मंगलवार, 16 जनवरी 2018

रमन मिलाई जोड़ी

13 जनवरी
अजय सिंह के सूबे के चीफ सिकरेट्री बनने के बाद छत्तीसगढ़ के 80 हजार स्केल वाले तीनों शीर्ष पोस्ट पर अब एक राशि के अफसर हो गए हैं। तीनों का स्वभाव लगभग एक समान है। बेहद कूल। सौम्य और शालीन। डीजीपी एएन उपध्याय का चेहरा ऐसा है कि कोई कितने भी गुस्से में जाए, निकलने पर बोलेगा….काम नहीं हुआ मगर आदमी शरीफ हैं। उनके डीजी बनने के बाद गुटबाजी से लेकर पीएचक्यू की दुकानें बंद हो गई है….सरकार को आखिर क्या चाहिए। पीसीसीएफ आरके सिंह लंबे समय तक विदेशों में रहे हैं। इसलिए, रहते हैं हमेशा सूटेड-बूटेड। लेकिन, सज्जनता और ईमानदारी तो पूछिए मत! रिजल्ट देने वाले अफसर में उनकी गिनती होती है। रही-सही कसर अजय सिंह को चीफ सिकरेट्री बनाकर मुख्यमंत्री ने पूरी कर दी है। चलिये, ऑस्ट्रेलिया में डाक्टर साब चैन से रहेंगे, काम भले ही फास्ट नहीं हो लेकिन, उंच-नीच नहीं होगी, इसकी पूरी गारंटी रहेगी।

रेरा का पेड़ा

चीफ सिकरेट्री विवेक ढांड आखिरकार रियल इस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी के चेयरमैन बनने में कामयाब हो गए। इसके लिए उन्होंने चीफ सिकरेट्री की कुसी ढाई महीने पहिले ही छोड़ दी। रेरा का चेयरमैन बनने वाले वे देश के दूसरे चीफ सिकरेट्री होंगे। उनसे पहिले मध्यप्रदेश के रिटायर चीफ सिकरेट्री डिसूजा को शिवराज सरकार ने इस मलाईदार कुर्सी पर बिठाया था। जबकि, वहां भी रेरा के पेड़ा के लिए दर्जनों लोग लगे थे। डिसूजा और ढांड में फर्क यह है कि ढांड रिटायरमेंट से पहिले वीआरएस लेकर रेरा की चेयरमैनी संभाली है। बिल्डरों पर अंकुश लगाने के कारण रेरा चेयरमैन की कुर्सी को जलवादार के साथ ही मलाईदार मानी जा रही है।

कांग्रेस को बेचैनी

चुनावी साल में सरकार का लोक सुराज कांग्रेस के लिए चिंता का सबब बन सकता है। क्योंकि, क्योंकि सरकार इसे कैश करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। अब, बलौदा बाजार के खैरा गांव को ही लें। सीएम का हेलिकाप्टर वहां लैंड किया। डाक्टर साब ने भाषण के अंत में कहा कि आपलोगों की सेवा करता रहूं, इसके लिए आप लोग दोनां हाथ उठाकर मुझे आर्शीवाद दीजिए। इस पर सैकड़ों हाथ उठ गए। अब, किसे पता वे सेवा करने का आर्शीवाद मांगे या चौथी पारी के लिए। मंत्रियों के जनसमस्या शिविरों पर सवाल उठाने वाली कांग्रेस के जाहिर है, इससे बेचैनी बढ़ेगी।

कोई इधर गिरा, कोई….

डीआईजी की पोस्टिंग देखकर आपको लगा होगा कि क्यों सूबे के कुछ आईपीएस डेपुटेशन के लिए खूंटा तूड़ा रहे थे। इस बार 11 आईपीएस डीआईजी प्रमोट हुए हैं। इनमें से सिर्फ नेहा चंपावत लकी रहीं। उन्हें पति मिला….पति मिलने का आशय आप गलत मत निकालियेगा….वो कोई खोए नहीं थे। किसी बात पर सरकार ने अविनाश चंपावत को रायपुर से सरगुजा भेज दिया था। कमिश्नर बनाकर। नेहा को डीआईजी प्रमोट करने के बाद सरकार ने रहम दिखाई। सरगुजा में छत्तीसगढ आर्म्स फोर्स में डीआईजी का एक नया पोस्ट क्रियेट कर अब उन्हें भी वहां भेज दिया है। बचे दस। उन बेचारों को तो पूछिए मत…कोई इधर गिरा, तो कोई उधर। पत्नी, बच्चे, डॉगी तक दुखी हैं। डीआईजी बनने वालों में पांच तो बड़े-बड़े जिलों के कप्तान थे। कप्तानी के बाद उन्हें पेवेलियन में दर्शक बनाकर बिठा दिया गया है। अब एक गाड़ी, एक घर में काम चलाना पड़ेगा। जिले का आरआई तो घर से लेकर बाहर तक का इंतजाम देख लेता था। रायपुर में दर्जनों आईपीएस हैं, यहां का आरआई किसको-किसको देखेगा। यही तो अंतर है, आईएएस और आईपीएस में। आईएएस में पावर बढ़ता जाता है। आईपीएस में एसपी के बाद सब खतम। इसमें तीन ही महत्वपूर्ण होते हैं, थानेदार, एसपी और डीजीपी। जीपी सिंह और दीपांशु काबरा जैसे आईजी हों तो बात अलग है। वरना, आईजी में 25 फीसदी ही रुतबा रह जाता है। बहरहाल, डीआईजी लोगों को सहानुभूति की जरूरत है। अब अगले पांच साल उन्हें जमापूंजी में से काम चलाना होगा।

कलेक्टरों की लिस्ट

एसपी, डीआईजी लेवल पर बड़ी सर्जरी के बाद ब्यूरोक्रेसी में कलेक्टरों के ट्रांसफर की अटकलें चल रही थी। लेकिन, पता चला है कलेक्टरों के ट्रांसफर अब टीम रमन के ऑस्ट्रेलिया से लौटने के बाद ही हो पाएगा। वैसे, नाम कम हैं, इसलिए सरकार भी बहुत जल्दी में नहीं है। बावजूद इसके, कलेक्टरों की रात की नींद उड़ी हुई है….जबकि, सीएम ऑस्ट्रेलिया जाने के लिए दिल्ली पहुंच गए हैं। आखिर, वे सीएम के चीन प्रवास को भूले नहीं हैं। दो साल पहिले रायपुर से टेकऑफ करने के 15 मिनट बाद इंडिगो का प्लेन जब 20 हजार फुट की उंचाई पर पहुंचा तो सीएम ने अफसरों से बात करके लिस्ट को ओके कर दिया था। और, दिल्ली एयरपोर्ट से ही मीडिया को सूची जारी हो गई थी। कलेक्टरों को लग रहा, क्या पता 14 जनवरी को दोपहर ऑस्ट्रेलिया के लिए एयर इंडिया की फ्लाइट में बैठने से पहिले कुछ अनहोनी हो जाए। ऐसे में, उनकी बेचैनी समझी जा सकती है।

हमारी उमर लग जाए….

सरकार ने एक झटके में 15 जिलों के एसपी बदल दिए। पहली बार लिस्ट ऐसी निकली कि दो-एक को छोड़कर सभी सरकार को दुआएं दे रहे हैं….तुमको हमारी उमर लग जाए। जो दुखी हैं, वो भी हंड्रेड परसेंट नहीं, फिफ्टी परसेंट। पारुल माथुर बेमेतरा में एसपी रह चुकी हैं। तीन साल से वे रेलवे एसपी थीं। इसके बाद भी उन्हें मुंगेली एसपी बनाकर भेज दिया गया, जो किसी आईपीएस का पहला जिला होता है। नीथू कमल का पहला जिला मुंगेली ही था। लोग इस पर चुटकी ले रहे हैं, पारुल के आईपीएस पिता राजीव माथुर से जरूर पीएचक्यू के किसी अफसर से नाराजगी रही होगी, वरना….। दूसरे दुखियारे हैं, डी श्रवण। श्रवण लंबे समय बस्तर में रहकर पिछले साल ही कोरबा पहुंचे थे। इस आस में कि अब दो-चार साल सुकून के साथ मैदानी इलाके में गुजरेगा। लेकिन, उन्हें फिर बस्तर भेज दिया गया। इन दोनों के अलावे बाकी सबकी निकल पड़ी। मयंक श्रीवास्तव तक कोरबा एसपी बन गए। आरिफ शेख बस्तर से बिलासपुर, दीपक झा बालोद से रायगढ़ और मुंगेली एसपी नीथू कमल को जांजगीर जैसा जिला मिल गया, जहां 2004 बैच के अजय यादव एसपी थे। नीथू 2008 बैच की हैं। रायपुर एसपी संजीव शुक्ला को बिना मांगे मुराद मिल गई। वे चाहते थे, भले पीएचक्यू में ही पोस्ट कर दो, लेकिन यहां से शिफ्थ करो। वे दुर्ग जैसे जिले की कमान पा गए। सालों से बस्तर में पड़े नारायणपुर एसपी संतोष सिंह वहां से निकलने में सफल हो गए। उन्हें महासमुंद जिला मिल गया। एसपी को देखकर कलेक्टर भी प्रार्थना कर रहे….हमारी सूची भी ऐसी ही निकले।

बी फॉर…..

हालांकि, इसे एक संयोग कह सकते हैं, लेकिन आईपीएस आरिफ शेख के साथ लगातार चौथी बार हुआ है। बी नाम वाले जिले में वे चौथी बार एसपी बने हैं। बालोद, बलौदा बाजार, बस्तर और बिलासपुर। आरिफ के साथ एक इत्तेफाक यह भी रहा है, एक साल के भीतर उनका तीसरी बार ट्रांसफर हुआ। बालोद से बलौदाबाजार, फिर बस्तर और वहां से बिलासपुर। और, यह भी…उन्होंने बद्री मीणा के सात जिले की बराबरी भी कर ली है। गरियाबंद, धमतरी, जांजगीर, बालोद, बलौदा बाजार, बस्तर और बिलासपुर।

अंत में दो सवाल आपसे

1. शैलेष नीतिन कांग्रेस के मीडिया सेल के फिर प्रमुख बनाए गए हैं और पूर्व पत्रकार विनोद वर्मा भी अंदरखाने से मीडिया को ही टेकल करते हैं। ऐसे में, दोनों के बीच टकराव तो नहीं होगा?
2. बालोद जैसे छोटे जिले से जम्प लगा दीपक झा सीधे रायगढ़ के एसपी बन गए। ये कैसे हुआ?

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