सोमवार, 23 सितंबर 2013

तरकश, 22 सितंबर

फीका प्रवास 

जीरम नक्सली हमले के समय आकस्मिक प्रवास को छोड़ दें तो प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह आठ साल बाद छत्तीसगढ़ आए। इसके बावजूद उनका प्रवास फीका रहा। विधानसभा चुनाव सामने है इसलिए, सत्ताधारी पार्टी द्वारा इसे महत्व देने का सवाल ही नहीं था। कांग्रेस ने भी उत्साह दिखाने की कोई कोशिश नहीं की। आलम यह रहा कि अरसे बाद छत्तीसगढ़ आए प्रधानमंत्री का राजधानी रायपुर में वह एक कार्यक्रम नहीं ले पाई। न एक बैनर और ना ही एक पोस्टर। मीडिया में भी पीएम विजिट की खबर खानापूर्ति समान ही लगी। अलबत्ता, मीडिया को यह खबर अधिक अहम लगी कि अजीत जोगी को मंच पर नहीं बिठाया गया। सो, पीएम गौण हो गए और जोगी लीड समाचार बन गए।

अब डीएस भी

 चीफ सिकरेट्री सुनिल कुमार के बाद शनिवार को एसीएस डीएस मिश्रा ने भी मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर अपने खिलाफ सीबीआई जांच करने का आग्रह कर दिया। उन्होंने सीएम को लिखा है कि मैरे विरुद्ध कतिपय लोगों ने सायकिल और फर्नीचर खरीदी में चीफ विजिलेंस कमिश्नर से जांच की मांग की गई है। मैं चाहता हूं कि इसकी उच्च स्तरीय जांच की जाए, ताकि दूध-का-दूध और पानी-का-पानी हो जाए। अब, यह देखना दिलचस्प होगा कि तीसरा कौन आईएएस इस तरह का साहस दिखाता है।

तू-तू, मैं-मैं

 नौकरशाही में शीर्ष पद के दो दावेदार पिछले हफ्ते जमकर उलझ पड़े। मौका था, राज्य कर्मकार मंडल की बैठक का। इसमें विभागीय आईएएस इस बात को लेकर अड़े थे कि कैश ट्रांसफर उन पर लागू नहीं होता। इसलिए, असंगठित मजदूरों को सायकिल, सिलाई मशीन ही वितरित की जाएगी। और खजाना वाले आईएएस का कहना था, ऐसा संभव नहीं है। उन्हें कैश ही ट्रासंफर किया जाएगा। बताते हैं, इस पर दोनों आला अधिकारी इतने गरम हो गए कि तू-तू, मैं-मैं होने लगीं। आलम यह था कि सिर्फ हाथापाई नहीं हुई। बाकी सब हो गया। हालांकि, आखिर में तय यही हुआ कि कैश दिया जाए।

नेतागिरी का चक्कर


आईएएस अफसरों की नेतागिरी के चक्कर में प्रींसिपल सिकरेट्री अजय सिंह मारे गए। जनवरी से प्रमोशन ड्यू होने के बाद भी अब तक वे एडिशनल चीफ सिकरेट्री नहीं बन पाए। नारायण सिंह के विद्युत नियामक प्राधिकरण में जाने से एक पोस्ट खाली हुआ था। लेकिन 83 बैच के आईपीएस गिरधारी नायक के डीजी बन जाने से आईएएस अफसरों ने आत्मसम्मान का प्रश्न बना लिया और नायक के बैच के आईएएस एनके असवाल को एसीएस बनाने के लिए लाबिंग कर दी। पहंुच गए सीएम के दरबार में। सीएम तो वैसे भी उदार है, तथास्तु कह दिया। इसके बाद असवाल के लिए 20 अगस्त की कैबिनेट में स्पेशल तौर पर एक पोस्ट क्रियेट किया गया। मगर भारत सरकार की अनुमति की पेंच में मामला फंस गया है। दिल्ली से हरी झंडी मिलें तो डीपीसी हो, मगर अभी कोई उम्मीद नहीं दिख रही है। आचार संहिता के बाद तो मुश्किल ही लगता है।

मेष राशि का लफड़ा


अजय सिंह ही नहीं मेष राशि वाले सभी अफसरों के साथ ऐसा ही चल रहा है। अमिताभ जैन सिकरेट्री होने के बाद भी स्पेशल सिकरेट्री वाला पद पाए हैं, तो अमित अग्रवाल को पोस्टिंग के लिए 11 दिन तक मंत्रालय में धक्के खाने प़ड़े। जगदलपुर के कलेक्टर अंकित आनंद और एसपी अजय यादव एक हादसे में बाल-बाल बचे। बड़ों के प्रेशर में आलोक अवस्थी यूज होकर मुसीबत मोल ले ली।  

चोरी और सीनाजोरी

 34 करोड़ रुपए के पेपर टेंडर घोटाले में पाठ्य पुस्तक निगम चोरी और सीनाजोरी पर उतर गया है। निगम की ओर से जारी बयान में कहा गया है, पेपर की जब खरीदी ही नहीं हुई तो गड़बड़ी कैसे हो गई। ये तो वैसा ही हुआ कि चोर अगर घर का ताला तोड़ते हुए पकड़ा जाए और कहे कि उसने अभी चोरी नहीं की है, तो वह चोर कैसे हो गया। 12 सितंबर को टेंडर ओपन हुआ और उसी दिन वर्क आर्डर जारी कर दिया गया। मन में कहीं से यह डर तो था ही कि शिकायत होने पर मामल बिगड़ न जाए।

अंत में दो सवाल आपसे


1. किस युवक कांग्रेस नेता की वसूली की शिकायत दिल्ली पहुंच गई है और वहां से इसकी क्वेरी भी शुरू हो गई है?
2. मुख्यमंत्री द्वारा कैश ट्रांसफर लागू करने के बाद स्कूल शिक्षा विभाग और कर्मकार मंडल अब वित्त विभाग से बजट क्यों नहीं मांग रहा है? 

शनिवार, 14 सितंबर 2013

तरकश, 15 सितंबर

खोखा का खेल
सरकारी स्कूलों के बच्चों को 22 इंच की जगह 20 इंच की सायकिल टिकाने के बाद अब, उनके लिए छपने वाली पुस्तकों में भी खेल षुरू हो गया है। और खेल भी छोटा-मोटा नहीं, एक आयटम के टेंडर में सीधे 10 खोखा का। विभाग ने पिछले सप्ताह कागज खरीदी का टेंडर किया और जो 70 जीएसएम का पेपर रायपुर के बाजार में 49 रुपए प्रति किलो में उपलब्घ है, उसे अहमदाबाद की एक पार्टी से 57 रुपए में खरीदने का टेंडर ओपन कर दिया। जबकि, सरकारी सप्लार्इ में डयूटी भी नहीं लगती। और-तो-और डीजीएसएंडडी रेट 42.55 रुपए का है। वो भी 50 मीटि्रक टन का। 13 हजार मीटि्रक टन में तो रेट और कम हो जाएगा। बहरहाल, सब कुछ प्लान वे में हुआ। रेट कोट करने का खेल जरा समझिए। 57 रुपए, 57.15 रुपए, 57.24 रुपए और 58 रुपए। याने सब मिला-जुला। और 74 करोड़ की खरीदी की तैयारी हो गर्इ। बाजार रेट से 10 खोखा अधिक में। चलिये, चुनाव का समय है। पैसे तो लगेंगे ही। 


विधायकजी की सीडी
विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही राज्य में सीडी की राजनीति गरमाती जा रही है। बस्तर के एक मंत्री की लेन-देन वाली सीडी की चर्चा थी ही, बिलासपुर जिले के सत्ताधारी पार्टी के एक विधायक की सीडी पर इन दिनों खूब कानाफूसी हो रही है। एनडी तिवारी टार्इप की सीडी को एक संवैधानिक पोस्ट पर बैठे शखिसयत को जांच के लिए दी गर्इ है। पता चला हैं, टिकिट वितरण के बाद सीडी को सार्वजनिक किया जाएगा। इसी तरह, एक कांग्रेस नेता की भी इसी टार्इप की सीडी कांग्रेसियों ने ही बनवार्इ है। कांग्रेस का झगड़ा अगर नहीं थमा तो मानकर चलिये, कांग्रेस में भी बवंडर मचेगा। 


मजबूरी का नाम
रायपुर की नुमाइंदगी करने वाले रमन कैबिनेट के दोनों मंत्री, बृजमोहन अग्रवाल और राजेष मूणत के बीच रिष्ते कैसे हैं, यह बताने की जरूरत नहीं है। मगर गुरूवार को राजधानी में कुछ ऐसा हुआ कि लोग देखकर चौंक गए। रजाबंधा मैदान में एक ट्रेवल्र्स एजेंसी के उदघाटन में दोनों अतिथि थे और मंत्रालय में षाम को कैबिनेट की बैठक खतम होने के बाद दोनों एक ही गाड़ी में सवार होकर कार्यक्रम में पहुंचे। अब, इस पर चर्चा तो होनी ही थी...... चुनाव को देखते कहीं दोनों ने हाथ तो नहीं मिला लिया। आखिर, दोनों की सिथति बहुत अच्छी नहीं है। चाणक्य ने कहा भी है, संकट में दुष्मनों से भी रिष्ते सुधार लेना चाहिए।


झटका
अमिताभ जैन से भी बड़ा झटका अमित अग्रवाल को लगा है। अमिताभ को तो स्वतंत्र ना सही, विभाग तो मिल गया था। पीएमओ में लंबे समय बिता कर छत्तीसगढ़ लौटे अग्रवाल का हाल बुरा है। उन्होंने 6 सितंबर को ज्वार्इनिंग दी। और नौ दिन गुजर जाने के बाद भी उनका विभाग तय नहीं हुआ है। दरअसल, निर्धारित अवधि पूरा होने के बाद भी डेपुटेषन से लौटने में हीलाहवाला करने वाले अफसरों को सरकार एक मैसेज देना चाहती है। आखिर, अग्रवाल सात साल के बजाए नौ साल चार महीने बाद लौटे। राज्य सरकार केंद्र को अफसरों की कमी का हवाला देकर पत्र लिखती रही। और अग्रवाल का डेपुटेषन नियम ना होने के बाद भी बढ़ता रहा। सो, अब बारी सरकार की है।


नायक एडीजी इम्पेनल
डीजी, जेल गिरधारी नायक भारत सरकार में एडीजी के लिए इम्पेनल हो गए हैं। याने केंद्र में वे अगर डेपुटेषन पर जाएं, तो वहां एडीजी की पोसिटंंग मिलेगी। इस तरह रामनिवास के बाद वे एडीजी के तौर पर इम्पेनल होने वाले सूबे के दूसरे आर्इपीएस बन गए हैं। वैसे भी, सीनियरिटी में भी वे रामनिवास के बाद दूसरे नम्बर पर हैं। और, सब कुछ ठीक रहा तो अगले साल फरवरी में रामनिवास के रिटायर होने के बाद वे पुलिस की कमान भी संभालेंगे।    


प्रमोशन का खौफ
प्रमोशन से लोग खुश होते हैं मगर वन विभाग में उल्टा हो रहा है। डीएफओ से सीएफ बनने वाले आर्इएफएस अफसरों की रात की नींद उड़ी हुर्इ है। हालांकि, सीएफ अभी तक मलार्इदार पोसिटंग मानी जाती थी। मगर कैडर रिव्यू में सीएफ लूपलाइन वाला पद बन गया है। सर्किल में अब, सीएफ के बजाए सीसीएफ पोस्ट किए जाएंगे। ऐसे में सीएफ बनने का मतलब समझ सकते हैं। कम-से-कम पांच साल तक अरण्य में वनवास। जाहिर है, अरण्य में पांच साल काटना की पीड़ा से अफसर घबराए हुए हैं। हाल ही में प्रमोट हुए तीन अफसर सरकार को लिखकर देने वाले हैं, उन्हें प्रमोशन न दिया जाए।


वेट एंड सी
टिकिट का ऐलान करने में भाजपा और कांग्रेस, दोनों एक ही फामर्ूला अपना रही है। वह है, वेट एंड सी का।  इसलिए, टिकिट भले ही फायनल हो जाए, आचार संहिता लागू होने से पहले घोषित नहीं होने वाली। सियासी विष्लेषकों की मानें तो रणनीति के तहत दोनों ही पार्टियां एक-दूसरे की सूची का इंतजार करेंगी। आचार संहिता 25 सितंबर से पांच अक्टूबर के बीच लगने का अंदेषा है। सो, यह मानकर चलिये कि 10 अक्टूबर से पहले सूची बाहर नहीं आने वाली। 


गडढे रहेंगे या.....
हर अफसर के काम करने और कराने के अपने तरीके होते हैं। उनमें पीडब्लूडी सिकरेट्री आरपी मंडल का अंदाज तो और जुदा है। किसका स्क्रू कसना है और किसको पीठ थपथपाना है, यह कोर्इ मंडल से पूछे। अब उन्होंने एक नया रास्ता निकाला है, षपथ लेने का। पिछले हफते उनकी मौजूदगी में राजनांदगांव जिले में पीडब्लूडी के इंजीनियरों को षपथ दिलार्इ गर्इ कि अक्टूबर अंत तक सड़कों पर एक भी गडढे नहीं रहेंगे। और षायद यह भी कि अक्टूबर तक गडढे रहेंगे या हम। है न अलग अंदाज। तभी तो ऐन वक्त पर विभाग बदलते-बदलते बच गया।


अंत में दो सवाल आपसे

1.    बस्तर से किस मंत्री की टिकिट खतरे में है?
2.    एक आर्इएएस अफसर का नाम बताइये, जो सैर-सपाटे के लिए सरकारी खर्चे पर महीने में चार से पांच बार उड़ान भर लेते हैं?

बुधवार, 11 सितंबर 2013

तरकश, 8 सितंबर

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जोर का झटका

स्कूल शिक्षा विभाग में 22 इंच की जगह 20 इंच की सायकिल टिकाकर करोड़ों का खेल करने वाली कंपनियों को सरकार ने तगड़ा झटका दिया है। कंपनियों ने स्कूल शिक्षा विभाग के खटराल अफसरों से सांठ-गांठ करके आर्डर लेकर चीनी कंपनी को प्रोडक्शन का आर्डर दे दिया था। सायकिलों के कुछ पाट्र्स चाइना से आ भी गए थे। इससे पहले, सरकार ने गडबड़झाले को भांपकर हितग्राहियों को कैश देने का नियम बना दिया। स्कूल विभाग में 35 करोड़ और कर्मकार मंडल में 65 करोड़ के सायकिल और सिलाई मशीनें बांटी जानी थीं। याने 100 करोड़ की। दोनों विभागों में 20 से 25 फीसदी चलता है। इस तरह इतने ही खोखा का जुगाड़ था। और चुनाव के समय 25 खोखा मायने रखता है। मगर खेल बिगड़ गया। अब लुधियाना की कंपनियां थैली लेकर घूम रही है, कोई तो काम करा दें। याद होगा, सीएम ने एक मीटिंग में कहा था कि सायकिलें ऐसी सप्लाई की जा रही है कि बैठने पर टूट जाती है। इसके बाद भी स्कूल शिक्षा विभाग नहीं चेता।

नया एजी

एडवोकेट जनरल संजय अग्रवाल के हाईकोर्ट जज बनना तय हो जाने के बाद अब नए एजी की खोज शुरू हो गई है। उनकी जगह दो-तीन नाम चल रहे हैं और सभी राज्य के बाहर के हैं। अग्रवाल का आदेश सोमवार को पहुंच सकता है। और हो सकता है, उसके अगले दिन हाईकोर्ट में उनका ओवेशन हो। हालांकि, एजी के रूप में सरकार को अग्रवाल की कमी खटकेगी। उनके महाधिवक्ता कार्यालय संभालने के बाद सरकार को राहत मिली थी। कमल विहार प्रोजेक्ट को उन्होंने हाईकोर्ट से हरी झंडी दिलाई थी। अग्रवाल के लिए उपलब्धि वाली बात यह रही कि कांग्रेस सरकार के समय भी वे डिप्टी एजी रहे और भाजपा सरकार ने भी उन पर भरोसा जताया। आखिर, ये काबिलियत का ही तो प्रमाण है।
ताजपोशी या….
नौ साल तीन महीने दिल्ली डेपुटेशन पर रहने के बाद आईएएस अमित अग्रवाल शुक्रवार को आखिरकार रायपुर लौटे। रमन सरकार आने के छह महीने बाद याने जुलाई 2004 में वे दिल्ली का रुख किए थे। यद्यपि, उनका डेपुटेशन 2011 में पूरा हो गया था। मगर स्पेशल केस में एक-एक साल का एक्सटेंशन लेने में वे कामयाब रहे थे। उन्हें बुलाने के लिए सरकार को कई बार पत्र लिखना पड़ा। सिकरेट्रीज लेवल पर अफसरों की कमी का हवाला दिया गया था। बहरहाल, अग्र्रवाल को दुर्ग संभाग का ओएसडी बनाने की चर्चा है। दुर्ग नया संभाग घोषित हुआ है। अधिसूचना जारी न होने के चलते कमिश्नर के बजाए अभी ओएसडी पोस्ट किया जाएगा। अधिसूचना जारी होने के बाद पदनाम बदलकर कमिश्नर कर किया जाएगा। हालांकि, उनके कुछ हितैषी उन्हें ओएसडी या कमिश्नर बनाकर बीएल तिवारी, बीएल अनंत और आरपी जैन के समकक्ष रखना नहीं चाहते। तो एक पक्ष यह भी है कि डेपुटेशन से लौटने में आनाकानी ़करने वाले अफसरों को आते ही ताजपोशी न की जाए। अब, सीएम के विकास यात्रा से लौटने के बाद इस पर निर्णय होगा कि अमिताभ जैन की तरह अग्रवाल को भी कुछ खास टाईप का मैसेज दिया जाए या फिर अच्छी पोस्टिंग।

बाल-बाल बचे

आचार संहिता लागू होने के पहले ही चुनाव आयोग सरकार को झटका देने के मोड मंे आ गया था। 30 अगस्त को आयोग रायपुर में था, उसी दौरान कवर्धा और सुकमा का कलेक्टर बदला गया। आयोग ने इस पर एतराज किया कि छह महीने के भीतर दोनों को क्यों हटाया गया। सवाल यह भी था कि नक्सल प्रभावित सुकमा में प्रमोटी आईएएस को कमान क्यों सौंपी गई। मगर चीफ सिकरेट्री सुनिल कुमार ने उन्हंे समझाया कि यह विशुद्ध प्रशासनिक फेरबदल है और इसमें रंच मात्र भी पूर्वाग्रह नहीं है। सुकमा आदिवासी जिला है और एके टोप्पो आदिवासी होने के साथ ही तेज अफसर हैं। तब जाकर बात बनी।

लूट लिया मंच

शुक्रवार को बिलासपुर में अविभाजित मध्यप्रदेश के मंत्री रहे बीआर यादव के अभिनंदन ग्रंथ समारोह में दिग्विजय सिंह समेत चरणदास महंत, रविंद्र चैबे समेत कई कांग्रेसी नेता जुटे थे। समाजवादी नेता रघु ठाकुर भी थे। मगर वक्रतृत्व कला से मौके का लाभ उठा लिया अमर अग्रवाल ने। अमर ने कहा, जब मैं पहली बार चुनाव लड़ रहा था तो यादवजी से आर्शीवाद लेने गया और पूछा था कि लगातार चार बार विधायक कैसे चुने गए। यादवजी ने मुझे इसके टिप्स दिए थे। अमर ने कांग्रेस के मंच से इशारे-इशारे में कांग्रेसियों को बता दिया कि यादवजी के टिप्स से ही लगातार जीतता आ रहा हैं और अब चैथी बार भी….। इसे ही कहते हैं, मंच लूटना।

चैबे के बाद महंत

पाटन में प्रदीप चैबे द्वारा अजीत जोगी पर जहरीले तीर छोड़ने के दो रोज बाद पार्टी के सेनापति ने भी तोप का गोला दाग दिया। बिलासपुर में एक कार्यक्रम में पीसीसी चीफ चरणदास महंत ने कहा, लोग आजकल अपनी जाति छुपाने लगे हैं। जाहिर है, तोप का मुंह जोगी की ओर ही था। और इससे एक बात साफ हो गया कि आलाकमान के निर्देश पर कांग्रेस नेता भले ही गले मिल लें या पैर छूकर आर्शीवाद लें, वे दिल से नहीं मिलने वाले। और भाजपा को इससे अधिक और क्या चाहिए।

राजा का स्वागत

भाजपा प्रवेश के बाद जगदलपुर लौटे बस्तर के राजा कमल भंजदेव का रास्ते भर राजा की तरह ही स्वागत हुआ। अभनपुर से इसका सिलसिला शुरू हुआ और जगदलपुर जाकर समाप्त हुआ। दरअसल, भाजपा मुख्यालय से ही पार्टी कार्यकर्ताओं को इसके लिए मैसेज दिए गए थे। और उस पर अमल करने में कोई कोताही नहीं बरती गई। लेकिन इस स्वागत-सत्कार से बस्तरिया भाजपा नेताओं की धड़कन बढ़ गई है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. बस्तर के किस मंत्री के रिश्वत लेते हुए सीडी बनने की चर्चा है?
2. किस रिटायर चीफ सिकरेट्री को कैबिनेट मंत्री के दर्जे वाली पोस्टिंग देने पर विचार किया जा रहा है?

शनिवार, 31 अगस्त 2013

जवाहर को एक्टेंशन

जवाहर श्रीवास्तव को राजभवन में एक साल का एक्सटेंशन मिल गया है। उनका एक साल का संविदा आज खतम हो रहा था। हालांकि, उन्हें सूचना आयुक्त बनाने के लिए कैबिनेट ने 20 अगस्त को आयोग में पोस्ट स्वीकृत किया था। मगर आरटीआई वालों ने पूरा खेल बिगाड़ दिया। आरटीआई कार्यकर्ताओं ने सरकार को पत्र लिखकर इसे अवैधानिक करार दिया था। चीफ सिकरेट्री को लिखे पत्र में कहा गया था कि जवाहर की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना होगी। सुप्रीम कोर्ट ने ज्यूडिशरी या विधि विशेषज्ञ को ही सूचना आयुक्त बनाने कहा है। इसके बाद उनका एपीसोड खतम हो गया।

नौकरशाहों का खेल

सूबे के आला नौकरशाहों ने हाउसिंग बोर्ड के साथ मिलकर भूखंड का बड़ा गोलमाल कर डाला। उन्होंने नए रायपुर में मंत्रालय के जस्ट बगल में अवैधानिक ढंग से बड़े-बड़़े प्लाट खरीद डाले। जबकि, हाउसिंग बोर्ड जमीन नहीं बेच सकता। और ना ही एनआरडीए ने नए रायपुर में किसी को जमीन बेचने की इजाजत दी है। मगर समरथ को नहीं दोष गोसाई, वाला मामला है। बताते हैं, सब सुनियोजित तौर पर हुआ। ठेकेदारों को इशारा किया गया, उनके मकान नहीं बनाना है। और बाद में अफसरों ने लिखा कि बोर्ड मकान नहीं बना रहा है, तो जिस स्थिति में है, उसे हमे रजिस्ट्री कर दें। इनमें एक चीफ सिकरेट्री के दावेदार हैं तो एक जल्द ही दावेदार बन जाएंगे। पता चला है, अफसरों ने बोर्ड के एक पूर्व कमिश्नर पर दबाव बनाकर अपना मकसद पूरा कर लिया। दिग्गज नौकरशाहों के आगे आखिर नान आईएएस कमिश्नर क्या करता। मगर राजधानी के कुछ आरटीआई कार्यकर्ताओं को इसकी भनक लग गई है और उन्होंने पीआईएल लगाने की तैयारी शुरू कर दी है। सो, आने वाले समय में अफसरों की मुसीबतें बढ़ सकती है।

राजतंत्र वर्सेज बलीराम तंत्र?

बस्तर के राजा कमलचंद भंजदेव के भाजपा में शामिल होने से सत्ताधारी पार्टी भले ही बस्तर में अपने को प्लस मानकर चल रही है। मगर इसके खतरे भी कम नहीं है। गौर करने वाली बात है कि राजा के पार्टी में शामिल होने से बस्तर के भाजपाई खुश नहीं हैं। राजा के आभामंडल के सामने बौने पड़ने की आशंकाएं जो है। जगदलपुर में संतोष बाफना की टिकिट पर खतरा मंडराने ही लगा है। सबसे बड़ा खतरा राजतंत्र और बलीराम तंत्र में द्वंद्व छिड़ने का है। जाहिर है, बस्तर में बलीराम कश्यप की एकछत्र सत्ता थी। एक बेटा मंत्री, दूसरा सांसद। विक्रम उसेंडी, लता उसेंडी, सब उन्हीं के थे। हालांकि, बलीराम के निधन के बाद बस्तर में उनके परिवार का प्रभुत्व कम हो रहा था। अब, राजा के भाजपा में आने से नए समीकरण बनने के कयास लगाए जाने लगे हैं। बलीराम कश्यप के लोग अब फिर से एक होने लगे हैं। एक-दूसरे को कमतर साबित करने का प्रयास हुआ तो बस्तर में भाजपा की गणित गड़बड़ा भी सकती है।

ओपनिंग बैट्समैन

राज्य प्रशासनिक सेवा से प्रमोट होकर आईएएस बनें एआर टोप्पो अपने बैच के ओपनिंग बैट्समैन बन गए हैं। सरकार ने उन्हें सुकमा का कलेक्टर बनाया है। इस बैच में अनिल टुटेजा, एनके शुक्ला और उमेश अग्रवाल जैसे अफसर हैं। मगर टोप्पों पहले नम्बर पर थे और लगता है, सरकार ने वरिष्ठता क्रम के हिसाब से उन्हें मैदान पर उतारा है। दूसरे नम्बर पर टुटेजा और तीसरे पर शुक्ला हैं। अगर कोई कलेक्टर हिट विकेट हो गया तो ठीक, वरना अब चुनाव के बाद ही दोनों के नम्बर लग पाएंगे। यद्यपि, दोनों को 2004 बैच अलाट हुआ है और उनके नीचे के बैच के कई अफसर जिला संभाल रहे हैं।

धमाकेदार वापसी

पिछले छह महीने से वनवास काट रहे राजकुमार देवांगन ने आखिरकार धमाकेदार वापसी की। दो रोज पहले हुए आईपीएस के फेरबदल में उन्हें पीएचक्यू में आईजी ला एंड आर्डर बनाया गया है। पुलिस महकमे में इसे प्रतिष्ठापूर्ण पोस्टिंग मानी जाती है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अभी तक यह पद राज्य के शक्तिशाली आईपीएस मुकेश गुप्ता के पास था। इसी साल फरवरी में आईपीएल के समय देवांगन को डायरेक्टर स्पोट्र्स से हटाकर लोक अभियोजन में भेज दिया गया था। ़जाहिर है, जब किसी आईपीएस से नाराजगी की सारी सीमाएं पार हो जाती है, तब उसे लोक अभियोजन में भेजा जाता है। जैसे अभी पवनदेव को भेजा गया है।

वीआईपी जिला

सीएम के गृह जिला कवर्धा में सोनमणि बोरा, सिद्धार्थ कोमल परदेशी और मुकेश बंसल जैसे कलेक्टर रहे हैं। मगर बंसल को अपग्रेड कर रायगढ़ भेजने के बाद कवर्धा में कोई भी कलेक्टर टिक नहीं पा रहा है। एमएस परस्ते बिना खाता खोले आउट हो गए थे। वे ज्वाइनिंग के चैथे दिन ही बदल दिए गए थे। इसके बाद एस प्रकाश को वीआईपी जिले की कमान सौंपी गई। मगर उनका भी वहां जमा नहीं। भाषाई दिक्कतों की वजह से लोगो ने उनकी शिकायतें शुरू कर दी। और हुआ यह कि रायपुर से ट्रक में सामान लेकर कवर्धा जाने के हफ्ते भर के भीतर उनका नम्बर आ गया। प्रकाश के हाथ से राजधानी का आवास भी चला गया और साथ में कलेक्टरी भी। अब पी दयानंद को उनकी जगह पर भेजा गया है। खैर, दयानंद ऐसे आईएएस नहीं हैंै। वे चुनाव के दो महीने पहले सामान लेकर कवर्धा नहीं जाने वाले। चुनाव के बाद क्या होगा, किसने देखा है।

दो के झगड़े में

दो के झगड़े में अक्सर तीसरे को लाभ होता है। मगर अबकी कुछ नया टाईप का हो गया.....दो के  झगड़े में दोनों को लाभ हो गया। मसला है पीसीसीएफ पोस्ट के लिए डीपीसी का। एक पोस्ट के लिए दो दावेदार थे और दोनों में छत्तीस के संबंध थे। शुक्रवार को हुई डीपीसी में दोनों को पदोन्नति के लिए हरी झंडी मिल गई। पहले को एक खाली पोस्ट के लिए और दूसरे को एडवांस में। याने जनवरी में धीरेंद्र शर्मा के रिटायर होने के बाद के लिए। बताते हैं, एक के लिए सरकार भारी दवाब था। मगर एक का होता तो दूसरा शांत नहीं बैठता। इसलिए, दोनों का रास्ता निकाला गया। मगर अब आईएफएस अफसरों को आईएएस के बारे में धारणा बदलना चाहिए। अरसे तक वन विभाग में आईएफएस सिकरेट्री रहे हैं। सीएम सचिवालय में भी आईएफएस पावरफुल रहे हैं। इसके बाद भी डीपीसी सालों से लटकी हुई थी। और अब बैजेंद्र कुमार को प्रींिसपल सिकरेट्री और अमिताभ जैन को सिकरेट्री बनते ही सबके बल्ले-बल्ले हो गए।
अंत में दो सवाल आपसे
1.    पवनदेव को डायरेक्टर लोक अभियोजन बनाने के पीछे वजह क्या है?
2.    रतनलाल डांगी को बिलासपुर से कोरबा का एसपी बनाकर एक तीर से कितने निशाने लगाए गए हैं?

सोमवार, 26 अगस्त 2013

तरकश, 25 अगस्त

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सीएस ने बात संभाली

20 अगस्त को कैबिनेट में बात बिगड़ जाती अगर चीफ सिकरेट्री सुनिल कुमार ने आगे आकर न संभाला होता। असल में, जनप्रतिनिधियों के खिलाफ केस वापिस लेने के लिए मंत्रिमंडलीय उपसमिति बनी है। गृह मंत्री ननकीराम कंवर इसके अध्यक्ष हैं और राजेश मूणत और हेमचंद यादव सिकरेट्री। मंत्रालय में उपसमिति की बैठक हुई और हैरतनाक यह रहा कि गृह विभाग का एक बाबू तक नहीं पहुंचा। तीनों मंत्री आधा घंटे तक अफसरों का इंतजार किए, इसके बाद घर लौट गए। ऐसे में मंत्रियों का भड़कना स्वाभाविक था। कैबिनेट शुरू होते ही तीनों मंत्रियों ने चढ़ाई कर दी। मूणत तो खासा आक्रमक थे। उनका कहना था, अगर कोई विवशता थी तो अफसरों को इंफार्म करना था। मौके की नजाकत को भांपकर चीफ सिकरेट्री ने मोर्चा संभाला और मातहतों की चूक को अपने उपर लेते हुए कहा, मैं इसके लिए माफी मांगता हूं। सीएस के ऐसा कहते ही मंत्री ठंडे पड़ गए।

नई पोस्टिंग

राज्यपाल के सिकरेट्री जवाहर श्रीवास्तव का एक साल का संविदा 30 अगस्त को खतम हो जाएगा। जवाहर को सूचना आयुक्त बनाने की खबर है। इसके लिए रमन कैबिनेट ने सूचना आयुक्त के एक नए पद की मंजूरी दे दी है। सब कुछ ठीक रहा, तो 30 को या इससे पहले उनकी नई पोस्टिंग का आर्डर जारी हो जाएगा। ऐसे में जवाहर की जगह पर राजभवन के लिए नए सिकरेट्री की तलाश शुरू हो गई है। फुलफ्लैश नहीं हुआ तो मंत्रालय के किसी सिकरेट्री को अतिरिक्त प्रभार दिया जा सकता है। वैसे पता चला है, रिटायरमेंट के स्टेज वाले आईएएस राजभवन में जाने के लिए खूब जोर लगा रहे हैं। दरअसल, राजभवन की पोस्टिंग का अपना मतलब है। डा0 सुशील त्रिवेदी और पीसी दलेई वहीं से रिटायर होने के बाद राज्य निर्वाचन आयुक्त बने थे और जवाहर श्रीवास्तव का देख ही रहे हैं। अब ऐसे में राजभवन जाना भला कौन नहीं चाहेगा।

दो के झगड़े में

30 अगस्त को आईएफएस अफसरों की डीपीसी हो रही है। 20 से अधिक आईएफएस इसमें लाभान्वित होंगे। मगर सबकी नजर पीसीसीएफ की पोस्ट पर है। इस एक पद के लिए दो दावेदार हैं। और दोनों के बीच भारत-पाकिस्तान वाले हालात हैं। डीपीसी तय होने के बाद तो वार और तेज हो गया है। मंत्रालय में रोज शिकायतों का पुलिंदा भेजा जा रहा है। पी जाय उम्मेन अगर सीएस होते तो इनमें से एक का पदोन्नत होना तय था। हालांकि, उन्होंने एक दिग्गज कांग्रेस नेता को पकड़ा रखा है। मगर मामला मुश्किल लगता है। असल में, दोनों के खिलाफ पुराने मामले हैं। ऐसे में एडिशनल पीसीसीएफ जीतेंद्र उपाध्याय को फायदा हो जाए, तो अचरज नहीं। क्योंकि, चुटिया वाले बाबा चमत्कारिक ढंग से एडिशनल पीसीसीएफ जरूर बन गए मगर और उपर जाना संभव नहीं है। क्योंकि, उनके खिलाफ भी गंभीर चार्ज हैं।

अनूठी एकता

आईपीएस और आईएफएस भले ही आपस में झगड़ते रहें मगर आईएएस में अनूठी एकता है। 83 बैच के आईपीएस गिरधारी नायक जब डीजी बन गए और उसी बैच के अजय सिंह और एनके असवाल प्रींसिपल सिकरेट्री रह गए तो सारे आईएएस सीएम के पास पहुंच गए। इनमें अजय सिंह के घोर विरोधी भी थे। और एसीएस के दो पोस्ट स्वीकृत करा ही लिया। यहीं नहीं, कोशिश इस बात की हो रही है कि 30 को आईएफएस की डीपीसी के साथ एसीएस की डीपीसी हो जाए। इसके लिए धुर विरोधी दो आला आईएएस अवकाश लेकर दिल्ली में डटे हैं। ताकि, डीओपीटी से एपूव्हल मिल जाए। ये होती है यूनिटी।

उंट पहाड़ के नीचे

रमन सरकार ने सीएसआईडीसी से ठाकुर एमडी को हटाकर ब्राम्हण अफसर को पोस्ट किया था। माना गया था कि चेयरमैन ब्राम्हण हैं, दोनों में पटरी बैठेगी। मगर हुआ उल्टा। बिचैलियों ने यह कहकर चेयरमैन को भड़काना चालू कर दिया कि एमडी बाहरी ब्राम्हण हैं। यही नहीं, एमडी से अनाप-शनाप काम का डिमांड भी। लेकिन पता चला है, सरकार ने सीएसआईडीसी के झगड़े की बीमारी पकड़ ली है। चेयरमैन के ओएसडी की इंजीनियरिंग की डिग्री की जांच बिठा दी गई है और जब तक जांच रिपोर्ट न आ जाए, सभी कामों से बेदखल कर दिया गया है। वैसे, सीएसआईडीसी के रोज के विवादों से सरकार इतना हलाकान है कि चुनाव नहीं होता तो चेयरमैन को भी चेंज कर देती।

झारखंड जैसा

छत्तीसगढ़ में तीसरे मोर्चे को लेकर कयासों का दौर शुरू हो गया है। आशंका यह भी…….छत्तीसगढ़ कहीं झारखंड न बन जाए। वहां हर छह महीने में सीएम बदल जाता है या प्रेसिडेंट रुल लग जाता है। छत्तीसगढ़ में दो दलीय व्यवस्था के चलते राजनीतिक स्थिरता है। लेकिन, तीसरे मोर्चे को पांच से सात सीटें भी मिल गई तो जरा सोचिए, स्थिति क्या होगी। अजीत जोगी नम्बर दो रहना पसंद नहीं करते। अविभाजित मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह जरूर सीएम थे मगर जोगी उन्हें अपने होने का लगातार अहसास कराते रहे। छत्तीसगढ़ बना तब भी जोगी के साथ एक विधायक नहीं थे लेकिन ताजपोशी उनकी हुई। जाहिर है, विधानसभा चुनाव में कुछ सीटें जीतकर भी वे किंग बनना पसंद करेंगे, किंगमेकर नहीं। सियासी प्रेक्षक भी मानते हैं, ऐसे में सूबे में जोड़-तोड़ की राजनीति बढ़ेगी।

अक्टूबर में

चुनाव आयोग जरूर अबकी समय से पहले सक्रिय हो गया है। मगर जो संकेत मिल रहे हैं, आचार संहिता पिछले साल की तरह अक्टूबर के पहिले हफ्ते में लगेगी। 2008 में 14 अक्टूबर को अधिसूचना जारी हुई थी और 14 नवंबर को पोल हुआ था। इस बार फस्र्ट वीक में दीपावली होने के कारण माना जा रहा है, 10 नवंबर के पहले चुनाव नहीं होंगे। पिछले बार एक ही चरण हुआ था। इस बार दो की तैयारी है। याने 15 से 17 तक खींच जाएगा। ऐसे में सितंबर में आचार संहिता लगने का सवाल नहीं उठता।

चैथा विजिट

अगले महीने की 19 तारीख को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह छत्तीसगढ़ आ सकते हैं। वे एनटीपीसी के लारा प्रोजेक्ट की आधारशिला रखेंगे। साथ ही बिलासपुर जिले के सीपत संयंत्र को देश का समर्पित करेंगे। हालांकि, यह प्रोग्राम एनटीपीसी का है मगर प्रोटोकाल के तहत मुख्यमंत्री डा0 रमन सिंह ने उन्हें आमंत्रित किया था। और पीएमओ ने 17 सितंबर को हरी झंडी दे दी है। अब पीएमओ में मिनट-टू-मिनट प्रोग्राम तैयार हो रहा है। पता चला है, इसके लिए दो विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। पहला, या तो सीपत या लारा में से किसी एक जगह पर जाकर एक ही जगह पर दोनों कार्यक्रम हो जाए या फिर सीपत और लारा दोनों जगहों पर जाएं। बहरहाल, साढ़े नौ साल में प्रधानमंत्री का यह चैथा छत्तीसगढ़ प्रवास होगा। दो बार वे पहली पारी में आए थे। इसके बाद जीरम नक्सली हमले के दूसरे दिन रायपुर आए थे। और अब, यह चैथा होगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. भरी सभा में अगर कोई व्यक्ति कलेक्टर से बदतमीजी करने लगे, तो कलेक्टर को उसकी आवभगत करनी चाहिए या कार्रवाई?
2. दुर्गा शक्ति नागपाल जैसे अफसर छत्तीसगढ़ में कितने होंगे?

शनिवार, 10 अगस्त 2013

तरकश, 11 अगस्त

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एक दिन का सीएस-2

नेताओं की तरह एक दिन के सीएस की जुबां फिसल गई और दिल्ली में हुई योजना आयोग की बैठक में अपने ही पोस्ट में गोल करते हुए बोल गए, किसानों को 24 घंटे बिजली देने से राज्य की स्थिति गड़बड़ा रही है। हालांकि, राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष शिवराज सिंह ने उन्हें यह कहकर टोका कि उस समय आप ही सिकरेट्री थे। मगर साब कहां रुकने वाले थे। उन्होंने खुद को रसूखदार अफसर साबित करने के लिए अपनी पोस्टिंग गिनाते लगे। मैं फलां, तो मैं फलां….। राज्य के प्राब्लम बताने के बजाए जब उन्होंने केंद्रीय योजनाओं की खामियां गिनानी शुरू कर दी तो योजना अयोग के मेम्बर मिहिर शाह को टोकना पड़ गया, बस, बंद कीजिए। जुबां फिसलना इस एक दिन के आला अफसर को भारी पड़ गया। सेकेंड एवं फायनल सेशन, जिसमें सीएम के साथ मोंटेक सिंह अहलूवालिया थे, सीएम ने एक दिन के सीनियर अफसर के बजाए उनके बाद नम्बर वाले अफसर से प्रेजेंटेशन कराना मुनासिब समझा।

भ्रष्टाचार की शिक्षा

कंप्यूटर के एक मानिटर की सप्लाई पर 69 लाख रुपए की कमाई, इस टाईप का खेल स्कूल शिक्षा विभाग मे ही संभव है। और इस स्पेसिफिक खेल को शिक्षा विभाग के खटराल अफसरों ने राजधानी के एक सप्लायर दंपति के साथ मिलकर अंजाम दिया है। खेल दिलचस्प है, जरा गौर कीजिए। एक युवा जनरल सप्लायर ने वन टू का फोर करने के लिए अपनी पत्नी के नाम पर एचपी का डीलरशीप ले रखा है। पत्नी के फार्म के नाम से ही उसने विभाग से एचपी का 3000 पीस एलईडी सप्लाई करने का कंट्रेक्ट किया। मगर उसने एचपी के बदले सेमसंग का एलडीसी टिका दिया। टैक्स बचाने और वाणिज्य कर विभाग को झांसा देने के लिए उसने सेमसंग से अपनी कंपनी के नाम पर 57,950 रुपए में एलडीसी मानिटर खरीदा। फिर, उसे पत्नी के फार्म को 69,500 में बेचा। और उसकी पत्नी ने शिक्षा विभाग को 1,26500 रुपए में सप्लाई कर दिया। याने एक मानिटर पर 68 से 69 लाख का खेल। मानिटर भी 32 इंच का। इस एक काम में सप्लायर ने ढाई करोड़ से अधिक अंदर किया। अब जरा इसको समझिए कि सप्लायर ने खुद खरीदा फिर पत्नी के फार्म को क्यों बेचा। दरअसल, टैक्स एक ही बार लगता है। सप्लायर ने अपनी पत्नी को 69500 में मानिटर बेचा और इसी हिसाब से सेल टैक्स जमा कर दिया। और इसी को उसकी पत्नी ने भी बाद में शो कर दिया। वरना, 1,26500 रुपए के हिसाब से टैक्स भारी हो जाता। सो, दोगुने से अधिक कीमत पर मानिटर बेचकर भी उसने टैक्स भी काफी बचा ली। लेकिन टैक्स का कैलकुलेशन करते वक्त कमर्सियल टैक्स विभाग ने पकड़ लिया और मामले का भंडाफोड़ हो गया।

नारियों से भिड़ंत

जिस तरह के हालात बन रहे हैं, मुख्यमंत्री डा0 रमन सिंह समेत उनके मंत्रिमंडल में पहले और दूसरे नम्बर के दोनों मंत्री, बृजमोहन अग्रवाल और अमर अग्रवाल को अबकी विधानसभा चुनाव में नारियों से दो-दो हाथ करना पड़ेगा। राजनांदगांव में रमन के खिलाफ उदय मुदलियार की पत्नी अलका उदलियार को टिकिट मिलना तय है। तो रायपुर दक्षिण में बृजमोहन के सामने किरणमयी नायक का नाम सबसे उपर है। इसी तरह, बिलासपुर में अमर अग्रवाल के खिलाफ वहां की महापौर वाणी राव की दावेदारी मजबूत है। हालांकि, संगठन खेमे ने गुटीय समीकरण के तहत बलराम सिंह की बहू रश्मि सिंह का नाम भी आगे बढ़ा दिया है। याने महिला प्रत्याशी से अमर बचने वाले नहीं हैं। ये अलग बात है कि कांटे की लड़ाई के आसार बृजमोहन और किरणमयी में ही नजर आ रहे हैं। राजनांदगांव में तो डाक्टर साब की मार्जिन बढ़ाने के लिए कांग्रेसियों ने ही प्रयास शुरू कर दिया है। वरना, शहीद नेता की पत्नी के साथ अपनी दावेदारी थोड़े ही करते। कुछ इसी तरह के हालात बिलासपुर में भी हैं। टिकिट वितरण के पहले ही शह-मात का खेल शुरू हो गया है।

ताकत की नुमाइश

इस हफ्ते कांग्र्रेस के दो युवा नेताओं ने अपनी ताकत की जमकर नुमाइश की। अमित जोगी को कांग्रेस में भले ही कोई पद नहीं दिया गया मगर उनके समर्थकों ने अमित के जन्म दिन के बहाने राजधानी में अपनी ताकत दिखाई। पूरा शहर बैनर, पोस्टर और होर्डिंग्स से अट गया था। तो उसके दूसरे दिन ही रायपुर शहर कांग्र्रेस अध्यक्ष विकास उपाध्याय ने कांग्रेस भवन में धुम-धड़ाके के साथ पदभार ग्रहण किया। ताजपोशी के मौके पर अजीत जोगी को छोड़ बाकी सभी सीनियर नेता मौजूद थे। यह पहला अवसर होगा, जब किसी शहर अध्यक्ष की ताजपोशी तामझाम के साथ हुई हो। फौज-फटाके के मामले में विकास भी पीछे नहीं हैं। जाहिर है, आने वाले समय में विकास और अमित में शक्ति की नुमाइश बढ़ेगी।

जूनेजा बनेंगे एडीजी

सब कुछ ठीक रहा तो दुर्ग आईजी अशोक जूनेजा जल्द ही एडिशनल डीजी बन सकते हैं। जूनेजा 89 बैच के आईपीएस हैं और उनके बैच के कुछ आईपीएस दूसरे राज्यों में एडीजी बन गए हैं। मिनिस्ट्री आफ होम अफेयर के नियमों के अनुसार 25 साल पूरा हो जाने पर आईपीएस एडीजी के पात्र हो जाते हैं। जूनेजा का एक अगस्त को 25 साल पूरा हो गया। पीएचक्यू के सूत्रों का कहना है, डीजीपी रामनिवास ने जूनेजा की फाइल को ओके करके गृह विभाग को भेज दिया है। अब गृह विभाग को बस, हरी झंडी देनी है।

ईद की टोपी

विधानसभा चुनाव के चलते अबकी ईद में टोपियां खुब बिकी। मुंबई से टोपियां मंगाने वाले रायपुर के एक थोक व्यवसायी ने बताया, टोपियों की डिमांड इतनी थी कि दोबारा माल मंगाना पड़ा। टोपियां खरीदने वालों में ज्यादतर नेता थे। एक सीट पर टिकिट के 10 दावेदार हैं, तो दोनों पार्टियों को मिलाकर 20 हो गए। ईद मुबारकबाद देने में भी नेताओं ने अबकी समय का बड़ा ध्यान रखा। 10 बजे के बाद सोकर उठने वाले कई नेता सुबह आठ बजे टोपी पहनकर मस्जिदों मंे पहुंच गए थे। ठीक भी है, नेता पहले टोपी पहनते हैं, बाद में पहनाते हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1.    रायपुर एसपी ओपी पाल को आखिर, मैदान छोड़ने की नौबत क्यों आन पड़ी?
2.    तीन साल से अधिक कार्यकाल पूरा कर लेने वाले 32 डिप्टी कलेक्टरों को ट्रांसफर करने में सरकार क्यों आगे-पीछे हो रही है?

शनिवार, 3 अगस्त 2013

तरकश, 4 अगस्त

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मुश्किल में मंत्रीजी

अक्सर ऐसा कहा जाता है, नाम में क्या रखा है। मगर ऐसा नहीं है, नाम के चक्कर में रमन सरकार के एक सीनियर मंत्री की रात की नींद उड़ गई है। दरअसल, मंत्रीजी ने अपने षहर में एक नर्सिंग होम बनवाया है। उन्होंने उसका जो नाम रखा है, वहीं नाम उनके एक करीबी समर्थक की बिटिया का भी है। अब उसको लेकर मंत्रीजी के इलाके से लेकर राजधानी रायपुर तक पर्चे बंट रहे हैं। लाल-पीले पर्चे में सवाल उठाए गए हैं कि आखिर,मंत्रीजी ने अपने समर्थक की बेटी के नाम पर अस्पताल क्यों खोला है। मामले को नारायणदत्त तिवारी एपीसोड की तरह प्रस्तुत किया जा रहा है। ऐसे में मंत्रीजी की परेशानी समझी जा सकती है। वे इन दिनों मीडिया से भी बच रहे हैं। और ना ही उनके बयान ही आ रहे हैं।

बिन मलाई का दूध

पीडब्लूडी के लोगों को एडीबी के तहत बनने वाली सड़कों से बड़ी उम्मीद थी। 300 करोड़ का मामला था। मगर समय जो न कराए। अफसरों ने पलीता लगा दिया। असल में, एडीबी फेज टू के तहत बनने वाली सड़कों के लिए जानबूझकर 1900 करोड़ का एस्टीमेट बनाया था गया था। जबकि, फेज वन 1500 करोड़ का था। षिकायत होने पर चीफ सिकरेट्री ने सुनिल कुमार ने इसकी रेंडम जांच करा दी और साजिश का खुलासा हो गया। इसके बाद सीएस के निर्देश पर पीडब्लूडी सिकरेट्री आरपी मंडल ने सभी सड़कों का सत्यापन कराया। और जो रिपोर्ट आई, अफसरों को पैर के नीचे से जमीन खिसकती महसूस हुई। एस्टीमेट में 300 करोड़ रुपए बढ़ा दिया गया था। फाईल वित्त विभाग गई और वहां डीएस मिश्रा ने 1900 करोड़ को 1600 करोड़ कर दिया। याने दूध से पूरी मलाई निकाल ली। अब बिन मलाई का दूध पीना पड़ेगा। 58 करोड़ में बनने वाले स्टेडियम को 21 करोड़ में बनाने के बाद यह दूसरी बड़ी कामयाबी होगी, जब गड़बड़ी होने के पहले ही उसे पकड़कर सरकार ने 300 करोड़ करोड़ रुपए बचा लिया।

टा….टा……

राजस्व अधिकारियों के रवैये से आहत होकर टाटा ग्रुप बस्तर को कहीं टा…टा……. कर दें, तो आश्चर्य नहीं। 250 करोड़ रुपए जमा कराने के बाद भी उसके लिए अभी तक एक इंच जमीन अधिग्रहित नहीं की गई है। और कुछ ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि अब उसका धैर्य चूक रहा है। हालांकि, यही हाल दीगर जिलों के भी हैं। जांजगीर जिले के सक्ती में एमको पावर प्लांट ने 3 साल पहले मुआवजे के लिए 55 करोड़ रुपए जमा करा दिया था। लेकिन अब वह उद्योग विभाग को पत्र लिखकर अपना पैसा वापिस मांग रहा है। उसके लिए छटाक भर भी भूमि अधिग्रहित नहीं की गई। रमन सिंह ने पिछले साल ही इंवेस्टर मीट किया था। उद्योगपतियों को लाल जाजम बिछाकर स्वागत किया गया। उस पर करोड़ों रुपए खर्च किए गए। मगर अब, अफसर ही सीएम की निवेश योजनाओं को पलीता लगा रहे हैं। सीएसआईडीसी कलेक्टरों को पत्र लिखकर थक गया, कोई सुनवाई नहीं हो रही है। सीएम को अपने ड्रीम प्रोजेक्ट की भी कभी-कभार समीक्षा करनी चाहिए कि आखिर, अफसर उसमें क्या कर रहे हैं।

अमिताभ को उद्योग

डेपुटेशन पूरा होने के बाद आईएएस अमिताभ जैन अगले हफ्ते छत्तीसगढ़ लौट रहे हैं। जैन 89 बैच के आईएएस हैं और अभी सिकरेट्री हैं। हालांकि, लंदन दूतावास से दो महीने पहले वे रिलीव हो चुके थे मगर वहां उनके बच्चे की परीक्षा की वजह से रुक गए थे। जैन को उद्योग और वाणिज्य की कमान सौंप कर एन बैजेंद्र कुमार को हल्का किया जाएगा। पिछले फेरबदल में बैजेंद्र को उद्योग और वाणिज्य इसीलिए सौंपा गया था कि जैन के आने पर उन्हें दे दिया जाएगा। उधर, अमित अग्रवाल भारत सरकार से रिलीव हो गए हैं, मगर कुछ दिनों के लिए वे छुट्टी पर चले गए हैं। सो, अग्रवाल के लौटने को लेकर अभी दुविधा की स्थिति है।

तलवार लटकी

पुराने आईजी प्रशासन पवनदेव ने लाख कोषिषों के बाद भी एडिशनल एसपी आईएच खान को रिटायरमेंट के पश्चात संविदा पोस्टिंग से नहीं रोक पाए थे। ईओडब्लू की प्रतिकूल टिप्पणी के बाद भी उपर से वीटो लगवाकर आदेश निकाल दिया गया था। मगर सवाल यह है कि चुनाव आयोग की भृकुटी से अब खान को कौन बचाएगा। खान का रायपुर में तीन साल से अधिक हो गया है। और यह कहकर उन्हें नहीं बचाया जा सकता कि वे संविदा में हैं। क्योंकि, उनकी फील्ड की पोस्टिंग है। सरकार को अपने प्रिय सीएसपी जीएस बाम्बरा के लिए भी कुछ करना पड़ेगा।

……..छोड़ो फार्मूला

हालत से समझौता न करने की ठानी एक सीनियर कांग्रेस नेता ने अब, निर्णायक लड़ाई का खाका तैयार कर लिया है। अगस्त और सितम्बर के लिए उन्होंने तीन सूत्रीय फार्मूला बनाया है। पहला, असहयोग आंदोलन, दूसरा, अवज्ञा आंदोलन और तीसरा ;…….द्ध छोड़ो। गर 15 सितंबर तक कोई पाजीटिव मैसेज नहीं आया, तो छोड़ो वाला चालू कर देंगे। सितंबर लास्ट वीक तक नई पार्टी खड़ी हो जाएगी। सियासी समीक्षकों का कहना है, नेताजी के पास समय बहुत कम है। दो महीना ही तो बचा है। और अब वे पांच साल तक इंतजार कर नहीं सकते। आलाकमान भी पीछे हटना नहीं चाहता। भले ही एक राज्य ना सही। सो, तीसरी पार्टी के चलते विधानसभा चुनाव और दिलचस्प हो सकता है।

रांग पालिसी

पुलिस मुख्यालय की गलत नीति का खामियाजा सरकार और पुलिस प्रशासन को भुगतना पड़ेगा। मालूम है कि चुनाव में तीन साल वाले को हटा दिया जाता है, उसके बाद भी थोक की संख्या में पुलिस अफसरों को एक ही जगह पर रखकर चुनाव का इंतजार किया जाता रहा। अब आलम यह है कि रायपुर समेत अमूमन सभी जिलों के आधे से अधिक एसआई और टीआई बदल गए हैं। और इसी तादात में सीएसपी और एडिशनल एसपी भी बदलने वाले हैं। चुनाव के टाईम में नए अफसर आकर क्या कर पाएंगे। पीएचक्यू चाहता तो पिछले एक साल में फेज वाइज ट्रांसफर कर सकता था। मगर ऐसा नहीं हुआ। सब अपने-अपने में लगे हैं, कानून-व्यवस्था की बेहतरी से किसको मतलब है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सीएम सचिवालय के किस अफसर के जमकर हड़काने पर जिंदल ग्रुप ने रायगढ़ इंजीनियरिंग कालेज में एडमिशन चालू किया?
2. दिल्ली में हुई योजना आयोग की बैठक में किस सीनियर आईएएस ने सरकार के कार्यों से अधिक अपना गुणगान किया?