा। मगर इनमें से एक अफसर की बहादुरी के बारे में आपको जानना जरूरी है। राजनांदगांव एसपी विनोद चौबे के शहीद होने के बाद इस बहादुर अफसर को सरकार ने वहां के एक सबडिविजन में एसडीओपी बनाया था। लेकिन, आदेश निकलते ही अफसर को रात में नक्सलियों के डरावने सपने आने लगे….एके-47 लिए माओवादियों ने उन्हें घेर लिया है। लिहाजा, जान है, तो जहां है…..उन्होंने वहां ज्वाईन करने से इंकार कर दिया। चले गए छुट्टी पर। लौटने पर कुछ साल तक लूप लाइन में रहे। उसके बाद फील्डिंग करके मुख्य धारा में आए और अब आईपीएस भी बन जाएंगे। देश के धुर नक्सल प्रभावित स्टेट में अगर ऐसे बहादुर आईपीएस होंगे, तो नक्सलिज्म खतम होने में देर नहीं होगी।

सीएम हलाकान?

पीसीसी चीफ भूपेश बघेल के जमीन एपीसोड पर सीएम भी कम परेशान नहीं हैं। जोगी कांग्रेस हर तीसरे रोज मय दस्तावेज जमीन घोटाला पेश कर देता है। और, मीडिया को जवाब देना पड़ता है सीएम को। जोगी कांग्रेस जब भी आरोप लगाती है, मीडिया वाले हेलीपैड पर डाक्टर साब को घेर लेते हैं….क्या कार्रवाई होगी? डाक्टर साब चीर परिचित गंभीर मुद्रा में जवाब देते हैं….कलेक्टर इसकी जांच करेंगे। डाक्टर साब भी सोच रहे होंगे, जमीन कब्जा किया किसी ने, आरोप कोई और लगा रहा है और जवाब मुझे देना पड़ रहा है।

 अंत में दो सवाल आपसे

1. भूपेश बघेल और चरणदास महंत के बीच चौड़ी होती खाई की मेन वजह क्या है?
2. बलरामपुर एसपी के लिए नाम चला आईपीएस इंदिरा कल्याण का तो आचला कैसे बाजी मार ले गए? 

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