शनिवार, 28 जुलाई 2012

तरकश, 29 जुलाई


पुर्नवास


पीसी दलेई के बाद जवाहर श्रीवास्तव राजभवन के लगातार दूसरे सिकरेट्री होंगे, जिन्हें रिटायरमेंट के बाद पुनर्वास मिलेगा। याद होगा, 2010 में रिटायर होने के बाद दलेई राज्य निर्वाचन आयुक्त बने थे। और इसके बाद अब जवाहर का नम्बर है। वे अगले महीने 31 को रिटायर होंगे। जवाहर के पुनर्वास के लिए सरकार और खासकर चीफ सिकरेट्री पर भारी प्रेशर है। जीएडी का पूरा अमला इसमें जुटा है.......साब के लिए कहां कुर्सी जुगाड़ी जाए। मुश्किल यह है कि पीएससी से लेकर निर्वाचन, बिजली नियामक आयोग जैसे आईएएस रिहैबिलिटेशन सेंटरों में वैकेंसी फुल है। एक, सूचना आयोग ही बचता है, जहां गुंजाइश बन सकती है। आयोग में फिलहाल दो सूचना आयुक्त हैं। जवाहर के लिए एक और पोस्ट क्रियेट की जा रही है। हालांकि, इसमें एक बड़ी अड़चन सुप्रीम कोर्ट की भी आ गई है। देश की शीर्ष अदालत ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पिछले हफ्ते कें्रद सरकार को निर्देश दिया कि जब तक मामले की सुनवाई पूरी न हो जाए, तब तक केंद्रीय सूचना आयोग में गैर न्यायिक क्षेत्र के लोगों को आयुक्त अपाइंट न करें। याचिका में कहा गया है कि आयोग का वर्क नेचर न्यायिक है, इसलिए न्यायिक फील्ड से जुड़े लोगों को ही आयुक्त बनना चाहिए। सरकार भी इससे वाकिफ है, सो, दूसरे विकल्पों पर भी विचार किया जा रहा है। कोशिश यह है कि रिटायरमेंट के हफ्ते भर के भीतर जवाहर को पुनर्वास आदेश थमा दिया जाए। आखिर, बड़ी सिफारिश जो है।

 
एक वो.....

कांग्रेस के समय विद्या भैया का कभी जलवा रहा.....उनका मौखिक टीप आदेश हो जाता था। मगर अब, नेताओं का पहले जैसा रुतबा कहां रहा। आलम यह है, केंद्रीय संस्थान भी कांग्रेस के बड़े नेताओं को अहमियत नहीं दे रहे हैं। इसका एक नमूना देखिए, 23 जुलाई को प्रदेश के इकलौते केंद्रीय मंत्री चरणदास महंत के पिता स्व. बिसाहूदास महंत की पुण्यतिथि थी। बिलासपुर में उनके समर्थकों ने महंतजी के मुख्य आतिथ्य में कुष्ठरोगियों का एक कार्यक्रम कराने के लिए रेलवे से नार्थ ईस्ट इंस्टिट्यूट सभागृह मांगा था। मगर रेलवे ने महज इसलिए इंकार कर दिया कि अफसरों की महिलाओं का दो दिन बाद सावन उत्सव था। और इसके लिए वहां रिर्हसल चल रहा था। महंत के लोगों ने खूब मनुहार की.....रिर्हसल दोपहर में होता है, हमें शाम को दे दो। मगर रेलवे अफसरों ने हाथ खड़े कर दिए। इसकी जानकारी महंतजी को दी गई। मगर कोई फायदा नहीं हुआ। अंततः कार्यक्रम निरस्त करना पड़ा। इससे पहले, राज्य के एक सेंट्रल स्कूल ने महंतजी की पहली क्लास में दाखिले की सिफारिश को यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि इसके लिए दिल्ली कार्यालय में संपर्क करें।

रिपोर्ट कार्ड


अगले साल चुनाव को देखते सरकार ने कलेक्टरों की सर्जरी में पारफारमेंस को प्राथमिकता देने की कोशिश की..। सीएम ने अपने कवर्धा और राजनांदगांव में बढ़ियां काम करने वाले सिद्धार्थ कोमल परदेशी को राजधानी की कमान सौंपी। वहीं, अनुभवी आईएएस अशोक अग्रवाल को अपने निर्वाचन जिला राजनांदगांव का कलेक्टर बनाया। बताते हैं, कलेक्टर कांफ्रेंस से पहले सरकार ने सभी कलेक्टरों और जिन्हें कलेक्टर बनाना है, उनका रिपोर्ट कार्ड बना लिया था। पारफारमेंस संतोषजनक न होने के कारण ही बिलासपुर ननि कमिश्नर यशवंत कुमार कलेक्टर न बन सकें। उन्हें रायगढ़ जिला पंचायत का सीईओ बनाया गया। कोरबा कलेक्टर आपीएस त्यागी का नाम रायगढ़ के लिए चर्चा में था। मगर अमित कटारिया किसी वजह से रुक गए, सो त्यागी को जांजगीर किया गया। वैसे भी, अनगिनत उद्योगों के आने से जांजगीर की अहमियत बढ़ गई है। फेरबदल में भुवनेश यादव को झटका ज्यादा लगा है। कई साल तक बस्तर में काम किए यादव को एक तो लेट में जिला मिला, उसमें भी नारायणपुर। कुछ और आईएएस के रिपोर्ट कार्ड अच्छे थे मगर अपरिहार्य कारणों से उन्हें मौका न मिल सका। संकेत हैं, राज्योत्सव के बाद दिसंबर में एक छोटी सर्जरी होगी, उसमें उन्हें चांस मिल सकता है।

कलेक्टर दंपति

सरकार ने फेरबदल में कलेक्टरों के पेयर का भी बराबर खयाल रखा। अंबलगन बस्तर के कलेक्टर हैं और उनकी पत्नी ममगई महसमंुद की थी। ममगई को कांकेर का कलेक्टर बनाया गया है। पड़ोसी जिला होने के कारण अंबलगन दंपति अब बिना चीफ सिकरेट्री की इजाजत के भी मिल सकेंगे। हालांकि, पहले भी ऐसा होता रहा है। मध्यप्रदेश के समय सुयोग्य मिश्रा और इंदिरा मिश्रा भिंड और दतिया के कलेक्टर रहे। छत्तीसगढ़ में भी इससे पहले, विकास शील बिलासपुर कलेक्टर थे तो उनकी पत्नी निधि छिब्बर सटे जिला जांजगीर में रहीं। इसके बाद अविनाश चंपावत कांकेर के और उनकी पत्नी नेहा धमतरी की कलेक्टर रहीं। इस मामले में रोहित यादव की किस्मत ठीक नहीं रही। वे रायपुर के कलेक्टर रहे और उनकी पत्नी रीतू सेन 600 किलोमीटर दूर कोरिया की।

उलझन

राज्य सरकार ने डिप्टी कलेक्टर अर्जुन सिंह सिसोदिया को बिलासपुर ट्रांसफर कर वहां के कलेक्टर ठाकुर राम सिंह की उलझनें बढ़ा दी है। सिसोदिया, रामसिंह के बड़े साढ़ू हैं। याने रिश्ते में छोटा और पोस्ट में बड़ा। वास्तविकता यह है कि बिना टाईट किए डिप्टी कलेक्टर काम नहीं करते। और यही, रामसिंह के लिए यह परेशानी का सबब बन गया है। सिसोदिया को ना बोले तो गड़बड़ और बोल दिए, तो शाम को घर भी लौटना है, घरवाली की सुननी पड़ेगी। वैसे भी, बिलासपुर में उनके रिश्तेदारों की कमी थोड़े ही थी। आधा दर्जन से अधिक निकटतम रिश्तेदार तो बिलासपुर शहर में हैं.....पूर्व विधायक ठाकुर बलराम सिंह समेत पहले से ही तीन साढू। साले-सालियों का बड़ा परिवार। फिर रिश्तेदार के रिश्तेदार। सबके सब कांग्रेसी और खासा प्रभावशाली।

छोटी सूची

कलेक्टरों के बाद पुलिस महकमे में भी अगले हफ्ते एक छोटी सूची निकलने की खबर है। इनमें दो-एक जिलों के एसपी इधर-से-उधर किए जाएंगे। बाकी एडिशनल एसपी होंगे। आईपीएस में बड़ा फेरबदल अब नवंबर में होगा, जब डीजीपी अनिल नवानी रिटायर होंगे और आईजी संजय पिल्ले, मुकेश गुप्ता और आरके विज पदोन्नत होकर एडीजी बनेंगे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. पिछले एक दशक से धुंआधार पारी खेल रहे आईएफएस अफसर संजय शुक्ला को आउट कर मूल विभाग में भेजने में किसका हाथ रहा?
2. सीएसआईडीसी से रिटायर हुए किस दागी अधिकारी को उद्योग मंत्री राजेश मूणत का ओएसडी बनाने की कोशिश हो रही है?

1 टिप्पणी: