रविवार, 30 जून 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: डिनर और सियासत

 तरकश, 30 जून 2024

संजय के. दीक्षित

डिनर और सियासत 

सियासत में चाय और डिनर के अपने निहितार्थ होते हैं...भारत में तो चाय पर चर्चा के बाद लोगों ने सरकार गिरते भी देखा है। तमिलनाडू की मुख्यमंत्री जयललीता सोनिया गांधी के यहां चाय पीने गई और अटलजी की सरकार गिर गई थी। बहरहाल, बात यहां छत्तीसगढ़ के सांसद के डिनर की। दरअसल, राजनांदगांव के सांसद संतोष पाण्डेय ने 28 जून को दिल्ली के अपने सरकारी निवास में हाई प्रोफाइल दावत रखी थी। जाहिर है, पाण्डेय जी को मोदी कैबिनेट 3.0 में मंत्री बनाए जाने की बड़ी चर्चाएं थी। अटकलों में पंख लगाने वालों के तर्क नाहक नहीं थे। संतोष के साथ संघ का टैग लगा ही है, राजनांदगांव सीट से दूसरी बार निर्वाचित हुए और वो भी भूपेश बघेल जैसे कांग्रेस के दिग्गज नेता को पराजित कर। खैर...बात डिनर की। संतोष पाण्डेय के डिनर में शामिल होने रायपुर से मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और संगठन मंत्री पवन साय, प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंहदेव ही नहीं पहुंचे बल्कि दिल्ली से शीर्ष नेता बीएल संतोष, शिवप्रकाश और अजय जामवाल ने भी शिरकत की। संतोष पाण्डेय का नार्थ एवेन्यू के 173 नंबर के घर में शाम से हाई प्रोफाइल डिनर की तैयारियां हो रहीं थीं...बड़ी शख्सियतों को आना था, सो गहमागहमी भी थी। शाम होते ही छत्तीसगढ़ के सांसदों का जमावड़ा लगने लगा। करीब दो घंटे तक डिनर चला। जाहिर है, इतने बड़े लोग जिस डिनर में शिरकत कर रहे हो, उसमें दाल, सब्जी और पाताल के झोझो के रेसिपी पर तो चर्चा नहीं हुई होगी। इस खास डिनर से सांसद संतोष पाण्डेय का कद बढ़ गया है। रेगुलर फ्लाइट केंसिल हो जाने पर सीएम विष्णुदेव साय चार्टर प्लेन से दिल्ली पहुंचे। उपर से बीएल संतोष, शिवप्रकाश और अजय जामवाल जैसे नेता उनके घर आए...सूबे के सारे सांसदों को जुटा लिया...कवर्धा वाले पाण्डेय जी ने वाकई कमाल कर दिया।

दलित कोटे से मंत्री?

छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव कैबिनेट में मंत्रियों के दो पद खाली है और किसी भी दिन शपथ के लिए राजभवन में समारोह आयोजित किया जा सकता है। 12 मंत्रियों के कोटे में एक पद पहले से खाली था और दूसरा बृजमोहन अग्रवाल के सांसद निर्वाचित होने से खाली हुआ है। इसमें सामान्य वर्ग के साथ ही दलित याने सतनामी समुदाय के भी अपने दावे और सियासी दलील हैं। दावे इसलिए क्योंकि कांग्रेस सरकार में सतनामी समुदाय से दो मंत्री रहे...शिव डहरिया और रुद्र गुरू। बीजेपी की चार सरकारों में रमन कैबिनेट 3.0 को छोड़ दें तो तीनों में एक-एक दलित नेता को मंत्री बनाने का मौका मिला। रमन कैबिनेट 3.0 में पुन्नूराम मोहले और दयाल दास बघेल मंत्री रहे। उससे पहले रमन कैबिनेट 1.0 में डॉ0 कृष्णमूर्ति बांधी और 2.0 में पुन्नूराम मोहले मंत्री रहे। फिलवक्त विष्णुदेव साय कैबिनेट में दयालदास बघेल इस समाज का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। अब सियासी दलील...। राजनीतिक नफे-नुकसान के हिसाब से देखें तो मंत्रिमंडल में दावेदारी को लेकर दलितों का पलड़ा भारी दिखाई पड़ रहा है। जाहिर है, यूपी, बिहार जैसे दीगर राज्यों के साथ छत्तीसगढ़ में भी बीजेपी का दलित समाज से दुरियां बढ़ी है। एक समय था, जब अनुसूचित जाति का आरक्षण कम होने के बाद भी 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी 10 में से नौ विधानसभा सीटें जीतने में कामयाब हो गई थी। मगर विशुद्ध तौर पर वह मैनेजमेंट का कमाल था। इसके बाद 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को धक्का लगा ही, 2023 के एसेम्बली इलेक्शन में पार्टी चार सीटें जीत पाई। बसपा का गढ़ कहे जाने वाली जांजगीर में बीजेपी को हमेशा तीन-से-चार सीटें मिल जाती थी। इस चुनाव में सभी छह सीटें कांग्रेस ले उड़ी। बलौदा बाजार की घटना के बाद बीजेपी दलित वोट बैंक के छिटकने की आशंका और बढ़ गई होगी। क्योंकि, इसमें आपसी सियासत भी तेज है। सरकार ने गिरौदपुरी की समिति से विजय गुरू को हटाकर गुरू बालदास को नियुक्त कर किया। जानकारों का कहना है कि बलौदा बाजार घटना का बीजारोपण इसी दिन हो गया था। सो, बीजेपी भी चाहेगी कि सतनामी समाज में उसकी पकड़ और मजबूत हो...गुरू बालदास को भी मजबूत किया जाए। ऐसे में, दलित समाज से एक और मंत्री बनाने की अटकलों और दावों को हल्के में नहीं लिया जा सकता।

रिटायर आईएएस का टोटा

राज्यों में कुछ आयोग ऐसे होते हैं, जिनमें आमतौर पर चीफ सिकरेट्री या इसके समकक्ष पदों से रिटायर आईएएस अधिकारियों को ही बिठाया जाता है। इनमें राज्य निर्वाचन आयुक्त भी शामिल है, जिसमें विष्णुदेव साय सरकार ने रिटायर चीफ सिकरेट्री अजय सिंह को पोस्ट किया है। इसके अलावे शीर्ष पदों से रिटायर होने वाले आईएएस अफसरों से भरे जाने वाले पदों में राजस्व बोर्ड, मुख्य सूचना आयुक्त, राज्य नीति आयोग शामिल हैं। हालांकि, नीति आयोग के उपाध्यक्ष का चार्ज सरकार ने मुख्य सचिव अमिताभ जैन को दिया है। मगर यह टेम्पोरेरी व्यवस्था ही होगी। क्योंकि, चीफ सिकरेट्री के पास वर्क लोड इतना ज्यादा होता है कि उन्हें ज्यादा दिनों के लिए अतिरिक्त प्रभार नहीं दिया जा सकता। राजस्व बोर्ड में उमेश अग्रवाल के रिटायर होने के बाद से चेयरमैन का पद खाली है। रीता शांडिल्य अभी राजस्व बोर्ड का प्रभार देख रही हैं। सरकार के सामने दिक्कत यह है कि सीनियर लेवल के ऐसे अफसर नहीं, जो हाल में रिटायर हुए हो या रिटायर होने वाले हो। यही वजह है कि अधिकांश पद पिछली सरकार के समय से खाली हैं। राज्य निर्वाचन आयुक्त का पद पिछले साल नवंबर में खाली था। राजस्व बोर्ड चेयरमैन, मुख्य सूचना आयुक्त, पीएससी चेयरमैन के पद पिछली सरकार के दौरान ही खाली हुई थी। ये तीनों प्रभार में चल रहा है। यदि यहां अफसर उपलब्ध नहीं हुए तो सरकार को दूसरे राज्यों से आयात करना पड़ेगा।

नीति आयोग में तीसरे सीएस

नीति आयोग में अभी तक तीन चीफ सिकरेट्री उपाध्यक्ष बन चुके हैं। इसमें पहला नाम सुनील कुमार का आता है। 2014 में सीएस से रिटायर होने के बाद रमन सरकार ने उन्हें 2015 में इस आयोग का उपाध्यक्ष बनाया था। सुनील 2015 से लेकर 2018 के विधानसभा चुनाव तक इस पद पर रहे। बीजेपी की पराजय के बाद सुनील ने इस्तीफा दे दिया था। फिर भूपेश बघेल सरकार ने मार्च 2019 में अजय सिंह की जगह सुनील कुजूर को चीफ सिकरेट्री बनाया और अजय को नीति आयोग में पोस्टिंग दी गई। वे 2020 में नीति आयोग से ही आईएएस से रिटायर हुए मगर उपाध्यक्ष का पद उनका बरकरार रहा। पिछले हफ्ते उन्हें राज्य निर्वाचन में शिफ्थ किया गया और अब नीति आयोग का प्रभार चीफ सिकरेट्री को दिया गया है।

डीजी की एक और डीपीसी

डीपीसी ने एडीजी अरुणदेव गौतम और हिमांशु गुप्ता को डीजी बनाने के लिए हरी झंडी दे दिया है। गृह मंत्रालय से फाइल अनुमोदन के लिए सीएम हाउस पहुंच गई है। फाइल गृह मंत्रालय में 15 दिन पड़ी रही और सीएम हाउस से खासतौर से बुलवाया गया है, इसलिए अब नहीं लगता कि इसमें विलंब होगा। दोनों अफसरों को डीजी बनाए जाने का आदेश कभी भी जारी हो सकता है। जांच की वजह से पवनदेव का लिफाफा बंद हो गया किन्तु उनका पद समाप्त नहीं किया गया है। याने उनके डीजी बनने की उम्मीदें खतम नहीं हुई है। बहरहाल, कोई व्यवधान नहीं आया तो अगस्त में डीजी के एक पद की डीपीसी और होगी। असल में, डीजीपी अशोक जुनेजा महीने भर बाद 4 अगस्त की शाम रिटायर हो जाएंगे। उसके बाद डीजी का एक पद वैकेंट हो जाएगा। इसके लिए 94 बैच के आईपीएस एसआरपी कल्लूरी दावेदार होंगे। इस बैच में तीन आईपीएस हैं। चूकि हिमांशु गुप्ता का रास्ता क्लियर हो गया है। हिमांशु के बाद जीपी सिंह आते हैं। जीपी की सेवा फिर से बहाल करने फाइल भारत सरकार गई है। उनके बाद कल्लूरी का नंबर है। अगर डीपीसी हुई तो फिर कल्लूरी को परिस्थितियों का लाभ मिल सकता है। मगर जीपी सिंह की सभी फाइले वंदे भारत के स्पीड से दौड़ गईं तो फिर कंपीटिशिन टफ हो जाएगा।

सांप गुजरने के बाद लकीर पीटना

कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार पर मंथन करने पूर्व केंद्रीय मंत्री वीरप्पा मोईली को छत्तीसगढ़ भेजा है। चार दिन के दौरे में वे रायपुर के बाद आज बिलासपुर में हैं...फिर बस्तर जाएंगे। उनके दौरे पर कांग्रेस नेता ही तंज कस रहे हैं...काश पार्टी ने विधानसभा चुनाव से पहले छत्तीसगढ़ की सुध ले लिया होता, तो ये दिन नहीं देखने पड़ते। दरअसल, सूबे के सारे नेता आपस में ही एक-दूसरे को निबटाने में लगे रहे। पहले अपनो को टिकिट दिलाने और टिकिट न मिलने पर सामने वाले को हराने में ताकत झोंक दिया। रायपुर में डॉ0 राकेश गुप्ता का टिकिट काटने से बड़ा प्रमाण क्या होगा। उन्होंने चुनाव प्रचार शुरू कर दिया था। मगर पार्टी नेताओं ने किसी फर्जी एजेंसी के सर्वे के बहाने उनका टिकिट काट दिया। दर्जन भर से अधिक मामले ऐसे हुए, जिसे पार्टी संज्ञान लेकर उपयुक्त प्रत्याशियों को मैदान में उतार चुनाव का सीन बदल सकती थी। मगर पार्टी के जिम्मेदार लोग खुद ही गुटबाजी के दलदल में फंसे रहे। ऐसे में, सूबे के कांग्रेस नेताओं का यह कहना गलत नहीं है कि सांप गुजरने के बाद पार्टी अब दिखावे के लिए लकीर पीट रही है।

विलपावर बरकरार

मंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद बृजमोहन अग्रवाल का पावर निश्चित तौर पर घट गया है मगर उनका विल पावर और सियासत में अपनी जगह बनाने का माद्दा कायम है। दिल्ली में पहली बार बीजेपी के सांसद नेशनल मीडिया पर नारे लगाते दिखे। दरअसल, स्पीकर के चुनाव के बाद लोकसभा में आपातकाल के खिलाफ संकल्प आया और इसके बाद इमरजेंसी का जिन्न एक बार फिर से जाग उठा। कुछ देर बाद बृजमोहन अग्रवाल टॉप के टीवी चैनलों पर आपातकाल के खिलाफ नारेबाजी करते नजर आए। उनके साथ में केंद्रीय राज्यमंत्री समेत पार्टी के सभी सांसद थे। दरअसल, स्टूडेंट पॉलिटिक्स से सियासत में आए बृजमोहन को पता है कि मीडिया में क्या बिकता है और कैसे अवसरों का इस्तेमाल करना चाहिए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या एसीएस सुब्रत साहू का प्रशासन अकादमी का वनवास खतम होगा...सरकार उन्हें कुछ कामकाज वाला विभाग देने जा रही है?

2. छत्तीसगढ़ के एक डीजी पुलिस का नाम बताइये, जिन्हें रिटायरमेंट के बाद एक केस में सस्पेंड होना पड़ा।



रविवार, 23 जून 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: कलेक्टर संज्ञान लें

 तरकश, 23 जून 2024

संजय के. दीक्षित

कलेक्टर संज्ञान लें

तरकश स्तंभ के टॉप पर अगर एसडीएम और पटवारी की खबर लग रही है तो आप इसकी गंभीरता को समझ सकते हैं। दरअसल, पूरे प्रदेश में एसडीएम और पटवारियों के गठजोड़ से एक बड़ा खेला चल रहा है...कागज से नाम गोल कर दो, और उसके बाद एसडीएम का चक्कर लगाकर नाम जुड़वाने की एवज में धनदोहन करो। दरअसल, जमीन के पेपर से अगर त्रुटिवश नाम हट गया हो तो सरकार ने उसके लिए एसडीएम को अधिकार दिया है कि दस्तावेजों को चेककर नाम जोड़ें। मगर इस अधिकार की आड़ में पटवारी और एसडीएम ऐसा गदर मचा डाले हैं कि आम आदमी ़त्राहि माम कर रहा है। जानकारों को इसमें साजिश की बू आ रही। क्योंकि, इतने बड़े स्तर पर नाम कैसे गायब हो सकते हैं। अधिकांश एसडीएम कार्यालयों में रोज भीड़ लग रही है...सैकड़ों की संख्या में नाम दुरूस्त करने के आवदेन जमा हो रहे हैं। प्रार्थी की हुलिया देखकर एसडीएम आफिस के बाबू रेट तय कर रहे। अगर सामान्य आदमी है तो 10 से 15 हजार और ठीकठाक तो फिर 20 हजार से लेकर 30 हजार। कलेक्टरों को इसे देखना चाहिए क्योंकि मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय भी कई मौकों पर कह चुके हैं कि राजस्व महकमे में बहुत गड़बड़ियां है। कलेक्टर अगर हर महीने इसका रिव्यू कर लें, उतने में ही एसडीएम आफिसों का गोलमाल काफी कुछ कंट्रोल हो जाएगा। वरना, सरकार अभी एक्शन मोड में है। सीधे छुट्टी या सस्पेंड किया जा रहा है।

आईएएस की पोस्टिंग

छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव सरकार ने कल तीन अफसरों की पोस्टिंग का आदेश निकाला, उसमें नम्रता जैन को सुकमा जिला पंचायत का सीईओ बनाया गया है। नम्रता की पोस्टिंग हसबैंड की पोस्टिंग के बेस पर हुई है। उनके आईपीएस पति सुकमा में एएसपी हैं। इसलिए, नम्रता सुकमा के लिए प्रयासरत थीं। और उनकी किस्मत से वहां एक आईएएस की वैकेंसी हो भी गई। दरअसल, सुकमा जिपं के सीईओ लक्ष्मण तिवारी कैडर चेंज कराकर बिहार शिफ्थ हो रहे हैं। उधर, रजत बंसल को मनरेगा आयुक्त का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है। उनके पास पहले से जीएसटी कमिश्नर, डायरेक्टर प्रधानमंत्री आवास योजना का चार्ज है। उपर से मनरेगा भी। रजत मनरेगा से ही जीसएटी में आए थे। पता चला है, दीपक सोनी के बलौदाबाजार का कलेक्टर बनकर जाने की वजह से मनरेगा आयुक्त की कुर्सी खाली हो गई थी। और ग्रामीण और पंचायत मंत्री विजय शर्मा ने बार-बार आग्रह कर रहे थे कि किसी की पोस्टिंग हो जाए। समझा जाता है, रजत की यह टेम्पोरेरी पोस्टिंग होगी। क्योंकि, जीएसटी और पीएम आवास में काफी काम है। ऐसे में हो सकता है, अगले प्रशासनिक फेरबदल में पूर्णकालिक मनरेगा आयुक्त मिल जाएगा। रही बात तीसरे आईएएस कुलदीप शर्मा को रजिस्ट्रार को-आपरेटिव सोसाइटी बनाने की तो दीपक सोनी के पास ये भी चार्ज था। सो, उनके हटने के बाद कुलदीप को रजिस्ट्रार का प्रभार मिल गया। इस पोस्टिंग से कुलदीप अपने समकक्षों में सबसे उपर हो गए हैं। उनके पास पहले से कंट्रोलर फूड एंड ड्रग्स और एमडी पाठ्य पुस्तक निगम की जिम्मेदारी है। उस पर अब रजिस्ट्रार। रजिस्ट्रार काफी रिसोर्सफुल पोस्ट माना जाता है। मध्यप्रदेश में अभी भी 15 साल से कम सर्विस वाले आईएएस को रजिस्ट्रार नहीं बनाया जाता।

कलेक्टरों की लिस्ट

लोकसभा चुनाव के बाद दो कलेक्टर हिट विकेट होकर पेवेलियन लौट चुके हैं। पहले कांकेर कलेक्टर अभिजीत सिंह हटाए गए और उनके बाद बलौदा बाजार कलेक्टर केएल चौहान की सरकार ने छुट्टी कर दी। लोकसभा चुनाव के बाद करीब दर्जन भर कलेक्टरों को बदला जाना था। इनमें से दो अपने आप बाहर हो गए। सो, लगता है पांच-सात जिलों के कलेक्टर और बदले जा सकते हैं। इनमें सरकार का पहला पैरामीटर दो साल का टेन्योरा कंप्लीट और पारफर्मेस बताया जा रहा है। खासकर, कांग्रेस सरकार में पोस्टेड कलेक्टर्स, जो जनवरी में हुए फेरबदल में बच गए, उनमें से कई को चेंज किया जाएगा या फिर किसी अन्य जिले में शिफ्थ किए जाएंगे। इनमें विजय दयाराम जगदलपुर, जन्मजय मोहबे कवर्धा, राहुल देव मुंगेली, डॉ0 रवि मित्तल जशपुर, आर एक्का बलरामपुर, विनय लंगेह कोरिया, एस0 जयवर्द्धने मानपुर-मोहला जयवर्द्धने और हरिस एस0 सुकमा शामिल हैं। इनमें से रवि मिततल खुद हटने के इच्छुक बताए जा रहे और दयाराम को अगर बीजेपी प्रेसिडेंट किरण सिंहदेव वीटो नहीं लगाए तो उन्हें हटना पड़ जाएगा। मगर ये कब तक होगा? ये अभी फायनल नहीं...मगर सीएम हाउस में नामों पर चर्चा शुरू हो गई हैं।

अजय सिंह की लाटरी

रिटायर चीफ सिकरेट्री अजय सिंह को सरकार ने नीति आयोग से हटाकर राज्य निर्वाचन आयुक्त पोस्ट कर दिया है। अब ये सवाल बाद में आएगा कि किसके लिए नीति आयोग में वैकेंसी बनाई गई है। अभी बात सिर्फ अजय सिंह की। दरअसल, इस पोस्टिंग से अजय का प्रोफाइल और प्रतिष्ठा उंची हो गई है।़ राज्य निर्वाचन आयुक्त का पद हाई कोर्ट के सीटिंग जज के समकक्ष होता है। फिर यह संवैधानिक पद है....एक बार पोस्ट करने के बाद सरकार हटा भी नहीं सकती। इसके लिए महाभियोग लाना पड़ेगा। अजय सिंह के छोटे भाई पटना हाई कोर्ट के जज हैं और अब अजय सिंह भी रैंक में उनके बराबर हो गए हैं। बहरहाल, अजय सिंह शुरू से पोस्टिंग के मामले में किस्मती रहे हैं। कांग्रेस सरकार में चीफ सिकरेट्री के पद से अचानक हटा दिए जाने के एक मामले को छोड़ दें तो 37 साल की आईएएस की सर्विस में उन्हें हमेशा अच्छी पोस्टिंग मिलती रही। रमन सरकार में वे एक समय सिकरेट्री इनर्जी के साथ बिजली कंपनी के चेयरमैन रहे। वे लंबे समय तक एक्साइज सिकरेट्री और इसी विभाग के कमिश्नर रहे। फायनेंस सिकरेट्री से लेकर अरबन एडमिनिस्ट्रेशन, हेल्थ और एपीसी का भी चार्ज उनके पास रहा। हालांकि, उनकी पोस्टिंग से राज्य निर्वाचन आयुक्त पद की गरिमा और बढ़ गई है। क्योंकि, छत्तीसगढ़ बनने के बाद सिर्फ दो ही चीफ सिकरेट्री लेवल के अफसर इस आयोग में पोस्ट हुए हैं। पहला शिवराज सिंह और दूसरे अजय सिंह। असल में, है भी ये चीफ सिकरेट्री रैंक का पद। स्केल भी सीएस का।

मंत्रिमंडल विस्तार

सत्ता के गलियारों से जैसी कि खबरें आ रही है...विष्णुदेव मंत्रिमंडल का विस्तार जुलाई फर्स्ट वीक तक हो जाएगा। इसकी वजह भी है। 12 मंत्रियों वाले स्टेट में दो-दो मंत्रियों की जगह खाली हो गई है। एक सीट पहले से खाली थी, दूसरी बृजमोहन अग्रवाल के इस्तीफे के बाद रिक्त हो गई। ऐसे में, सबसे अधिक लोड मुख्यमंत्री पर आ गया है। उनके पास पहले से ही जीएडी, माईनिंग, आबकारी, ट्रांसपोर्ट विभाग थे ही, अब बृजमोहन का शिक्षा, संस्कृति, पर्यटन और संसदीय कार्य भी आ गया है। दरअसल, 21 दिसंबर को मंत्रियों के शपथ के बाद विभागों का बंटवारा हुआ था, उस आदेश में लिखा था कि जो विभाग किसी मंत्री के पास नहीं होगा, उसे मुख्यमंत्री के पास माना जाएगा। इसी आदेश के तहत बृजमोहन के विभाग सीएम के पास आ गए। जाहिर है, नए मंत्रियों को सीएम के कुछ विभाग दिए जाएंगे तो कुछ विभागों को इधर-से-उधर किए जाएंगे।

दो सीट, आधे दर्जन दावेदार

पहली बार निर्वाचित दर्जन भर से अधिक विधायकों को आए दिन मंत्री बनने के सपने आ रहे हैं...कुछ को तो सुबह के सपने...भगवा रंग के जैकेट पहने...राजभवन में शपथ ले रहा हूं। सुबह के सपने कहा जाता है सच होते हैं...सो दो-तीन विधायकजी इतने अश्वस्त हैं कि मंत्रालय जाकर अपने बैठने की जगह-वगह भी देख आए हैं। बहरहाल, धरातल की बात करें तो...विष्णुदेव मंत्रिमंडल के दो पदों के लिए आधा दर्जन नामों की चर्चा बड़ी तेज है। इनमें रायपुर से राजेश मूणत, कुरुद के अजय चंद्राकर, दुर्ग से गजेंद्र यादव, कोंडागांव से लता उसेंडी, बिलासपुर से अमर अग्रवाल और पंडरिया से भावना बोहरा। सियासी पंडितों का दावा है कि इन छह में से दो को मंत्री बनाया जाएगा। हालांकि, इन दोनों मंत्रियों का नाम केंद्रीय नेतृत्व फायनल करेगा मगर सीएम विष्णुदेव की राय अहम रहेगी। क्योंकि, मंत्रियों से काम लेकर रिजल्ट उन्हें देना है।

मंत्रिमंडल और जातीय संतुलन

छत्तीसगढ़ के मंत्रिपरिषद में इस समय छह मंत्री ओबीसी से हैं। दो ट्राईबल से और सामान्य तथा दलित वर्ग से एक-एक। ओबीसी से अरुण साव, ओपी चौधरी, लखनलाल देवांगन, श्यामबिहारी जायसवाल, लक्ष्मी राजवाड़े और टंकराम वर्मा। इसी तरह ट्राईबल से रामविचार नेताम, केदार कश्यप। सामान्य वर्ग से विजय शर्मा और दलित समुदाय से दयालदास बघेल। सामान्य से बृजमोहन अग्रवाल भी थे, मगर उनका इस्तीफा हो गया है। जाहिर है, विष्णुदेव मंत्रिमंडल में इस समय ओबीसी का पलड़ा भारी है। अगर दो रिक्त पदों में से किसी ओबीसी को मंत्री बनाना होगा तो एक से इस्तीफा लेना होगा। क्योंकि 12 में सात मंत्री ओबीसी से तो नहीं हो सकते। फिर यह भी कि बस्तर से हमेशा दो मंत्री रहे हैं। पहला ऐसा मौका कि सरगुजा से तीन मंत्री और बस्तर से सिर्फ एक। ऐसे में, लता उसेंडी की संभावना बढ़ी है। क्योंकि, वे आदिवासी के साथ महिला वर्ग का प्रतिनिधित्व करेंगी। अब सामान्य वर्ग की बात। अजीत जोगी सरकार में सामान्य वर्ग से चार मंत्री रहे। उसके बाद रमन सिंह की सरकार 15 साल रही। उसमें भी तीन मंत्री इस वर्ग से रहे। मगर इस समय बृजमोहन के इस्तीफे के बाद सिर्फ एक मंत्री हैं। जाहिर सी बात है कि सरकार सामान्य वर्ग से एक मंत्री तो लेगी ही। इनमें राजेश मूणत से लेकर अमर अग्रवाल, भावना बोहरा जैसे कोई भी एक नाम हो सकता है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ के नीति आयोग का उपाध्यक्ष किसी रिटायर और अनुभवी नौकरशाह को बनाया जाएगा या किसी विषय विशेषज्ञ को?

2. क्या ये खबर सही है कि मंत्रिमंडल के आगामी फेरबदल में सरगुजा से तीन में से एक मंत्री को ड्रॉप किया जाएगा?


रविवार, 16 जून 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: छत्तीसगढ़ और खतरे की आहट

तरकश, 16 जून 2024

संजय के. दीक्षित

छत्तीसगढ़ और खतरे की आहट

छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण के मामले आमतौर पर आदिवासी इलाकों में ज्यादा होते थे। मगर अब गैर आदिवासी इलाकों में यह संख्या इतनी तेजी से बढ़ी है कि सूबे के सामाजिक ताने-बाने परआईपीएस  खतरे मंडराने लगे हैं। खासकर, जांजगीर, सक्ती, बलौदा बाजार, सारंगढ इलाकों में वृहत पैमाने पर धर्मांतरण कराए जा रहे। इससे इन इलाकों में न केवल उच्छृंखलता बढ़ी है बल्कि अराजकता के हालात बनते जा रहे हैं। इन इलाकों में आए दिन युवाओं की नई सेनाएं गठित हो रही हैं...और पुलिस चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रही। सरकार के साथ सामाजिक संस्थाओं के लिए ये बड़ी चुनौती होगी। क्योंकि, हालात यही रहा तो सिचुएशन और खराब होगा। जाहिर है, बस्तर के दो वर्गों में पहले से तनाव चल रहा है। मैदानी इलाकों में कम-से-कम सामाजिक सौहार्द्र मुकम्मल रहे, इसके लिए सामाजिक संस्थाओं और धर्म गुरूओं को सक्रिय होना पड़ेगा। क्योंकि, कुछ काम ऐसे होते हैं, जो सरकारों के लिए संभव नहीं होते।

कलेक्टर, CEO में जंग

जिलों में कलेक्टर और जिला पंचायत के सीईओ सबसे बड़े अफसर होते हैं। इनमें अगर आपस में टकराव शुरू हो जाए, तो समझा जा सकता है कि फिर जिले में कैसी अराजकता होगी। और वही हुआ। रायपुर के एक पड़ोसी जिले के कलेक्टर ने सरकार के शीर्ष अफसरों को पत्र लिखकर सीईओ की शिकायत की थी और महिला सीईओ कलेक्टर की कंप्लेन कर रही थी। मंत्रालय के अफसरों को पहले लगा कि दोनों में से किसी एक की शिकायत सही होगी। मगर बाद में पता चला कि दोनों के बीच कमीशन को लेकर विवाद चल रहा था। अगर उसी समय दोनों की छुटटी कर दी होती तो हो सकता था कि जो हुआ, वह नहीं होता। लेकिन, यह भी सही है कि होनी को कौन टाल सकता है।

प्रशासन का इकबाल

बलौदा बाजार से पहले छत्तीसगढ़ में छोटे-बड़े कई सामुदायिक विवाद हो चुके हैं। इनमें से कई बार पुलिस को स्थिति को काबू में करने बल भी प्रयोग करने पड़े। बिलासपुर शहर से लगे चकरभाटा एयरपोर्ट के आगे बोड़सरा में कई साल तक तनाव कायम रहा। 2008 में बोड़सरा में सतनामी समाज का मेला लगा था। वहां जैतखाम को लेकर विवाद हो गया। देखते-ही-देखते प्रदर्शन इतना उग्र हो गया कि बिलासपुर के तत्कालीन एसपी प्रदीप गुप्ता की उंगली में तलवार लग गई। स्थिति को संभालने एसपी ने लाठी चार्ज का आदेश दिया। इसी तरह 2013 में सर्व आदिवासी समाज सीएम हाउस का घेराव करने जा रहा था। आईजी थे मुकेश गुप्ता। भीड़ अनियंत्रित होने लगी तो लाठी चार्ज का आदेश दिया। समाज के बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। कुछ साल पहले एक और समाज के लोग विधानसभा घेरने जा रहे थे, उस समय भी राजधानी पुलिस ने जमकर लाठी चार्ज किया था। इसके बाद फिर कभी विधानसभा का घेराव करने का किसी ने साहस नहीं किया। कहने का आशय यह कि पुलिस और प्रशासन के बड़ा कोई नहीं होता। और यह भी सही है कि प्रशासन इकबाल से चलता है। वक्ती जरूरत इकबाल बहाल करना होना चाहिए।

फील्ड पोस्टिंग क्यों?

यह छत्तीसगढ़ में सालों से चल रहा कि अफसर की विदाई के दो-एक साल पहले उसे अच्छी पोस्टिंग मिल जाती है। सरकारों को इस ट्रेंड को बदलना चाहिए। क्योंकि, नौकरी में रहते 25 साल, 30 साल में अफसर ने कुछ नहीं किया तो आखिरी समय में राज्य के लिए कौन सा तीर मार देगा। जाहिर है, फील्ड या मलाईदार पोस्टिंग में अधिकांश अफसर बुढ़ापे के साथ अगली दो-तीन पीढ़ियों के लिए इंतजाम में लग जाते हैं। ऐसे में, सरकार की प्राथमिकताएं प्रभावित होती हैं। बता दें, बलौदा बाजार कलेक्टर का भी अगले साल रिटायरमेंट है।

विधायकों से खतरे

आने वाले समय में छत्तीसगढ़ में बीजेपी सरकार को विपक्ष से अधिक अपने विधायकों से प्राब्लम फेस करने पड़ सकते हैं। क्योंकि, कांग्रेस विधायकों ने जो किया, उसी नक्शे कदम पर बीजेपी के अधिकांश विधायक चल पड़े हैं। इनोवा गाड़ी उनके लिए छोटी होती जा रही...फारचुनर से नीचे कई विधायक बात नहीं कर रहे। पहली बार के विधायकों से आप सीधे बात नहीं कर सकते। अहंकार तो आसमान पर। पीए या पीएसओ की इच्छा होगी तो बात कराएगा वरना, आप फोन लगाते रहिये। सरगुजा के एक युवा विधायक को पार्टी को बड़ी उम्मीद रही होगी। बड़े धूमधड़ाके के साथ सियासत के पिच पर उन्हें उतारा गया था। मगर उनके बारे में आप सुनेंगे तो सहसा विश्वास नहीं होगा। जनता के प्रतिनिधि का ऐसा आचरण कैसे हो सकता है। भूपेश बघेल सरकार को उनके विधायकों ने डूबोया...सरकार से अधिक उनके विधायकों का एंटी इंकाबेंसी था। उसी तरह के वायरस बीजेपी के विधायकों में आ गए हैं। कहां से कितना गांधी जी के दर्शन हो जाएं, सिर्फ एक ही गुनतारा। रेत माफियाओं को संरक्षण, ठेकेदारों और अफसरों से उनकी युगलबंदी बढ़ती जा रही। सरकार और बीजेपी के लिए यह खतरे का संकेत हैं। वक्त रहते सरकार को अपने विधायकों को टाईट करना चाहिए। क्योंकि, सामने नगरीय निकाय चुनाव है।

सियासत के नए रंग

छत्तीसगढ़ में सियासत गजब रंग दिखा रहा है। डिप्टी सीएम अरुण साव खुद की मजबूती के लिए संघर्षरत थे। अब बीजेपी ने उनके खुद के विधानसभा इलाके के तोखन साहू को केंद्रीय मंत्री ही नहीं बनाया बल्कि उन्हें शहरी मंत्रालय दे दिया। एक तो अरुण के सजातीय, उपर से विभाग भी सेम। अरुण के पास राज्य का नगरीय विभाग है तो राज्य मंत्री ही सही, तोखन के पास केंद्र का। छत्तीसगढ़ के राजनीतिक दिग्गज भी बीजेपी की इस राजनीति को समझ नहीं पा रहे। कोई कह रहा, अरुण के कद को कम किया गया है। जाहिर है, एक ही समाज के दो लोग तो किसी-न-किसी के हाइट को फर्क तो पड़ेगा। मगर जानकारों का कहना है कि देश में तेली समाज से और कोई नेता जीता नहीं। पिछली सरकार में असम से रामेश्वर तेली केद्रीय मंत्री थे। जातिगत राजनीति के युग में तेली समाज से किसी को मंत्री बनाना था। सो, तोखन के अलावा मोदी जी के पास कोई विकल्प नहीं था। बाकी तो मोदी जी और अमित शाह बताएंगे, इसके पीछे का असली राज। अपन तो इसमें खुश हैं कि हमर बिलासपुर के विकास को अब चार चांद लगेंगे।

IAS बिहार शिफ्थ

सुकमा के एसडीएम लक्ष्मण तिवारी बिहार जा रहे हैं। वे आईपीएस पत्नी के बेस पर अपना कैडर चेंज करा लिया है। लक्ष्मण तिवारी काफी तेज-तर्राट आईएएस अफसर हैं। उस तरह के अफसर, जो बड़े सपने और हौसले लेकर ब्यूरोक्रेसी में आते हैं और गांधीजी की फोटो देखकर बदलते नहीं। लक्ष्मण वही हैं, जिन्हें सरगुजा संभाग की एक महिला नेत्री ने उन्हें सूरजपुर से सीधे सुकमा भिजवा दिया था। लगभग 900 किलोमीटर दूर। कसूर यह था कि महिला के रेत ठेकेदार पति की गाड़ियों को उन्होंने पकड़ लिया था। अच्छे अफसर सरकार के एसेट होते हैं। ब्यूरोक्रेसी को ऐसे अफसरों को रोकना चाहिए। दिग्विजय सिंह ने वैसे ही छांट के अफसरों को यहां भेज दिया था। वरना, आप भी देखते होंगे मध्यप्रदेश में ब्यूरोक्रेसी की अभी भी रीढ़ की हड्डी बची हुई है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. ढाई साल से डीजी प्रमोट होने की आस में बैठे आईपीएस अरुणदेव और पवनदेव की डीजी बनने की भागीरथी प्रतीक्षा कब पूरी होगी?

2. क्या बस्तर से लता उसेंडी को विष्णुदेव मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी?


शनिवार, 8 जून 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: अफसरों की रफ्तार और नीयत

 तरकश, 9 जून 2024

संजय के. दीक्षित

अफसरों की रफ्तार और नीयत

छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव साय सरकार ने आचार संहिता समाप्त होने के दूसरे ही दिन कांकेर कलेक्टर अभिजीत सिंह को हटा दिया मगर खबर है कि सरकार स्पीड और साफ नीयत से काम करने वाले अफसरों को प्रोटेक्शन देगी। वैसे भी, ब्यूरोक्रेसी का थंब रुल है कि अफसरों को जब तक संरक्षण नहीं दिया जाएगा, तब तक वे रिस्क लेकर काम नहीं करेंगे। जब आदमी दौड़ता है, तो उसमें गिरने के भी खतरे होते हैं। कई बार अच्छे अफसरों से कुछ चीजें चूकवश हो जाती है। सो, अभी होने वाले आईएएस, आईपीएस के ट्रांसफर में इस बात का ध्यान रखा जाएगा। दरअसल, सरकार स्पीड पर काफी जोर दे रही है। अफसर ईमानदार हों मगर कामकाज की गति धीमी हो तो न तो उससे राज्य को कोई फायदा होता और न ही सरकार को। ऐसे में, दो-एक अच्छे कलेक्टरों की छुट्टी की चर्चाएं, चर्चाएं तक रह जाए, तो आश्चर्य नहीं।

अफसरों और नेताओं को झटका

छत्तीसगढ़ के वित्त विभाग ने एक बड़ा फैसला लेते हुए किराये की गाड़ियां लेने पर ब्रेक लगा दिया है। विभाग ने आदेश जारी कर कहा है कि अगर बहुत आवश्यक हो तो वित्त से अनुमति लेने के बाद ही गाड़ियां हायर किया जाए। यह आदेश सरकार के साथ ही बोर्ड और निगमों में भी लागू होगा। इस आदेश से अफसरों के साथ ही बीजेपी नेताओं के चेहरे की रंगत भी बदली होगी। क्योंकि, गाड़ियां अफसरों की गुरूर होती है। ब्यूरोक्रेसी का सीधा सा फंडा है...जितने बड़े ठसन वाले अफसर, उतनी लग्जरी गाड़ियां। आईएएस की किसी विभाग में पोस्टिंग होती है तो ज्वाईन करते ही तस्दीक शुरू हो जाती है...सरकारी पुल के अलावा बोर्ड और निगमों से कितनी गाड़ियां मिल सकती है। खुद के अलावा एक वीबी और एक चुनमुन के लिए तो चाहिए ही। यही हाल नेताओं का भी है। मंत्रियों के बंगले में दर्जन भर गाड़ियां खड़ी नहीं तो फिर काहे का मंत्री। बीजेपी राज के कई नेताओं को लोग जानते हैं कि बोर्ड और निगमों में पोस्टिंग के बाद खुद के इस्तेमाल के लिए गाड़ी खरीदकर लगा दिए और बोर्ड से मुंहमांगा किराया भी वसूले। अपनों को उपकृत करने का भी यह बढ़ियां माध्यम है। नेता अपने करीबी समर्थकों की दो-चार गाड़ियां आफिसों में लगवा देते हैं ताकि उसके मौज-मस्ती का इंतजाम हो जाए। मगर जीएडी सिकरेट्री मुकेश बंसल ने आदेश जारी कर अफसरों और नेताओं पर बड़ा वज्रपात कर दिया।

जनपद सीईओ और सिकरेट्री बराबर

लग्जरी गाड़ियों के मामले में छत्तीसगढ़ में ऐसा रामराज है कि यहां छोटे-बड़े में कोई फर्क नहीं बच गया है। जनपद सीईओ और नगरपालिकाओं के सीएमओ जैसे छोटे मुलाजिम इनोवा में चलते हैं और मंत्रालय के सिकरेट्री भी। असिस्टेंट कलेक्टर के पास भी इनोवा और एसीएस के पास भी इनोवा। चीफ सिकरेट्री से ज्यादा लग्जरी गाड़ियों में बोर्ड के एमडी चलते हैं। दरअसल, वित्तीय भर्राशाही के चलते छत्तीसगढ़ में गाड़ियों की पात्रता मजाक बनकर रह गई। राज्य के बजट से ना सही, अफसरों ने केंद्र की योजनाओं से खरीद डाला। मंत्री और अफसर तो ठीक है, उनके पीए के पास भी लग्जरी गाड़ियां। आखिर छोटे बड़े में कुछ तो अंतर होना चाहिए. 

अविभाजित एमपी, सबसे बड़े नेता

अविभाजित मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से लेकर कमलनाथ के बेटे और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तक अपनी सीट नहीं बचा सके मगर चरणदास महंत ने पत्नी ज्योत्सना को चुनाव जीतवाकर अपनी रणनीति का झंडा गाड़ दिया। जाहिर है, इन दोंनों राज्यों में सिर्फ एक सीट कांग्रेस की झोली में आई, वह कोरबा से। साढे तीन दशक से एमपी और छत्तीसगढ़ की सियासत में सक्रिय महंत ने स्थानीय, छत्तीसगढ़िया और ओबीसी का ऐसा चक्रव्यूह बनाया, जिसे बीजेपी की सरोज पाण्डेय जैसी तेज-तर्रार नेत्री भी वेध नहीं पाईं। प्रधानमंत्री के सिर पर लाठी मारने वाले बयान से भी उन्हें फायदा ही मिला। उनके खिलाफ बीजेपी का गुस्सा भड़का...चुनाव आयोग ने एफआईआर कराई। महंत ने यह कहते हुए मामले को छत्तीसगढ़ियावाद तरफ मोड़ दिया कि बाहरी लोगों को छत्तीसगढ़ी आती नहीं, मेरे बोलने का मतलब ये नहीं था। लास्ट में तो ये रहा कि बीजेपी के बड़े-बड़े नेता देखते रह गए और महंत ने बीजेपी के वोट बैंक में भी सेंध लगा दिया। कह सकते हैं, इस जीत से कांग्रेस पार्टी में चरणदास का रुतबा बढ़ा है।

ब्राम्हण...बिल्कुल नहीं!

सरोज पाण्डेय को कोरबा संसदीय सीट से उतारने के समय भाजपा इतना ओवरकांफिडेंस में रही कि उसे ये सनद नहीं रहा कि मुकाबला जांजगीर और कोरबा इलाके से 35 बरस से सतत संपर्क रखने वाले चरणदास महंत से है। और यह भी कि, 2009 में कोरबा लोकसभा सीट बनने के बाद बीजेपी का ब्राम्हण कंडिडेट कभी जीता नहीं। 2009 में करुणा शुक्ला हारी और 2019 में ज्योतिनंद दुबे। 2014 में ओबीसी से वंशीलाल महतो को बीजेपी ने टिकिट दिया और वे जीते भी। दरअसल, कोरबा लोकसभा इलाके में आठ में से छह विधानसभा बीजेपी के पास है, इसी में वह गच्चा खा गई। बहरहाल, बीजेपी के तीसरे ब्राम्हण उम्मीदवार की हार के बाद कोरबा में कोई भी पार्टी अब ब्राम्हण पर दांव नहीं लगाएगी।

आईएएस का पुनर्वास केंद्र

दिल्ली में रेजिडेंट कमिश्नर की अपनी अहमियत होती हैं। भारत सरकार में स्टेट का काम फास्ट और स्मूथली हो, रेजिडेट कमिश्नर की ड्यूटी होती है। यही वजह है कि दीगर राज्यों में सीनियर अफसरों को पोस्ट किया जाता है, जिसका दिल्ली में अपना प्रभाव हो। मगर छत्तीसगढ़ में कुछेक बार ही सीनियर अफसर पोस्टेड रहे, बाकी समय यह पोस्टिंग आईएएस का पुनर्वास केंद्र रहा। जिन आईएएस अफसरों को दिल्ली नहीं छोड़ना, वे जोर-जुगाड़ लगाकर अपनी पोस्टिंग करा लेते हैं। इस समय कई आईएएस अफसरों की नजरें इस पोस्ट पर टिकी है। कुछ छत्तीसगढ़ में हैं और कुछ ऐसे हैं, जिनका सेंट्रल डेपुटेशन कंप्लीट होने वाला है। रेजिडेंट कमिश्नर का मतलब यह होता है कि दिल्ली में स्टेट पुल से मकान, गाड़ी, ड्राईवर, असिमित नौकर-चाकर समेत और भी कई सुविधाएं। काम इतना ही कि सीएम दिल्ली गए तो एयरपोर्ट जाकर रिसीव कर ले और सीएम के लौटने के बाद फिर फुरसत। बहरहाल, रेजिडेंट कमिश्नर का पद एक अनार सौ बीमार वाला बन गया है।

पोस्टिंग और किस्मत

नौकरशाहों की पोस्टिंग में किस्मत का बड़ा रोल रहता है। नीलेश श्रीरसागर के केस में आपने देखा ही। विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें महासमुंद कलेक्टर से बुलाकर निर्वाचन में पोस्ट किया गया और लोकसभा चुनाव का कोड ऑफ कंडक्ट समाप्त होने के अगले ही दिन उन्हें कांकेर कलेक्टर बनाने का आदेश निकल गया। जशपुर, गरियाबंद और महासमुंद के बाद नीलेश का यह चौथा जिला होगा। नीलेश का लक रहा कि कांकेर जैसा बढ़ियां जिला मिल गया और अभिजीत का हार्ड लक देखिए कि पूरा चुनाव संपन्न करा दिया। काउंटिंग के आखिरी समय में वे हिट विकेट होकर अपना विकेट गंवा बैठे। इसे ही कहते हैं किस्मत अपनी-अपनी। न वे अभिजीत आउट होते और न नीलेश की इतनी जल्दी पोस्टिंग मिलती। ऐसा तो नीलेश ने सोचा भी नहीं होगा।

कांकेर, चुनाव और विवाद

कांकेर ऐसा जिला है, जहां आमतौर पर चुनाव के दौरान कोई सियासी बवाल खड़ा होता है या फिर अधिकारी की छुट्टी हो जाती है। 2009 के लोकसभा चुनाव में तत्कालीन एसडीएम भुवनेश यादव का बीजेपी के सांसद प्रत्याशी सोहन पोटाई से भीड़ लेकर कलेक्ट्रेट में आने पर नोंकझोंक हो गई थी। इसके बाद भुवनेश को भोपालपटनम भेज दिया गया। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान कलेक्टर डोमन सिंह हटा दिए गए थे। इस बार पूरे चुनाव पीरियड के दौरान कुछ नहीं हुआ। मगर आखिरी क्षणों में ऐसा कुछ हुआ कि कलेक्टर अभिजीत सिंह की छुट्टी हो गई। इसी कांकेर में मंतूराम पवार ने अपने ही कांग्रेस पार्टी को गच्चा देते हुए आखिरी समय में नाम वापिस लेकर पूरे छत्तीसगढ़ को हतप्रभ कर दिया था। पिछले साल कांकेर जिले के भानुप्रतापपुर में हुए उपचुनाव में बीजेपी प्रत्याशी रेप केस के मामले में गिरफ्तार कर लिए गए थे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या सरगुजा के आईजी अंकित गर्ग अब बस्तर के नए आईजी होंगे?

2. लोकसभा चुनाव के नतीजों को देखकर क्या ऐसा लगता है कि छत्तीसगढ़ में पहली बार के विधायकों को नए मंत्री बनने का मौका मिलेगा?


शनिवार, 1 जून 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: लौटेंगे कई आईएएस

 तरकश, 2 जून 2024

संजय के. दीक्षित

कौवा कान ले गया 

ये सही है कि लगभग सभी एग्जिट पोलों में छत्तीसगढ़ में भाजपा को एकतरफा सीटें मिलती दिख रही हैं। बावजूद इसके रायपुर, बिलासपुर, रायगढ़ जैसी सीटों के प्रत्याशियों को छोड़ दें तो बाकी के चेहरों पर वो कांफिडेंस नहीं दिखाई पड़ रहा। दरअसल, ये परसेप्शन का खौफ है। पिछले दो महीनों में पूरे देश में सोशल मीडिया के जरिये ये परसेप्शन निर्मित हुआ कि एनडीए अबकी पिछड रहा है। जाहिर है, उससे छत्तीसगढ़ भी अछूता नहीं रहा। सोशल मीडिया की हवा इतनी तगड़ी थी कि लोग यह मानने और सुनने के लिए तैयार नहीं थे कि फरवरी तक बीजेपी एकतरफा जीत रही थी तो दो महीने में आखिर इंडिया गठबंधन ने क्या गुल खिला दिया या नेतृत्व का कौन सा ऐसा मॉडल पेश कर दिया कि वोटर मंत्रमुग्ध हो गया। हर आदमी सिर्फ यही...बीजेपी की सीटें कम हो रही हैं। अगर नतीजों का पूर्वानुमान सही उतरता है तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि बड़े-बड़े सियासी पंडितों की कलई खुल जाएगी कि वे अपना दिमाग नहीं लगाते...परसेप्शन के आधार पर अपना विचार बनाते हैं। और यह भी कि कोई बोल दिया... कौवा कान ले गया तो लोग अपना कान चेक नहीं करते. वो भी शुरू हो जाते हैं... कौवा कान ले गया. 

लौटेंगे कई आईएएस

भारत सरकार ने अगर एक्सटेंशन नहीं दिया तो इस साल दो-तीन आईएएस अफसरों को छत्तीसगढ़ लौटना पड़ेगा। इनमें पहला नाम 2004 बैच के आईएएस अमित कटारिया का है। जून 2022 में उन्हें भारत सरकार ने दो साल का एक्सटेंशन दिया था। अगले महीने ये पूरा हो जाएगा। केंद्र में सात साल के बाद बेहद खास केस हो...पीएम लेवल पर कुछ पहुंच हो, तभी एक्सटेंशन मिलता है। उनके बाद डॉ0 रोहित यादव का भी टेन्योर पूरा हो जाएगा। हालांकि, वे प्रधानमंत्री कार्यालय में हैं, सो हो सकता है कि कंटीन्यू कर जाएं। मगर छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी में दबी जुबान से यह चर्चाएं सुनाई पड़ रही है कि दिल्ली में पोस्टेड आईएएस अमित अग्रवाल वापिस छत्तीसगढ़ लौट सकते हैं। अमित एडिशनल सिकरेट्री हैं। इस रैंक के अफसरों पर टाईम बांड लागू नहीं होता। नार्मल केस में न भारत सरकार उन्हें यहां भेज सकती और न राज्य सरकार उन्हें बुला सकती...जब तक कि वे खुद इसके लिए तैयार न हो। जैसे सुनिल कुमार लौटे थे। यद्यपि, अमित अग्रवाल दिल्ली में पूरी तरह सेट हो गए हैं। छत्तीसगढ़ में जब थे, तब भी उनकी अलग पहचान थी, अब तो उनकी भारत सरकार वाली वर्किंग हो गई है। ऐसे में, पहला सवाल यह कि क्या वे छत्तीसगढ़ में एडजस्ट हो पाएंगे? और दूसरा सवाल...अमित वाकई छत्तीसगढ़ लौटेंगे या सिर्फ चर्चाएं हैं?

कलेक्टर, एसपी की लिस्ट

लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद छत्तीसगंढ़ में प्रशासनिक और पुलिस महकमे में अहम बदलाव की खबरें तेज है। खासकर, कलेक्टर, एसपी लेवल पर। सरकार के करीबी लोगों की मानें तो सूबे में कई जिलों के कलेक्टर बदलेंगे तो आधा दर्जन से अधिक पुलिस अधीक्षक भी चेंज होंगे। पिछली सरकार में पोस्टेड जिन कलेक्टरों और पुलिस अधीक्षकों का पिछली सूची में नंबर नहीं लग पाया था, उनमें से अधिकांश को सरकार इस बार बदल सकती है। कुछ कलेक्टरों और पुलिस अधीक्षकों के खिलाफ संगठन के नेताओं की भी शिकायतें हैं, उनमें से भी कुछ को खो किया जाएगा। कुल मिलाकर लिस्ट अच्छी-खासी हो जाएगी। एक आईजी, और वहां के एसपी भी बदल सकते हैं। नगरीय निकाय चुनाव को ध्यान में रखते हुए कुछ नगर निगमों के आयुक्त भी बदले जाएंगे तो जिला पंचायत के दो-चार सीईओ के भी नंबर लग सकते हैं। बिलासपुर में नए कमिश्नर की पोस्टिंग भी की जाएगी।

महिलाओं का दबदबा

एक जमाना था...जब छत्तीसगढ़ के सचिवालय में महिला सिकरेट्री के नाम पर सिर्फ इंदिरा मिश्रा होती थीं। उनके रिटायर होने के बाद रेणु पिल्ले कई साल तक अकेली सचिव रहीं। मगर सचिवालय में अब महिला सचिवों का दबदबा बढ़ रहा है। इस समय कुल आठ विभागों को महिलाएं संभाल रही हैं। इनमें छत्तीसगढ़ की दूसरी सबसे सीनियर आईएएस अफसर रेणु पिल्ले के साथ ही ऋचा शर्मा, निहारिका बारिक, शहला निगार, अलरमेल मंगई डी, आर. संगीता, शम्मी आबिदी शामिल हैं। जबकि, इस समय डॉ0 मनिंदर कौर द्विवेदी, निधि छिब्बर और ऋतु सेन सेंट्रल डेपुटेशन पर हैं। रीना बाबा कंगाले राज्य निर्वाचन पदाधिकारी हैं। मनिंदर, निधि और ऋतु का तो पता नहीं मगर लोकसभा चुनाव का प्रॉसेज कंप्लीट होने के बाद रीना मंत्रालय लौटेंगी। 2009 बैच अभी सिकरेट्री नहीं बना है। मगर इस बैच की किरण कौशल पंजीयन विभाग की स्वतंत्र प्रभार में हैं। जनवरी में यह बैच सिकरेट्री प्रमोट हो जाएगा तो अगले साल तक डॉ0 प्रियंका शुक्ला भी सचिव बन जाएंगी। हो सकता है कि तब तक ऋतु सेन की भी छत्तीसगढ़ वापसी हो जाए। बहरहाल, तकनीकी शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, फॉरेस्ट, पंचायत, एग्रीकल्चर, लेबर, आवास और पर्यावरण, महिला और बाल विकास का दायित्व महिला सचिव निभा रही हैं। इनमें कुछ मलाइदार भी हैं...जाहिर है, बरसों से इन विभागों में मौज काट रहे पुरूषों को परेशान तो हो ही रही होगी।

जीपी सिंह की वापसी

कैट के फैसले के बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने आईपीएस जीपी सिंह की बहाली की अपनी तरफ से हरी झंडी दे दी है। राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ के महाधिवक्ता से इस बारे में उनकी राय मांगी थी। बताते हैं, महाधिवक्ता ने अपनी टीप में लिखा है कि इस केस में कैट के फैसले के खिलाफ अपील करने का कोई तुक नहीं है। महाधिवक्ता की टिप्पणी के साथ राज्य सरकार ने फाइल पिछले सप्ताह भारत सरकार को भेज दिया। चूकि, आईपीएस का मसला मिनिस्ट्री ऑफ होम में आता है और इसी ने फोर्सली रिटायमेंट की कार्रवाई की थी। सो, पोस्टिंग का आदेश भी यही विभाग निकालेगा। राज्य सरकार नियमानुसार उसका पालन करेगी। हालांकि, भारत सरकार में इस पर थोड़ा वक्त लग सकता है कि केंद्र के लिए यह समय अति व्यस्तता वाला है। 4 जून को लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद 15 दिन चीजें व्यवस्थित होने में लगेगी। फिर भी यह माना जा रहा कि जून में जीपी सिंह की पुलिस महकमे में वापसी हो जाएगी। हालांकि, पुलिस महकमे में लोग एक कदम आगे जाकर जीपी की पोस्टिंग पर अटकलें शुरू हो गई हैं।

चेयरमैन की वैकेंसी

राज्य सरकार की राजपत्रित से लेकर कनिष्ठ अधिकारियों की भर्ती करने वाला छत्तीसगढ़ का लोक सेवा आयोग खुद ही अपने चेयरमैन की भर्ती का इंतजार कर रहा है। पिछले साल सितंबर में टामन सिंह सोनवानी रिटायर हुए थे। पिछली सरकार ने तब नई नियुक्ति की जगह वहीं के सीनियर को प्रभारी चेयरमैन बना दिया था। उसके बाद सरकार बदल गई। बीजेपी सरकार का हनीमून खतम नहीं हुआ था कि लोकसभा चुनाव आ गया। इस चक्कर में पिछले नौ महीने से पीएससी चेयरमैन की संवैधानिक कुर्सी खाली है। ऐसे में, सरकार की यह

कमिश्नर के दो पद खाली

आईएएस डॉ0 संजय अलंग दो महीने बाद 31 जुलाई को रिटायर हो जाएंगे। इस समय वे दो संभागों के कमिश्नर हैं। रायपुर के कमिश्नर तो वे थे ही, लोकसभा चुनाव से पहले उन्हें बिलासपुर संभाग का प्रभार भी मिल गया। इसके अलावा वे वानिकी और उद्यानिकी विश्वविद्यालय के कुलपति का भी दायित्व संभाल रहे हैं। अलंग के रिटायर होने के बाद इन तीनों पदों पर की नियुक्ति या प्रभार किसी और को देना पड़ेगा। बता दें, संजय अलंग कमिश्नर के एक्सपर्ट हो गए हैं। सबसे पहले वे बिलासपुर कलेक्टर से प्रमोट होकर कमिश्नर बने थे। सरकार बदली तो उन्हें रायपुर का कमिश्नर बनाया गया। अब वे बिलासपुर भी संभाल रहे हैं। जब बिलासपुर कमिश्नर थे, तो उस दौरान कई महीने तक सरगुजा के भी कमिश्नर रहे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के इस्तीफे के बाद फिलहाल स्कूल शिक्षा विभाग का प्रभार किस मंत्री को मिल सकता है?

2. किस मंत्री के लोग ट्रांसफर को लेकर मार्केट में अभी से सक्रिय हो गए हैं?