तरकश, 27 अक्टूबर 2025
संजय के. दीक्षित
मंत्रियों का बढ़ा ब्लडप्रेशर
बीजेपी के गुजरात प्रयोग ने छत्तीसगढ़ के मंत्रियों का ब्लडप्रेशर ऐसा बढ़ा दिया है कि उनकी रात की नींद उड़ गई है। कुछ को बीपी की दवाई का डोज बढ़ाना पड़ गया है। रात में डरावने सपने आ रहे...खासकर बड़े धूमधाम से नवा रायपुर के आलीशान बंगले में प्रवेश करने वाले मंत्रियों को भय सताने लगा है...कुछ दिन बाद कहीं अपने घर न लौटना पड़ जाए। जाहिर है, गुजरात में मंत्रियों का सामूहिक इस्तीफा लेकर कई को घर बिठा दिया गया। छत्तीसगढ़ की स्थिति भी गुजरात अच्छी नहीं बल्कि और गड़बड़ है। बीजेपी के लोग ही दावा करते घूम रहे कि राज्योत्सव या अधिक-से-अधिक अगले साल होली से पहले मंत्रियों से सामूहिक इस्तीफा ले लिया जाएगा। सरकार, पार्टी और संघ के लोग भी दबी जुबां से स्वीकार कर रहे कि कुछ मंत्रियों का प्रयोग बहुत अच्छा नहीं रहा। अलबत्ता, बीजेपी गुजरात मॉडल उन सभी राज्यों में लागू करने वाली है, जहां मंत्रियों का परफर्मेंस ठीक नहीं। अब इसमें छत्तीसगढ़ शामिल है या नहीं, पुख्ता तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। मगर इससे छत्तीसगढ़ के मंत्रियों की हालत पतली हुई जा रही है।
मंत्रियों की चिंता
छत्तीसगढ़ के मंत्रियों की चिंता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के छत्तीसगढ़ दौरे से हैं। महीने भर के भीतर पीएम मोदी चार दिन रायपुर में रुकेंगे। राज्योत्सव में वे आएंगे ही, डीजीपी कांफ्रेंस में ढाई दिन रायपुर में रहेंगे। इस दौरान 28 नवंबर की शाम वे बीजेपी मुख्यालय में कार्यकर्ताओं से मिलेंगे। पिछले साल गुजरात में भी उन्होंने ऐसा किया था। डीजीपी कांफ्रेंस में पीएम एक दिन पहले शाम को डेस्टिनेशन पर पहुंच जाते हैं। उसके बाद वे पार्टी कार्यालय जाते हैं। और दिक्कत यह है कि अधिकांश मंत्रियों से कार्यकर्ता नाखुश है। असल में, मंत्रियों का लगा कि पांच साल के लिए गद्दी मिल गई है...2028 में विधानसभा चुनाव के समय देखा जाएगा। इस ओवरकांफिडेंस में कार्यकर्ताओं का अनादर होने लगा। मगर इस बीच गुजरात की घटना हो गई। और फिर पीएम मोदी का छत्तीसगढ़ का लंबा दौरा। उपर से अमित शाह महीने में दो बार छत्तीसगढ़ आ ही रहे हैं। मंत्रियों को यही डर खाए जा रहा है...सामूहिक इस्तीफे में कहीं उनका नंबर न लग जाए।
ACS का दिल्ली प्रस्थान
बैचमेट के मुख्य सचिव बनने के बाद छत्तीसगढ़ के 94 बैच के एक आईएएस सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली जा रहे हैं। राज्य सरकार ने इसके लिए डीओपीटी को पत्र लिख दिया है। दिल्ली में जैसे ही वैकेंसी क्रियेट होगी, उनकी पोस्टिंग निकल जाएगी। आईएएस वहां सिकरेट्री रैंक में इंपेनल्ड हैं। सो, पोस्टिंग मिलने में दिक्कत नहीं होगी। इस लेवल पर अप्लाई करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। हर तीन-चार महीने में रोलिंग लिस्ट निकलती रहती है। बता दें, 94 बैच के दो आईएएस यहां हैं। बैचमेट विकास शील के चीफ सिकरेट्री बनने के बाद स्वाभाविक तौर पर दोनों अनकंफर्ट फील कर रहे हैं। इनमें से एक को अभी कुछ काम है, इसलिए यहां रुकेंगे, मगर दूसरे का आदेश किसी भी दिन आ सकता है। ऐसे में, सरकार को उच्च स्तर पर अफसर की जरूरत होगी, और उसमें बड़ा टोटा है। दो में से एक एसीएस चले जाएंगे। प्रमुख सचिव भी तीन ही हैं। उनमें से एक सुबोध सिंह सीएम सचिवालय में हैं। बचे निहारिका बारिक और सोनमणि बोरा। लगता है, सोनमणि का ट्राईबल डिपार्टमेंट किसी सिकरेट्री रैंक के अफसर को देकर उन्हें दिल्ली जाने वाले अफसर का विभाग सौंपा जाएगा।
दिवाली, शराब और लाठी
अभी तक होली में शराब दुकानों पर मेला लगता था, मगर अब आलम यह हो गया कि दिवाली के दिन भिलाई में शराब दुकान पर अनियंत्रित भीड़ को काबू करने पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ गया। दरअसल, शराब दुकान पर लोग ऐसे उमड़े कि मुख्य मार्ग जाम होने लगा। इससे त्यौहारी खरीदी करने निकले लोगों की गाड़ियां फंसने लगी। ऐसे में, रोड से भीड़ हटाने पुलिस के पास लाठी भांजने के अलावा कोई चारा नहीं था। लक्ष्मी पूजा जैसे पवित्र और शुचिता के पर्व पर अगर शराब की इस रुप में इंट्री हो जाए, तो यह चिंता की बात है...आत्ममंथन की आवश्यकता भी...हम और हमारी पीढी किस दिशा में जा रही है।
अफसर एक, भूमिका अनेक
छत्तीसगढ़ के एक आईपीएस अधिकारी के कंधे पर सिस्टम ने इतनी जिम्मेदारियां डाल दी है कि वे हैरान होंगे...अकेला आदमी...किधर-किधर जाउं...क्या-क्या करूं। बात कुछ महीने पहले आईपीएस अवार्ड हुए पंकज चंद्रा की हो रही है। पंकज की मूल पोस्टिंग कमांडेंट 13वीं सशस्त्र बटालियन बांगो है। गृह विभाग ने उन्हें 12वीं बटालियन बलरामपुर का अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंप रखी है। पुलिस मुख्यालय ने बिहार चुनाव के लिए फोर्स लेकर उन्हें बिहार जाने का आदेश निकाल दिया है। इधर, 22 अक्टूबर को गृह विभाग से एक आदेश निकला...बलरामपुर के प्रभारी पुलिस अधीक्षक बनाने का। वहां के एसपी बैंकर वैभव रमनलाल फाउंडेशन कोर्स करने दो महीने के लिए हैदराबाद जा रहे हैं। पंकज प्रभारी पुलिस अधीक्षक बनकर पता नहीं बलरामपुर पहुंचे या रास्ते में होंगे...दो दिन बाद 24 अक्टूबर को उन्हें कोंडागांव का एसपी अपाइंट किया गया। हालांकि, एसपी की फर्स्ट पोस्टिंग के हिसाब से पंकज को जिला तो अच्छा मिला है। मगर वे हैरान होंगे कि उपर वाले अचानक इतना प्रसन्न कैसे हो गया, आए दिन एक पोस्टिंग टपक जा रही।
IPS की एक और लिस्ट
राज्य सरकार ने चार जिलों के पुलिस अधीक्षकों का ट्रांसफर किया। जिन जिलों के कप्तानों को बदला गया, उनमें राजनांदगांव, मनेंद्रगढ़, सक्ती और कोंडागांव शामिल है। इनमें से एक जिले के एसपी को हटाकर पुलिस मुख्यालय राहत की सांस ले रहा है। क्योंकि, पिछले करीब छह महीने से पीएचक्यू इस कोशिश में रहा कि एसपी को हटाया जाए। मगर फेविकोल इतना तगड़ा था कि कोई हिला नहीं पा रहा था। अब जाकर कामयाबी मिली। बहरहाल, एसपी स्तर पर एक छोटी लिस्ट और आएगी। महासमुंद के एसपी आशुतोष सिंह को सीबीआई में एसपी की पोस्टिंग मिल गई है। चूकि भारत सरकार ने आदेश जारी कर दिया है, इसलिए राज्य सरकार को उन्हें रिलीव कर वहां नया पुलिस अधीक्षक भेजना होगा। उधर, चौथी बटालियन के कमांडेंट प्रफुल्ल ठाकुर को सक्ती का पुलिस अधीक्षक बनाया गया है मगर बटालियन में किसी की पोस्टिंग नहीं हुई है। हो सकता है, राज्योत्सव के बाद एक आदेश और निकले।
छत्तीसगढ़, CBI और IPS
महासमुंद के एसपी आशुतोष सिंह डेपुटेशन पर सीबीआई में एसपी बनकर जा रहे हैं। जाहिर है, सीबीआई देश की सबसे प्रतिष्ठित जांच एजेंसी है। खास बात यह है कि सीबीआई में छत्तीसगढ़ कैडर के आईपीएस अधिकारियों को हमेशा अहम जिम्मेदारियां मिलती रहीं है। सबसे पहले एडीजी अमित कुमार की बात करें। अमित पूरे 12 साल सीबीआई में रहे और ज्वाइंट डायरेक्टर पॉलिसी जैसी पोस्टिंग की। सीबीआई में जेडी पॉलिसी का पद काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। सीबीआई डायरेक्टर के बिहाफ में जेडी पॉलिसी पीएमओ से सीधे कनेक्ट रहते हैं। अमित कुमार के बाद आईपीएस अभिषेक शांडिल्य और रामगोपाल गर्ग भी सीबीआई में डेपुटेशन किया। जीतेंद्र मीणा और नीतू कमल अभी भी वहीं हैं, और अब आशुतोष सिंह जा रहे। यह पहला मौका होगा, जब सीबीआई में छत्तीसगढ़ काडर के एक साथ तीन आईपीएस पोस्ट होंगे। जीतेंद्र मीणा, नीतू कमल और आशुतोष सिंह।
IPS, ट्रेनिंग और डंपिंग यार्ड!
छत्तीसगढ़ बनने के बाद पुलिस की ट्रेनिंग पर कभी ध्यान नहीं दिया गया। नक्सलियों के चलते कांकेर में जंगल वार कॉलेज जरूर बना। नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई में इस ट्रेनिंग कॉलेज का योगदान भी काफी अहम रहा। लेकिन, चंदखुरी पुलिस एकेडमी, जो पुलिस का रेगुलर ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट है, उसे कभी फोकस नहीं मिला। इस एकेडमी में डायरेक्टर के तौर पर एक एसपी स्तर का अधिकारी होता था और पीएचक्यू में आईजी या एडीजी लेवल का अधिकारी। उसमें भी प्रमोटी ज्यादा होते थे। मगर इस समय ट्रेनिंग में अफसरों की भरमार हो गई है। एक एडीजी, दो आईजी, दो डीआईजी और एक एसपी। एडीजी दीपांशु काबरा, आईजी डॉ0 आनंद छाबड़ा, आईजी रतनलाल डांगी, डीआईजी सदानंद, डीआईजी सुजीत कुमार और एसपी डॉ0 अभिषेक पल्लव। इनमें सिर्फ सुजीत कुमार प्रमोटी आईपीएस हैं, बाकी सभी आरआर। सदानंद सशस्त्र बल की ट्रेनिंग में हैं, वह भी आखिर पुलिस का ही पार्ट है। चलिये, ठीक है...शायद पुलिस की ट्रेनिंग अब कुछ दुरूस्त हो जाएगी।
कलेक्टर्स अब रिपीट नहीं?
प्रशासनिक सुधार की दिशा में सरकार कई स्तर पर कार्य कर रही है। कलेक्टरी से पहले आईएएस अफसरों से मिनिस्ट्री और डायरेक्ट्रट की पोस्टिंग कराकर अफसरों को इस रुप में तैयार करना चाह रही कि जिले में कलेक्टर बनकर जाए या फिर रायपुर में एचओडी बनें...कांफिडेंस से काम कर सकें। उधर, कलेक्टरी के लिए एक नार्म तैयार किया जा रहा। इसमें कलेक्टर बनने का टाईम थोड़ा बढ़ाया जाएगा। छत्तीसगढ़ में 2019 बैच के आईएएस कलेक्टर बनना शुरू हो गए हैं। याने आईएएस में सलेक्शन के छह साल के भीतर जिला मिलने लगा है। बाकी राज्यों में यह पीरियड सात से नौ साल है। इससे भी वर्किंग प्रभावित हो रही। जो अफसर एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी हैं, उन्हें तो दिक्कत नहीं, मगर एवरेज लेवल के कलेक्टरों का परफर्मेंस इससे गड़बड़ा रहा। दूसरा विचार इस पर भी किया जा रहा कि लगातार कलेक्टरी की बजाए एक या दो जिले के बाद कुछ ब्रेक दिया जाए, फिर दूसरा जिला मिले। मगर टेन्योर अच्छा मिलेगा। कुछ साल से छह महीने साल भर में कलेक्टर बदल दिए जाते थे, अब दो, पौने दो साल का वक्त दिया जाएगा। अब खुद ही हिट विकेट हो जाए, तो फिर बात अलग है।
IFS को इम्पॉर्टेंस
छत्तीसगढ़ में आईएफएस अफसरों का एक ऐसा दौर था, जब पीडब्लूडी, आवास पर्यावरण और एनर्जी में आईएफएस सचिव होते थे। रमन सिंह के दौर में ढाई दर्जन से अधिक आईएफएस अधिकारियों को सरकार के विभागों में विभिन्न जिम्मेदारिया मिली हुई थी। मगर इसके बाद कैडर का डाउनफॉल होता गया। इसकी एक बड़ी वजह आईएएस अधिकारियों की बढ़ती संख्या भी रही। मगर कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस में डीएफओ को बुलाकर सरकार ने फिर से इस कैडर को अहमियत देनी शुरू की है। सुशासन संवाद में तीन कलेक्टरों के साथ एक डीएफओ से भी प्रेजेंटेशन का मौका दिया गया। डिवीजन में भी अब अच्छे अफसरों को बिठाया जा रहा है। कुछ दिन पहले तक 33 में से 18 प्रमोटी आईएफएस डीएफओ थे। इनमें से 12 को हटा दिया गया है। याने अब सिर्फ छह प्रमोटी डीएफओ बच गए हैं। हालांकि, डायरेक्ट वाले ही अच्छा काम करते हैं...यह जरूरी नहीं। मगर यह सही है कि प्रमोटी वाले ज्यादा फ्लेक्सिबल होते हैं। और सिस्टम यही तो चाहता है। मगर हालात अब बदल रहे हैं।
पूर्व सीएस को पोस्टिंग?
मुख्य सचिव के लंबे कार्यकाल का रिकार्ड बना रिटायर हुए अमिताभ जैन को पोस्ट रिटायमेंट पोस्टिंग क्या मिलेगी, इस पर सस्पेंस बना हुआ है। अभी तक जितने भी मुख्य सचिवों को रिटायरमेंट के बाद पोस्टिंग मिली, उसमें इतना विलंब नहीं हुआ। आरपी मंडल को रिटायरमेंट के 20 मिनट के भीतर एनआरडीए चेयरमैन बनाने का आदेश आ गया था। मगर अमिताभ को रिटायर हुए 25 दिन निकल गए, अभी कोई सुगबुगाहट नहीं है। अलबत्ता, रिटायरमेंट के आखिरी दिनों में जब वे मुख्यमंत्री विष्णुदेव के साथ जापान और साउथ कोरिया गए थे, तब अटकलें तेज हुई थी कि प्रदेश के मुखिया के साथ विदेश गए हैं, यकीनन उनका कुछ अच्छा ही होगा। उसी समय बिजली नियामक आयोग के चेयरमैन का पद खाली हुआ था। ऐसे में, लोगों ने अंदाजा लगाया कि अमिताभ अब बिजली आयोग के ही चेयरमैन बनेंगे। मगर अभी तक बिजली आयोग का पद विज्ञापित हुआ और न ही मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति केस से हाई कोर्ट का स्टे हटा। असल में, सरकार में बैठा एक वर्ग मानता है कि पिछले सरकार में सीएस बने अमिताभ जैन को सरकार ने नहीं हटाया, फिर पौने पांच साल से अधिक समय तक ब्यूरोक्रेसी की सबसे उंची कुर्सी पर बैठने का मौका दिया गया। इसके बाद और क्या? यही परसेप्शन अमिताभ जैन के रास्ते में रोड़ा अटका रहा। हालांकि, मुख्य सूचना आयुक्त के लिए अमिताभ ने इंटरव्यू दिया है। और खबरें भी इसी तरह की है कि हाई कोर्ट से स्टे क्लियर होते ही उनकी नियुक्ति हो जाएगी। मगर सवाल उठता है कब तक? महाधिवक्ता ऑफिस में भी इसको लेकर कोई सक्रियता नहीं महसूस की जा रही। तो फिर मजरा क्या है...ये उपर बैठे लोग ही बता पाएंगे। वैसे ये सत्य है कि राज्योत्सव और पीएम विजिट की व्यस्तता काफी है, ऐसे में किसी को उपकृत करने वाली पोस्टिंग की बात सूझेगी नहीं।
अंत में दो सवाल आपसे?
1. जिस राज्य में नक्सल मोर्चे पर ऐतिहासिक कामयाबी मिलने जा रही, वहां प्रभारी पुलिस प्रमुख...क्या ये आदर्श स्थिति है?
2. सत्ताधारी पार्टी के भीतर से ब्यूरोक्रेसी पर हमले क्यों हो रहे हैं?
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