शनिवार, 25 अक्टूबर 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: मंत्रियों का बढ़ा ब्लडप्रेशर

 तरकश, 27 अक्टूबर 2025

संजय के. दीक्षित

मंत्रियों का बढ़ा ब्लडप्रेशर

बीजेपी के गुजरात प्रयोग ने छत्तीसगढ़ के मंत्रियों का ब्लडप्रेशर ऐसा बढ़ा दिया है कि उनकी रात की नींद उड़ गई है। कुछ को बीपी की दवाई का डोज बढ़ाना पड़ गया है। रात में डरावने सपने आ रहे...खासकर बड़े धूमधाम से नवा रायपुर के आलीशान बंगले में प्रवेश करने वाले मंत्रियों को भय सताने लगा है...कुछ दिन बाद कहीं अपने घर न लौटना पड़ जाए। जाहिर है, गुजरात में मंत्रियों का सामूहिक इस्तीफा लेकर कई को घर बिठा दिया गया। छत्तीसगढ़ की स्थिति भी गुजरात अच्छी नहीं बल्कि और गड़बड़ है। बीजेपी के लोग ही दावा करते घूम रहे कि राज्योत्सव या अधिक-से-अधिक अगले साल होली से पहले मंत्रियों से सामूहिक इस्तीफा ले लिया जाएगा। सरकार, पार्टी और संघ के लोग भी दबी जुबां से स्वीकार कर रहे कि कुछ मंत्रियों का प्रयोग बहुत अच्छा नहीं रहा। अलबत्ता, बीजेपी गुजरात मॉडल उन सभी राज्यों में लागू करने वाली है, जहां मंत्रियों का परफर्मेंस ठीक नहीं। अब इसमें छत्तीसगढ़ शामिल है या नहीं, पुख्ता तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। मगर इससे छत्तीसगढ़ के मंत्रियों की हालत पतली हुई जा रही है।

मंत्रियों की चिंता

छत्तीसगढ़ के मंत्रियों की चिंता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के छत्तीसगढ़ दौरे से हैं। महीने भर के भीतर पीएम मोदी चार दिन रायपुर में रुकेंगे। राज्योत्सव में वे आएंगे ही, डीजीपी कांफ्रेंस में ढाई दिन रायपुर में रहेंगे। इस दौरान 28 नवंबर की शाम वे बीजेपी मुख्यालय में कार्यकर्ताओं से मिलेंगे। पिछले साल गुजरात में भी उन्होंने ऐसा किया था। डीजीपी कांफ्रेंस में पीएम एक दिन पहले शाम को डेस्टिनेशन पर पहुंच जाते हैं। उसके बाद वे पार्टी कार्यालय जाते हैं। और दिक्कत यह है कि अधिकांश मंत्रियों से कार्यकर्ता नाखुश है। असल में, मंत्रियों का लगा कि पांच साल के लिए गद्दी मिल गई है...2028 में विधानसभा चुनाव के समय देखा जाएगा। इस ओवरकांफिडेंस में कार्यकर्ताओं का अनादर होने लगा। मगर इस बीच गुजरात की घटना हो गई। और फिर पीएम मोदी का छत्तीसगढ़ का लंबा दौरा। उपर से अमित शाह महीने में दो बार छत्तीसगढ़ आ ही रहे हैं। मंत्रियों को यही डर खाए जा रहा है...सामूहिक इस्तीफे में कहीं उनका नंबर न लग जाए।

ACS का दिल्ली प्रस्थान

बैचमेट के मुख्य सचिव बनने के बाद छत्तीसगढ़ के 94 बैच के एक आईएएस सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली जा रहे हैं। राज्य सरकार ने इसके लिए डीओपीटी को पत्र लिख दिया है। दिल्ली में जैसे ही वैकेंसी क्रियेट होगी, उनकी पोस्टिंग निकल जाएगी। आईएएस वहां सिकरेट्री रैंक में इंपेनल्ड हैं। सो, पोस्टिंग मिलने में दिक्कत नहीं होगी। इस लेवल पर अप्लाई करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। हर तीन-चार महीने में रोलिंग लिस्ट निकलती रहती है। बता दें, 94 बैच के दो आईएएस यहां हैं। बैचमेट विकास शील के चीफ सिकरेट्री बनने के बाद स्वाभाविक तौर पर दोनों अनकंफर्ट फील कर रहे हैं। इनमें से एक को अभी कुछ काम है, इसलिए यहां रुकेंगे, मगर दूसरे का आदेश किसी भी दिन आ सकता है। ऐसे में, सरकार को उच्च स्तर पर अफसर की जरूरत होगी, और उसमें बड़ा टोटा है। दो में से एक एसीएस चले जाएंगे। प्रमुख सचिव भी तीन ही हैं। उनमें से एक सुबोध सिंह सीएम सचिवालय में हैं। बचे निहारिका बारिक और सोनमणि बोरा। लगता है, सोनमणि का ट्राईबल डिपार्टमेंट किसी सिकरेट्री रैंक के अफसर को देकर उन्हें दिल्ली जाने वाले अफसर का विभाग सौंपा जाएगा।

दिवाली, शराब और लाठी

अभी तक होली में शराब दुकानों पर मेला लगता था, मगर अब आलम यह हो गया कि दिवाली के दिन भिलाई में शराब दुकान पर अनियंत्रित भीड़ को काबू करने पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ गया। दरअसल, शराब दुकान पर लोग ऐसे उमड़े कि मुख्य मार्ग जाम होने लगा। इससे त्यौहारी खरीदी करने निकले लोगों की गाड़ियां फंसने लगी। ऐसे में, रोड से भीड़ हटाने पुलिस के पास लाठी भांजने के अलावा कोई चारा नहीं था। लक्ष्मी पूजा जैसे पवित्र और शुचिता के पर्व पर अगर शराब की इस रुप में इंट्री हो जाए, तो यह चिंता की बात है...आत्ममंथन की आवश्यकता भी...हम और हमारी पीढी किस दिशा में जा रही है।

अफसर एक, भूमिका अनेक

छत्तीसगढ़ के एक आईपीएस अधिकारी के कंधे पर सिस्टम ने इतनी जिम्मेदारियां डाल दी है कि वे हैरान होंगे...अकेला आदमी...किधर-किधर जाउं...क्या-क्या करूं। बात कुछ महीने पहले आईपीएस अवार्ड हुए पंकज चंद्रा की हो रही है। पंकज की मूल पोस्टिंग कमांडेंट 13वीं सशस्त्र बटालियन बांगो है। गृह विभाग ने उन्हें 12वीं बटालियन बलरामपुर का अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंप रखी है। पुलिस मुख्यालय ने बिहार चुनाव के लिए फोर्स लेकर उन्हें बिहार जाने का आदेश निकाल दिया है। इधर, 22 अक्टूबर को गृह विभाग से एक आदेश निकला...बलरामपुर के प्रभारी पुलिस अधीक्षक बनाने का। वहां के एसपी बैंकर वैभव रमनलाल फाउंडेशन कोर्स करने दो महीने के लिए हैदराबाद जा रहे हैं। पंकज प्रभारी पुलिस अधीक्षक बनकर पता नहीं बलरामपुर पहुंचे या रास्ते में होंगे...दो दिन बाद 24 अक्टूबर को उन्हें कोंडागांव का एसपी अपाइंट किया गया। हालांकि, एसपी की फर्स्ट पोस्टिंग के हिसाब से पंकज को जिला तो अच्छा मिला है। मगर वे हैरान होंगे कि उपर वाले अचानक इतना प्रसन्न कैसे हो गया, आए दिन एक पोस्टिंग टपक जा रही।

IPS की एक और लिस्ट

राज्य सरकार ने चार जिलों के पुलिस अधीक्षकों का ट्रांसफर किया। जिन जिलों के कप्तानों को बदला गया, उनमें राजनांदगांव, मनेंद्रगढ़, सक्ती और कोंडागांव शामिल है। इनमें से एक जिले के एसपी को हटाकर पुलिस मुख्यालय राहत की सांस ले रहा है। क्योंकि, पिछले करीब छह महीने से पीएचक्यू इस कोशिश में रहा कि एसपी को हटाया जाए। मगर फेविकोल इतना तगड़ा था कि कोई हिला नहीं पा रहा था। अब जाकर कामयाबी मिली। बहरहाल, एसपी स्तर पर एक छोटी लिस्ट और आएगी। महासमुंद के एसपी आशुतोष सिंह को सीबीआई में एसपी की पोस्टिंग मिल गई है। चूकि भारत सरकार ने आदेश जारी कर दिया है, इसलिए राज्य सरकार को उन्हें रिलीव कर वहां नया पुलिस अधीक्षक भेजना होगा। उधर, चौथी बटालियन के कमांडेंट प्रफुल्ल ठाकुर को सक्ती का पुलिस अधीक्षक बनाया गया है मगर बटालियन में किसी की पोस्टिंग नहीं हुई है। हो सकता है, राज्योत्सव के बाद एक आदेश और निकले।

छत्तीसगढ़, CBI और IPS

महासमुंद के एसपी आशुतोष सिंह डेपुटेशन पर सीबीआई में एसपी बनकर जा रहे हैं। जाहिर है, सीबीआई देश की सबसे प्रतिष्ठित जांच एजेंसी है। खास बात यह है कि सीबीआई में छत्तीसगढ़ कैडर के आईपीएस अधिकारियों को हमेशा अहम जिम्मेदारियां मिलती रहीं है। सबसे पहले एडीजी अमित कुमार की बात करें। अमित पूरे 12 साल सीबीआई में रहे और ज्वाइंट डायरेक्टर पॉलिसी जैसी पोस्टिंग की। सीबीआई में जेडी पॉलिसी का पद काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। सीबीआई डायरेक्टर के बिहाफ में जेडी पॉलिसी पीएमओ से सीधे कनेक्ट रहते हैं। अमित कुमार के बाद आईपीएस अभिषेक शांडिल्य और रामगोपाल गर्ग भी सीबीआई में डेपुटेशन किया। जीतेंद्र मीणा और नीतू कमल अभी भी वहीं हैं, और अब आशुतोष सिंह जा रहे। यह पहला मौका होगा, जब सीबीआई में छत्तीसगढ़ काडर के एक साथ तीन आईपीएस पोस्ट होंगे। जीतेंद्र मीणा, नीतू कमल और आशुतोष सिंह।

IPS, ट्रेनिंग और डंपिंग यार्ड!

छत्तीसगढ़ बनने के बाद पुलिस की ट्रेनिंग पर कभी ध्यान नहीं दिया गया। नक्सलियों के चलते कांकेर में जंगल वार कॉलेज जरूर बना। नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई में इस ट्रेनिंग कॉलेज का योगदान भी काफी अहम रहा। लेकिन, चंदखुरी पुलिस एकेडमी, जो पुलिस का रेगुलर ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट है, उसे कभी फोकस नहीं मिला। इस एकेडमी में डायरेक्टर के तौर पर एक एसपी स्तर का अधिकारी होता था और पीएचक्यू में आईजी या एडीजी लेवल का अधिकारी। उसमें भी प्रमोटी ज्यादा होते थे। मगर इस समय ट्रेनिंग में अफसरों की भरमार हो गई है। एक एडीजी, दो आईजी, दो डीआईजी और एक एसपी। एडीजी दीपांशु काबरा, आईजी डॉ0 आनंद छाबड़ा, आईजी रतनलाल डांगी, डीआईजी सदानंद, डीआईजी सुजीत कुमार और एसपी डॉ0 अभिषेक पल्लव। इनमें सिर्फ सुजीत कुमार प्रमोटी आईपीएस हैं, बाकी सभी आरआर। सदानंद सशस्त्र बल की ट्रेनिंग में हैं, वह भी आखिर पुलिस का ही पार्ट है। चलिये, ठीक है...शायद पुलिस की ट्रेनिंग अब कुछ दुरूस्त हो जाएगी।

कलेक्टर्स अब रिपीट नहीं?

प्रशासनिक सुधार की दिशा में सरकार कई स्तर पर कार्य कर रही है। कलेक्टरी से पहले आईएएस अफसरों से मिनिस्ट्री और डायरेक्ट्रट की पोस्टिंग कराकर अफसरों को इस रुप में तैयार करना चाह रही कि जिले में कलेक्टर बनकर जाए या फिर रायपुर में एचओडी बनें...कांफिडेंस से काम कर सकें। उधर, कलेक्टरी के लिए एक नार्म तैयार किया जा रहा। इसमें कलेक्टर बनने का टाईम थोड़ा बढ़ाया जाएगा। छत्तीसगढ़ में 2019 बैच के आईएएस कलेक्टर बनना शुरू हो गए हैं। याने आईएएस में सलेक्शन के छह साल के भीतर जिला मिलने लगा है। बाकी राज्यों में यह पीरियड सात से नौ साल है। इससे भी वर्किंग प्रभावित हो रही। जो अफसर एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी हैं, उन्हें तो दिक्कत नहीं, मगर एवरेज लेवल के कलेक्टरों का परफर्मेंस इससे गड़बड़ा रहा। दूसरा विचार इस पर भी किया जा रहा कि लगातार कलेक्टरी की बजाए एक या दो जिले के बाद कुछ ब्रेक दिया जाए, फिर दूसरा जिला मिले। मगर टेन्योर अच्छा मिलेगा। कुछ साल से छह महीने साल भर में कलेक्टर बदल दिए जाते थे, अब दो, पौने दो साल का वक्त दिया जाएगा। अब खुद ही हिट विकेट हो जाए, तो फिर बात अलग है।

IFS को इम्पॉर्टेंस

छत्तीसगढ़ में आईएफएस अफसरों का एक ऐसा दौर था, जब पीडब्लूडी, आवास पर्यावरण और एनर्जी में आईएफएस सचिव होते थे। रमन सिंह के दौर में ढाई दर्जन से अधिक आईएफएस अधिकारियों को सरकार के विभागों में विभिन्न जिम्मेदारिया मिली हुई थी। मगर इसके बाद कैडर का डाउनफॉल होता गया। इसकी एक बड़ी वजह आईएएस अधिकारियों की बढ़ती संख्या भी रही। मगर कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस में डीएफओ को बुलाकर सरकार ने फिर से इस कैडर को अहमियत देनी शुरू की है। सुशासन संवाद में तीन कलेक्टरों के साथ एक डीएफओ से भी प्रेजेंटेशन का मौका दिया गया। डिवीजन में भी अब अच्छे अफसरों को बिठाया जा रहा है। कुछ दिन पहले तक 33 में से 18 प्रमोटी आईएफएस डीएफओ थे। इनमें से 12 को हटा दिया गया है। याने अब सिर्फ छह प्रमोटी डीएफओ बच गए हैं। हालांकि, डायरेक्ट वाले ही अच्छा काम करते हैं...यह जरूरी नहीं। मगर यह सही है कि प्रमोटी वाले ज्यादा फ्लेक्सिबल होते हैं। और सिस्टम यही तो चाहता है। मगर हालात अब बदल रहे हैं।

पूर्व सीएस को पोस्टिंग?

मुख्य सचिव के लंबे कार्यकाल का रिकार्ड बना रिटायर हुए अमिताभ जैन को पोस्ट रिटायमेंट पोस्टिंग क्या मिलेगी, इस पर सस्पेंस बना हुआ है। अभी तक जितने भी मुख्य सचिवों को रिटायरमेंट के बाद पोस्टिंग मिली, उसमें इतना विलंब नहीं हुआ। आरपी मंडल को रिटायरमेंट के 20 मिनट के भीतर एनआरडीए चेयरमैन बनाने का आदेश आ गया था। मगर अमिताभ को रिटायर हुए 25 दिन निकल गए, अभी कोई सुगबुगाहट नहीं है। अलबत्ता, रिटायरमेंट के आखिरी दिनों में जब वे मुख्यमंत्री विष्णुदेव के साथ जापान और साउथ कोरिया गए थे, तब अटकलें तेज हुई थी कि प्रदेश के मुखिया के साथ विदेश गए हैं, यकीनन उनका कुछ अच्छा ही होगा। उसी समय बिजली नियामक आयोग के चेयरमैन का पद खाली हुआ था। ऐसे में, लोगों ने अंदाजा लगाया कि अमिताभ अब बिजली आयोग के ही चेयरमैन बनेंगे। मगर अभी तक बिजली आयोग का पद विज्ञापित हुआ और न ही मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति केस से हाई कोर्ट का स्टे हटा। असल में, सरकार में बैठा एक वर्ग मानता है कि पिछले सरकार में सीएस बने अमिताभ जैन को सरकार ने नहीं हटाया, फिर पौने पांच साल से अधिक समय तक ब्यूरोक्रेसी की सबसे उंची कुर्सी पर बैठने का मौका दिया गया। इसके बाद और क्या? यही परसेप्शन अमिताभ जैन के रास्ते में रोड़ा अटका रहा। हालांकि, मुख्य सूचना आयुक्त के लिए अमिताभ ने इंटरव्यू दिया है। और खबरें भी इसी तरह की है कि हाई कोर्ट से स्टे क्लियर होते ही उनकी नियुक्ति हो जाएगी। मगर सवाल उठता है कब तक? महाधिवक्ता ऑफिस में भी इसको लेकर कोई सक्रियता नहीं महसूस की जा रही। तो फिर मजरा क्या है...ये उपर बैठे लोग ही बता पाएंगे। वैसे ये सत्य है कि राज्योत्सव और पीएम विजिट की व्यस्तता काफी है, ऐसे में किसी को उपकृत करने वाली पोस्टिंग की बात सूझेगी नहीं।

अंत में दो सवाल आपसे?

1. जिस राज्य में नक्सल मोर्चे पर ऐतिहासिक कामयाबी मिलने जा रही, वहां प्रभारी पुलिस प्रमुख...क्या ये आदर्श स्थिति है?

2. सत्ताधारी पार्टी के भीतर से ब्यूरोक्रेसी पर हमले क्यों हो रहे हैं?

रविवार, 19 अक्टूबर 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: कलेक्टर, सोशल मीडिया और दिवाली

 तरकश, 19 अक्टूबर 2025

संजय के. दीक्षित

कलेक्टर, सोशल मीडिया और दिवाली

सोशल मीडिया ने इस बार कई कलेक्टर, एसपी की दिवाली को कमजोर कर दिया। दरअसल, 13 अक्टूबर को कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस खतम होते ही फेसबुक, व्हाट्सएप पर कलेक्टर, एसपी के ट्रांसफर को लेकर भविष्यवाणियों की ऐसी झड़ी लगी कि जैसे कुछ मिनटों में लिस्ट आने वाली है। ऐसे में हलाकान, परेशान कई कलेक्टरों ने उपर तक के लोगों को फोन लगा डाला। कुल मिलाकर दो दिन में ऐसा रायता फैला कि लोगों को लगा दिवाली से पहले कुछ लोग निबट जाएंगे। जाहिर है, ऐसी खबरों को पंख लगते देरी नहीं लगती। इसका असर यह हुआ कि बड़े लोगों की दिवाली मनवाने वाले कारपोरेट, ठेकेदार और सप्लायरों ने इस बार पहले जैसी दिलेरी नहीं दिखाई। उन्हें लगा साब जाने वाले हैं तो अब ज्यादा चारा फेंकने का क्या मतलब?

सीएम विष्णुदेव और हिन्दुत्व!

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय बीजेपी की सियासत के बेहद साफ्ट चेहरा माने जाते हैं। 35 साल के दीर्घ सियासी सफर में उनके दामन पर विवादों के कोई छींटे नहीं पड़े। न वे हिन्दू और हिन्दुत्व को लेकर कभी मुखर रहे। मगर हालात को देखते कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस में उन्होंने तेवर तल्ख किया है। खासकर, धर्मांतरण को लेकर। कांफ्रेंस में सरगुजा के एसपी ने जब कहा कि हमारे यहां धर्मांतरण नहीं...कभी-कभी चंगाई सभा होती है तो मुख्यमंत्री बोले, आपको पता नहीं। चंगाई सभा धर्मांतरण का पहला चरण होता है...इसे रोकने आपलोग कड़ी कार्रवाई कीजिए। इसके बाद बलरामपुर जिले की बात आई तो मुख्यमंत्री ने तीखी टिप्प्णी की। पुराने दिनों को याद करते बोले, मैं बलरामपुर जाता था तो वहां हरे-हरे झंडे दिखाई पड़ते थे। आपलोग अवैध वाशिंदों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें। हिन्दुत्व को लेकर मुख्यमंत्री की गंभीरता को देखते कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस के बाद कई जिलों में पुलिस ने धर्मांतरण के केस में सख्ती बढ़ा दी है।

पुलिस कमिश्नरेट में देरी

छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना की रजत जयंती के मौके पर रायपुर में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होने की चर्चाएं थी। सरकार ने कमिश्नर सिस्टम के लिए ड्राफ्ट बनाने के लिए कमेटी बनाई थी, कमेटी ने रिपोर्ट भी सौंप दी। मगर इसके बाद पता नहीं कैसे, मामला कहीं फंस गया है। अफसरों की मानें तो अब राज्योत्सव में हफ्ता भर का टाईम बच गया है, इतने कम समय में पुलिस कमिश्नर ऑफिस से लेकर सेटअप तैयार करना संभव नहीं। लिहाजा, अब माना जा रहा कि रायपुर पुलिस कमिश्नरेट एक जनवरी से ही प्रारंभ हो पाएगा।

कलेक्टर्स की लिस्ट

सरकार ने कलेक्टरों को दिवाली से पहले डिस्टर्ब करना मुनासिब नहीं समझा। मगर संभावना है कि राज्योत्सव से पहले दो-एक कलेक्टरों की लिस्ट निकल जाए। सरकार एक कलेक्टर को अब जैसे भी हो बदलना चाहती है, मगर उसका उद्देश्य कार्रवाई नहीं, मजबूरी है। लिहाजा, उन्हें दूसरा कोई ठीक ठाक जिला भी दिया जा सकता है। अगर ऐसा हुआ तो फिर दो जिले के कलेक्टरों की लिस्ट निकलेगी। बाकी मुख्यमंत्री के उपर है, वे क्या सोचते हैं। क्या भरोसा, कुछ दिनों के लिए सिंगल जिले का ही लिस्ट निकल जाए।

पीएम के 3 नाइट हॉल्ट

डीजीपी कांफ्रेंस के सिलसिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन, दो रात रायपुर में रुकेंगे। मोदी 28 नवंबर की शाम को रायपुर आएंगे। 29 को रहेंगे। 30 नवंबर को समापन समारोह में हिस्सा लेने के बाद शाम यहां से दिल्ली के लिए रवाना होंगे। इससे पहले रायपुर में किसी प्रधानमंत्री का इतना लंबा दौरा नहीं हुआ। वो भी मोदी जैसे पीएम...। अटल जी बिलासपुर में जरूर दो रात रुके थे। 2003 में अजीत जोगी सरकार के दौरान वे रेलवे जोन मुख्यालय भवन का उद्घाटन और परिवर्तन रैली को संबोधित करने आए थे, उस समय बिलासपुर के छत्तीसगढ़ भवन में वे दो रात रुके। इससे पहले किसी भी प्रधानमंत्री का छत्तीसगढ़ के किसी एक शहर में दो दिन का विजिट नहीं रहा। इससे पहले राज्योत्सव के मौके पर पीएम मोदी 31 अक्टूबर को भी रायपुर आ रहे। 31 को उनका रायपुर में ही रात्रि विश्राम है। 1 नवंबर को वे अलग-अलग पांच कार्यक्रमों में शामिल होंगे। कुल मिलाकर महीना भर के भीतर पीएम मोदी का रायपुर में तीन नाइट हॉल्ट होगा।

होटलों में नो रुम

अगर रायपुर में 28 से 30 नवंबर के बीच आप कोई कार्यक्रम करना चाहते हैं तो उसे टालना बेहतर होगा। क्योंकि, रायपुर में राज्य बनने के बाद दो सबसे सबसे बड़े आयोजन होने जा रहे हैं। 28 से 30 के बीच डीजीपी, आईजी कांफ्रेंस तो है ही, 28 नवंबर से तीन दिन का डॉक्टरों का एक नेशनल सेमिनार होगा। इसमें देश भर से करीब ढाई हजार डॉक्टरों के शिरकत करने का अंदेशा है। छत्तीसगढ़ में डॉक्टरों का इस लेवल का आयोजन पहली बार हो रहा है। ऐसे में, होटलों में रुम नहीं मिल रहे। डीजीपी, आईजी कांफ्रेंस के लिए आईबी वाले परेशान हैं, होटलों के अलावे रायपुर के आसपास के जितने गेस्ट हाउसेज हैं, उन्हें तैयार किया जा रहा है। डॉक्टरों के वर्कशॉॅप के लिए प्रायवेट फार्महाउसों से भी रुम के लिए बात की जा रही। जाहिर है, डीजीपी कांफ्रेंस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, केंद्रीय गृह मंत्रालय के सीनियर अफसर समेत देश के सभी राज्यों के डीजीपी, आईजी और गृह सचिव रायपुर में रहेंगे। पता चला है, होटल वाले बाहर से शेफ और केटरर टीम बुला रहे तो टैक्सी वाले दूसरे राज्यों से इनोवा बुला रहे। क्योंकि, रायपुर में उतनी गाड़ियां नहीं हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या एनएचएम में सरकार कोई नया डायरेक्टर अपाइंट करने वाली है?

2. रायपुर में पुलिस कमिश्नरेट प्रारंभ होने में देरी के पीछे क्या वजह है?

शनिवार, 11 अक्टूबर 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: 10 हजार करोड़ का गड्ढा

 तरकश, 12 अक्टूबर 2025

संजय के. दीक्षित

10 हजार करोड़ का गड्ढा

10 अक्टूबर की विष्णुदेव कैबिनेट की बैठक अलग मोड में हुई। फूड और मार्कफेड के अफसर प्रेजेंटेशन दे रहे थे और मंत्रिपरिषद सुन रही थी। बैठक में यहां तक बात आ गई कि अगर धान खरीदी की यही स्थिति रही तो एकाध साल बाद धान खरीदने की स्थिति नहीं रहेगी। आज की तारीख में मार्कफेड पर 38 हजार करोड़ का लोन है और इस साल ओवर परचेजिंग से राज्य के खजाने को 8 हजार करोड़ की चपत लग चुकी है। दरअसल, दिक्कत किसान और धान से नहीं, दिक्कत धान की रिसाइकिलिंग और राईस माफियाओं के खेल से है। छत्तीसगढ़ में धान खरीदी का ग्राफ इस तेजी से बढ़ रहा कि अच्छे-अच्छे कृषि वैज्ञानिक हैरान हैं। पुराने लोगों को याद होगा, 2002-03 में मात्र 18 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी हुई थी। 20 साल में यह नौ गुना बढ़ गई। जबकि, खेती का रकबा तेजी से कम हो रहा है। ये कहना भी कुतर्क होगा कि रेट बढ़ने से धान ज्यादा बोए जा रहे हैं। आखिर पहले भी सिर्फ धान बोए जाते थे...और कोई फसल लगाए नहीं जाते थे कि उसे बंद कर अब धान बोया जा रहा। जाहिर है, 2024-25 में सारे रिकार्ड तोड़ते हुए धान खरीदी 149 लाख मीट्रिक टन पर पहुंच गई। जबकि, जानकारों का कहना है कि छत्तीसगढ़ में वास्तविक धान 100 से 110 लाख मीट्रिक टन होना चाहिए। याने बिचौलियों और अधिकारियों की मिलीभगत से की जाने वाली रिसाइकिलिंग और दूसरे प्रदेशों से आने वाले अवैध धानों को रोक दिया जाए तो सीधे-सीधे 30 से 35 लाख मीट्रिक टन की फर्जी खरीदी रुक जाएगी। बता दें, 2024-25 में भी लिमिट से अधिक खरीदी से धान का डिस्पोजल नहीं हो पाया और खुले बाजार में नीलामी से करीब दो हजार करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा। बहरहाल, पहली ही बार में पूरे लूज पोल तो बंद नहीं किए जा सकते। फिर भी अगर रिसाइकिलिंग और बिचौलियों पर अंकुश लगाकर 25 से 30 लाख मीट्रिक टन धान की फर्जी खरीदी अगर रोक दी गई तो खजाने का करीब 10 हजार करोड़ बचेगा, जो माफियाओं, राईस मिलरों, अधिकारियों और नेताओं की जेब में जाता है।

नारी शक्ति को कमान

राज्य सरकार ने धान खरीदी में भ्रष्टाचार को रोकने दो महिला आईएएस अधिकारियों को जिम्मेदारी सौंपी हैं। रीना बाबा कंगाले इस समय सिकरेट्री फूड और किरण कौशल एमडी मार्कफेड। सीएम सचिवालय ने इसकी प्लानिंग पहले ही कर ली थी। इसी रणनीति के तहत रीना को रेवेन्यू का अतिरिक्त प्रभार दिया गया। इसका फायदा यह हुआ कि उन्होंने राजस्व अमले से धान की फसल का क्रॉप सर्वे करा लिया। पटवारियों से गिरदावरी रिपोर्ट भी ले ली गई। अब ग्राम पंचायतों में उसे पढ़कर बताया जा रहा कि इस इलाके में एक एकड़ में इतना धान होना संभावित है। याने बिचौलियो की अब नहीं चल पाएगी। अभी तक जिन खेतों में एकड़ में 15 क्विंटल धान नहीं होते थे, वहां 21 क्विंटल का क्लेम किया जा रहा था। उपर से कैबिनेट ने ऑनलाइन धान खरीदी पर मुहर लगा दी है। भारत सरकार के साफ्टवेयर से किसानों का पंजीयन किया जाएगा। मोबाइल ऐप्प से टोकन मिलेगा और फिर बायोमेट्रिक भी होगा। जाहिर है, सिस्टम की कवायद सही रही तो राईस माफियाओं और अधिकारियों को बड़ी चोट पड़ेगी।

छत्तीसगढ़, धान और गरीबी

कृषि अर्थशास्त्री धान को गरीबी से जोड़ते ही हैं, छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी भी हमेशा कहते थे कि छत्तीसगढ़ में धान और गरीबी दोनों एक-दूसरे की पूरक है। मध्यप्रदेश के समय कभी इस बात पर ध्यान नहीं दिया गया कि छत्तीसगढ़ में खेती का ट्रेंड बदला जाए। राज्य बनने के बाद अजीत जोगी ने जरूर फसल चक्र परिवर्तन के तहत मक्का, मिलेट और दलहन-तिलहन के लिए कोशिशें शुरू की थीं। मगर इसके कुछ अरसा बाद ही सरकार बदल गई। फिर दो दशक में फसल चक्र कभी चर्चा में नहीं आया। जबकि, फैक्ट है कि दूसरी फसलें कई गुना ज्यादा आमदनी दे सकती हैं। धान में एकड़ पर 20 हजार से ज्यादा नहीं बचता, वहीं मिलेट या दूसरी फसलें लगाएं तो 40 से 50 हजार रुपए की बचत हो सकती है। राजनांदगांव में छुरिया और कांकेर के पखांजूर इलाके के किसान मक्का के अलावा कुछ लगा नहीं रहे हैं आजकल। ऐसा बाकी जिलों में भी किया जा सकता है। इसकी इसलिए भी जरूरत है कि 3100 रुपए में धान खरीदी के बाद भी छोटे किसानों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं। 85 से 90 परसेंट तो छोटे ही किसान हैं। जिनके पास दो-तीन, चार एकड़ जमीनें होती हैं। कोई बड़ा खर्च आ जाए तो आज भी उन्हें कर्ज ही लेना पड़ता है।

आईपीएस दुखी

आईपीएस रॉबिंसन गुड़िया के नारायणपुर जिले के एसपी बनाने की वजह से 2020 बैच के आईपीएस दुखी हुए जा रहे हैं। उन्हें मलाल है कि बैच में जूनियर होने की वजह से रॉबिंसन को पहले एसपी बनने का मौका कैसे मिल गया। हालांकि, ये कोई पहली बार नहीं हुआ। परिस्थितिवश कई बार कलेक्टर, एसपी बनाने में उपर-नीचे हो जाता है। और...ऐसे कहें तो फिर ऋचा शर्मा को विकास शील के साथ काम ही नहीं करना चाहिए। विकास शील बैचवाइज उनसे जूनियर हैं। एसपी में बैच की सीनियरिटी को सुपरसीड कभी-कभार हो पाता है। कलेक्टरों में तो अक्सर होते रहता है। 2014 में तो 2007 बैच की शम्मी आबिदी से पहले 2008 बैच के आईएएस भीम सिंह धमतरी के कलेक्टर बन गए थे। 2013 बैच में विनीत नंदनवार चौथे नंबर पर थे, मगर कलेक्टर बनने का अवसर उन्हें पहले मिल गया। इसलिए, 2020 बैच के आईपीएस अधिकारियों को ज्यादा सेंटिमेंटल होने की जरूरत नहीं। अमित कुमार को उन्हें बुलाकर समझा देना चाहिए।

डीएफओ कांफ्रेंस का हिस्सा

अभी तक कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस में डीएफओ को कभी शामिल नहीं किया गया। मगर 13 अक्टूबर को कलेक्टर के साथ डीएफओ की भी सीएम क्लास लेंगे। डीएफओ को कांफ्रेंस में शामिल करने का मकसद यह है कि छत्तीसगढ़ में 40 फीसदी से अधिक जंगल है। सरकार पर्यटन पर फोकस कर रही है और सूबे में पर्यटन पर जो काम हुए हैं, वह अधिकांश फॉरेस्ट एरिया में ही हैं। उसमें फॉरेस्ट का सहयोग रहा है। वन पट्टा से कल-कारखानों को जमीन देने में फॉरेस्ट क्ल्यिरेंस की जरूरत पड़ती है। इस लिहाज से इस बार डीएफओ को अबकी इम्पॉर्टेंस दिया गया है।

सिकरेट्री, कलेक्टरों का बढ़ा बीपी

कलेक्टर-एसपी-डीएफओ काफ्रेंस इस बार अलग अंदाज में हो रहा है। एक तो होटलों या कॉफी हाउस की बजाए मंत्रालय के पांचवे फ्लोर पर सीएम सचिवालय के जस्ट बगल में बने नए ऑडिटोरियम में बैठक होगी, उपर से सचिवों का भी इस बार विभागवार प्रेजेंटेशन होगा। सोशल सेक्टर पर सरकार ज्यादा जोर दे रही, इसलिए सबसे अधिक टाईम स्कूल एजुकेशन, हेल्थ और महिला बाल विकास के एजेंडा को दिया गया है। पीडब्लूडी जैसे विभाग जिसका कलेक्टरों से खास संबंध नहीं होता, उसका कोई एजेंडा नहीं है। सारे जिलों का प्रेजेंटेशन सबके सामने डिस्प्ले होगा। जाहिर है, मुख्य सचिव नए हैं, उनके सामने पुअर पारफर्मेंस पर लाल बत्ती जलेगी तो कलेक्टरों की धड़कनें भी बढ़ेंगी। उधर, मुख्य सचिव विकास शील ने सचिवों को निर्देश दिया है कि उनके विभाग से संबंधित मिनिट्स तुरंत तैयार कर लें।

सिकरेट्री तेज, विभाग कमजोर!

हेल्थ सिकरेट्री अमित कटारिया वीरेंद्र सहवाग टाईप आगे बढ़कर खेलने वाले ब्यूरोक्रेट्स माने जाते हैं। रायपुर, रायगढ़ में पोस्टिंग के दौरान उन्होंने काम अच्छा किया था। मगर डेपुटेशन से लौटने के बाद स्वास्थ्य विभाग को ट्रेक पर लाने की उनकी कोशिशें सफल नहीं हो पा रही। अस्पतालों में दवाइयों से लेकर उपकरणों की खरीदी करने वाला सीजीएमएससी बैठ गया है। आलम यह है कि वीवीआईपी जिलों के अस्पतालों में दवाइयां नहीं मिल रही। जहां सिविल सर्जन ठीक हैं और कलेक्टर से उनका कोआर्डिनेशन हैं, वहां लोकल लेवल पर कामचलाउ दवाइयां खरीद जा रही मगर बाकी जगहों का भगवान मालिक हैं। दरअसल, दुर्ग और महासमुंद की कंपनी सीजीएमएससी के लिए दलाली का काम करती थी, उस पर कार्रवाई के बाद दवा खरीदी का सिस्टम बंद हो गया है। एसीबी और ईडी की कार्रवाई के बाद दोनों कंपनियों के साथ ही सीजीएमएससी के खटराल लोग जेल में है। अमित कटारिया को सबसे पहले सीजीएमएससी को ट्रैक पर लाना चाहिए, वरना जितनी देरी होगी, सरकार के लिए उतनी मुसीबतें बढ़ेंगी। और हां...कम-से-कम वीआईपी जिले को पर तो एक्स्ट्रा फोकस करना ही चाहिए।

कलेक्टर अच्छे, मगर...

सरकार ने अधिकांश बड़े और महत्वपूर्ण जिलों में कलेक्टर तो अच्छे तैनात कर दिए हैं मगर उनके अधीनस्थों की पूछेंगे तो सारे कलेक्टर व्यथित मिलेंगे। सरकार को देखना चाहिए कि सभी में नहीं तो कम-से-कम आठ-दस बड़े जिलों में डिस्ट्रिक्ट लेवल पर अच्छे अधिकारियों को तैनात किया जाए। दो जिले की खबर है...सीएमओ, डीईओ और डिप्टी डायरेक्ट एग्रीकल्चर पेड पोस्टिंग कोटे से बड़े जिले तो पा लिए मगर उन्हें विभाग की बेसिक चीजें नहीं पता। ऐसे में, सरकार कितना भी तेज-तर्रार कलेक्टर पोस्ट कर दें, उसे फेल होना ही है। आखिर, अच्छे कप्तान को अच्छा हैंड भी तो चाहिए। मुख्य सचिव विकास शील और पीएस टू सीएम सुबोध सिंह को इसे भी देखना चाहिए।

कलेक्टर से पहले मंत्रालय

सीएम सचिवालय ने प्रशासनिक सुधार की दिशा में एक अहम कदम उठाते हुए कलेक्टर बनने से पहले अब मंत्रालय की पोस्टिंग जरूरी करने जा रहा है। सिस्टम में बैठे लोगों का मानना है कि मंत्रालय में डिप्टी सिकरेट्री के तौर पर एक पोस्टिंग कर लेने के बाद कलेक्टर बनने पर बहुत सारी चीजें उसके लिए इजी हो जाएगी। क्योंकि, मंत्रालय के सिस्टम से वह भलीभांति वाकिफ रहेगा। वैसे छत्तीसगढ़ में अफसरों की कमी थी, इसलिए इस पर कभी ध्यान नहीं दिया गया। वरना, तेलांगना, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में ये सिस्टम पहले से है। सरकार इस पर विचार कर रही कि आईएएस में आने के बाद कम-से-कम सात साल बाद जिलों में कलेक्टर बनाया जाए। मध्यप्रदेश के दौर में आठ-नौ साल से पहले जिले की कलेक्टरी नहीं मिलती थी। कई बार 10-10 साल हो जाता था। अभी भी दूसरे राज्यों में ये पीरियड सात-से-आठ साल है। देश में अभी सिर्फ छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है, जहां छह साल में कलेक्टरी मिल जा रही। आईएएस के तौर पर मैच्योरिटी कम होने से जिलों में कलेक्टरों की वर्किंग प्रभावित हो रही। छत्तीसगढ में कलेक्टर नाम की संस्था पंगु होती जा रही, इसके पीछे ये भी एक बड़ी वजह है।

अंत में दो सवाल आपसे?

1. क्या ये सही है कि छत्तीसगढ़ में सत्ताधारी पार्टी के नेताओं द्वारा सेल्फ गोल मारे जा रहे हैं?

2. हर सरकारें कहती हैं, पुलिस कर्मियों को बस्तर में अब रोटेशन के आधार पर पोस्टिंग दी जाएगी, मगर धरातल पर वह उतर क्यों नहीं पाता?

शनिवार, 4 अक्टूबर 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: अफसरशाही की रफ्तार!

तरकश, 5 अक्टूबर 2025

संजय के. दीक्षित

अफसरशाही की रफ्तार!

अफसरशाही को योजनाओं के रिव्यू की तरह कभी-कभी अपने परफार्मेंस का भी एसेसमेंट करना चाहिए। दरअसल, बात ऐसी है कि पिछले साल सितंबर में कलेक्टर, एसपी कांफ्रेंस हुई थी। जीएडी और पुलिस मुख्यालय ने कांफ्रेंस में सीएम के निर्देशों को कलेक्टर, एसपी को भेज दिया। मगर इसके बाद बात आई-गई खतम हो गई। अफसरों को सुध नहीं रहा कि एक बार पता लगा लें कि कलेक्टर, एसपी को निर्देश दिए, उस पर कितना अमल हुआ। अभी 12 और 13 अक्टूबर को कलेक्टर, एसपी कांफ्रेंस तय हुआ तो अधिकारियों को खयाल आया कि पिछले साल के कांफ्रेंस का फीडबैक तो लिया नहीं गया...आनन-फानन में जीएडी और पीएचक्यू ने कलेक्टर, एसपी को पत्र भेज लास्ट कांफ्रेंस की कंप्लायंस रिपोर्ट मंगवाई गई है। अफसरशाही को रफ्तार थोड़ी ठीक करनी चाहिए।

मंत्रियों का परफार्मेंस

भले ही थोड़ा वक्त लगा...मगर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने अपनी प्रशासनिक टीम मजबूत कर ली है। पौने पांच साल बाद प्रशासनिक मुखिया बदला ही, मंत्रालय में करीब 80 परसेंट सिकरेट्री अब पहले से बेहतर हैं। पांचों पुलिस रेंज के आईजी निर्विवाद छबि के हैं तो 33 में से बीसेक जिलों के कलेक्टर, एसपी काम करने वाले हैं। अब मंत्रियों के परफार्मेंस पर फोकस करना चाहिए। क्योंकि, 13 मंत्रियों में पब्लिक को तीन-चार ही काम करते लगते हैं। बाकी किधर, क्या कर रहे, पता नहीं चल रहा। ठीक है, योजनाओं का क्रियान्वयन अफसर करते हैं मगर सरकार का पॉलीटिकल एक्सपोजर मंत्रियों की छबि और उनकी सक्रियता से होता है। आखिर, केंद्र के मंत्री किस तरह लगातार राज्यों का दौरा कर रहे हैं? छत्तीसगढ़ के मंत्रियों को भी जिलों में जाकर अपने विभाग का काम देखना चाहिए। मंत्रियों के फील्ड में जाने का प्रभाव तो पड़ता है। इस समय हो ऐसा रहा कि मंत्री रायपुर में रहते हैं या फिर सीधे अपने गृह जिले का रुख करते हैं। उपर से अभी भी कई मंत्री अपने विभागों को समझ नहीं पा रहे। इसका खामियाजा यह हो रहा कि सप्लाई, ठेका, खरीदी में बिचौलियों का हस्तक्षेप कम नहीं हो पा रहा। सरकार और संगठन को इसे देखना चाहिए।

राजभवन में नया एडीसी

हमेशा से ऐसा होता आया है, राजभवन में एडीसी रहने के बाद आईपीएस अधिकारियों को ठीकठाक जिले में एसपी बनाकर भेजा जाता है। विवेकानंद से लेकर दीपांशु काबरा, आनंद छाबड़ा, राहुल शर्मा, अमरेश मिश्रा, मयंक श्रीवास्तव, अभिषेक पाठक, रामगोपाल गर्ग, अभिषेक शांडिल्य, भोजराम पटेल, त्रिलोक बंसल, विवेक शुक्ला, सूरज सिंह परिहार तक हमेशा ऐसा ही होता रहा। मगर पहली बार ऐसा हुआ कि आईपीएस उमेश गुप्ता को एडीसी नियुक्त किया गया, लेकिन सुनील शर्मा की कहीं पोस्टिंग नहीं दी गई। राजभवन से पहले सुनील शर्मा अंबिकापुर के एसपी रहे और चर्चा थी कि उन्हें बिलासपुर, रायपुर जैसे किसी जिले का कप्तान बनाया जाएगा, मगर पिछले साल अचानक एडीसी टू गवर्नर नियुक्त हुए तो लोग चौंके थे। और...इस हफ्ते फिर लोग चौंके जब बिना किसी जिले का एसपी बनाए सुनील शर्मा हटा दिए गए। चौंकने का विषय यह भी है कि सुनील शर्मा की जगह पर आईपीएस उमेश गुप्ता को नया एडीसी बनाया गया था, उन्होंने इस नई जिम्मेदारी से हाथ खड़ा कर दिया है। एडीसी एपिसोड पर आईपीएस बिरादरी की गहरी खामोशी से लगता है कोई संजीदा मामला है। अगर ऐसा कुछ है तो फिर आईपीएस एसोसियेशन को कुछ पूजा-पाठ करा लेनी चाहिए। बहरहाल, नए एडीसी के लिए जल्द ही तीन नए नामों को पेनल राजभवन भेजा जाएगा। उसके बाद नई नियुक्ति की जाएगी।

पुलिस कमिश्नर सिस्टम?

छत्तीसगढ़ में पुलिस कमिश्नर सिस्टम शुरू होने को लेकर जिस बात की आशंकाएं थी, वह दृष्टिगोचर होने लगी हैं। दरअसल, कोई भी रिफार्म या बदलाव यूं ही नहीं हो जाता। भांति-भांति के अवरोध आते हैं...पावर गेम का सामना करना पड़ता है। स्वाभाविक है कि किसी की बरसों की सत्ता पर आंच आएगी तो वो कैसे इसे स्वीकार करेगा। पड़ोसी राज्य ओड़िसा में नवीन पटनायक ने जब इस सिस्टम को लागू किया तो उन्हें भी अफसरशाही से लोहा लेना पड़ा था। बता दें, देश का बेस्ट पुलिस कमिश्नर सिस्टम ओड़िसा का है। विधानसभा में एक्ट पारित कर उसे बनाया गया है।

फर्स्ट पुलिस कमिश्नर

रायपुर में एक नवंबर से पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होगा...फिलहाल इसमें अब कोई संशय नहीं लगता। लोगों की जिज्ञासा यह है कि रायपुर का फर्स्ट पुलिस कमिश्नर कौन होगा? हालांकि, यह स्पष्ट हो चुका है कि आईजी लेवल का पुलिस कमिश्नर होगा। एडीजी प्रदीप गुप्ता की अध्यक्षता में बनी सात सदस्यीय कमेटी ने भी आईजी को पुलिस कमिश्नर बनाने की सिफारिश की है। और जब आईजी को इस पद पर बिठाना है तो जाहिर है कि सीटिंग आईजी को ही वेटेज दिया जाएगा। सीटिंग आईजी में सबसे सीनियर सुंदरराज बस्तर में हैं। नक्सलियों के सफाये के मार्च 2026 के डेडलाइन को देखते इस समय उन्हें कोई हिला नहीं सकता। रायपुर आईजी अमरेश मिश्रा के पास ईओडब्लू और एसीबी भी है। इन दोनों जांच एजेंसियों के पास इतना वर्कलोड है कि सरकार उन्हें डिस्टर्ब करना नहीं चाहेगी। बच गए बिलासपुर आईजी संजीव शुक्ला, दुर्ग आईजी रामगोपाल गर्ग और सरगुजा आईजी दीपक झा। तीनों साफ-सुथरी छबि के आईपीएस अधिकारी हैं। प्रोफाइल के मामले में दीपक जरूर वजनदार पड़ेंगे। वे सात जिलों के एसपी रहे हैं। आईजी के तौर पर राजनांदगांव के बाद सरगुजा में दूसरा रेंज कर रहे हैं। बहरहाल, यह तय है कि डिसाइड इन तीन नामों में से होगा।

आईपीएस की लिस्ट

वैसे तो सुनने में आ रहा कि कलेक्टर, एसपी कांफ्रेंस के बाद एसपी की एक लिस्ट निकलेगी। महासमुंद एसपी डेपुटेशन पर जा रहे हैं। दो-तीन और पुलिस अधीक्षक सरकार के राडार पर हैं। पुलिस कमिश्नर बनने के बाद महासमुंद नया पुलिस रेंज बनेगा। अजय यादव इस रेंज के आईजी बन सकते हैं। आईजी बनने वालों में बद्रीनारायण मीणा का नाम भी हैं। दुर्ग, बिलासपुर और सरगुजा आईजी में से कोई अगर रायपुर पुलिस कमिश्नर बना तो बद्री को उनकी जगह आईजी पोस्ट किया जा सकता है।

सुब्रत को रेवेन्यू बोर्ड, मगर...

विकास शील को मुख्य सचिव बनाने के बाद सरकार ने उनसे सीनियर रेणु पिल्ले और सुब्रत साहू को मंत्रालय से बाहर शिफ्थ कर दिया। दोनों को मुख्य सचिव के समकक्ष पोस्टिंगें मिली हैं। याने सम्मान का ध्यान रखा गया है। रेणु को व्यापम और माध्यमिक शिक्षा मंडल का चेयरमैन बनाया गया तो सुब्रत को प्रशासन अकादमी के डायरेक्टर जनरल के साथ अतिरिक्त प्रभार के तौर पर राजस्व बोर्ड का चेयरमैन का दायित्व सौंपा गया है। 31 अक्टूबर को टीपी वर्मा के रिटायर होने के बाद एक नवंबर को वे राजस्व बोर्ड का दायित्व संभालेंगे। हालांकि, सुब्रत का प्रशासन अकादमी का आदेश बदल सकता है। एक तो, कैडर लिस्ट में महानिदेशक प्रशासन अकादमी का पद प्रमुख सचिव लेवल का है। सुब्रत 2021 से एडिशनल चीफ सिकरेट्री हैं और अब मुख्य सचिव से सीनियर भी। फिर कायदे से रेवेन्यू बोर्ड चेयरमैन को अतिरिक्त प्रभार नहीं देना चाहिए। इससे पहले ऐसा कभी हुआ भी नहीं कि रेवेन्यू बोर्ड चेयरमैन के पास दो चार्ज रहे। सो, अंदेशा है कि 31 अक्टूबर को सरकार सुब्रत साहू के आदेश को संशोधित कर मुख्य पोस्टिंग चेयरमैन रेवेन्यू बोर्ड कर देगी। और प्रशासन अकादमी का अतिरिक्त प्रभार प्रमुख सचिव निहारिका बारिक या सोनमणि बोरा को सौंप दे।

ब्यूरोक्रेसी में दूसरे नंबर का पद

छत्तीसगढ़ में भले ही चेयरमैन रेवेन्यू बोर्ड की रेटिंग गिरा दी गई हो मगर दूसरे राज्यों में इसे नेक्स्ट टू सीएस माना जाता है। छत्तीसगढ़ के आईएएस के ग्रेडेशन लिस्ट में भी रेवेन्यू बोर्ड चेयरमैन को मुख्य सचिव के बाद दूसरे नंबर पर रखा गया है। डीएस मिश्रा और सीके खेतान को थोड़े दिन के लिए रेवेन्यू बोर्ड में अवसर मिला था, उसमें दोनों ने कई बड़े फैसले किए। बड़ी-बड़ी सीमेंट कंपनियों को हाई कोर्ट की शरण लेनी पड़ी। रेवेन्यू बोर्ड राजस्व का अपेक्स कोर्ट है। इसमें नायब तहसीलदार, तहसीलदार, कलेक्टर, कमिश्नर कोर्ट के फैसले की अपील होती है। यही नहीं, कमिश्नर लैंड रिकार्ड, माईनिंग और पंजीयन विभाग की अपील भी रेवेन्यू बोर्ड में की जाती हैं। बहरहाल बता दें, सीएस रैंक के एक आईएएस अफसर ने रेवेन्यू बोर्ड चेयरमैन रहते ऐसी तबाही मचाई थी कि सिस्टम हिल गया था। कलेक्टर-कमिश्नरों ने सरकार से फरियाद की, साहब इन्हें बदलिए...ये सारे फैसले पलटते जा रहे हैं। इसके बाद सरकार ने उन्हें रातोरात हटा दिया था।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या डीएमएफ घोटाले में ईडी की जांच के जद में कुछ पूर्व कलेक्टर आ सकते हैं?

2. डीएमएफ घोटाले में लिप्त रहे छत्तीसगढ़ के सप्लायर ईडी के नाम पर कांप क्यों रहे हैं?