1 जनवरी
संजय दीक्षित
भिलाई-चरौदा एवं सारंगढ़ चुनाव में सीनियर एवं अनुभवी की बजाए नए खिलाड़ियों पर दांव लगाना लगता है, कांग्रेस को महंगा पड़ गया। दिग्गज नेताओं को छोड़ कांग्रेस ने चरौदा में रायपुर के महापौर प्रमोद दुबे और भिलाई के महापौर देवेंद्र यादव को चुनाव संचालक बनाया था। तो सारंगढ़ में स्व0 नंदकुमार पटेल के एमएलए बेटे उमेश यादव को। जबकि, सत्ताधारी पार्टी ने अपने दोनों सीनियर मंत्रियों को मैदान में उतारा था। चरौदा में बृजमोहन अग्रवाल और सारंगढ़ में अमर अग्रवाल। दोनों मंत्री पिछले दो दशक से लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं। जाहिर है, इलेक्शन मैनेजमेंट में इनका कोई जोर नहीं है। वहीं, प्रमोद दुबे और देवेंद्र यादव पहली बार बार कोई बड़ा चुनाव जीतकर मेयर बनें हैं। यही स्थिति उमेश पटेल के साथ रही। दोनों जगह शुरू से ही कांग्रेस का चुनाव अभियान बिखरा-बिखरा रहा। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस में बृजमोहन और अमर के मुकाबिले कोई नेता नहीं हैं। फिर भी कांग्रेस ने प्रमोद और देवेंद्र को आगे किया तो कुछ तो लोग कहेंगे ही। लोग कह रहे हैं कि प्रमोद और देवेंद्र पार्टी में तेजी से उभर रहे हैं, इसलिए उन्हें चरौदा में निबटाया गया है। चलिये, कांग्रेस हारी है तो उसे इस तरह की बातों को फेस करने ही पड़ेंगे।
संजय दीक्षित
भिलाई-चरौदा एवं सारंगढ़ चुनाव में सीनियर एवं अनुभवी की बजाए नए खिलाड़ियों पर दांव लगाना लगता है, कांग्रेस को महंगा पड़ गया। दिग्गज नेताओं को छोड़ कांग्रेस ने चरौदा में रायपुर के महापौर प्रमोद दुबे और भिलाई के महापौर देवेंद्र यादव को चुनाव संचालक बनाया था। तो सारंगढ़ में स्व0 नंदकुमार पटेल के एमएलए बेटे उमेश यादव को। जबकि, सत्ताधारी पार्टी ने अपने दोनों सीनियर मंत्रियों को मैदान में उतारा था। चरौदा में बृजमोहन अग्रवाल और सारंगढ़ में अमर अग्रवाल। दोनों मंत्री पिछले दो दशक से लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं। जाहिर है, इलेक्शन मैनेजमेंट में इनका कोई जोर नहीं है। वहीं, प्रमोद दुबे और देवेंद्र यादव पहली बार बार कोई बड़ा चुनाव जीतकर मेयर बनें हैं। यही स्थिति उमेश पटेल के साथ रही। दोनों जगह शुरू से ही कांग्रेस का चुनाव अभियान बिखरा-बिखरा रहा। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस में बृजमोहन और अमर के मुकाबिले कोई नेता नहीं हैं। फिर भी कांग्रेस ने प्रमोद और देवेंद्र को आगे किया तो कुछ तो लोग कहेंगे ही। लोग कह रहे हैं कि प्रमोद और देवेंद्र पार्टी में तेजी से उभर रहे हैं, इसलिए उन्हें चरौदा में निबटाया गया है। चलिये, कांग्रेस हारी है तो उसे इस तरह की बातों को फेस करने ही पड़ेंगे।
अहम चुनाव
चरौदा और सारंगढ़ महज नगर निगम और नगर पालिक के चुनाव नहीं थे। बीजेपी के लिए इन दोनों स्थानीय चुनाव के बड़े मायने थे। खासकर प्रदेश सरकार के लिए। दरअसल, नोटबंदी के बाद देश में छोटे-छोटे से चुनावों पर पीएमओ नजर रख रहा है। चंडीगढ़ के बाद छत्तीसगढ़ में दो सीटों पर चुनाव थे। इसमें अगर बीजेपी शिकस्त खाती तो मैसेज जाता, नोटबंदी के चलते भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। तभी तो पीएमओ रिजल्ट की पल-पल की खबर ले रहा था। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी ट्विट कर जीत के लिए बधाई दी।
अंत बुरा
कांग्रेस के लिए 2016 का अंत अच्छा नहीं रहा। साल खतम होने के एक दिन पहले डबल झटका मिल गया। चुनाव में पार्टी चारों खाने चित तो हुई ही नोटबंदी के लिए छत्तीसगढ़ बंद कराया, वो भी बुरी कदर फ्लाप हो गया। दरअसल, बंद का डेट भी कांग्रेस ने ठीक से नहीं चुना। 30 दिसंबर के सुबह से बीजेपी के पक्ष में रूझान आने शुरू हो गए थे। इससे व्यापारियों में मैसेज गया कि नोटबंदी के बाद जनता सत्ताधारी पार्टी पर विश्वास जता रही है तो वे बंद करके सरकार को नाराज क्यों करें। कांग्रेस अगर एक दिन पहले बंद का आयोजन की होती तो 30 दिसंबर से तो अच्छी स्थिति होती। अब तो राजनीतिक पार्टियां बंद कराने से पहिले दस बार सोचेंगी।
राजीव और दिनेश
स्टेट पुलिस सेवा से आईपीएस बनें राजीव श्रीवास्तव रिकार्ड बनाकर आज रिटायर हो गए। देश के वे तीसरे आईपीएस होंगे, जो स्टेट पुलिस से डीजी तक पहुंचे। इससे पहिले सिक्किम और हरियाणा में एक-एक बार ऐसा हो चुका है। राजीव के जज्बे को एप्रीसियेट करना होगा, ताकतवर आईएएस लॉबी से जुझकर वे डीजी बनने में कामयाब हो गए। एक तरह कहें तो साल 2016 राजीव को वो दे गया, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना नहीं की होगी। हालांकि, आईएएस में दिनेश श्रीवास्तव का 2016 अच्छा नहीं कहा जा सकता। राजीव की तरह श्रीवास्तव होने के बाद भी वे अपना प्रमोशन नहीं करा सकें। मार्च में उन्हें सिकरेट्री से ही बिदा लेना पड़ा।
बड़ा फेरबदल
राजीव श्रीवास्तव के रिटायर होने के बाद पुलिस मुख्यालय में एक अहम फेरबदल होना तय हो गया है। राजीव के पास सीआईडी था। सीआईडी के साथ डीजीपी कुछ और विभागों में बदलाव के लिए सोच रहे हैं। यही वजह है कि पीएचक्यू के अफसरों ने डीजीपी के आगे-पीछे होना तेज कर दिया है।
2 को डीपीसी
आईजी अरूणदेव गौतम, पवनदेव समेत 10 आईपीएस अफसरों की डीपीसी 2 जनवरी को होगी। इनकी डीपीसी राजीव श्रीवास्तव के साथ ही 16 दिसंबर को होनी थी। मगर कुछ अफसरों के एसीआर नहीं होने के कारण मामला आगे बढ़ गया था। डीपीसी के बाद गौतम और पवनदेव एडीजी प्रमोट हो जाएंगे।
कलेक्टरों की क्लास
नए साल के नए महीने में अबकी पहली बार सीएम कलेक्टर्स, एसपी की क्लास लेने जा रहे हैं। वरना, पिछले 13 साल से मई, जून में रमन सर की कलेक्टर्स, एसपी की क्लास लगती थी। वजह, चुनाव का समय नजदीक आते जा रहा है। कायदे से कहें तो सरकार के पास काम करने के लिए नौ महीने शेष हैं। चुनावी साल में काम-धाम होते नहीं। घोषणाएं ज्यादा होती है। फिर तीन महीना आचार संहिता। बचा 2017। इसमें तीन महीने बरसात ले जाएगा। बचे नौ महीने में राज्योत्सव, क्रिसमस, होली, दिवाली सब है। लिहाजा, सरकार अब ट्वेन्टी-ट्वेंटी के स्टाईल में बैटिंग करने की रणनीति बना रही है। इसलिए, कलेक्टर, एसपी को तलब किया जा रहा है। 9 जनवरी को सीएम कलेक्टर्स और जिला पंचायतों के सीईओ से जवाब-तबल करेंगे और अगले दिन 10 जनवरी को कलेक्टर्स एवं एसपी से।
ट्रांसफर अब अप्रैल में?
कलेक्टरों के ट्रांसफर अब और आगे जा सकता है। हो सकता है, अप्रैल न पहुंच जाए। पहले, दिसंबर में होना था। लेकिन, कैशलेस के चलते टल गया। सरकार ने कैशलेस के लिए कलेक्टरों को 31 दिसंबर का टारगेट दे दिया था। अब, कलेक्टर्स, एसपी कांफ्रेंस के चलते फिर इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि अब बजट सत्र के बाद तबादले किए जाएं। तब तक कई कलेक्टरों के दो साल पूरे हो जाएंगे। या जिनका कम है उनका कम से कम डेढ़ साल तो हो ही जाएंगे। कलेक्टरों की सूची अप्रैल में निकालने के पीछे सरकार की रणनीति यह भी होगी कि जिन कलेक्टरों को जिले में भेजा जाएं, चुनाव तक वे लगभग डेढ़ साल कंप्लीट करें। अभी पोस्टिंग का मतलब होगा, नवंबर 2018 तक लगभग दो साल होने को आ जाएगा। ऐसे में, चुनाव आयोग की तलवार उन पर लटकी रहेगी। डेढ़ साल होने पर चुनाव आयोग के राडार से कलेक्टर बच जाएंगे। अलबत्ता, 9 एवं 10 जनवरी को जिन एक-दो कलेक्टरों का परफारमेंस एकदम पुअर दिखेगा, उनकी सेम डे छुट्टी कर सकती है सरकार।
अंत में दो सवाल आपसे
1. डीजी बनने के बाद राजीव श्रीवास्तव को पोस्ट रिटायरमेंंट पोस्टिंग मिलेगी?
2. दुधमुंहा बच्चे होने के बाद भी आईएएस रानू साहू को सरकार ने अंबिकापुर क्यों ट्रांसफर कर दिया?
2. दुधमुंहा बच्चे होने के बाद भी आईएएस रानू साहू को सरकार ने अंबिकापुर क्यों ट्रांसफर कर दिया?
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