शनिवार, 30 नवंबर 2013

तरकश, 1 दिसंबर

tarkash logo

कहो दिल से….

भाजपा और कांग्रेस की किस्मत का फैसला भले ही 8 दिसंबर को होगा, मगर चैक-चैराहों, बंद कमरों, ट्रेनों में, दिलचस्प ढंग से कयासों का दौर जारी है। दो दिन पहले तक जिस प्रत्याशी को लोग जीतवा रहे थे, अब उसकी हार करार दे रहे हैं। तर्क भी अपने-अपने ढंग से…….ये भी जीत सकता है, और वैसा हुआ होगा, तो वह भी कम अंतर से निकाल सकता है…….जहां समझ मंे नहीं आ रहा, वहां बोल दो, टक्कर है। बहरहाल, सीट वाइज लोग कांग्रेस की बढ़त कैलकुलेट कर रहे हैं। मगर अंत में धीरे से कहते हैं…..मेरा दिल कहता है, रमन सिंह किसी तरह सरकार बना लेंगे। अब पता नहीं, रमन का सौम्य, शालीन, उदार चेहरा का असर कहें या अंतरात्मा की आवाज कि सीटों का कैलकुलेशन गड़बड़ाने के बाद भी सूबे का एक बड़ा तबका मान रहा कि सीएम रमन ही होंगे। ब्यूरोके्रट्स तक मान रहे हैं, रमन रिपीट हो रहे हैं।

जीते तो रमन हारे….

भाजपा ने अगर हैट्रिक बना ली तो रमन सिंह पार्टी के बेहद कद्दावर नेता बन जाएंगे। वजह, इस चुनाव में न चावल था और न कोई दीगर इश्यू। कांग्रेसी भी मान रहे हैं कि भाजपा को अगर वोट मिला होगा तो सिर्फ रमन के नाम पर। रमन के अलावा दूसरा कोई नेता चुनाव प्रचार में निकला भी नहीं। रमन ने अकेले 200 से अधिक सभाएं की। उनके बड़े मंत्री कांटे की लड़ाई में इस कदर उलझ गए थे कि उन्हें अपने इलाके से बाहर की सुध लेने का समय नहीं मिला। संगठन का तालमेल भी 2003 और 2008 जैसा नहीं दिखा। सो, जीतो रमन और हारे तो भाजपा, का ही मामला होगा।

कुर्सी के लिए जंग

कांग्रेस के आने पर सर्वमान्य सीएम के तौर पर भले ही मोतीलाल वोरा के नाम पर सट्टा बाजर उछाल पर हो, मगर अजीत जोगी भी आसानी से हथियार नहीं डालने वाले। टिकिट उनके लोगों को ज्यादा मिली है तो जाहिर है, विधायकों का संख्या बल उनके साथ ही होगा। दो-चार सीटें कम पड़ीं तो उसे भी मैनेज करने का काम जोगी के अलावा और कोई नहीं कर सकता। जोगी खेमा इसको भी नहीं भूल रहा कि भाजपा ने सिर्फ जोगी को इश्यू बनाया। नरेंद्र मोदी जैसे स्टार नेता तक ने जोगी को टारगेट किया। तो विज्ञापनों में भी भाजपा ने जोगी की फोटो छपवाई। जोगी खेमे के एक नेता की सुनिये, पूरे चुनाव में भाजपा के निशाने पर साहेब रहे, तो पार्टी को जीतने के बाद दूसरा कोई सीएम कैसे बनेगा? जाहिर है, कांग्रेस के जीतने पर सीएम का फैसला आसानी से नहीं होगा।

आरेस्ट होते मंत्रीजी

रायपुर में एक प्रेक्षक से पंगा लेने के बाद प्रशासनिक अफसरों ने अगर फील्ंिडग न की होती तो सूबे के एक मंत्री अरेस्ट हो गए होते। पता चला है, प्रेक्षक को देख लेने की धमकी से चुनाव आयोग इस कदर खफा हुआ था कि मंत्रीजी को फौरन आरेस्ट करने कह दिया था। मगर कुछ आईएएस अफसरों ने आयोग में बात करके मामले को सुलझाया। आयोग को बताया गया कि मत्री के गिरफ्तार होने पर बवाल हो जाएगा……उनके समर्थक चुनाव का बहिष्कार भी कर सकते हैं। फिर, प्रेक्षक को भी कंविंस किया गया कि मंत्रीजी दिल से उतने बुरे नहीं है, जितने कि बाडी लैंग्वेज से। तब जाकर मामला शांत हुआ।

हर्ट बीट्स तेज

चीफ सिकरेट्री, डीजीपी और पीसीसीएफ के दावेदारों की इस खबर से हर्ट बीट्स तेज हो सकती है। भारत सरकार में आल इंडिया सर्विसेज के अफसरों की सेवानिवृति 60 से 62 करने की फाइल फिर से पीएमओ में पहुंच गई है। हालांकि, पीएमओ ने इसे एक बार खारिज करके वापिस लौटा दिया था। और सेवेंथ वेज बोर्ड के गठन के बाद इसकी संभावनाएं खतम हो गई थी। मगर पता चला है, नौकरशाही का भारी प्रेशर के चलते डीओपीटी ने सोमवार को फाइल फिर से पीएमओ भेज दिया है। जाहिर है, जिस फाइल को एक बार पीएमओ लौटा चुका है, उसे बिना किसी इशारे के डीओपीटी फिर से फारवर्ड करने की हिमाकत नहीं करेगा। खबर है, दिसंबर अंत तक प्रधानमंत्री इस पर मुहर लगा देंगे। अगर ऐसा होता है तो इसका सबसे अधिक असर छत्तीसगढ़ पर पड़ेगा। यहां 80 हजार रुपए स्केल वाले तीनों शीर्ष अफसर जनवरी से फरवरी के बीच रिटायर होने वाले हैं। सबसे पहले डीजीपी रामनिवास और पीसीसीएफ धीरेंद्र शर्मा 31 जनवरी को और इसके बाद 28 फरवरी को सीएस सुनिल कुमार सेवानिवृत हो जाएंगे। पीएमओ से ओके होने के बाद अब, तीनों का दो-दो साल बढ़ जाएगा। ऐसे में उनकी कुर्सी संभालने के लिए पिछले छह महीने से वार्मअप हो रहे अफसरों को धक्का लगना लाजिमी है।

कुटनीतिक आर्डर

पोस्टिंग को लेकर सरकार से लोहा ले रहे आईएएस अफसर केडीपी राव को बिलासपुर में सुब्रत साहू को कमिश्नर पोस्ट किए जाने के बाद भी कोई राहत नहीं मिल पाई। चुनाव आयोग के निर्देश पर सरकार ने साहू की पोस्टिंग तो कर दी मगर आदेश में लिख दिया सिर्फ चुनाव तक। याने 11 दिसंबर को आचार संहिता खतम हो जाने के बाद साहू मंत्रालय लौट आएंगे। और बिलासपुर कमिश्नर का पद फिर खाली हो जाएगा। जीएडी ने ऐसा आदेश इसलिए किया कि बिलासपुर में पूर्णकालिक कमिश्नर की नियुक्ति का लाभ राव को मिल जाता। कोर्ट भी मान लेता कि बिलासपुर में अब पोस्ट खाली नहीं है, इसलिए राव को सरकार रायपुर मे ही पोस्ट कर दें। इसी आशंका से दिमाग लगाकर आदेश निकाला गया। बहरहाल, सरकार किसी की भी बनें, कम-से-कम फरवरी तक राव का कल्याण नहीं होने वाला।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सूबे के ब्यूरोक्रेट्स क्यों चाह रहे हैं कि भाजपा की सरकार हैट्रिक बनाएं?
2. रविंद्र चैबे और बृजमोहन अग्रवाल सरीखे नेता भी अबकी अपने क्षेत्र में ही क्यों सिमटे रह गए?

शनिवार, 23 नवंबर 2013

तरकश, 24 नवंबर

tarkash logo

नाट आउट

अबकी विधानसभा चुनाव में छत्तीसढ़ के ब्यूरोकेे्रट्स के नाट आउट रहने का भी एक रिकार्ड बना। आमतौर पर फ्री एंड फेयर चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग आचार संहिता प्रभावशील होते ही कुछ आईएएस, आईपीएस अफसरों को निबटा देता है। ठीक कौवा मारकर टांगने के समान। 2008 के चुनाव में तो तत्कालीन डीजीपी विश्वरंजन भी आयोग के शिकार हो गए थे। पहली बार बड़ी संख्या में आईएफएस अफसरों पर भी कार्रवाई हुई थी। इस बार भी कुछ अफसरों का हटना लगभग तय माना जा रहा था। इनमें बिलासपुर के कलेक्टर ठाकुर राम सिंह ठाकुर का नाम भी था।उनके निकटतम रिश्तेदार तखतपुर से चुनाव लड़ रहे थे। आयोग के इतिहास में इससे पहले किसी प्रत्याशी का करीबी संबंधी ने चुनाव नहीं कराया। हटने की चर्चा तो जांजगीर कलेक्टर पी अंबलगन और कोरबा एसपी रतनलाल डांगी की भी थी। मगर आयोग ने नाहक किसी अफसर को हटाकर डिमरलाइज नहीं किया। जहां जरूरत महसूस हुई, वहां भले ही ओएसडी नियुक्त कर दिया। वो भी मतदान के दो दिन पहले। हालांकि, आचार संहिता के पहले सितंबर में कवर्धा कलेक्टर बदलने पर चुनाव आयोग ने भृकुटी जरूर चढ़ाई थी। मगर चीफ सिकरेट्री ने उन्हें कंविंस कर लिया था। कुल मिलाकर इससे छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी की के्रडिबिलिटी बढ़ी है।

महिला सीट

महिलाओं के लिए भले ही 30 फीसदी आरक्षण लोकसभा में पारित नहीं हो पाया मगर छत्तीसगढ़ में कुछ सीटें तो महिलाओं के लिए स्वमेव रिजर्व हो गए हैं। राज्य बनने के बाद से सारंगढ़ सीट महिलाएं जीत रहीं है। पहले काम्दा जोल्हे और उसके बाद पदमा मनहर। इस बार पदमा के खिलाफ भाजपा ने भी महिला प्रत्याशी को उतार दिया है। इसी तरह दुर्ग ग्रामीण में कांग्र्रेस की प्रतिमा साहू, भाजपा से रमशीला साहू और स्वाभिमान मंच से रजनी साहू किस्मत आजमा रही है। स्वाभिमान मंच को सबसे ज्यादा कहीं उम्मीद है तो वह दुर्ग ग्रामीण ही है।

जातिवाद की फसल

स्वाभिमान मंच ने पिछले चुनाव में जातिवाद का जो बीज रोपा, इस बार उसमें खाद-खरी डालने में भाजपा और कांग्र्रेस भी आगे रही। भाजपा ने जहां 16 साहू को मैदान में उतारा, तो काग्रेस ने भी सोशल इंजीनियरिंग में कोई कमी नहीं की। बेलतरा में जीतने वाले दावेदारों को छोड़कर भूवनेश्वर यादव को इसलिए टिकिट दे दी कि एक यादव को एडजस्ट करना था।

आखिरी चुनाव

टिकिट वितरण के दौरान सूबे में जिस तरह नजारे दिखे, उससे लगता है आने वाले चुनाव मे हालत और बिगड़ेंगे। और छत्तीसगढ़ में झारखंड। भाजपा जैसी पार्टी में अनुशासन तार-तार हुए। झंडा बैनर लिए भाजपा नेता एकात्म परिसर पहुंच गए। तो जमकर बगावतें भी हुई। कांग्र्रेस की स्थिति भी इससे जुदा नहीं थी। दोनों ही पार्टियों को एक-एक दर्जन नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाना पड़ा है। असल में, विधायकी में इतना पैसा, पावर और पहुंच बन जाती है कि कोई भी मौका छोड़ना नहीं चाह रहा है। हर नेता को लगता है कि एक बार मामला हाथ से निकल गया तो पता नहीं कब फिर मौका हाथ आए। सो, यह मानने वालों की कमी नहीं कि यह चुनाव फिर भी ठीक हुआ है। 2018 का चुनाव काफी टफ होगा। ऐसा टफ कि छत्तीसगढ़ के लोगों ने कल्पना नहीं की होगी।

तालाब में शराब

चुनाव से पहले विरोधी पार्टियों ने चुनाव आयोग से जमकर शिकायतें की थी, उसका खामियाजा न केवल सत्ताधारी पार्टियों को उठाना पड़ा बल्कि विरोधी पार्टी के प्रत्याशी भी हलाकान रहे। आयोग ने ऐसे चुनिंदा प्रेक्षकों को छत्तीसगढ़ भेज दिया, जो सख्ती के लिए जाने जाते हैं। उन प्रेक्षकोें ने ठंड में नेताओं को पसीना निकाल दिया। कसडोल में प्रेक्षक की गाड़ी आता देख एक पार्टी ने 407 में लगी शराब की बोतलों को तालाब में फेंक दिया। अगले दिन गांव वालों ने डूबकी लगाकर खूब बोतले ढोयी।

वेरी कंफ्यूजन

विधानसभा चुनाव में हुई बम्पर वोटिंग ने राजनीतिक पार्टियों के साथ ही सियासी पंडितों का कैलकुलेशन बिगाड़ दिया है। कोई भी दावे से बात करने तैयार नहीं। भाजपा और कांग्र्रेस उपर से जीत के दावे जरूर कर रहे हैं, मगर वस्तुस्थिति यह है कि भीतरखाने मेें स्थिति उलट है। गलियों एवं चैक-चैपालों पर चर्चा अंत में इस निष्कर्ष पर खतम हो जा रही है कि कुछ भी हो सकता है। दरअसल, इसके पीछे अपनी वजह है। 2003 और 2008 के उलट इस बार कोई इश्यू नहीं था। इस बार ऐसा कुछ ना होने के बाद 75 फीसदी से अधिक मतदान होना हतप्रभ करने का कारण तो बनता ही है। आखिर, बस्तर जैसे रिमोट एरिया मेें भी वोट डालने लोगों का हुजूम उमड़ पड़़ा। सियासी समीक्षकों का कहना है, दोनों के साथ प्लस और निगेटिव है। मुख्यमंत्री डा0 रमन सिंह की छबि बरकरार है मगर उनके मंत्रियों और नेताओं के कारनामे से लोग खुश नहीं हैं। तो कांग्रेस में अजीत जोगी ने बोलना बंद कर दिया था, इसके अलावा और कुछ दिखता नहीं। विकास यात्रा के दौरान भाजपा प्रदेश को नाप रही थी तो कांाग्रेस की स्थिति यह थी कि नामंकन के दो दिन पहले तक उसके सारे नेता दिल्ली में जमे थे। उधर, केंद्र की खुफिया रिपोर्ट्स को मानें तो बस्तर में इस बार फिर भाजपा का ही जोर रहेगा। भारी मतदान को एंट इनकंबेंसी से जोड़ने वालों के भी अपने दावे हैं। ऐसे मेें उंट किस करवट बैठेगा, बताना आसान नहीं है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सतनाम सेना के चुनाव मैदान में उतरने से किस पार्टी को सियासी फायदा हुआ?
2. किस अफसर के यहां ईओडब्लू का छापा पड़ना शुभ हो गया, उसकी पत्नी को टिकिट मिल गई?

शनिवार, 26 अक्टूबर 2013

तरकश, 27 अक्टूबर

tarkash logo


समझौते की चर्चा

कांग्रेस के भीतरखाने में अजीत जोगी और चरणदास महंत के समझौते की चर्चा सरगर्म है। याद होगा, जीरम हमले के बाद जोगी को जिस तरह हांसिये पर धकेला गया, उससे नाराज होकर उन्होंने बगावत की राह पकड़ ली थी। मगर कांग्रेस की सरकार बनाने के लिए स्क्रीनिंग कमेटी के चेयरमैन सीपी जोशी ने महंत और जोगी के लिए फामर्ूला तैयार किया। उसमें कांग्रेस के आने पर चरणदास सीएम, रेणू जोगी डिप्टी सीएम बनेंगे। इसके बाद मरवाही से अमित जोगी की टिकिट पार्टी ने किलयर कर दी। जाहिर है, ऐसी खबरों की पुषिट होती नहीं। मगर महंत और जोगी जिस तरह साथ मिलकर लड़ने की बात कर रहे हैं, उससे प्रतीत होता है कोर्इ खिचड़ी जरूर पकी है।

अंगूर की बेटी पर नजर

चुनाव आयोग की सख्ती से अबकी चुनाव में पहले जैसी शराब नहीं बंट सकेंगी। आयोग ने इसके लिए पहली बार बकायदा एक स्पेशल आब्जर्बर को तैनात किया है। इसके अलावा सूबे की तीनों शराब फैकिट्रयों में कैमरा लगा दिया गए हैं। आबकारी विभाग ने वहां एक-एक डीओ को बिठा दिया है। यहीं नहीं, इस बार सीमार्इ राज्यों से भी जुगाड़ नहंी हो सकेगा। छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे छह राज्यों के 29 जिलों में भी शराबबंदी के लिए उन राज्यों के राज्य निर्वाचन अधिकारियों को लेटर भेजा जा चुका है। याने आंध्रप्रदेश, उडीसा, झारखंड, यूपी, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के 29 जिलों में भी चुनाव के 48 घंटे पहले शराब की बिक्री बंद हो जाएगी।

जोगी इज जोगी

अजीत जोगी ने दिखा दिया कि मुषिकल हालात में भी वक्त को कैसे अपने पक्ष में किया जा सकता है। वरना, अक्टूबर के पहले सप्ताह तक यह दावा करने वालों की कमी नहीं थी कि जोगी के दिन अब लद गए………वे पार्टी से बाहर हो रहे हैं…….राहुल गांधी उन्हें नापसंद कर रहे हैं। मगर जोगी की पत्नी और बेटे, दोनों को टिकिट मिल गर्इ। यहीं नहीं, उनके कर्इ समर्थक भी टिकिट पाने में कामयाब हो गए। यह अलग बात है कि अमित को बेलतरा से मौका नहीं मिला। मगर चुनाव अभियान समिति का संयोजक बनाकर कांग्रेस आलाकमान ने जोगी की कसक पूरी कर दी। अब, साजा और पाटन में जोगी की सभा का विरोध करने वाले रविंद्र चौबे और भूपेष बघेल को बयान देना पड़ रहा है, जोगी वरिश्ठ नेता हैं और सभी सीटों पर प्रचार करेंगे। दरअसल, राजनीति की बिसात पर जोगी ने सूझ-बूझ से गोटियां चली। प्रेषर बनाने के लिए बीके हरिप्रसाद को मंच पर सुना दिया तो, राहुल गांधी के बारे में यह कहने से नहीं चूकि कि उम्र के फासले की वजह से राहुल उनकी बातों को नहीं समझ रहे हैं। जोगी ने जुलार्इ और अगस्त में जातीय सम्मेलन और धुंआधार दौरे कर कांग्रेस को न केवल हिला दिया बलिक यह मानने पर मजबूर कर दिया कि छत्तीसगढ़ में उन्हें नजरअंदाज करना आसान नहीं है। इससे पहले, 2003 में विधायकों की खरीद-फरोख्त के केस में जोगी जब सस्पेंड हुए थे, तब भी उन्हें खतम समझा गया था। मगर उन्होंने महासमुंद लोकसभा चुनाव जीतकर वापसी की थी। तभी उनके कटटर विरोधी भी मानते हैं, जोगी के विल पावर का कोर्इ जवाब नहीं है।

लीड का टक्कर

अमित को मारवाही से टिकिट मिलने के बाद जोगी खेमा चुनाव बाद की रणनीति बनाने में जुट गया है। जोगी गुट की कोषिष है, मारवाही में लीड का नया कीर्तिमान बनें। ताकि, अमित को स्थापित करने में आसानी हो। अभी अजीत जोगी नम्बर वन हैं। उन्होंने 42 हजार से अधिक मतों से पिछला चुनाव जीता था। जोगी कैैम्प चाहता है अमित को इससे भी अधिक लीड मिले। लीड के मामले में मारवाही के बाद खरसिया से नंदकुमार पटेल दूसरे और राजनांदगांव से डा0 रमन सिंह तीसरे नम्बर पर थे। पटेल को 32428 और रमन को 32389 वोट मिले थे। याने दूसरे और तीसरे में 39 वोट का अंतर था। बहरहाल, पटेल के निधन के बाद इस सीट पर उनके बेट उमेश पटेल चुनाव लड़ रहे हैं। जाहिर है, सहानुभूति वोटों की वजह से उनकी लीड इस बार बढ़गी। यह देखना दिलचस्प होगा कि लीड में अमित आगे निकलते हैं या उमेश।

पदश्री की प्रतीक्षा

पिछले साल मंत्रालय के अफसर पदश्री और पदमविभूषण के लिए नाम भेजना भूल गए थे, इस बार चुनावी व्यस्तता के चलते नाम नहंी जा सका। जबकि, चीफ सिकरेट्री सुनिल कुमार की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने सूबे से चार नामों को ओके कर दिया था। मगर उसके बाद फाइल आगे नहीं बढ़ सकी। 25 अक्टूबर तक भारत सरकार के पास नाम चला जाना था। सो, पदश्री के दावेदारों को अब अगले साल की प्रतीक्षा करनी चाहिए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. भाजपा से इस्तीफा देेने वाली करुणा षुक्ला के साथ सूबे में कितने कार्यकर्ता होंगे?
2. कांकेर में बगावत के पीछे किस भाजपा सांसद की भूमिका है?

शनिवार, 12 अक्टूबर 2013

तरकश, 13 अक्टूबर


tarkash logo

सीएस के लिए अनुष्ठान

टिकिट के लिए यज्ञ, हवन और अनुष्ठान सिर्फ पालीटिशियन नहीं कर रहे। बल्कि, बड़ा ओहदा पाने के लिए आला नौकरशाह भी इसमें पीछे नहीं हैं। खबर है, चीफ सिकरेट्री बनने के लिए एक एडिशनल चीफ सिकरेट्री ने भिलाई में विशेष अनुष्ठान कराया है। उन्हें किसी तांत्रिक ने नवरात्रि में अनुष्ठान कराने की सलाह दी थी। असल में, जब से सीएस के दावेदारों में अजय सिंह और एनके असवाल शामिल हुए हैं, दावेदारों की मुश्किलें बढ़ गई है। विवेक ढांड और डीएस मिश्रा सीनियर तो हैं ही, अजय सिंह भी एप्रोच में कम नहीं हैं। फिर, असवाल भी साढ़े छह साल से होम संभाल रहे हैं। जाहिर है, सरकार का भरोसा तो उन पर है ही। सो, असवाल को भी लोग कमजोर नहीं मान रहे। ऐसे में अनुष्ठान से ही शायद कोई रास्ता निकल आए।

नहीं चली मठ्ठाधीशों की

राहुल गांधी के फार्मूले की वजह से कांग्रेस के कई छत्रप पहले चरण की सीटों पर अपने लोगों को टिकिट नही ंदिला पाए। फूलोदेवी नेताम, शंकर सोढ़ी और शिव नेताम जैसे नेताओं के लिस्ट में नाम न देखकर कांग्रेस नेता भी चकित हैं। अगर मठ्ठाधीशों की चली होती तो राजधानी के एक नेता को जगदलपुर से टिकिट मिल गई होती। राहुल गांधी के बस्तर दौरे का पूरा खर्चा उन्होंने इसी भरोसे पर उठाया था कि जगदलपुर की टिकिट अबकी पक्की है। मगर सब गड़बड़ हो गया। मापदंड सिर्फ यह था कि जीतने वाला होना चाहिए। इसी लिए महेंद्र कर्मा के बेटों के बजाए उनकी पत्नी को टिकिट दी गई। कहा तो यह भी जा रहा है कि सर्वे के साथ ही राहुल ने खुफिया तंत्र से भी प्रत्याशी चयन में मदद ली।

खतरे की घंटी

मोहला मानपुर के विधायक की टिकिट कटने के बाद खराब परफारमेंस वाले कई विधायको की रात की नींद उड़ गई है, तो कांग्रेस की लिस्ट के बाद बस्तर के कई भाजपा विधायकों की खतरे की घंटी बज रही है। कोंडागांव में महिला बाल विकास मंत्री लता उसेंडी के खिलाफ कांग्रेस ने मोहन मरकाम को उतारा है। मरकाम एलआईसी एजेंट हैं, और पिछले दो साल से सायकिल पर घूमकर क्षेत्र में काम कर रहे हैं। सो, भाजपा में यह मानने वालों की कमी नहीं कि कोंडागांव सीट अगर जीतनी है तो भाजपा को कुछ करना पड़ेगा। जगदलपुर से कांग्रेस के प्रत्याशी बनाए गए शामू कश्यप महार जाति से ताल्लुकात रखते हैं। महार जाति के 45 हजार वोट हैं। और आदिवासी वर्ग में शामिल न करने को लेकर महार जाति के लोग सरकार से खफा हैं। भानुप्रतापपुर से मनोज मंडावी की जीत अभी से तय बताई जाने लगी है। कुल मिलाकर भाजपा को अब रणनीति बदलनी पड़ेगी।

रास्ता साफ

मनोज मंडावी को भानुप्रतातपुर से टिकिट मिलने के बाद अब, अकलतरा से सौरभ सिंह और चंद्रपुर से नोबेल वर्मा को टिकिट मिलना तय हो गया है। सौरभ बसपा से और नोबेल राकंपा से कांग्रेस में आए हैं। राहुल फार्मूले की आड़ में दोनों को टिकिट देने का अजीत जोगी विरोध कर रहे थे। मगर उन्हीं के खेमे के मंडावी को टिकिट देने से सौरभ और नोबेल का रास्ता साफ हो गया है। मंडावी भी कुछ दिन पहले ही कांग्रेस में लौटे हैं। संगठन खेमे के नेताओं ने भी केशकाल नगर पंचायत के खट्टे अनुभवों को देखते मंडावी के रास्ते में रोड़ा अटकाने की कोशिश नहीं की।

सोढ़ी को झटका

चुनाव लड़ने के लिए आईएएस अफसर एसएस सोढ़ी ने वीआरएस लिया था। कांकेर से वे कांग्रेस की टिकिट के लिए आशान्वित थे। उन्होंने इसकी तैयारी भी शुरू कर दी थी। मगर पार्टी ने उन्हें झटका दे दिया। बताते हैं, कांग्रेस ने सर्वे कराया था। उसमें सोढ़ी की रिपोटर््स अनुकूल नहीं थी। अब, सोढ़ी के सामने पछताने के अलावा और कोई चारा नहीं है। हालांकि, चुनाव लड़ने वाले रिटायर नौकरशाहों में सरजियस मिंज और एसके तिवारी के नाम की भी चर्चा है। मिंज का कुनकुरी से और तिवारी का बेमेतरा से।

युद्धवीर की जिद

चंद्रपुर के विधायक युद्धवीर सिंह जूदेव ने इस बार भी वहीं से किस्मत आजमाने का फैसला किया है। अधिकारिक तौर पर यद्यपि अभी टिकिट का ऐलान नहीं हुआ है लेकिन उपर से इशारा ओके होने के बाद उन्होंने प्रचार भी प्रारंभ कर दिया है। युद्धवीर इस आधार पर लोगों से दोबारा मौका देने की मांग कर रहे हैं कि पिता के इलाज के सिलसिले में लंबे समय तक बाहर रहे। इसके कारण वे चंद्रपुर पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे पाए। हालांकि, युद्धवीर सिंह को चंद्रपुर से न लड़ने की सलाह दी गई थी। खुद मुख्यमंत्री ने उन्हें सीएम हाउस बुलाकर उन्हें रायगढ़ से लडने के फायदे गिनाए थे। रायगढ़ में टिकिट को लेकर दो नेताओं में जंग छिड़ी हुई है। युद्धवीर के वहां जाने से भाजपा को भी राहत मिलती। मगर, युद्धवीर नहीं माने।

अंत में दो सवाल आपसे

1.    अमिताभ जैन को प्रींसिपल सिकरेट्री के लिए डीपीसी हो जाने के बाद भी उनका आर्डर क्यों नहंी निकाला जा रहा?
2. एक मंत्री का नाम बताइये, जो राजनांदगांव की अलका मुदलियार के संपर्क में हैं?

शनिवार, 5 अक्टूबर 2013

तरकश, 6 अक्टूबर

तरकश, 6 अक्टूबर

tarkash logo

जो होता है……

कहते हैं, जो होता है, अच्छा होता है। कम-से-कम प्रींसिपल सिकरेट्री अजय सिंह और एनके असवाल के मामले में तो यह सही उतर रहा है। दोनों को एडिशनल चीफ सिकरेट्री बनाने के लिए 5 अक्टूबर को रायपुर में डीपीसी होनी थी। मगर दो रोज पहले डीओपीटी सिकरेट्री ने उस दिन रायपुर आने से असमर्थता व्यक्त कर दी। आईएएस लाबी को लगा, अब देरी हुई तो मामला लटक जाएगा। सो, उच्च स्तर पर प्रयास हुआ और एक दिन पहले याने चार अक्टूबर को रायपुर के बजाए दिल्ली में डीपीसी करने का फैसला लिया गया। और डीपीसी के घंटे भर बाद चुनावा आयोग ने बिगुल बजा दिया। जाहिर है, कम-से-कम पांच अक्टूबर को डीपीसी कतई नहीं हो पाती। चुनाव आयोग को लेटर भेज कर इजाजत ली जाती। तब डीओपीटी सिकरेट्री की सुविधा के हिसाब से नया डेट तय होता। मान कर चलिए एकाध महीने तो इसमें निकल ही जाता। कहने का आशय यह है, जो होता है…..।

माटी पुत्रों में जंग

अजय सिंह और एनके असवाल के एसीएस बन जाने के बाद अब चीफ सिकरेट्री की कुर्सी पाने की जंग दिलचस्प हो जाएगी। अगले साल फरवरी में सुनिल कुमार के रिटायर होने के बाद स्वभाविक तौर पर इसके पांच दावेदार हो गए हैं। हालांकि, इनमें एक को तो आउट आफ रेस ही मानिये। एक को फिलहाल इस तरह के सपने नहीं आते। बचें तीन में दो माटी पुत्र हैं। और जबर्दस्त रिसोर्सफुल भी। एक रायपुरिया तो दूसरा बिलासपुरिया। एक जरूरत से ज्यादा धाकड़ तो दूसरे की पत्नी भी तगड़ा एप्रोच वाली है। सो, एक और एक मिलकर ग्यारह हो गया तो छोटे मियां भी सिकंदर बन सकते हैं। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह ने आखिर, सीनियरटी में 12 वें नम्बर के राकेश साहनी को सीएस नहीं बना दिया था।

कौंवा मार कर

हर बार ऐसा होता है, निर्वाचन आयोग चुनाव की तिथियों का ऐलान करने के साथ ही दो-एक आईएएस, आईपीएस को झटका देकर कड़े रुख का मैसेज देता है। बिल्कुल, कौंवा मारकर टांगने जैसा। उसके बाद अफसर ऐसा सहमते हैं कि चूं से चांए नही होता। ब्यूरोके्रसी में इस बार भी बडी उत्सुकता है कि चुनाव आयोग इस बार किसे कौंवा बनाता है। याद होगा, 2003 के चुनाव में बीएस अनंत जोगी के हेलीकाप्टर पर सवार हो गए थे। इस चक्कर में वे निबटे थे। ऐसे कई नाम हैं, जिनका मामला गंभीर ना होने के बाद भी वे कौंवा बन गए। हालांकि, बिलासपुर कलेक्टर ठाकुर राम सिंह का केस कुछ अलग होगा। उनके निकटतम रिश्तेदार आशीष सिंह को तखतपुर से टिकिट लगभग तय दिख रहा है। सो, इस आधार पर बिलासपुर में नया कलेक्टर पोस्ट हो सकता है। वरना, राम सिंह बनें रहंेगे।

हम हैं राजकुमार…..

चार अक्टूबर को चुनाव का ऐलान होते ही अफसरों ने ठंडी आहें भरी। अब ढाई महीने तक मंत्रियों और नेताओं की खुशामद करने का कोई लफड़ा नहंी। न यस सर कहने की बाध्यता। न जी-हुजूरी। याने एकदम आजाद। मंत्री प्रायवेट गाड़ी में और अफसर ठसके से पीली बत्ती वाली सरकारी गाड़ी में। यहां के हम हैं राजकुमार…..जैसे। राजधानी में पोस्टेड एक युवा आईएएस की सुनिये, परीक्षा खतम होने के बाद जिस तरह राहत महसूस होती है, कुछ वैसा ही कल भी लगा।

कांग्रेस फस्र्ट?

सताधारी पार्टी चुनावी तैयारियों में भले ही प्लस होने का दावा करें मगर कांग्रेस की टिकिट पहले धोषित होगी। पता चला है, कांग्रेस की लिस्ट तैयार है। कल सीईसी में अनुमोदन होगा। इसके बाद सुची कभी भी प्रेस को जारी हो सकती है। सियासी सूत्रों की मानंे तो लिस्ट अबकी कुछ चैंकाने वाली होगी। कई बड़े नेताओं को इसमें झटका लगा सकता है। एक आला नेता के परिजन को पार्टी ने कहीं से भी टिकिट देने से दो टूक इंकार कर दिया है।

महिला महापौर

विधानसभा चुनाव में अबकी सूबे के दोनों बड़े नगर रायपुर और बिलासपुर की महिला महापौरों को कांग्रेस ने मैदान में उतारने का निर्णय लिया है। सूत्रों का कहना है, दोनों की टिकिट लगभग फायनल है। रायपुर दक्षिण से किरणमयी नायक और बिलासपुर से वाणी राव। हालांकि, बिलासपुर में अमर अग्रवाल को जीताने के लिए कांग्रेस के एक प्रभावी गुट ने कमर कस लिया है। मगर रायपुर में मोहन भैया को किरण से परेशानी हो सकती है। किरण जुझारु नेत्री है। सो, उनके समझौता करना भी मुश्किल है। लगता है, रायपुर दक्षिण में अबकी लोगों को रीयल कुश्ती देखने को मिलेगी, नुरा कुश्ती नहीं।

बस्तर में कांग्रेस

बस्तर को लेकर कांग्रेस लाख दावा कर लें, मगर सीनियर कांग्रेसी भी मानते हैं कि वहां स्थिति बहुत ठीक नहीं है। आलम यह है कि 12 सीटों में से पांच पर टिकिट देने के लिए उसे ठीक-ठीक आदमी नहीं मिल रहे। गुटीय लड़ाइयों की वजह से पार्टी जीरम नक्सली हमले को कैश करने में नाकाम रही। उसके पास बस्तर टाईगर महेंद्र कर्मा अब रहे नहीं। उनके परिजनों में कर्मा जैसी बात नहीं है। उल्टे, 2008 में जीती एकमात्र कोंटा सीट भी अबकी हाथ से निकल जाए, तो आश्चर्य नहीं। कांेटा में अबकी मनीष कुंजाम की स्थिति मजबूत है। कांग्रेस को भानुप्रतापपुर में मनोज मंडावी की एक सीट मिलना निश्चित लग रहा है। ऐसे में, बस्तर में कांग्रेस के दावे गड़बड़ाते दिख रहे हैं। और इसको लेकर कांग्रेस के सीनियर लीडर भी चिंतित दिख रहे हैं। और तभी रमन सिंह भी इतने कांफिडेंट दिख रहे हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1.    प्रशासन अकादमी के डायरेक्टर मुदित कुमार ने प्रोबेशनर आईएएस के मामले में ऐसा क्या किया कि आईएएस बिरादरी उनसे नाराज हो गया है?
2.    बिलासपुर रेंज के आईजी ने पिछले तीन महीने में कुछ अफसरों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की और पुलिस मुख्यालय में उसे पलट दिया। इसके पीछे वजह क्या है?

शनिवार, 28 सितंबर 2013

तरकश, 29 सितंबर

तरकश, 29 सितंबर

tarkash logo

अकेले पड़ गए मोहन भैया

सुनिल कुमार एपिसोड पर रमन सरकार के ताकतवर मंत्री बृजमोहन अग्रवाल अकेले पड़ गए। कोशिशों के बाद भी कोई मंत्री खुलकर सामने नहीं आया। कैबिनेट से पहले सीएम के कक्ष में अमर अग्रवाल अपने किसी काम से गए थे। गोलीकांड के मसले पर ननकीराम कंवर कहीं कुछ बोल न दें, इसलिए सीएम ने उन्हें पहले से बुलवा लिया था। रामविचार नेताम भी अपने ही काम से आए थे। बृजमोहन के साथ हेमचंद यादव आए। तब सीएम के पास सुनिल कुमार और सुबोध सिंह थे। बृजमोहन ने सीएम से कहा, आपसे कुछ बात करनी है, सो इशारा भांपकर सीएस और सुबोध बाहर निकल गए। बताते हैं, इसके बाद बृजमोहन ने अपनी भड़ास निकाली। मगर साथी मंत्रियों से जिस तरह की अपेक्षा उन्हेांने की थी, वैसा नहीं हुआ। सभी मंत्री स्कूल शिक्षा मंत्री के चेहरे के भाव-भंगिमा को देखते रहे। अब, मोहन भैया को अखर रहा होगा, काश!प्रेमप्रकाश पाण्डेय और अजय चंद्राकर चुनाव जीत गए होते। तो आज स्थिति कुछ और होती।

बात पुरानी मगर….

बात 11 साल पुरानी है मगर सत्ता मंे बैठे लोगों के लिए मौजूं है। जब राजधानी के लिए जगह सलेक्ट हुआ था, उस समय कमेटी में एक चीफ सिकरेट्री भी थे। जब तक सरकार जमीन की खरीदी-बिक्री पर रोक लगाई जाती, सीएस के एक करीबी ने चिन्हित जमीन के ठीक बगल में 2 करोड़ की जमीन खरीद डाली। अजीत जोगी ने इसकी जांच कराई और जब पता चला कि वह सीएस का ही आदमी है, और उनके इशारे पर ही यह कारगुजारी की है, जोगी जैसा सीएम ने मौन रहना ही मुनासिब समझा। तब उनके कुछ करीबी लोगों ने पूछा था कि जिम्मेदार पोस्ट पर बैठे अफसर ने इतनी बड़ी गलती की है और आप ने कुछ नहीं किया। तब जोगी ने कहा था, सीएस पर उंगली उठेगी……मामला मीडिया में उछलेगा और इससे ब्यूरोक्रेसी डिमरलाइज होगी। उसका असर शासन-प्रशासन पर पड़ेगा। और अभी भाजपा के राज में क्या हुआ, आप सबने देखा। जाहिर है, इसका मैसेज अच्छा नहीं गया। जाहिर है, जब र्शीर्ष अफसर के साथ ऐसा हो सकता है, तो नीचे के अफसरों के साथ क्या होता होगा, समझा जा सकता है।

अंत भला तो

कहते हैं, अंत भला तो सब भला। मगर अपशकुन कुछ ऐसा हुआ है कि अंत गड़बड़ा जा रहा है। विधानसभा सत्र की तरह रमन कैबिनेट की अंतिम बैठक के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। जीरम नक्सली हमले की वजह से विधानसभा का आखिरी सत्र कड़वाहट भरा रहा। पहली बार न ग्रुप फोटोग्राफी हुई और न ही बिदाई पार्टी। लेकिन इससे भी खराब स्थिति 24 सितंबर को रमन सिंह की आखिरी कैबिनेट के साथ रही। जिम्मेदार मंत्रियों ने ऐसी जिम्मेदारी निभाई कि कैबिनेट की खबर गौण हो गई। मीडिया ने भी इसमंे अपनी ओर से छौंक लगाने में कोई कमी नही की…..मंत्रियों का हंगामा……इस्तीफे की पेशकश…… सीएस हटाओ……एसीएस हटाओ…..। खबरों को देखकर ऐसा प्रतीत हुआ, मानों मंत्री ट्रेड यूनियन के नेता हो गए हों।

वी वांट थर्टी सीट्स

भाजपा की टिकिट में इस बार आरएसएस का अड़ंगा लग रहा है। अंदरखाने से जो खबरें निकल कर आ रही है, उस पर यकीन करें तो संघ का भारी प्रेशर है कि भाजपा 2008 में जीती 50 सीटें ले लें साथ में, कांग्रेस के साथ नुराकुश्ती में हारने वाली 10 सीटें भी। बची 30 सीटें आरएसएस अपने लिए मांग रही है। वहां वह अपने हिसाब से प्रत्याशी उतारेगी। इसके लिए पिछले सप्ताह नागपुर से भैया जोशी राजनांदगांव पहुंचे थे। संघ और भाजपा नेताओ ंको टिप्स देकर वे वहीं से नागपुर लौट गए। इसको देखकर लगता है, भाजपा के लिए भी अबकी प्रत्याशी चयन करना उतना आसान नहीं होगा।

एक म्यान में

एक म्यान में एक ही तलवार रह सकता है। मगर पीसीसी ने एक में दो तलवार रखने की कोशिश की और उसका रिजल्ट आपने देखा ही। मीडिया सेल के चेयरमैन से नेताजी को इस्तीफा देना पड़ गया। असल में, शैलेष नीतिन त्रिवेदी वहां पहले से कमान संभाले हुए थे। नंदकुमार पटेल ने उन्हें वहां बिठाया था और उन्होंने मीडिया विभाग को सिस्टमेटिक कर दिया था। मगर हर बार की तरह चुनावी सीजन में मीडिया सेल में सक्रिय होने वाले नेताजी ने उपर के नेताओं को साधकर इस बार फिर अपना जलवा दिखाया। मगर इस बार अपने ही अपने सगा से उनका सामना हो गया। रायपुर इंजीनियरिंग कालेज से सिविल में बीई करने के बाद राजनीति में हाथ आजमाने आए त्रिवेदी भी कमजोर थोड़े ही हैं। दोनों ही बलौदा बाजार से टिकिट के दावेदार हैं। नेताजी की बिदाई की एक वजह यह भी बताई जाती है, राहुल की सभा में वे हेलीकाप्टर से जगदलपुर जाना चाहते थे। मगर दाउ ने यह कहते हुए मना कर दिया कि मीडिया सेल का काम मीडिया आफिस में ही बैठकर करें। इसके बाद अनबन हुआ और नेताजी ने इस्तीफा देना ही बेहतर समझा।

सत्तू भैया और अमर

विधानसभा चुनाव के लिए किसी की तगड़ी तैयारी होगी, तो वह हैं कांग्रेस में सत्तू भैया और भाजपा में अमर अग्रवाल की। बताते हैं, 2008 में चुनाव हारने के चार घंटे बाद ही सत्तू भैया ने एक तेरही कार्यक्रम में जाकर लोगों को चैंका दिया था। एक साल से तो वे लगातार अपने इलाके में सक्रिय हैं। रही बात अमर की तो उनसे राजनीतिज्ञों को इलेक्शन मैनेजमेंट सीखना चाहिए। छह महीने तक अमर की स्थिति कमजोर आंकी जा रही थी। मगर अब लोग कह रहे है कि अमर लीड बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। टिकिट का ऐलान होने से पहले शहनवाज हूूसैन अल्पसंख्यकों को और चेतन भगत युवाओं को चार्ज करके जा चुके हैं। अमर ने 22 सितंबर को अपने जन्म दिन का भी बखूबी उपयोग किया। बताते हैं, दिन भर के उनके कार्यक्रम इस तरह तैयार किए गए कि उन्हें 10 हजार से अधिक लोगों से सीधे मिलने का मौका मिल गया। पोस्टर-बैनरों से पूरा बिलासपुर अमरमय रहा। छत्तीसगढ़ मंे संभवतः यह पहला मौका होगा, जब किसी नेता का जन्मदिन इतना धूमधाम से मना हो। अमर जिस तरह से बैक हुए हैं, उससे कांग्रेस के लोग भी हतप्रभ हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. खुद के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग करना कितना बड़ा अपराध है?
2. मध्यप्रदेश में 90 बैच के आईएएस प्रींसिपल सिकरेट्र बन गए मगर छत्तीसढ़ में 89 बैच के आईएएस प्रमोट क्यों नहीं हो पाए हैं?

सोमवार, 23 सितंबर 2013

तरकश, 22 सितंबर

फीका प्रवास 

जीरम नक्सली हमले के समय आकस्मिक प्रवास को छोड़ दें तो प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह आठ साल बाद छत्तीसगढ़ आए। इसके बावजूद उनका प्रवास फीका रहा। विधानसभा चुनाव सामने है इसलिए, सत्ताधारी पार्टी द्वारा इसे महत्व देने का सवाल ही नहीं था। कांग्रेस ने भी उत्साह दिखाने की कोई कोशिश नहीं की। आलम यह रहा कि अरसे बाद छत्तीसगढ़ आए प्रधानमंत्री का राजधानी रायपुर में वह एक कार्यक्रम नहीं ले पाई। न एक बैनर और ना ही एक पोस्टर। मीडिया में भी पीएम विजिट की खबर खानापूर्ति समान ही लगी। अलबत्ता, मीडिया को यह खबर अधिक अहम लगी कि अजीत जोगी को मंच पर नहीं बिठाया गया। सो, पीएम गौण हो गए और जोगी लीड समाचार बन गए।

अब डीएस भी

 चीफ सिकरेट्री सुनिल कुमार के बाद शनिवार को एसीएस डीएस मिश्रा ने भी मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर अपने खिलाफ सीबीआई जांच करने का आग्रह कर दिया। उन्होंने सीएम को लिखा है कि मैरे विरुद्ध कतिपय लोगों ने सायकिल और फर्नीचर खरीदी में चीफ विजिलेंस कमिश्नर से जांच की मांग की गई है। मैं चाहता हूं कि इसकी उच्च स्तरीय जांच की जाए, ताकि दूध-का-दूध और पानी-का-पानी हो जाए। अब, यह देखना दिलचस्प होगा कि तीसरा कौन आईएएस इस तरह का साहस दिखाता है।

तू-तू, मैं-मैं

 नौकरशाही में शीर्ष पद के दो दावेदार पिछले हफ्ते जमकर उलझ पड़े। मौका था, राज्य कर्मकार मंडल की बैठक का। इसमें विभागीय आईएएस इस बात को लेकर अड़े थे कि कैश ट्रांसफर उन पर लागू नहीं होता। इसलिए, असंगठित मजदूरों को सायकिल, सिलाई मशीन ही वितरित की जाएगी। और खजाना वाले आईएएस का कहना था, ऐसा संभव नहीं है। उन्हें कैश ही ट्रासंफर किया जाएगा। बताते हैं, इस पर दोनों आला अधिकारी इतने गरम हो गए कि तू-तू, मैं-मैं होने लगीं। आलम यह था कि सिर्फ हाथापाई नहीं हुई। बाकी सब हो गया। हालांकि, आखिर में तय यही हुआ कि कैश दिया जाए।

नेतागिरी का चक्कर


आईएएस अफसरों की नेतागिरी के चक्कर में प्रींसिपल सिकरेट्री अजय सिंह मारे गए। जनवरी से प्रमोशन ड्यू होने के बाद भी अब तक वे एडिशनल चीफ सिकरेट्री नहीं बन पाए। नारायण सिंह के विद्युत नियामक प्राधिकरण में जाने से एक पोस्ट खाली हुआ था। लेकिन 83 बैच के आईपीएस गिरधारी नायक के डीजी बन जाने से आईएएस अफसरों ने आत्मसम्मान का प्रश्न बना लिया और नायक के बैच के आईएएस एनके असवाल को एसीएस बनाने के लिए लाबिंग कर दी। पहंुच गए सीएम के दरबार में। सीएम तो वैसे भी उदार है, तथास्तु कह दिया। इसके बाद असवाल के लिए 20 अगस्त की कैबिनेट में स्पेशल तौर पर एक पोस्ट क्रियेट किया गया। मगर भारत सरकार की अनुमति की पेंच में मामला फंस गया है। दिल्ली से हरी झंडी मिलें तो डीपीसी हो, मगर अभी कोई उम्मीद नहीं दिख रही है। आचार संहिता के बाद तो मुश्किल ही लगता है।

मेष राशि का लफड़ा


अजय सिंह ही नहीं मेष राशि वाले सभी अफसरों के साथ ऐसा ही चल रहा है। अमिताभ जैन सिकरेट्री होने के बाद भी स्पेशल सिकरेट्री वाला पद पाए हैं, तो अमित अग्रवाल को पोस्टिंग के लिए 11 दिन तक मंत्रालय में धक्के खाने प़ड़े। जगदलपुर के कलेक्टर अंकित आनंद और एसपी अजय यादव एक हादसे में बाल-बाल बचे। बड़ों के प्रेशर में आलोक अवस्थी यूज होकर मुसीबत मोल ले ली।  

चोरी और सीनाजोरी

 34 करोड़ रुपए के पेपर टेंडर घोटाले में पाठ्य पुस्तक निगम चोरी और सीनाजोरी पर उतर गया है। निगम की ओर से जारी बयान में कहा गया है, पेपर की जब खरीदी ही नहीं हुई तो गड़बड़ी कैसे हो गई। ये तो वैसा ही हुआ कि चोर अगर घर का ताला तोड़ते हुए पकड़ा जाए और कहे कि उसने अभी चोरी नहीं की है, तो वह चोर कैसे हो गया। 12 सितंबर को टेंडर ओपन हुआ और उसी दिन वर्क आर्डर जारी कर दिया गया। मन में कहीं से यह डर तो था ही कि शिकायत होने पर मामल बिगड़ न जाए।

अंत में दो सवाल आपसे


1. किस युवक कांग्रेस नेता की वसूली की शिकायत दिल्ली पहुंच गई है और वहां से इसकी क्वेरी भी शुरू हो गई है?
2. मुख्यमंत्री द्वारा कैश ट्रांसफर लागू करने के बाद स्कूल शिक्षा विभाग और कर्मकार मंडल अब वित्त विभाग से बजट क्यों नहीं मांग रहा है?