27 मई
कभी राज्यों की जांच एजेंसियों से नेताओं और नौकरशाहों के हाथ-पांव कांपते थे। लेकिन, अब तो सब उल्टा-पुलटा हो रहा है। एजेंसियों को अफसरों के केस मेें कोर्ट में माफी मांगनी पड़ रही है। उपर से अब गंभीर किस्म की आरटीआई लग गई है। सवाल भी हल्के नहीं हैं। एजेंसी के प्रमुख से पूछा गया है, एक फलां रिटायर आईएएस के खिलाफ जांच की फाइल आपने अचानक नस्तीबद्ध कैसे कर दी? रिटायर आईएएस पीएससी के चेयरमैन बनें तो आप वहां सलेक्शन कमिटी का चेयरमैन बनकर पारिश्रमिक लिए क्या? जाहिर है, यह सवाल जांच एजेंसी की मुश्किलें बढ़ाएगा। ना बोल नहीं सकते और हां बोले तो मामला पेचीदा हो जाएगा। ठीक ही कहते हैं, कलयुग आ गया है….जो कभी झुकाते थे, वे अब झुक रहे हैं।
कभी राज्यों की जांच एजेंसियों से नेताओं और नौकरशाहों के हाथ-पांव कांपते थे। लेकिन, अब तो सब उल्टा-पुलटा हो रहा है। एजेंसियों को अफसरों के केस मेें कोर्ट में माफी मांगनी पड़ रही है। उपर से अब गंभीर किस्म की आरटीआई लग गई है। सवाल भी हल्के नहीं हैं। एजेंसी के प्रमुख से पूछा गया है, एक फलां रिटायर आईएएस के खिलाफ जांच की फाइल आपने अचानक नस्तीबद्ध कैसे कर दी? रिटायर आईएएस पीएससी के चेयरमैन बनें तो आप वहां सलेक्शन कमिटी का चेयरमैन बनकर पारिश्रमिक लिए क्या? जाहिर है, यह सवाल जांच एजेंसी की मुश्किलें बढ़ाएगा। ना बोल नहीं सकते और हां बोले तो मामला पेचीदा हो जाएगा। ठीक ही कहते हैं, कलयुग आ गया है….जो कभी झुकाते थे, वे अब झुक रहे हैं।
घोर कलयुग-2
आईएफएस देवेंद्र सिंह चले गए। सिर्फ 54 साल में। 54 कोई जाने की उमर नहीं होती। उन्होंने सात साल तक मौत से संघर्ष किया। हमेशा वे उसे परास्त करते और फिर काम में लग जाते थे। लेकिन, इस 23 तारीख को मौत ने चुपके से दबिश दी और हरदिल अजीज देवेंद्र सिंह को साथ लेकर चली गई। देवेंद्र सिर्फ अफसर नहीं थे। बल्कि, अफसर से बेहद उपर…निष्कपट, निश्चल इंसान। सह्दयता की मिसाल। अहम पदों पर रहने के बाद भी कोई दुश्मन नहीं। कौन नहीं चाहता था उन्हें। सरकार से लेकर विपक्ष तक। याद है, 2012 में जब ब्रेन ट्यूमर का पता चला तो कांग्रेस नेता सत्यनारायण शर्मा ने बांबे हास्पिटल में डाक्टर को फोन किया था। तब वे एमडी सीएसआईडीसी थे। वहां के कर्मचारियों ने उनके लिए मृत्यंजय पाठ कराया। इससे आप समझ सकते हैं। उनके अंतिम संस्कार में कौन नहीं था। राजनेता से लेकर आईएएस, आईपीएस, आईएफएस से लेकर मीडिया और बिजनेसमैन भी। खबर मिलने के 10 मिनट के भीतर एनएमडीसी के चेयरमैन बैजेंद्र कुमार ने ट्विट किया, आउटस्टैंडिंग अफसर थे देवेंद्र…उनकी मौत से मैं स्तब्ध हूं। तो अमन सिंह जैसे व्यस्त अफसर अस्पताल से शव लेकर उनके घर पहंुचे और अंतिम संस्कार तक रहे। अमन सिंह ने कहा, 25 साल की सर्विस में मैं ऐसा अफसर नहीं देखा… देवेंद्र सिंह एक रोल माॅडल थे। ऐसे, अफसर का असमय चले जाना….घाघ और खटराल लोग मजे कर रहे हैं…कलयुग मे ही ये हो सकता है।
रजत की वापसी
आईएएस रजत कुमार 29 मई को हावर्ड से इंडिया लौट रहे हैं। समझा जाता है, एक जून को वे यहां ज्वाईनिंग देंगे। उनकी पोस्टिंग भी सीएम सचिवालय में निश्चित मानी जा रही है। 2005 बैच के आईएएस रजत पिछले साल मई में हायर स्टडी के लिए हावर्ड गए थे। तब वे सीएम सचिवालय में ज्वाइंट सिकरेट्री थे। लेकिन, 2005 बैच का प्रमोशन होने के बाद अब वे वहां स्पेशल सिकरेट्री होंगे।
दामाद बाबू
आईएफएस आलोक कटियार को क्रेडा का सीईओ बनाया गया है। सीसीएफ लेवल के इस अफसर को पिछले महीने सरकार ने आरडीए का सीईओ बनाया था तो वे नाराज हो गए थे। आर्डर निकलने के 40 दिन बाद भी उन्होंने ज्वाईन नहीं किया। दरअसल, आरडीएस सीईओ डिप्टी कलेक्टर या फ्रेश आईएएस का पोस्ट है। आलोक रायपुर के सांसद रमेश बैस के दामाद के बड़े भाई हैं। ब्यूरोक्रेसी में उन्हें दामाद बाबू कहा जाता है। अब दामाद हैं, तो नाराज होने का उनको हक भी बनता है। लेकिन, सरकार ने लगता है, अबकी के्रेडा का तोहफा देकर उन्हें मना लिया है। के्रडा का मतबल सिर्फ एक बोर्ड या अथाॅरिटी नहीं है। क्रेडा बिजली विभाग में आता है। बिजली विभाग सीएम के पास है। आमतौर पर सीएम के विभागों में टेस्टेड और विश्वासपात्र अफसर ही अपाइंट किए जाते हैं। कुल मिलाकर क्रेडा की पोस्टिंग आरडीए से ज्यादा सम्मानित तो है ही।
दो दर्जन एएसपी
विधानसभा चुनाव से पहिले सरकार सूबे के करीब दो दर्जन एडिशनल एसपी को बदलने जा रही है। इनमें अधिकांश वे अफसर है, जिनका कार्यकाल दो साल से अधिक हो गया है। ट्रांसफर की फाइल पीएचक्यू, होम मिनिस्टर से होते हुए मुख्यमंत्री सचिवालय में पहुंच गई है। सीएम चूकि विकास यात्रा में व्यस्त थे, इसलिए उनका मुहर नहीं लग पाया है। सीएम के हस्ताक्षर के बाद गृह विभाग किसी भी दिन आदेश जारी कर देगा।
प्रशासन और राजनीति
प्रशासन और राजनीति के तालमेल से सरकारें चलती हंै। इनमें से दोनों से कोई भी अगर एक-दूसरे पर हावी हुआ, तो सिस्टम बिगड़ता है। छत्तीसगढ़ में कुछ ऐसा ही हो रहा है। सही मामलों में कार्रवाई होेने पर भी उसे वर्ग और जाति से जोड़ दिया जा रहा। पुअर पारफारमेंस के आधार पर पुलिस इंस्पेक्टरों को बर्खास्तगी के समय तो ये देखने में आया ही एक और बानगी हम आपको बताते हैं। राज्य के एक प्रोजेक्ट के लिए सीएम ने केंद्रीय मंत्री को लेटर लिखा था। केंद्रीय मंत्री ने 150 करोड़ रुपए इसके लिए स्वीकृत कर दिया था। सिर्फ कुछ बिन्दुओं पर उन्होंने जानकारी चाही थी। लेकिन, मंत्रालय के संबंधित बाबू ने फाइल को दो महीने दबा दिया। सिकरेट्री ने जब फाइल ढूंढवाई तो बाबू के अलमारी मे मिली। तब तक समय निकल चुका था। डिप्टी सिकरेट्री ने बाबू को नोटिस दी। जवाब मिला, दृष्टि भ्रम के कारण ऐसा हुआ….आगे से नहीं होगा। सिकरेट्री ने जब बाबू को सस्पेंड करने कहा, तो उन्हें बताया गया, साब चुनाव का समय है, जिस समुदाय से बाबू आता है, उनके लोग सरकार के खिलाफ लगेगे पत्थर गाड़ने….काहे के लिए आप रिस्क लेते हैं। इस पर बाबू को छोड़ दिया गया। ऐसे में प्रशासन का क्या होगा, अब आप समझ सकते हैं।
अंत में दो सवाल आपसे
1. राहुल गांधी के छत्तीसगढ़ दौरे से किस नेता को सर्वाधिक फायदा हुआ?
2. किस बड़े जिले के एसपी से सरकार खुश नहीं है?
2. किस बड़े जिले के एसपी से सरकार खुश नहीं है?
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