11 दिसंबर
संजय दीक्षित
13 साल में पहली बार ब्यूरोक्रेसी बंदूक की तरह काम करती दिख रही है। खास कर सीएम के अमेरिका से लौटने के बाद से। ऐसा क्यों, यह आपको बाद में बताएंगे। पहले इसे समझिए, मंत्रालय की मीटिंगों में जिन एसीएस, पीएस के मुंह से आवाज नहीं निकलती थी, वे खुद इनिसियेटिव लेकर बोल रहे हैं….लीड लेने की कोशिश कर रहे हैं….बताना चाह रहे हैं कि उनका सब कुछ सरकार के प्रति समर्पित है। यह भी पहली बार हुआ कि सीएम ने कैशलेस के लिए प्रभारी सचिवों की बैठक ली और उसी दिन प्रभारी सचिवों ने प्रभार वाले जिलों की ट्रेन पकड़ ली या अगले दिन सुबह ही गाड़ी से निकल पडे़। कलेक्टर कैशलेस के लिए सड़क पर उतर गए हैं….ठेलों पर चाय पी रहे हैं….किराना दुकान में जाकर ईपेमेंट कर रहे हैं। ऐसा तो जोगी के समय भी नहीं था। ब्यूरोक्रेसी के चार्ज होने के पीछे कई कारण गिनाए जा रहे हैं। पहला, कैशलेस का टास्क मोदी ने दिया है। सो, मामला गड़बड़ाया तो सरकार अपनी सौम्यता नहीं दिखाने वाली। दूसरा, एसीएस अपना पारफरमेंस इसलिए दिखाना चाह रहे हैं क्योंकि मंत्रालय के गलियारों में चर्चा तेज है कि फरवरी, मार्च याने बजट सत्र तक नया चीफ सिकरेट्री तय होना है। तीसरा, कुछ अफसर रिटायर होने वाले हैं, उन्हें ठीक-ठाक पुनर्वास चाहिए। और चौथा, जिलों में कलेक्टरों से लेकर मंत्रालय में सचिवों के तबादले होने हैं। ऐसे में, आज्ञाकारी बच्चे की तरह गुरूजी को प्रसन्न नहीं रखे तो मतलब आप समझ सकते हैं। पूरा जुगाड़ और स्वार्थ का मामला है। इसके अलावा कुछ और नहीं। आखिर, अफसर ऑफ द रिकार्ड यह सवाल उठा ही रहे हैं, छत्तीसगढ़ में कैशलेस संभव है?
13 साल में पहली बार ब्यूरोक्रेसी बंदूक की तरह काम करती दिख रही है। खास कर सीएम के अमेरिका से लौटने के बाद से। ऐसा क्यों, यह आपको बाद में बताएंगे। पहले इसे समझिए, मंत्रालय की मीटिंगों में जिन एसीएस, पीएस के मुंह से आवाज नहीं निकलती थी, वे खुद इनिसियेटिव लेकर बोल रहे हैं….लीड लेने की कोशिश कर रहे हैं….बताना चाह रहे हैं कि उनका सब कुछ सरकार के प्रति समर्पित है। यह भी पहली बार हुआ कि सीएम ने कैशलेस के लिए प्रभारी सचिवों की बैठक ली और उसी दिन प्रभारी सचिवों ने प्रभार वाले जिलों की ट्रेन पकड़ ली या अगले दिन सुबह ही गाड़ी से निकल पडे़। कलेक्टर कैशलेस के लिए सड़क पर उतर गए हैं….ठेलों पर चाय पी रहे हैं….किराना दुकान में जाकर ईपेमेंट कर रहे हैं। ऐसा तो जोगी के समय भी नहीं था। ब्यूरोक्रेसी के चार्ज होने के पीछे कई कारण गिनाए जा रहे हैं। पहला, कैशलेस का टास्क मोदी ने दिया है। सो, मामला गड़बड़ाया तो सरकार अपनी सौम्यता नहीं दिखाने वाली। दूसरा, एसीएस अपना पारफरमेंस इसलिए दिखाना चाह रहे हैं क्योंकि मंत्रालय के गलियारों में चर्चा तेज है कि फरवरी, मार्च याने बजट सत्र तक नया चीफ सिकरेट्री तय होना है। तीसरा, कुछ अफसर रिटायर होने वाले हैं, उन्हें ठीक-ठाक पुनर्वास चाहिए। और चौथा, जिलों में कलेक्टरों से लेकर मंत्रालय में सचिवों के तबादले होने हैं। ऐसे में, आज्ञाकारी बच्चे की तरह गुरूजी को प्रसन्न नहीं रखे तो मतलब आप समझ सकते हैं। पूरा जुगाड़ और स्वार्थ का मामला है। इसके अलावा कुछ और नहीं। आखिर, अफसर ऑफ द रिकार्ड यह सवाल उठा ही रहे हैं, छत्तीसगढ़ में कैशलेस संभव है?
थ्री आईएएस…..
तीन प्रमोटी आईएएस अफसरों का आईएएस अवार्ड खतरे में पड़ गया है। भारत सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग डीओपीटी ने उनका आईएएस कांफर्मेशन रोक दिया है। हालांकि, फिलहाल कोई कारण नहीं बताया गया है। मगर माना जा रहा है कि सीआर खराब होने के कारण डीओपीटी ने यह कदम उठाया है। बताते हैं, राज्य सरकार से प्रोबेशन क्लीयर करने के लिए डीओपीटी ने रिपोर्ट मांगी थी। जीएडी ने तीनों आईएएस अफसरों के खिलाफ चल रहे मामलों का पूरा ब्यौरा भेजा था। इसके बाद उनका प्रोबेशन लटक गया। जानकारों की मानें तो सीआर या केसेज के मामलों में डीओपीटी का रवैया बड़ा सख्त होता है। लिहाजा, तीनों आईएएस अफसरों पर डीओपीटी कोई बड़ी कार्रवाई कर दें तो अचरज नहीं।
और अपना जीएडी
जीएडी बोले तो सामान्य प्रशासन विभाग। अब नाम ही सामान्य तो काम भी तो नाम के अनुरुप ही होगा न! केंद्र के डीओपीटी को देखिए, सामान्य मामलों पर भी पैनी नजर रखता है। अपना जीएडी बड़े-बड़े प्रकरणों पर भी आंख मूंद लेता है। छत्तीसगढ़ में दर्जनों ऐसे प्रकरण हैं, जिसमें सरकारी अधिकारी, कर्मचारियों के खिलाफ गंभीर अपराध दर्ज होने के बाद भी प्रमोशन मिल गया। बहुचर्चित 2005 पीएससी केस में डिप्टी कलेक्टर से लेकर सहकारिता निरीक्षक तक सभी 183 के खिलाफ एसीबी में चार सौ बीसी से लेकर कई गंभीर धाराओं में केस दर्ज है। मगर किसी का न प्रोबेशन रुका, न प्रमोशन। यह तो एक बानगी है। ऐसे ढेरों प्रकरण हैं। और, इसीलिए वो डीओपीटी है और यह जीएडी।
नए साल में
कैशलेस के चलते कुछ दिनों के लिए कलेक्टरों के ट्रांसफर टल गए हैं। दरअसल, सरकार ने कैशलेस के लिए अभियान छेड़ दिया है। कलेक्टरों को 31 दिसंबर तक अल्टीमेटम दिए गए हैं। ऐसे में, कलेक्टरों का बदलना मुनासिब नहीं समझा जा रहा। क्योंकि, नए कलेक्टरों को नए जिले को समझने-बूझने में भी वक्त निकल जाएगा। सो, मानकर चलिए अब नए साल में ही कलेक्टरों के तबादले होंगे।
अजय चंद्राकर का तीर्थाटन
पंचायत एवं हेल्थ मिनिस्टर अजय चंद्राकर दक्षिण के तमाम देवी-देवताओं से आर्शीवाद एवं ताकत लेकर छत्तीसगढ़ लौट आए हैं। उन्होंने हफ्ता भर से ज्यादा समय साउथ में बिताया। बालाजी में मुंडन भी कराए। चलिये, नया साल उनका बढ़ियां जाए। 2015 तो बहुत बुरा रहा। जिसमें कोई मामला नहीं बनता, उसमें भी वे उलझ गए। उनको खुद नहीं समझ में आ रहा था कि ये क्या हो रहा है। कई बार उनके जुबां फिसल गए। तो उन्हें जान से मारने की सुपारी वाली खबर भी चर्चा में रही। उनकी राजनीतिक निष्ठा पर भी सवाल उठते रहे। कभी लोग बोलते थे, वे सरकार के पाले में हैं तो कभी विरोधी मंत्रियों के गुट में।
बड़ा भीम
बस्तर आईजी शिवराम प्रसाद कल्लूरी बड़े भीम निकल गए। धमतरी कलेक्टर भीम सिंह को ब्रेन हैम्ब्रेज होने के बाद समझ लिया गया था कि वे कलेक्टर की ट्रेक से अब गए। मगर आश्चर्यजनक तौर पर रिकवरी करते हुए 15 दिन में धमतरी में प्रगट होकर काम संभाल लिया। बल्कि, प्रमोट होकर अंबिकापुर के कलेक्टर बन गए। वैसा ही कुछ कल्लूरी के मामले में हुआ है। कल्लूरी को जब विशाखापटनम शिफ्थ किया गया तो वे इतने तकलीफ में थे कि हेलिकाप्टर में उन्हें खड़े होकर जाना पड़ा। यूरिन नहीं होने से उनका यूरिन ब्लाडर भर गया था। इसके चलते वे बैठ नहीं पा रहे थे। इसीलिए, एयरफोर्स के एम-17 हेलिकाप्टर से उन्हें भेजा गया। उसकी उंचाई अधिक होती है। वहां किडनी के साथ ही मल्टीब्लॉकेज निकल गया। बाईपास के हफ्ते भर के भीतर वे बस्तर के अफसरों से फोन पर बात भी कर रहे हैं। आपरेशन के दो दिन बाद से कल्लूरी पेप्सी की फारमाइश शुरू कर दी थी। कोल्ड ड्रिंक उनका पंसदीदा पेय है। बहरहाल, कोई आश्चर्य नहीं कि दो-तीन दिन बाद वे जगदलपुर लौट आएं।
अंत में दो सवाल आपसे
1. मंत्रालय में होने वाली बैठकों में कौन दो एडिशनल चीफ सिकरेट्रीज अतिसक्रिय हो गए हैं?
2. रमन सिंह ने मंत्रिमंडल में फेरबदल की संभावना को खारिज कर दिया है। क्या ऐसा ही होगा?
2. रमन सिंह ने मंत्रिमंडल में फेरबदल की संभावना को खारिज कर दिया है। क्या ऐसा ही होगा?
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