तरकश, 5 अक्टूबर 2025
संजय के. दीक्षित
अफसरशाही की रफ्तार!
अफसरशाही को योजनाओं के रिव्यू की तरह कभी-कभी अपने परफार्मेंस का भी एसेसमेंट करना चाहिए। दरअसल, बात ऐसी है कि पिछले साल सितंबर में कलेक्टर, एसपी कांफ्रेंस हुई थी। जीएडी और पुलिस मुख्यालय ने कांफ्रेंस में सीएम के निर्देशों को कलेक्टर, एसपी को भेज दिया। मगर इसके बाद बात आई-गई खतम हो गई। अफसरों को सुध नहीं रहा कि एक बार पता लगा लें कि कलेक्टर, एसपी को निर्देश दिए, उस पर कितना अमल हुआ। अभी 12 और 13 अक्टूबर को कलेक्टर, एसपी कांफ्रेंस तय हुआ तो अधिकारियों को खयाल आया कि पिछले साल के कांफ्रेंस का फीडबैक तो लिया नहीं गया...आनन-फानन में जीएडी और पीएचक्यू ने कलेक्टर, एसपी को पत्र भेज लास्ट कांफ्रेंस की कंप्लायंस रिपोर्ट मंगवाई गई है। अफसरशाही को रफ्तार थोड़ी ठीक करनी चाहिए।
मंत्रियों का परफार्मेंस
भले ही थोड़ा वक्त लगा...मगर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने अपनी प्रशासनिक टीम मजबूत कर ली है। पौने पांच साल बाद प्रशासनिक मुखिया बदला ही, मंत्रालय में करीब 80 परसेंट सिकरेट्री अब पहले से बेहतर हैं। पांचों पुलिस रेंज के आईजी निर्विवाद छबि के हैं तो 33 में से बीसेक जिलों के कलेक्टर, एसपी काम करने वाले हैं। अब मंत्रियों के परफार्मेंस पर फोकस करना चाहिए। क्योंकि, 13 मंत्रियों में पब्लिक को तीन-चार ही काम करते लगते हैं। बाकी किधर, क्या कर रहे, पता नहीं चल रहा। ठीक है, योजनाओं का क्रियान्वयन अफसर करते हैं मगर सरकार का पॉलीटिकल एक्सपोजर मंत्रियों की छबि और उनकी सक्रियता से होता है। आखिर, केंद्र के मंत्री किस तरह लगातार राज्यों का दौरा कर रहे हैं? छत्तीसगढ़ के मंत्रियों को भी जिलों में जाकर अपने विभाग का काम देखना चाहिए। मंत्रियों के फील्ड में जाने का प्रभाव तो पड़ता है। इस समय हो ऐसा रहा कि मंत्री रायपुर में रहते हैं या फिर सीधे अपने गृह जिले का रुख करते हैं। उपर से अभी भी कई मंत्री अपने विभागों को समझ नहीं पा रहे। इसका खामियाजा यह हो रहा कि सप्लाई, ठेका, खरीदी में बिचौलियों का हस्तक्षेप कम नहीं हो पा रहा। सरकार और संगठन को इसे देखना चाहिए।
राजभवन में नया एडीसी
हमेशा से ऐसा होता आया है, राजभवन में एडीसी रहने के बाद आईपीएस अधिकारियों को ठीकठाक जिले में एसपी बनाकर भेजा जाता है। विवेकानंद से लेकर दीपांशु काबरा, आनंद छाबड़ा, राहुल शर्मा, अमरेश मिश्रा, मयंक श्रीवास्तव, अभिषेक पाठक, रामगोपाल गर्ग, अभिषेक शांडिल्य, भोजराम पटेल, त्रिलोक बंसल, विवेक शुक्ला, सूरज सिंह परिहार तक हमेशा ऐसा ही होता रहा। मगर पहली बार ऐसा हुआ कि आईपीएस उमेश गुप्ता को एडीसी नियुक्त किया गया, लेकिन सुनील शर्मा की कहीं पोस्टिंग नहीं दी गई। राजभवन से पहले सुनील शर्मा अंबिकापुर के एसपी रहे और चर्चा थी कि उन्हें बिलासपुर, रायपुर जैसे किसी जिले का कप्तान बनाया जाएगा, मगर पिछले साल अचानक एडीसी टू गवर्नर नियुक्त हुए तो लोग चौंके थे। और...इस हफ्ते फिर लोग चौंके जब बिना किसी जिले का एसपी बनाए सुनील शर्मा हटा दिए गए। चौंकने का विषय यह भी है कि सुनील शर्मा की जगह पर आईपीएस उमेश गुप्ता को नया एडीसी बनाया गया था, उन्होंने इस नई जिम्मेदारी से हाथ खड़ा कर दिया है। एडीसी एपिसोड पर आईपीएस बिरादरी की गहरी खामोशी से लगता है कोई संजीदा मामला है। अगर ऐसा कुछ है तो फिर आईपीएस एसोसियेशन को कुछ पूजा-पाठ करा लेनी चाहिए। बहरहाल, नए एडीसी के लिए जल्द ही तीन नए नामों को पेनल राजभवन भेजा जाएगा। उसके बाद नई नियुक्ति की जाएगी।
पुलिस कमिश्नर सिस्टम?
छत्तीसगढ़ में पुलिस कमिश्नर सिस्टम शुरू होने को लेकर जिस बात की आशंकाएं थी, वह दृष्टिगोचर होने लगी हैं। दरअसल, कोई भी रिफार्म या बदलाव यूं ही नहीं हो जाता। भांति-भांति के अवरोध आते हैं...पावर गेम का सामना करना पड़ता है। स्वाभाविक है कि किसी की बरसों की सत्ता पर आंच आएगी तो वो कैसे इसे स्वीकार करेगा। पड़ोसी राज्य ओड़िसा में नवीन पटनायक ने जब इस सिस्टम को लागू किया तो उन्हें भी अफसरशाही से लोहा लेना पड़ा था। बता दें, देश का बेस्ट पुलिस कमिश्नर सिस्टम ओड़िसा का है। विधानसभा में एक्ट पारित कर उसे बनाया गया है।
फर्स्ट पुलिस कमिश्नर
रायपुर में एक नवंबर से पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होगा...फिलहाल इसमें अब कोई संशय नहीं लगता। लोगों की जिज्ञासा यह है कि रायपुर का फर्स्ट पुलिस कमिश्नर कौन होगा? हालांकि, यह स्पष्ट हो चुका है कि आईजी लेवल का पुलिस कमिश्नर होगा। एडीजी प्रदीप गुप्ता की अध्यक्षता में बनी सात सदस्यीय कमेटी ने भी आईजी को पुलिस कमिश्नर बनाने की सिफारिश की है। और जब आईजी को इस पद पर बिठाना है तो जाहिर है कि सीटिंग आईजी को ही वेटेज दिया जाएगा। सीटिंग आईजी में सबसे सीनियर सुंदरराज बस्तर में हैं। नक्सलियों के सफाये के मार्च 2026 के डेडलाइन को देखते इस समय उन्हें कोई हिला नहीं सकता। रायपुर आईजी अमरेश मिश्रा के पास ईओडब्लू और एसीबी भी है। इन दोनों जांच एजेंसियों के पास इतना वर्कलोड है कि सरकार उन्हें डिस्टर्ब करना नहीं चाहेगी। बच गए बिलासपुर आईजी संजीव शुक्ला, दुर्ग आईजी रामगोपाल गर्ग और सरगुजा आईजी दीपक झा। तीनों साफ-सुथरी छबि के आईपीएस अधिकारी हैं। प्रोफाइल के मामले में दीपक जरूर वजनदार पड़ेंगे। वे सात जिलों के एसपी रहे हैं। आईजी के तौर पर राजनांदगांव के बाद सरगुजा में दूसरा रेंज कर रहे हैं। बहरहाल, यह तय है कि डिसाइड इन तीन नामों में से होगा।
आईपीएस की लिस्ट
वैसे तो सुनने में आ रहा कि कलेक्टर, एसपी कांफ्रेंस के बाद एसपी की एक लिस्ट निकलेगी। महासमुंद एसपी डेपुटेशन पर जा रहे हैं। दो-तीन और पुलिस अधीक्षक सरकार के राडार पर हैं। पुलिस कमिश्नर बनने के बाद महासमुंद नया पुलिस रेंज बनेगा। अजय यादव इस रेंज के आईजी बन सकते हैं। आईजी बनने वालों में बद्रीनारायण मीणा का नाम भी हैं। दुर्ग, बिलासपुर और सरगुजा आईजी में से कोई अगर रायपुर पुलिस कमिश्नर बना तो बद्री को उनकी जगह आईजी पोस्ट किया जा सकता है।
सुब्रत को रेवेन्यू बोर्ड, मगर...
विकास शील को मुख्य सचिव बनाने के बाद सरकार ने उनसे सीनियर रेणु पिल्ले और सुब्रत साहू को मंत्रालय से बाहर शिफ्थ कर दिया। दोनों को मुख्य सचिव के समकक्ष पोस्टिंगें मिली हैं। याने सम्मान का ध्यान रखा गया है। रेणु को व्यापम और माध्यमिक शिक्षा मंडल का चेयरमैन बनाया गया तो सुब्रत को प्रशासन अकादमी के डायरेक्टर जनरल के साथ अतिरिक्त प्रभार के तौर पर राजस्व बोर्ड का चेयरमैन का दायित्व सौंपा गया है। 31 अक्टूबर को टीपी वर्मा के रिटायर होने के बाद एक नवंबर को वे राजस्व बोर्ड का दायित्व संभालेंगे। हालांकि, सुब्रत का प्रशासन अकादमी का आदेश बदल सकता है। एक तो, कैडर लिस्ट में महानिदेशक प्रशासन अकादमी का पद प्रमुख सचिव लेवल का है। सुब्रत 2021 से एडिशनल चीफ सिकरेट्री हैं और अब मुख्य सचिव से सीनियर भी। फिर कायदे से रेवेन्यू बोर्ड चेयरमैन को अतिरिक्त प्रभार नहीं देना चाहिए। इससे पहले ऐसा कभी हुआ भी नहीं कि रेवेन्यू बोर्ड चेयरमैन के पास दो चार्ज रहे। सो, अंदेशा है कि 31 अक्टूबर को सरकार सुब्रत साहू के आदेश को संशोधित कर मुख्य पोस्टिंग चेयरमैन रेवेन्यू बोर्ड कर देगी। और प्रशासन अकादमी का अतिरिक्त प्रभार प्रमुख सचिव निहारिका बारिक या सोनमणि बोरा को सौंप दे।
ब्यूरोक्रेसी में दूसरे नंबर का पद
छत्तीसगढ़ में भले ही चेयरमैन रेवेन्यू बोर्ड की रेटिंग गिरा दी गई हो मगर दूसरे राज्यों में इसे नेक्स्ट टू सीएस माना जाता है। छत्तीसगढ़ के आईएएस के ग्रेडेशन लिस्ट में भी रेवेन्यू बोर्ड चेयरमैन को मुख्य सचिव के बाद दूसरे नंबर पर रखा गया है। डीएस मिश्रा और सीके खेतान को थोड़े दिन के लिए रेवेन्यू बोर्ड में अवसर मिला था, उसमें दोनों ने कई बड़े फैसले किए। बड़ी-बड़ी सीमेंट कंपनियों को हाई कोर्ट की शरण लेनी पड़ी। रेवेन्यू बोर्ड राजस्व का अपेक्स कोर्ट है। इसमें नायब तहसीलदार, तहसीलदार, कलेक्टर, कमिश्नर कोर्ट के फैसले की अपील होती है। यही नहीं, कमिश्नर लैंड रिकार्ड, माईनिंग और पंजीयन विभाग की अपील भी रेवेन्यू बोर्ड में की जाती हैं। बहरहाल बता दें, सीएस रैंक के एक आईएएस अफसर ने रेवेन्यू बोर्ड चेयरमैन रहते ऐसी तबाही मचाई थी कि सिस्टम हिल गया था। कलेक्टर-कमिश्नरों ने सरकार से फरियाद की, साहब इन्हें बदलिए...ये सारे फैसले पलटते जा रहे हैं। इसके बाद सरकार ने उन्हें रातोरात हटा दिया था।
अंत में दो सवाल आपसे
1. क्या डीएमएफ घोटाले में ईडी की जांच के जद में कुछ पूर्व कलेक्टर आ सकते हैं?
2. डीएमएफ घोटाले में लिप्त रहे छत्तीसगढ़ के सप्लायर ईडी के नाम पर कांप क्यों रहे हैं?
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