संजय के. दीक्षित
तरकश, 14 मई 2023
बस्तर आईजी कौन?
2003 बैच के आईपीएस और बस्तर रेंज के आईजी सुंदरराज का का टेन्योर विधानसभा चुनाव तक तीन साल क्रॉस कर जाएगा। इसको देखते समझा जा रहा था कि चुनाव से पहले सरकार उन्हें हटाकर किसी और आईजी को वहां की कमान सौंपेंगी ताकि चुनाव तक उन्हें बस्तर को समझने का टाईम मिल जाए। मगर सुनने में आ रहा कि बस्तर में शांतिपूर्ण चुनाव के लिए सरकार सुंदरराज को कंटीन्यू करने पर विचार कर रही है। सुंदरराज बस्तर में नक्सली आपरेशनों को बढ़ियां ढंग से अंजाम दे रहे हैं। इससे नक्सली घटनाओं में भी बेहद कमी आई है। इसको देखते चुनाव आयोग को पत्र भेजा जा रहा कि माओवाद ग्रस्त बस्तर रेंज के आईजी सुंदरराज के केस में तीन साल में छूट दी जाए। चूकि बस्तर देश का सर्वाधिक नक्सल प्रभावित इलाका है, इसलिए आमतौर पर चुनाव आयोग से ऐसे केस में छूट मिल जाती है। वैसे भी सुंदरराज निर्विवाद अधिकारी हैं...उन पर कभी किसी पार्टी का लेवल नहीं लगा....बीजेपी सरकार में भी वे बस्तर में तैनात रहे। लिहाजा, विपक्ष को भी सुंदरराज के बस्तर में कंटीन्यू करने पर ऐतराज नहीं होगा। फिर भी देखना होगा, चुनाव आयोग क्या फैसला लेता है।
दो और आईजी
छत्तीसगढ़ कैडर के दो आईपीएस अधिकारियों का सेंट्रल डेपुटेशन कंप्लीट हो गया है। सात साल बाद दोनों आईपीएस केंद्र से रिलीव हो गए हैं। इनमें से 2004 बैच के आईपीएस अंकित गर्ग ने पुलिस मुख्यायल में ज्वाईनिंग दे दी है तो 2005 बैच के आईपीएस राहुल भगत अगले महीने ज्वाईन करेंगे। गर्ग और भगत आईजी लेवल के अधिकारी हैं और दोनों बस्तर के कई जिलों में पोस्टेड रह चुके हैं। नक्सली हिंसा जब चरम पर था, तब अंकित गर्ग दंतेवाड़ा और बीजापुर में एसपी रहे। राहुल भगत भी कांकेर और नारायणपुर में एसपी रह चुके हैं। समझा जाता है कि विधानसभा चुनाव के बाद जब बस्तर आईजी रिप्लेस होंगे तो इनमें से किसी एक को वहां की जिम्मेदारी मिलेगी। बहरहाल, अंकित और गर्ग के आने के बाद सूबे में आईजी की संख्या बढ़कर 11 हो जाएगी। इस वक्त डॉ0 आनंद छाबड़ा, सुंदरराज, अजय यादव, बद्री नारायण मीणा और आरिफ शेख रेंज में आईजी हैं। वहीं, ओपी पाल, संजीव शुक्ला, आरपी साय और सुशील द्विवेदी मुख्यालय में पोस्टेड हैं। अंकित और राहुल दो और बढ़ गए। एक समय था जब पांच रेंज और चार से पांच आईजी हो गए थे। ऐसे में कई डीआईजी को प्रभारी आईजी बनाकर रेंज में पोस्ट करना पड़ा था।
कर्नाटक जीत का इम्पैक्ट
कर्नाटक में बीजेपी के हाथ से सत्ता फिसलने का असर छत्तीसगढ़ में चल रही ईडी की कार्रवाइयों पर भी पड़ेगा...इसको लेकर चर्चाएं शुरू हो गई हैं। असल में, कोल स्केम की रिपार्ट बेंगलोर में दर्ज है। कर्नाटक की पुलिस इस सिलसिले में दो-तीन बार रायपुर आ चुकी है। अब चूकि वहां कांग्रेस की सरकार आ गई है तो जाहिर तौर पर यह सवाल उठ रहे कि वहां अगर केस खारिज हो गया तो...?। और जब मूल केस ही खारिज हो जाएगा तो फिर ईडी की कार्रवाई कैसे सरवाईव कर पाएगी। दरअसल, मनी लॉड्रिंग एक्ट के तहत ईडी खुद एफआईआर दर्ज नहीं करती। किसी जांच एजेंसी में दर्ज मामले को वह आगे बढ़ाती है। राज्य पुलिस, आईटी या सीबीआई के बाद ही ईडी की इंट्री होती है।
गजब की किस्मत
राज्य निर्वाचन आयुक्त ठाकुर राम सिंह को सरकार ने छह महीने का और एक्सटेंशन दे दिया। इससे पहिले उन्हें दो बार छह-छह महीने का एक्सटेंशन मिल चुका है। ये तीसरा मौका है, जब सरकार ने उन्हें सेवा विस्तार दिया है। निर्वाचन में राम सिंह का छह साल का कार्यकाल पिछले साल मई में खतम हुआ था। हालांकि, इस महीने 10 तारीख को उनका एक साल का एक्सटेंशन समाप्त हो रहा था तो मानकर चला जा रहा था कि अब किसी और को निर्वाचन की कमान सौपी जाएगी। मगर आखिरी समय में उनके एक्सटेंशन की फाइल फिर बढ़ गई। बहरहाल, पोस्टिंग के मामले में राम सिंह किस्मत के धनी हैं। पिछली सरकार में उन्होंने रायपुर, बिलासपुर, रायगढ़ और दुर्ग याने प्रदेश के चारों टॉप के जिलों में कलेक्टरी की। छत्तीसगढ़ में किसी डायरेक्ट आईएएस को भी इन चार जिलों की कलेक्टरी करने का अवसर नहीं मिला है। वो भी छह महीने, साल भर की नहीं...चारों जिलों में उन्होंने 10 साल कलेक्टरी की। रिटायर होने के बाद सरकार ने उन्हें राज्य निर्वाचन आयुक्त की पोस्टिंग दी। और इस सरकार में उन्हें तीन बार एक्सटेंशन मिल गया। है न गजब की किस्मत।
शुक्ला को एक्सटेंशन
प्रमुख सचिव डॉ. आलोक शुक्ला की तीन साल की संविदा पोस्टिंग इस महीने 31 को समाप्त हो जाएगी। शुक्ला के पास स्कूल शिक्षा के साथ ही चेयरमैन माध्यमिक शिक्षा मंडल और व्यापम के साथ ही रोजगार मिशन के डायरेक्टर का दायित्व है। सरकार ने आचार संहिता के पूर्व सितंबर तक मिशन मोड में नियुक्तियों को कंप्लीट करने के निर्देश दिए हैं। ऐसे में, सरकार आलोक शुक्ला की सेवाओं को कंटीन्यू करना चाहेगी। लिहाजा, यह मान कर चला जा रहा कि उन्हें एक्सटेंशन मिलने पर कोई संशय नहीं है। 86 बैच के आईएएस अधिकारी आलोक शुक्ला 2020 में रिटायर हुए थे।
सेकेंड पोस्टिंग
रिटायर होने के बाद नौकरशाहों को अभी तक एक पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग मिल पाती थी। वो भी तब जब तगड़ा जैक हो और सरकार के साथ ट्यूनिंग अच्छी हो। मगर रिटायर नौकरशाहों को अब दूसरी पोस्टिंग भी मिलने लगी है। चीफ सिकरेट्री से रिटायर होने के बाद विवेक ढांड रेरा के चेयरमैन बनाए गए थे। रेरा से रिटायर होने के बाद उन्हें इनोवेशन आयोग का प्रमुख बनाया गया है। उधर, मुख्य सूचना आयुक्त से रिटायर होने के बाद एमके राउत रेड क्रॉस सोसाइटी के सीईओ अपाइंट हुए हैं। उनसे पहले सूचना आयुक्त से रिटायर होने के बाद अशोक अग्रवाल रेडक्रॉस सोसाइटी के चेयरमैन बने थे। राउत और अग्रवाल में गुरू-चेला का संयोग बना हुआ है। राउत जब कलेक्टर रायपुर थे, अग्रवाल रायपुर के एसडीएम रहे। अग्रवाल सूचना आयुक्त बने तो राउत वहां मुख्य सूचना आयुक्त बन गए। और अग्रवाल रेड क्रॉस चेयरमैन बनकर पहुंचे तो राउत उनके उपर सीईओ बन गए। कहने का मतलब यह है कि दोनों का साथ नहीं छुट रहा है।
रापुसे की बारी
सरकार ने इस हफ्ते राज्य प्रशासनिक सेवा के 39 अधिकारियों का जंबो ट्रांसफर किया। इनमें अधिकांश वे अधिकारी हैं, जिनका तीन साल हो गया था या वे विधानसभा चुनाव तक तीन साल के दायरे में आने वाले थे। राप्रसे के बाद अब राज्य पुलिस सेवा के अधिकारियों का नम्बर है। गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू ने पुलिस महकमे के शीर्ष अधिकारियों की बैठक लेकर तीन साल वाले अधिकारियों की लिस्ट बनाने निर्देशित भी किया है। हालांकि, रापुसे अधिकारियों का ट्रांसफर सीएम लेवल पर होता है। मगर नोटशीट जाती है गृह विभाग से ही। बहरहाल, रापुसे की लिस्ट की चर्चाएं तेज हो गईं हैं।
ईडी की नजर
ईडी ने पंजीयन विभाग से पांच साल के रजिस्ट्रियों का ब्यौरा मांगा है। कुछ दिन पहले ईडी के अफसर पंजीयन मुख्यालय पहुंचे और अपनी रिक्वायरमेंट रखा। बताते हैं, मुख्यालय ने कहा कि विभागीय अधिकारियों से परामर्श लेकर वे जानकारी मुहैया करा पाएंगे। बताते हैं, महाधिवक्ता से राय मांगी गई है कि ईडी को जानकारी दी जाए या नहीं। ईडी को पांच साल की जानकारी मिलेगी या नहीं, ये बाद की बात है...मगर रजिस्ट्री अधिकारियों की हालत खराब है। क्योंकि, रजिस्ट्रियों में गाइडलाइंस में बड़ा गोलमाल किया गया है। हाईप्रोफाइल कालोनियों में स्थित प्लाटों को एग्रीकल्चर लैंड बताकर रजिस्ट्री कर दी गई। रजिस्ट्री विभाग ने इसकी जांच का आदेश दिया तो दलालों और भूमाफियाओं ने 30 पेटी चंदा करके जांच रोकवा दिया। हालांकि, ये खेला सिर्फ पांच साल का नहीं है। शुरू से ऐसा हो रहा है। मगर ईडी ने पांच साल का मांगा है, सो इस पीरियड में पोस्टेड अफसरों की हालत पतली हो रही।
ट्रांसफर में भाजपा नेता
राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद लंबे समय तक कार्यकर्ताओं की यह शिकायत रही कि कई मंत्री अब भी भाजपा शासन में मलाई खाने वालों की ठेका-सप्लाई का काम दे रहे हैं। साढ़े चार साल बाद बदलाव तो आया, लेकिन एक विभाग ऐसा है, जहां अभी भी एक भाजपा नेता के इशारे पर ट्रांसफर, पोस्टिंग हो रही। व्यापार प्रकोष्ठ के नेता का प्रभाव ऐसा है कि सीनियर अधिकारियों द्वारा नोटशीट में कुछ और लिखा जाता है, आदेश कुछ और होता है। दरअसल, मंत्रीजी सीधे-सादे हैं...सो, बीजेपी नेता और एक पटवारी ट्रांसफर, पोस्टिंग का खेला संचालित कर रहे हैं।
अंत में दो सवाल आपसे
1. छत्तीसगढ़ के ऐसे आईएएस अफसरों का नाम बताइये, जो चार साल तक मौज काटने के बाद अब रणनीति के तहत किनारे हो लिए हैं?
2. एक सिकरेट्री का नाम बताइये, जो पिछले 15-20 दिन से वे कहां हैं किसी को नहीं मालूम?
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