तरकश, 16 जून 2024
संजय के. दीक्षित
छत्तीसगढ़ और खतरे की आहट
छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण के मामले आमतौर पर आदिवासी इलाकों में ज्यादा होते थे। मगर अब गैर आदिवासी इलाकों में यह संख्या इतनी तेजी से बढ़ी है कि सूबे के सामाजिक ताने-बाने परआईपीएस खतरे मंडराने लगे हैं। खासकर, जांजगीर, सक्ती, बलौदा बाजार, सारंगढ इलाकों में वृहत पैमाने पर धर्मांतरण कराए जा रहे। इससे इन इलाकों में न केवल उच्छृंखलता बढ़ी है बल्कि अराजकता के हालात बनते जा रहे हैं। इन इलाकों में आए दिन युवाओं की नई सेनाएं गठित हो रही हैं...और पुलिस चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रही। सरकार के साथ सामाजिक संस्थाओं के लिए ये बड़ी चुनौती होगी। क्योंकि, हालात यही रहा तो सिचुएशन और खराब होगा। जाहिर है, बस्तर के दो वर्गों में पहले से तनाव चल रहा है। मैदानी इलाकों में कम-से-कम सामाजिक सौहार्द्र मुकम्मल रहे, इसके लिए सामाजिक संस्थाओं और धर्म गुरूओं को सक्रिय होना पड़ेगा। क्योंकि, कुछ काम ऐसे होते हैं, जो सरकारों के लिए संभव नहीं होते।
कलेक्टर, CEO में जंग
जिलों में कलेक्टर और जिला पंचायत के सीईओ सबसे बड़े अफसर होते हैं। इनमें अगर आपस में टकराव शुरू हो जाए, तो समझा जा सकता है कि फिर जिले में कैसी अराजकता होगी। और वही हुआ। रायपुर के एक पड़ोसी जिले के कलेक्टर ने सरकार के शीर्ष अफसरों को पत्र लिखकर सीईओ की शिकायत की थी और महिला सीईओ कलेक्टर की कंप्लेन कर रही थी। मंत्रालय के अफसरों को पहले लगा कि दोनों में से किसी एक की शिकायत सही होगी। मगर बाद में पता चला कि दोनों के बीच कमीशन को लेकर विवाद चल रहा था। अगर उसी समय दोनों की छुटटी कर दी होती तो हो सकता था कि जो हुआ, वह नहीं होता। लेकिन, यह भी सही है कि होनी को कौन टाल सकता है।
प्रशासन का इकबाल
बलौदा बाजार से पहले छत्तीसगढ़ में छोटे-बड़े कई सामुदायिक विवाद हो चुके हैं। इनमें से कई बार पुलिस को स्थिति को काबू में करने बल भी प्रयोग करने पड़े। बिलासपुर शहर से लगे चकरभाटा एयरपोर्ट के आगे बोड़सरा में कई साल तक तनाव कायम रहा। 2008 में बोड़सरा में सतनामी समाज का मेला लगा था। वहां जैतखाम को लेकर विवाद हो गया। देखते-ही-देखते प्रदर्शन इतना उग्र हो गया कि बिलासपुर के तत्कालीन एसपी प्रदीप गुप्ता की उंगली में तलवार लग गई। स्थिति को संभालने एसपी ने लाठी चार्ज का आदेश दिया। इसी तरह 2013 में सर्व आदिवासी समाज सीएम हाउस का घेराव करने जा रहा था। आईजी थे मुकेश गुप्ता। भीड़ अनियंत्रित होने लगी तो लाठी चार्ज का आदेश दिया। समाज के बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। कुछ साल पहले एक और समाज के लोग विधानसभा घेरने जा रहे थे, उस समय भी राजधानी पुलिस ने जमकर लाठी चार्ज किया था। इसके बाद फिर कभी विधानसभा का घेराव करने का किसी ने साहस नहीं किया। कहने का आशय यह कि पुलिस और प्रशासन के बड़ा कोई नहीं होता। और यह भी सही है कि प्रशासन इकबाल से चलता है। वक्ती जरूरत इकबाल बहाल करना होना चाहिए।
फील्ड पोस्टिंग क्यों?
यह छत्तीसगढ़ में सालों से चल रहा कि अफसर की विदाई के दो-एक साल पहले उसे अच्छी पोस्टिंग मिल जाती है। सरकारों को इस ट्रेंड को बदलना चाहिए। क्योंकि, नौकरी में रहते 25 साल, 30 साल में अफसर ने कुछ नहीं किया तो आखिरी समय में राज्य के लिए कौन सा तीर मार देगा। जाहिर है, फील्ड या मलाईदार पोस्टिंग में अधिकांश अफसर बुढ़ापे के साथ अगली दो-तीन पीढ़ियों के लिए इंतजाम में लग जाते हैं। ऐसे में, सरकार की प्राथमिकताएं प्रभावित होती हैं। बता दें, बलौदा बाजार कलेक्टर का भी अगले साल रिटायरमेंट है।
विधायकों से खतरे
आने वाले समय में छत्तीसगढ़ में बीजेपी सरकार को विपक्ष से अधिक अपने विधायकों से प्राब्लम फेस करने पड़ सकते हैं। क्योंकि, कांग्रेस विधायकों ने जो किया, उसी नक्शे कदम पर बीजेपी के अधिकांश विधायक चल पड़े हैं। इनोवा गाड़ी उनके लिए छोटी होती जा रही...फारचुनर से नीचे कई विधायक बात नहीं कर रहे। पहली बार के विधायकों से आप सीधे बात नहीं कर सकते। अहंकार तो आसमान पर। पीए या पीएसओ की इच्छा होगी तो बात कराएगा वरना, आप फोन लगाते रहिये। सरगुजा के एक युवा विधायक को पार्टी को बड़ी उम्मीद रही होगी। बड़े धूमधड़ाके के साथ सियासत के पिच पर उन्हें उतारा गया था। मगर उनके बारे में आप सुनेंगे तो सहसा विश्वास नहीं होगा। जनता के प्रतिनिधि का ऐसा आचरण कैसे हो सकता है। भूपेश बघेल सरकार को उनके विधायकों ने डूबोया...सरकार से अधिक उनके विधायकों का एंटी इंकाबेंसी था। उसी तरह के वायरस बीजेपी के विधायकों में आ गए हैं। कहां से कितना गांधी जी के दर्शन हो जाएं, सिर्फ एक ही गुनतारा। रेत माफियाओं को संरक्षण, ठेकेदारों और अफसरों से उनकी युगलबंदी बढ़ती जा रही। सरकार और बीजेपी के लिए यह खतरे का संकेत हैं। वक्त रहते सरकार को अपने विधायकों को टाईट करना चाहिए। क्योंकि, सामने नगरीय निकाय चुनाव है।
सियासत के नए रंग
छत्तीसगढ़ में सियासत गजब रंग दिखा रहा है। डिप्टी सीएम अरुण साव खुद की मजबूती के लिए संघर्षरत थे। अब बीजेपी ने उनके खुद के विधानसभा इलाके के तोखन साहू को केंद्रीय मंत्री ही नहीं बनाया बल्कि उन्हें शहरी मंत्रालय दे दिया। एक तो अरुण के सजातीय, उपर से विभाग भी सेम। अरुण के पास राज्य का नगरीय विभाग है तो राज्य मंत्री ही सही, तोखन के पास केंद्र का। छत्तीसगढ़ के राजनीतिक दिग्गज भी बीजेपी की इस राजनीति को समझ नहीं पा रहे। कोई कह रहा, अरुण के कद को कम किया गया है। जाहिर है, एक ही समाज के दो लोग तो किसी-न-किसी के हाइट को फर्क तो पड़ेगा। मगर जानकारों का कहना है कि देश में तेली समाज से और कोई नेता जीता नहीं। पिछली सरकार में असम से रामेश्वर तेली केद्रीय मंत्री थे। जातिगत राजनीति के युग में तेली समाज से किसी को मंत्री बनाना था। सो, तोखन के अलावा मोदी जी के पास कोई विकल्प नहीं था। बाकी तो मोदी जी और अमित शाह बताएंगे, इसके पीछे का असली राज। अपन तो इसमें खुश हैं कि हमर बिलासपुर के विकास को अब चार चांद लगेंगे।
IAS बिहार शिफ्थ
सुकमा के एसडीएम लक्ष्मण तिवारी बिहार जा रहे हैं। वे आईपीएस पत्नी के बेस पर अपना कैडर चेंज करा लिया है। लक्ष्मण तिवारी काफी तेज-तर्राट आईएएस अफसर हैं। उस तरह के अफसर, जो बड़े सपने और हौसले लेकर ब्यूरोक्रेसी में आते हैं और गांधीजी की फोटो देखकर बदलते नहीं। लक्ष्मण वही हैं, जिन्हें सरगुजा संभाग की एक महिला नेत्री ने उन्हें सूरजपुर से सीधे सुकमा भिजवा दिया था। लगभग 900 किलोमीटर दूर। कसूर यह था कि महिला के रेत ठेकेदार पति की गाड़ियों को उन्होंने पकड़ लिया था। अच्छे अफसर सरकार के एसेट होते हैं। ब्यूरोक्रेसी को ऐसे अफसरों को रोकना चाहिए। दिग्विजय सिंह ने वैसे ही छांट के अफसरों को यहां भेज दिया था। वरना, आप भी देखते होंगे मध्यप्रदेश में ब्यूरोक्रेसी की अभी भी रीढ़ की हड्डी बची हुई है।
अंत में दो सवाल आपसे
1. ढाई साल से डीजी प्रमोट होने की आस में बैठे आईपीएस अरुणदेव और पवनदेव की डीजी बनने की भागीरथी प्रतीक्षा कब पूरी होगी?
2. क्या बस्तर से लता उसेंडी को विष्णुदेव मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी?
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